आखिर जिस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, वही हुई। गोलू घर से भाग गया। गोलू के मम्मी-पापा, बड़ा भाई आशीष और दोनों दीदियाँ ढूँढ़-ढूँढ़कर हैरान हो गईं। रोते-रोते उसकी मम्मी का बुरा हाल हो गया। और वे बार-बार आँसू बहाते हुए कहती हैं, “मेरा गोलू ऐसा तो न था। जरूर यह किसी की शरात है, किसी ने उसे उलटी पट्टी पढ़ाई है। वरना...” “वरना वह तो घर से स्कूल और स्कूल से घर के सिवा कोई और रास्ता जानता ही न था। घर पर बैठे-बैठे या तो किताब पढ़ता रहता था या फिर छत पर टहलता। थोड़ा-बहुत आसपास के दोस्तों के साथ खेल-कूद। गपशप। ज्यादा मेलजोल तो उसका किसी से था नहीं। लेकिन...पता नहीं, क्या उसके जी में आया, पता नहीं!” कुसुम दीदी कहतीं और देखते ही देखते मम्मी, कुसुम दीदी और सुजाता दीदी की आँखें एक साथ भीगने लगतीं। आस-पड़ोस के लोग जो दिलासा देने आए होते, वे भी टप-टप आँसू बहाने लगते। गोलू था ही ऐसा प्यारा। शायद ही मोहल्ले में कोई बच्चा ऐसा हो जिससे उसका झगड़ा हुआ हो। मारपीट तो जैसे जानता ही नहीं था। कभी किसी ने आज तक उसकी शिकायत नहीं की थी। लेकिन आज...? कुछ ऐसा कर गया वह कि घर के ही नहीं, बाहर के लोग भी एकदम हक्के-बक्के से हैं।
Full Novel
गोलू भागा घर से - 1
............... 1 मक्खनपुर से दिल्ली रेलवे स्टेशन तक आखिर जिस बात की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, वही हुई। गोलू से भाग गया। गोलू के मम्मी-पापा, बड़ा भाई आशीष और दोनों दीदियाँ ढूँढ़-ढूँढ़कर हैरान हो गईं। रोते-रोते उसकी मम्मी का बुरा हाल हो गया। और वे बार-बार आँसू बहाते हुए कहती हैं, “मेरा गोलू ऐसा तो न था। जरूर यह किसी की शरात है, किसी ने उसे उलटी पट्टी पढ़ाई है। वरना...” “वरना वह तो घर से स्कूल और स्कूल से घर के सिवा कोई और रास्ता जानता ही न था। घर पर बैठे-बैठे या तो किताब पढ़ता रहता था ...Read More
गोलू भागा घर से - 2
2 देखिए, मैं तो यहीं हूँ! गोलू क्यों भागा घर से?...गोलू घर से क्यों भागा? एक यही सवाल है मुझे इन दिनों लगातार तंग कर रहा है—रात-दिन, दिन-रात! ‘गोलू, गोलू, गोलू...।’ मैं गोलू की यादों के चक्कर से बच क्यों नहीं पा रहा हूँ? अचानक जब-तब उसका भोला-सा प्यारा चेहरा आँख के आगे आकर ठहर जाता है जैसे कह रहा हो कि ‘मन्नू अंकल, मैं तो कहीं गया ही नहीं। मैं तो यहीं हूँ। देखिए, ऐन आपकी आँख के आगे...!’ और मैं हाथ बढ़ाकर जैसे ही छूने की कोशिश करता हूँ कि गायब, एकदम गायब...उसी तरह हँसते-हँसते। चारों तरफ ...Read More
गोलू भागा घर से - 3
