गुलमोहर के साये में स्थित वह खूबसूरत बंगला जो ‘गौतम शिखा कुटीर’ के नाम से मशहूर था और जो कभी रौनक से लबरेज़ हुआ करता था आज सन्नाटे की गिरफ़्त में है और उसके भीतरी दरवाज़े और काले स्टील के कंगूरेदार गेट पर सरकारी ताले लटक रहे हैं शेफ़ाली कितनी बार इस गेट से पार हुई है बंगले का कोना-कोना उसका परिचित है और उसकी मालकिन मशहूर चित्रकार उसकी बचपन की दोस्त दीपशिखा..... उसकीहर अदा, हर ख़ासो आम बात की राज़दार है वह ज़िन्दग़ी का ये हश्र होगा सोचा न था ये सरकारी ताले उसके दिमाग़ में अंधड़ मचा रहे हैं वह तहस-नहस हो जाती है उसकी नींदें दूर छिटक जाती हैं और चैन हवा हो जाता है क्याइंसान इतना बेबस-लाचार है? क्या वो सबके होते हुए भी लावारिस और तनहा है?
Full Novel
लौट आओ दीपशिखा - 1
गुलमोहर के साये में स्थित वह खूबसूरत बंगला जो ‘गौतम शिखा कुटीर’ के नाम से मशहूर था और जो रौनक से लबरेज़ हुआ करता था आज सन्नाटे की गिरफ़्त में है और उसके भीतरी दरवाज़े और काले स्टील के कंगूरेदार गेट पर सरकारी ताले लटक रहे हैं शेफ़ाली कितनी बार इस गेट से पार हुई है बंगले का कोना-कोना उसका परिचित है और उसकी मालकिन मशहूर चित्रकार उसकी बचपन की दोस्त दीपशिखा..... उसकीहर अदा, हर ख़ासो आम बात की राज़दार है वह ज़िन्दग़ी का ये हश्र होगा सोचा न था ये सरकारी ताले उसके दिमाग़ में अंधड़ मचा रहे हैं वह तहस-नहस हो जाती है उसकी नींदें दूर छिटक जाती हैं और चैन हवा हो जाता है क्याइंसान इतना बेबस-लाचार है? क्या वो सबके होते हुए भी लावारिस और तनहा है? ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 2
“ठीक है, शेफ़ाली भी अगले महीने आ जाएगी तब तुम शायद होमसिक नहीं होगी सुलोचनाटेंशन में आ जाती अकेलेपन को सोचकर ” दाई माँ ने नाश्ता मेज पर लगा दिया था- “पापा..... माँ की लाड़ली बिटिया हूँ न.....इसीलिए वैसे यहाँ मेरे सभी दोस्त बहुत मददगार हैं..... मुकेश तो घर तक छोड़ने आता है ” कह तो दिया था उसने फिर सकपका गई यूसुफ़ ख़ान के भी कान खड़े हुए- “ये मुकेश कौन है?” ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 3
सुलोचना के चेहरे पर मुस्कुराहट देख वे परेशान हो उठे- “तुम मेरी बात कोतवज़्ज़ोनहीं दे रही हो ” “मैं सोच हूँ कि आख़िर है तो वो हमारी ही बेटी जब हमने अपनी शादी का फैसला खुदकिया तो वह क्यों नहीं कर सकती?” सुलोचना के याद दिलाने पे उन्हें अपनी शादी याद आ गई कैसे चार दोस्तोंकी उपस्थिति में उनका सुलोचना सेनिक़ाह हो गया था निक़ाह के समय उनका नाम बदलकरनिक़हत रखा गया था और सभी दंग रह गये थे जब सुलोचनाने निक़ाहनामेपर उर्दू लिपि में हस्ताक्षर किये थे फिर सुलोचना की मर्ज़ी के अनुसार यूसुफ़ ख़ाननेहिन्दू रीति से भी शादी की थी ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 4
“तुम्हारा बदन जैसे साँचे में ढला हो..... पत्थर कीशिला को तराशकर जैसे मूर्तिकार मूर्ति गढ़ता है ” वह रोमांचित उठी थी अपने इस रोमांच को वह चित्र मेंढालने लगी एकयुवती गुफ़ा के मुहाने पर ठिठकी खड़ी है युवती पत्थर की मूर्ति है मगरचेहरेझौंकोंज़िन्दग़ी को पा लेने की आतुरता है आँखों में इंतज़ार.....ज़िन्दग़ी का..... उसने शीर्षक दिया ‘आतुरता’..... उसे लगा मानो उसकी आतुरता मुकेश तक पहुँची है वह समंदर के ज्वार सा उसकी ओर बढ़ा चला आ रहा है पीछे-पीछे फेनों की माला लिए लहरें और रेत में धँस-धँस जाते मुकेश के क़दम..... वह मुड़कर समंदर के बीचोंबीच लाइट हाउस को देख रहा है जो तेज़ ऊँची-ऊँची लहरों पर डोलते जहाज़ों के नाविक को राह दिखाता है ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 5
