श्रापित रंगमहल

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मानसरोवर गाँव के बसस्टैंड पर बस रूकी और उसमें से श्रेयांश उतरा,उतरकर इधरउधर देखने लगा तभी उस के पास आकर एक व्यक्ति ने पूछा.... जी!कहीं आप चित्रकार श्रेयांश साहब तो नहीं।। जी! मैं ही श्रेयांश हूँ और आप! श्रेयांश ने उस व्यक्ति से पूछा.... जी! मैं शम्भू !मुझे गाँव के मुखिया जी ने आपको लेने भेजा है,अन्जान गाँव और वैसे भी शाम ढ़ल चुकी है ऊपर से आप ठहरे शहरी बाबू कहीं रास्ता ना भटक जाएं इसलिए..शम्भू बोला।। अच्छा....अच्छा....क्या मुखिया साहब तक ख़बर पहुँच गई थी कि मैं आ रहा हूँ?श्रेयांश ने पूछा।। जी! शहर में उनके कई जानने वाले रहते हैं तो आपके काँलेज के प्रिन्सिपल ने उन तक ख़बर पहुँचा दी थी,शम्भू बोला।। तब तो बहुत बढ़िया हुआ,श्रेयांश बोला।। तो आप यहाँ चित्रकारी करने आएं हैं,शम्भू बोला।। आपको कैसें पता?,श्रेयांश ने पूछा।। मुखिया जी कह रहे थें ,शम्भू बोला।। ओह....प्रिन्सिपल सर ने बताया था कि मुखिया जी उनके दूर के साले लगते हैं,उनके गाँव में जो पुराना महल है उसका चित्र तुम प्रतियोगिता के लिए बना सकते हों इसलिए मैं यहाँ आ गया चित्र बनाने,श्रेयांश बोला।। जी बहुत बढ़िया किया आपने लेकिन....शम्भू कहते कहते रूक गया।। लेकिन...लेकिन क्या? श्रेयांश ने पूछा। कुछ नहीं....बाद में बताता हूँ वो देखिए मुखिया जी का घर आ गया,शम्भू बोला।।

Full Novel

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श्रापित रंगमहल--भाग(१)

मानसरोवर गाँव के बसस्टैंड पर बस रूकी और उसमें से श्रेयांश उतरा,उतरकर इधरउधर देखने लगा तभी उस के पास एक व्यक्ति ने पूछा.... जी!कहीं आप चित्रकार श्रेयांश साहब तो नहीं।।जी! मैं ही श्रेयांश हूँ और आप! श्रेयांश ने उस व्यक्ति से पूछा....जी! मैं शम्भू !मुझे गाँव के मुखिया जी ने आपको लेने भेजा है,अन्जान गाँव और वैसे भी शाम ढ़ल चुकी है ऊपर से आप ठहरे शहरी बाबू कहीं रास्ता ना भटक जाएं इसलिए..शम्भू बोला।।अच्छा....अच्छा....क्या मुखिया साहब तक ख़बर पहुँच गई थी कि मैं आ रहा हूँ?श्रेयांश ने पूछा।।जी! शहर में उनके कई जानने वाले रहते हैं तो आपके ...Read More

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श्रापित रंगमहल-भाग(२)

श्रेयांश ने राजमहल के बारें में सुनी बातों पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए अपनी चित्रकारी पर ध्यान देना उचित समझा इसलिए वो पुराने महल को बहुत ध्यान से देखने लगा,तभी शम्भू काका बोले..... मेरे एक दोस्त का पास ही खेत है वो वहीं पर होगा मैं जरा उससे मिल आऊँ,अगर आप भी चलना चाहें तो चल सकते हैं....शम्भू काका की बात सुनकर श्रेयांश बोला.....शम्भू काका ! आप ही चले जाओ,मैं जब तक महल की बारिकियों को देख लेता हूँ,चित्र में कोई भी कमी नहीं होनी चाहिए...ठीक है चित्रकार बाबू ! तो आप यहीं ठहरें,मैं होकर आता हूँ लेकिन ...Read More

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श्रापित रंगमहल--भाग(३)

शाकंभरी रात्रि के भोजन की ब्यवस्था करने लगी,उसने कुटिया के कोने पर बने मिट्टी के चूल्हे में भोजन बनाना कर दिया,भोजन पक जाने के उपरान्त उसने सभी के लिए पत्तल में भोजन परोसा तो जलकुम्भी बोली.....सखी! मैं तो तुम्हारे संग ही भोजन करूँगी।।जैसी तुम्हारी इच्छा सखी! शाकंभरी बोली।।जलकुम्भी के कहने पर शाकंभरी ने अपने पिताश्री और भ्राता पुष्पराज को भोजन परोसा ,उनके भोजन कर लेने के उपरान्त दोनों सखियों ने भी भोजन कर लिया एवं विश्राम करने हेतु अपने अपने बिछौनों पर लेट गई,परन्तु इधर पुष्पराज की निंद्रा को जलकुम्भी के रूप एवं यौवन ने उड़ा दिया था,वो जलकुम्भी ...Read More

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श्रापित रंगमहल--भाग(४)

धूमकेतु के ऐसे आचरण से शाकंभरी विक्षिप्त हो चुकी थी,उसे स्वयं से घृणा हो रही थी,उसे अब अपने भ्राता की प्रतीक्षा थी कि वो शीघ्र ही राजमहल आकर उसे बंदीगृह से मुक्त कराएगा,जब पुष्पराज को यह सूचना मिली तो वो शीघ्र ही राजमहल पहुँचा अपनी बहन शाकंभरी को मुक्त करवाने हेतु,परन्तु राजा मोरमुकुट ने तो पहले से कोई और ही योजना बना रखी थी, इस योजना के अन्तर्गत उसने पहले ही अपने सैनिकों को अरण्य वन भेजकर अरण्य ऋषि का आपहरण करवा लिया,इधर पुष्पराज राजमहल पहुँचा तो उसे धूमकेतु ने बंदी बनाकर बंदीगृह में डलवा दिया,दूसरे दिन राजदरबार लगा ...Read More

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श्रापित रंगमहल--(अंतिम भाग)

रात हुई और श्रेयांश रात का खाना खाकर फिर से अपने कमरें में पहुँचा, जब वह अपने कमरे में पर लेटा तो उसे जोर जोर से फिर से घुँघरुओं की आवाज़ सुनाई दी, जिससे वह चौंक गया,तभी घुँघरुओं की आवाज़ अचानक बंद हो गई,उस रात शम्भू उसके कमरें में नहीं सोया था,उसे कुछ जरूरी काम था इसलिए वो किसी से मिलने गया था,श्रेयांश के पूछने पर मुखिया जी ने उसे बताया था कि शायद वो किसी ताँत्रिक के पास गया है,श्रेयांश को थोड़ा अजीब लगा उनकी बात सुनकर लेकिन फिर सोचा कि गाँव के लोंग हैं इसलिए ये सब ...Read More