3 गोलू के आशीष भैया यह बात आपको बड़ी अटपटी लगेगी, पर सही है कि गोलू के घर से का एक कारण और था—उसके आशीष भैया! सुनने में यह बात बड़ी अजीब लगेगी और गोलू तो अपने मुँह से कभी कहेगा नहीं। क्योंकि आशीष भैया तो इतने अच्छे हैं कि कभी किसी ने उन्हें कड़वा बोलते नहीं सुना। सब उनकी टोकरा भर-भरकर तारीफ करते हैं। सभी बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि आशीष सचमुच लायक है, कुछ बनकर दिखाएगा!...गोलू के सब दोस्त भी आशीष भैया की जमकर तारीफ करते हैं। पर सचमुच आशीष भैया का यह अच्छा होना ही उसके ...Read More
गोलू भागा घर से - 4
4 मगर गोलू है कौन असल में हमने गोलू के मन की उथल-पुथल और एक सींग वाले पशु को उसके डर के बारे में इतना सब तो बता दिया, पर...बीच में कहीं कुछ छूट रहा है। गोलू है कौन...? कहाँ रहता है? उसके मम्मी-पापा, आशीष भैया और सुजाता दीदी कैसी हैं? थोड़ा उसके घर-परिवार का हालचाल भी तो हमें लिखना चाहिए था। पर याद ही नहीं रहा। तो भई, अब यहाँ लिख देते हैं। गोलू का जन्म एक छोटे से कस्बे मक्खनपुर में हुआ था। वह पैदा हुआ था 1 मई, सन् 1988 को। यानी जब वह भागा, तो ...Read More
गोलू भागा घर से - 5
5 एक छोटी-सी चिट्ठी बहरहाल, अगला दिन। एक दुखभरे निर्णय का दिन। गोलू ने बस्ते में अपनी रखीं तो कॉपी के पन्ने पर लिखी एक छोटी-सी चिट्ठी भी सरका दी। वह चिट्ठी उसने आज सुबह ही लिखी थी। उस चिट्ठी में लिखा था : ‘आदरणीय मम्मी-पापा, चरण स्पर्श। मैं जा रहा हूँ। कहाँ? खुद मुझे पता नहीं। कुछ बनकर लौटूँगा, ताकि आपको इस नालायक बेटे पर शर्म न आए। दोनों बड़ी दीदियों और आशीष भैया को नमस्ते। —आपका गोलू’ कॉपी के ही एक पन्ने को फाड़कर उसने जल्दी-जल्दी में ये दो-चार सतरें लिख ली थीं। उस चिट्ठी को बस्ते ...Read More
गोलू भागा घर से - 6
6 दिल्ली की तरफ कौन-सी गाड़ी जाएगी अंकल? फिरोजाबाद बस अड्डे पर उतरते ही गोलू को पहला जरूरी काम गोवर्धन चाचा की नजरों से बचना। ताकि वे यह न पूछ लें कि ‘गोलू बेटे किधर जाना है, कौन-सी किताब लानी है? आओ, मैं खुद चलकर दिलवा दूँ, तुम्हें तो ठग लेगा!’ गोलू तेजी से पानी पीने के बहाने प्याऊ की ओर चला गया और उसके बाद एक बस के पीछे खड़ा हो गया। तभी उसका पैर पानी से भरे एक गड्ढे में पड़ा। छपाक...! सारी पैंट गीली हो गई। जल्दबाजी में उसका ध्यान इस गड्ढे पर गया ही नहीं ...Read More
गोलू भागा घर से - 7
7 कहाँ जाओगे बेटा? साथ वाली सीट पर एक परिवार था। खुशमिजाज से दिखते पति-पत्नी। सात-आठ बरस का एक बेटा। एक छोटी सी चंचल बेटी, कोई तीन-साढ़े तीन बरस की। दोनों बच्चे खूब मगन मन बातें करते जा रहे थे। कभी-कभी आपस में झगड़ भी पड़ते, फिर खिल-खिल हँस पड़ते। उनके मम्मी-पापा भी उनकीह बातें सुन-सुनकर खुश हो रहे थे। खुश तो गोलू भी बहुत हो रहा था, पर अंदर एक टीस, एक दर्द की लकीर सी उठती। उसे अपने मम्मी-पापा की बहुत-बहुत याद आ रही थी। बार-बार एक भय उसे सिहरा देता—पता नहीं, अब मम्मी-पापा से फिर कभी ...Read More