चाँगथाँग वैली में झील के ऊपर कुछ काली पूँछ वाले परिंदे उड़ रहे थे काली गर्दन वाले सारस थे लद्दाख़ में इन्हें समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और इसीलिए बौद्ध मठों की दीवारों पर इन्हें उकेरा जाता है दीपशिखा ने चलती कार में ही इस दृश्य का स्केच बना लिया नीलकांत उसे मुग्ध आँखों से निहारता रहा चढ़ाईपर हवा का दबाव काफ़ी कम था बर्फ़ानी विरल हवा में साँस भरना मुश्किल हो गया सुलोचना ने कपूर उसके पर्स में रखते हुए कहा था- “चढ़ाई पर इसकी ज़रुरत पड़ेगी सूँघती रहना यह एक अच्छा ऑक्सीजनवाहक है ” ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 6
“पोंपेदूसेंटर? यह क्या बला है?” “नील, बला नहीं यह बीसवीं शताब्दी का संग्रहालय है जिसे फ्रांस के राष्ट्रपति जॉर्ज ने बनवाया था इसलिए इसका नाम पोंपेदू सेंटर के रूप में फ़ेमस हुआ ” “चलिए मैम..... फिलहाल तो होटल आबाद करिए ”कार खूबसूरत बगीचे वाले लॉन के एक ओर पार्किंग प्लेस पर रुकी ऊँची-ऊँची चॉकलेटी बुर्जियों वाला गिरजाघर जैसादिखता होटल बेहद भव्य रिसेप्शन..... उतना ही भव्य उनका स्वागत कोचपहले ही पहुँच चुकी थीं और पूरी यूनिट बाकायदा अपने-अपने कमरों में बंद हो चुकी थीं नीलकांत के और दीपशिखा के सुइट कीचाबियाँ लेकर होटल बॉय पहुँचचुका था सुइट आजू-बाजू ही थे ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 7
दूर दूर तक फैले समुद्रतट पर चहलक़दमी करते हुए उसने शेफ़ाली से पूछा- “क्याआप फ्लोरेंस, वेनिस देखे बिना भारत जाएँगी? फ्रांस और इटली की दूरियाँ पर्यटक महसूस नहीं करते इतने क़रीब हैं दोनों देश ” “आप चलेंगे?” शेफ़ली ने सहज हो पूछा “औरआपकी सखी?” “दीपशिखा? शायद..... पूछ लेती हूँ सबसे आज डिनर के वक़्त ” ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 8
“ऐसा क्यों कह रहे हो नील?” दीपशिखा ने उसके होठों पर हथेली रख दी फिर उसके सीने में चेहरा हुए वह लरज गई- “कलाकार ऐसे ही होते हैं नील, हम भी तो ऐसे ही हैं लम्बे समय के लिये जा रहे हो..... उस बीच मैं एक प्रदर्शनी लायक चित्र तो बना ही लूँगी ” तभी नीलकांत के सेक्रेटरी ने बेल बजाई- “सर, एयरपोर्ट के लिये निकलने का वक्त हो गया हम जायें?” “हाँ, ठीक है..... कहीं कोई डाउट हो तो फोन कर लेना ” सेक्रेटरी के जाते ही दीपशिखा ने पूछा- “और तुम?” ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 9
जैसे ही गेट के सामने गाड़ी रुकी उसने गौतम को खड़े पाया- “अरे..... तुम अभी आये?” “नहीं..... फोन लगा-लगा कर गया तुम्हारे घर जाना मैंने उचित नहीं समझा तब से यहीं खड़ा हूँ ” जाने क्या हुआ..... किस लम्हे ने कहाँ छुआ उसे कि वह बेक़रार हो गौतम से लिपट गई दोनों की ख़ामोशी सूनी सड़क पर बहुत कुछ कहती हुई फूलों की खुशबू और हवाओं के संग बहती हुई बार-बार दोनों से लिपटती रही..... रात ढलती रही तय हुआ कि शेफ़ाली उसे लेकर पूना जायेगी और वहीं एबॉर्शन होगा ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 10
शेफ़ाली और दीपशिखा अब रोज़ आयेंगी यह जानकर सैयदचचा की बाँछें खिल गई थीं वैसे भी वे दिन स्टूल पर बैठे-बैठे तम्बाखू फाँकते थे और ऊँघते थे अब रौनक रहेगी दो महीने देखते ही देखते बीत गये कलाकुंभ का दिन भी नज़दीक आ गया केरल जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी शेफ़ाली ने बताया था- “मालूम है दीपू..... केरल में बहुत लार्ज स्केल मेंकलाकुंभ का आयोजन हो रहा है सात जगहों पर प्रदर्शनी का इंतज़ाम है कुछ चित्रों को पब्लिकप्लेसेज़ में भी रखा जाएगा ताकि आम आदमी भी चित्रकारों से रूबरू हो सके ” ...Read More
लौट आओ दीपशिखा - 11
गौतम के कहने पर रघुवीर सहाय ने टेप रिकॉर्डर स्विच ऑफ़ करते हुए कहा- “इतना बेहतरीन इन्टरव्यू अभी तक किसी चित्रकार का लिया नहीं मैंने जबकि दीपशिखा जी हमारी किताब की अंतिम चित्रकार हैं ” ...Read More