गोलू भागा घर से - 8
8 पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अब रात के साढ़े ग्यारह बजे हैं। गोलू कुछ-कुछ सा, यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ धक्के खाता-सा घूम रहा है। उसका दिमाग जैसे ठीक-ठीक काम नहीं कर रहा। इतना बड़ा स्टेशन। इतनी बत्तियाँ...इतनी जगर-मगर। इतनी भीड़-भाड़। देखकर गोलू भौचक्का सा सोच रहा है—यहाँ भला सोने की जगह कहाँ मिलेगी?...और सोऊँगा नहीं, तो कल काम ढूँढ़ने कैसे निकल पाऊँगा? लेकिन धीरे-धीरे लोग कम होने लगे, तो एक बेंच पर उसे बैठने की जगह मिल गई। वह बैठे-बैठे ऊँघने लगा। थोड़ी देर बाद बेंच खाली हो गई तो वह पैर ...Read More
गोलू भागा घर से - 9
9 दुखी गोलू कीमतीलाल होटल वाले के इनकार ने सचमुच गोलू का मन बहुत दुखी कर दिया था। क्या वह किसी लायक नहीं? जूठे बर्तन माँजने लायक भी नहीं? उसके मन की आखिरी उम्मीद भी अब टूटने लगी थी। ऐसे भला कब तक जिंदा रहेगा वह? घर से कोई डेढ़ सौ रुपए लेकर चला था, जिनमें पचास रुपए तो पिछले तीन-चार दिनों में खर्च ही हो गए। ऐसे तो धीरे-धीरे कुछ नहीं रहेगा उसके पास और उसे वापस घर की ओर रुख करना पड़ेगा। इस हालत में घर लौटना कितना खराब लगेगा। सोचकर गोलू की आँखें गीली हो आईं। ...Read More
गोलू भागा घर से - 10
10 आपका सामान मैं पहुँचा देता हूँ! रात कोई आठ-नौ बजे का समय। गाड़ी आई तो स्टेशन पर खूब और भागम-भाग नजर आने लगी। गोलू ने देखा, प्लेटफार्म पर खादी का कत्थई कुरता, सफेद पाजामा पहने एक अधेड़ आदमी अपने परिवार के साथ कुछ परेशान सा खड़ा था। साथ में दो अटैचियाँ, एक थैला। शायद उसे कुली का इंतजार था। प्लेटफार्म पर यों तो कुली थे, पर वे दूसरे यात्रियों का सामान उठा रहे थे। इस कोने पर कोई कुली नजर नहीं आ रहा था। गोलू के भीतर अचानक जैसे हलचल-सी हुई। वह लपककर भद्र लगने वाले उस अधेड़ ...Read More
गोलू भागा घर से - 11
11 नए जीवन की खुलीं खिड़कियाँ वह अधेड़ सज्जन थे गिरीशमोहन शर्मा। दिल्ली के एक सरकारी स्कूल के अध्यापक साइंस पढ़ाते थे। उनकी पत्नी भी अध्यापिका थीं। पास के एक मॉडल स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाती थीं... थोड़े दिनों में ही गोलू ने जान लिया कि यह परिवार सचमुच अच्छा है। मालकिन यानी सरिता शर्मा थोड़े सख्त स्वभाव की थीं, पर दिल की बुरी नहीं थीं। गोलू जल्दी ही उनके स्वभाव से परच गया। वह जान गया कि मास्टर जी तो भले हैं। उनसे कोई मुश्किल नहीं आएगी, पर अगर यहाँ टिकना है तो मास्टरनी जी का दिल जीतना होगा। ...Read More
गोलू भागा घर से - 12
12 कहीं तू बदमाशी तो नहीं कर रहा? फिर एक दिन सरिता शर्मा की सहेली मालती सक्सेना आईं। वह शायद सरिता मैडम के स्कूल में ही पढ़ाती हैं। बड़ी ही खुर्राट महिला हैं। गोलू उनके लिए चाय बनाकर ले गया तो मालती सक्सेना ने अजीब-सी निगाहों से उसे ऊपर से नीचे तक देखा। ऐसे, जैसे किसी चोर को देखा जाता है। और फिर अजीब-अजीब-से सवाल पूछने लगीं, बड़ी खराब, अपमानपूर्ण भाषा में। गोलू उन पर एक नजर डालते ही समझ गया कि यह बड़ी चालाक और खुर्राट किस्म की महिला हैं। लेकिन वे इतनी क्रूर भी होंगी, यह उसे ...Read More
गोलू भागा घर से - 13
13 क्या कह रहे हो बेटा? एक-एक दिन करके कोई महीना भर बीता। गोलू का मन कुछ उखड़ा हुआ उसने मास्टर जी के पास जाकर कहा, “मास्टर जी, आप मेरी महीने भर की तनखा दे दीजिए। मैं चला जाऊँगा।” सुनकर मास्टर गिरीशमोहन शर्मा हक्के-बक्के रह गए। भीगी हुई आवाज में बोले, “यह क्या कह रहे हो बेटा?...मैंने तो तुम्हें अपने बेटे जैसा ही समझा है।” इस पर गोलू ने साफ-साफ कहा, “मैडम को शायद मैं अच्छा नहीं लगता। वे मुझे चोर समझती हैं। ऐसे में मेरा यहाँ रहना ठीक नहीं है।” फिर गोलू ने पूरा किस्सा भी सुना दिया ...Read More
गोलू भागा घर से - 14
14 एक दुनिया रंजीत की रंजीत!...तभी गोलू की रंजीत से थोड़ी जान-पहचान हुई। कौन रंजीत? ठीक-ठीक तो गोलू को उसके बारे में कुछ पता नहीं है। पर हाँ, इधर रंजीत से उसकी छिटपुट मुलाकातें जरूर होने लगी हैं। गोलू शोभिता को उसकी स्कूल बस के स्टाप तक छोड़ने जाता है, तो लौटते समय रास्ते में रंजीत उसे अकसर मिल जाता है। वह भी शायद पास वाली किसी कोठी में एक कमरा किराए पर लेकर रहता है। सुबह-सुबह अकसर मदर डेरी से अपने लिए दूध लेने जा रहा होता है। पता चला कि रंजीत रेडीमेड कपड़ों की एक फैक्टरी में ...Read More
गोलू भागा घर से - 15
15 गोलू ने देखी दिल्ली दो दिन। खूब चहल-पहल, गहमागहमी और चुस्ती-फुर्ती वाले दो दिन। घुमक्कड़ी के आनंद से दो दिन। दिल्ली की सुंदरता को नजदीक से देखने-जानने के दो दिन। ये दो दिन दिल्ली आने के बाद गोलू के सबसे अच्छे दिन थे। सारी चिंताएँ, सारी फिक्र भूलकर वह घूम रहा था। सिर्फ घूम रहा था। लालकिला, कुतुबमीनार, राजघाट, शांतिवन, तीनमूर्ति, गाँधी स्मृति, गुड़ियाघर, अप्पूघर, चिड़ियाघर...कनॉट प्लेस, चाँदनी चौक!...कोई ऐसी मशहूर जगह न थी, जो इन दो दिनों में गोलू ने न देखी हो। और वह इन सबसे अछूता ही रह जाता, अगर रंजीत साथ न होता। एक ...Read More
गोलू भागा घर से - 16
16 कथा पागलदास की! “अच्छा...! दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर आए, फिर क्या किया?...क्या खाने वगैरह के लिए, गुजारा लायक पैसे थे तुम्हारे पास?” गोलू ने उत्सुकता से पूछा। उसकी निगाहें बराबर रंजीत के चेहरे पर जमी हुई थीं। “कुछ अजब ही मामला हुआ मेरे साथ तो।” रंजीत बोला। और फिर उसने अपनी पूरी कहानी सुनाई : “पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरा था बिना टिकट। भीड़ के रेले के साथ बाहर आ गया। सोच रहा था कि किधर जाऊँ? इतने में देखा, एक जगह पर खासी भीड़ लगी हुई है। मैं भी चलकर वहीं खड़ा हो गया। देखा, ...Read More
गोलू भागा घर से - 17
17 रंजीत मुंबई की राह पर फिर एक दिन गोलू को पता चला, रंजीत ने अपना अच्छा खासा फैशन का काम छोड़ दिया। “क्यों?” गोलू ने हैरान होकर उससे पूछा। “अब तो मुंबई जाएँगे, दिल्ली से मन भर गया।” रंजीत का सीधा-सपाट जवाब था। “क्यों?...मुंबई क्यों? दिल्ली में क्या परेशानी है?” गोलू ने डरते-डरते पूछा। “अरे, वहाँ मुंबई में बहुत काम है।” रंजीत ने हाथ लहराते हुए कहा, “फिर वहाँ तस्करी का धंधा कितने जोरों पर है, तुझे पता नहीं! आदमी चाहे तो रातोंरात लखपति बन जाए।...जितना दिल में जोश हो, उतना कमाओ। यहाँ जैसे नहीं कि रात-दिन बस, ...Read More
गोलू भागा घर से - 18
18 अलविदा रंजीत जिस दिन रंजीत को मुंबई की गाड़ी पकड़नी थी, गोलू उसे रेलवे स्टेशन पर छोड़ने गया। का रास्ता उसे भले ही पसंद न हो, पर रंजीत के अहसान को वह कैसे भूल सकता था? पहली बार रंजीत ने ही उसके भीतर दिल्ली में जीने की हिम्मत और हौसला भर दिया था। उसी ने गोलू को हर हाल में सिर उठाकर हिम्मत से जीना सिखाया था। इसलिए उसी ने रंजीत से कहा था, “रंजीत भैया, मैं तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाऊँगा।” और आज वह फिर से एक बार पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर था। पुरानी दिल्ली रेलवे ...Read More
गोलू भागा घर से - 19
19 नीला लिफाफा तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। गोलू ने अचकचाकर आँखें खोल दीं। उसने देखा, अजनबी आदमी उसके पास खड़ा है—खासा लंबा और पतला। कोई छह फुट का तो जरूर होगा। बड़ा रोबीला।...पर मुसकराती हुई आँखें। उस आदमी ने इशारे से गोलू को अपने पीछे-पीछे आने के लिए कहा। गोलू एक क्षण के लिए तो कुछ कह नहीं सका, पर फिर जैसे जादू की डोर से बँधा खुद-ब-खुद उसके पीछे-पीछे चल दिया। कुछ दूर जाकर उस अजनबी ने जेब से एक नीला लिफाफा निकाला। उसे गोलू को देते हुए कहा, “तुम मुझे अच्छे बच्चे लग ...Read More
गोलू भागा घर से - 20
(एक अँधेरी दुनिया में गोलू) ........................ 20 काली पैंट, सफेद कमीज वाला आदमी स्टेशन से बाहर आकर गोलू ने नजरों से इधर-उधर देखा। सचमुच गेट के आगे ही वह था—काली पैंट, सफेद कमीज वाला आदमी। उसके पास चमड़े का काला बैग भी था। उम्र होगी कोई सत्ताईस-अट्ठाईस साल। साँवला रंग, तीखे नाक-नक्श, थोड़ा मझोला कद। देखने में कुछ बुरा न था। पर गोलू को जाने क्यों वह अच्छा न लगा। गोलू ने जेब से निकालकर झट उसे नीला लिफाफा पकड़ाया। बोला, “यह रफीक भाई ने आपके लिए दिया है। बताया था, आप यहाँ, गेट के सामने मिलेंगे।” “अच्छा...!” वह ...Read More
गोलू भागा घर से - 21
21 वह आलीशान नीली कोठी डिकी नाम का वह आदमी गोलू को सचमुच एक भव्य, विशालकाय नीली कोठी में आया। इतनी आलीशान कोठी...कि वह हर ओर से बस चमचमा रही थी। सामने एक से एक खूबसूरत कारें। कोठी में प्रवेश करते ही एक लकदक-लकदक करता रिसेप्शन। बालों में सुर्ख गुलाब का फूल लगाए एक सुंदर-सी लड़की रिसेप्शन पर फोन अटैंड कर रही थी। कतार में रखे चार या पाँच फोन। उनमें से कोई न कोई बजता ही रहता। गोलू के साथ डिकी के अंदर प्रवेश करते ही रिसेप्शनिस्ट ने मुसकराकर कहा, “गुड नाइट डिकी सर!” डिकी ने परिचय कराते ...Read More
गोलू भागा घर से - 22
22 बिग बॉस! पर ये लोग करते क्या होंगे? कोई फैक्टरी वगैरह तो ये लोग चलाते नहीं हैं? फिर से आता है इतना पैसा, इतनी दौलत...? गोलू फिर से हॉल की सजावट पर गौर करने लगा। यह तो पुराने जमाने के किसी राजा-महाराज का महल लगता है। “अच्छा, तो क्या तुम्हीं गोलू हो?” एक गूँजदार आवाज सुनाई दी, तो गोलू चौंका। मिस्टर पॉल मुसकराकर उससे पूछ रहे थे। “जी...!” गोलू को लगा कि उसकी जीभ तालू से चिपक गई है और बड़ी मुश्किल से शब्द निकल पा रहे हैं। फिर हिम्मत करके उसने कहा, “सर, मेरा असली नाम तो ...Read More
गोलू भागा घर से - 23
23 मिसेज नैन्सी क्रिस्टल और फिर अगले हफ्ते गोलू के जिम्मे सचमुच एक काम आ पड़ा। पहले मिस्टर डिकी उसे सारी बातें समझाईं, फिर मिस्टर विन पॉल के पास भेज दिया। मिस्टर विन पॉल उससे एक-एक चीज खोद-खोदकर पूछते रहे...कि पहले रिसेप्शन पर जाकर क्या करोगे, फिर...? फिर मिस्टर सी. अल्फ्रेड पीटर के मिलने पर क्या मैसेज देना है? नीला लिफाफा पकड़ाते हुए क्या बात कहनी है? और जो पैकेट वो पकड़ाए, उसे किस तरह अटैची में सँभालकर लाना है...अपना टोटल इंप्रेशन कैसा बनाना है! गोलू ने सारी रटी-रटाई बातें एक बार फिर बढ़िया तरीके से मिस्टर विन पॉल ...Read More
गोलू भागा घर से - 24
24 यहाँ से भाग जाओ बाबू! गोलू को रहने के लिए जो कमरा दिया गया था, वहाँ दूर-दूर तक था। बस, आसपास बड़े-बड़े गमलों और खूबसूरत क्यारियों में किस्म-किस्म के फूलों के पौधे, लॉन में गुलमोहर और पॉप्लर के पेड़ और कुछ दूर हरा-भरा जंगल नजर आ जाता था। रामप्यारी नाम की एक स्त्री उसके कमरे में झाड़ू-पोंछा और सफाई करने आती थी। गोलू कभी-कभी उससे यों ही बातें करता। रामप्यारी ने बताया कि वह मैनपुरी जिले की है। और जब उसे पता चला कि गोलू मक्खनपुर का है तो उसके मन में उसके लिए बहुत ममता उमड़ पड़ी। ...Read More
गोलू भागा घर से - 25
25 पुलिस जिप्सी वैन में और जल्दी ही गोलू को मौका मिल गया। एक दिन जर्मन दूतावास के एक के पास गोलू को इसी तरह का लिफाफा पहुँचाना था। अपने चमड़े के बैग को लिए गोलू सतर्कता से आगे बढ़ रहा था। अचानक उसे बाहर सड़क पर एक पुलिस जिप्सी वैन दिखाई पड़ गई। मिस्टर डिकी तो गाड़ी को पार्क करने के लिए एक साइड में ले गए थे। उधर गोलू के पैर धीरे-धीरे पुलिस जिप्सी वैन की ओर बढ़ने लगे। वह उसके पास जाकर खड़ा हो गया। अंदर से झाँककर पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा, “क्या बात है भाई?” ...Read More
गोलू भागा घर से - 26
26 रहमान चाचा अब गोलू पुलिस डी.आई.जी रहमान खाँ के सामने बैठा था और पास ही पुलिस इंस्पेक्टर भी रहमान खाँ गौर से गोलू का दिया हुआ नीला लिफाफा खोलकर अंदर के कागज पढ़ रहे थे। उनका चेहरा गंभीर, बेहद गंभीर था। बोले, “हमारे सैनिक ठिकानों के बारे में इतनी गोपनीय सूचनाएँ! यह लिफाफा आया कहाँ से तुम्हारे पास?” “मुझे यह लिफाफा जर्मन दूतावास के एक अधिकारी को देना था। लिफाफा मिस्टर विन पॉल ने दिया था।” गोलू ने धीरे से कहा। “कौन मिस्टर विन पॉल? तुम उसे कैसे जानते हो? उसने तुम्हीं को क्यों दिया?” मिस्टर रहमान ने ...Read More
गोलू भागा घर से - 27
27 किस्सा रहमान चाचा के साथ घर लौटने का रहमान चाचा जब गोलू को लेकर घर पहुँचे, तो पूरे में उत्सव जैसा माहौल बन गया। मक्खनपुर की रहट गली में तो घर-घर दीए जलाए गए। बाकी लोगों ने भी अपनी खुशी प्रकट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिर मक्खनपुर के एक बहादुर लड़के ने पूरे देश, बल्कि पूरी दुनिया में इस कसबे का नाम ऊँचा किया था। लोग समझ गए थे कि मक्खनपुर में खाली बढ़िया मक्खन ही नहीं पाया जाता, गोलू जैसे बहादुर बच्चे भी होते हैं, जारे अपनी जान पर खेलकर भी देश का नाम ऊँचा ...Read More
गोलू भागा घर से - 28
28 अखबारों में छपी कहानी यह रहमान चाचा का जादू ही था कि अब घर में गोलू की इज्जत से कई गुना अधिक बढ़ गई थी। अब कोई उसे ताने नहीं देता था और न यह कहता था कि गोलू, तुझमें यह कमी है, वह कमी है। शायद रहमान चाचा ने ही गोलू के घर वालों को इशारा कर दिया था, इसलिए किसी ने खोद-खोदकर उससे पिछली बातें नहीं पूछीं।...हाँ, अखबारों में गोलू के बारे में जो भी छपता था, उसकी कटिंग गोलू के घरवाले सँभालकर रखते जाते थे। बहुत से अखबरों के संवाददाता तो गोलू के घर भी ...Read More
गोलू भागा घर से - 29 - अंतिम भाग
29 रहमान चाचा की चिट्ठी एक हफ्ते बाद रहमान चाचा का एक लंबा पत्र आया। उन्होंने लिखा, “गोलू, तुम्हारी कहानी पढ़ी। पढ़कर आँखें नम हो गईं। मुझसे ज्यादा तो घर में तुम्हारी सफिया चाची, फिराक और शौकत तुम्हारी तारीफ कर रहे हैं, बल्कि कल तो मुझमें और तुम्हारी सफिया चाची में झगड़ा होते-होते बचा। मैं बार-बार कह रहा था कि तुम बहुत अच्छे पुलिस अधिकारी बन सकते हो और तुम्हारी चाची का कहना था कि तुम लेखक बहुत अच्छे हो। आगे चलकर एक बड़े लेखक बनकर देश और समाज की सेवा कर सकते हो। सफिया चाची को तुम्हारे लिखने ...Read More