यहां... वहाँ... कहाँ ?

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यहां... वहाँ... कहाँ ? मूल लेखक राजेश कुमार राजेश कुमार इस उपन्यास के मूल तमिल लेखक राजेश कुमार है। आपने 50 वर्षों में डेढ़ हजार उपन्यास लिखे और 2000 कहानियां लिखी। आपकी उपन्यास और कहानियों के पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है। अभी आपका नाम गिनीज बुक के लिए गया हुआ है। चाहे आपके उपन्यासों हो या कहानियां दोनों ही एक बार शुरू कर दो खत्म किए बिना रखने की इच्छा नहीं होती उसमें एक उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होगा तमिलनाडु में इनकी कहानियों और उपन्यासों की बहुत ज्यादा मांग है इसीलिए मैंने भी इनकी

Full Novel

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 1

यहां... वहाँ... कहाँ ? मूल लेखक राजेश कुमार राजेश कुमार इस उपन्यास के मूल तमिल लेखक राजेश कुमार है। 50 वर्षों में डेढ़ हजार उपन्यास लिखे और 2000 कहानियां लिखी। आपकी उपन्यास और कहानियों के पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है। अभी आपका नाम गिनीज बुक के लिए गया हुआ है। चाहे आपके उपन्यासों हो या कहानियां दोनों ही एक बार शुरू कर दो खत्म किए बिना रखने की इच्छा नहीं होती उसमें एक उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होगा तमिलनाडु में इनकी कहानियों और उपन्यासों की बहुत ज्यादा मांग है इसीलिए मैंने भी इनकी ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 2

अध्याय 2 रूपला चाय भरी हुई प्यालियो को रसोई से बाहर लेकर आई। "क्या बात है जी......! विष्णु का हफ्ते से कुछ पता नहीं। किसी केस के सिलसिले में बाहर गया है क्या?" "हां... मंगलूर गया था। कल रात को वापस आ गया। अभी थोड़ी देर में आएगा देखो....." "क्यों मैंगलोर गया?" "प्रजानंदा एक स्वामीजी है। वह अच्छे हैं, क्या खराब हैं ऐसा दिल्ली के सी.बी.आई. को संदेह है। उनके बारे में मालूम करने के लिए उसे योगा सीखने के लिए एक भक्त बना कर भेजा हैं । जाकर आ जाएगा।" "उसका रिजल्ट क्या है? प्रजानंदा अच्छे हैं.... नहीं ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 3

अध्याय 3 सातवीं मंजिल के छत के किनारे खड़े होकर नीचे देख रहा था गोकुलम। नीचे बहुत से पत्थर दे रहे थे। सर के बल गिरे तो बस..... तुरंत मृत्यु। सूर्य की लालिमा अब 50% दिखने लगा.... समुद्र के लहरों में लालिमा चिपक गई। 'नीचे कूद जाना ही चाहिए'-इरादा कर जैसे पैर उठाया उसी क्षण- उसी क्षण उसके शर्ट में से मोबाइल का रिंगटोन बजा। पॉकेट में से धीरे से निकाला। डिस्प्ले में एक नया नंबर। 'यह कौन?' गोकुलम सोच कर सेल फोन को कान में लगाया। "हेलो!" दूसरी तरफ से एक आदमी की आवाज घबराहट के साथ सुनाई ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 4

अध्याय 4 उस 'रेड अलर्ट क्यूब' उस सेल के अंदर कुल 23 बड़े पुलिस अधिकारी सीधे होकर बैठे हुए कमिश्नर उपेंद्र धीमी आवाज में बात कर रहे थे। सामने के दो लाइनों में विवेक विष्णु दोनों ध्यान से उनकी बातों को सुन रहे थे। सुबह के 10:00 बजे। "इंडिया को घूमने के लिए आए टूरिस्ट लोगों की मोहर लगे नासा के वैज्ञानिक लोग दिल्ली से रवाना होकर अगले दिन सुबह 11:00 बजे चेन्नई एयरपोर्ट आ जाएंगे। उसमें भारत के एक वैज्ञानिक अग्निहोत्री भी होंगे।' "यह 12 लोग तमिलनाडु टूरिज्म के द्वारा कोल्ड हॉटस्टार होटल चले जाएंगे। वे जैसे ही ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 5

अध्याय 5 असिस्टेंट कमिश्नर संतोष इंचंबाकम पहुंचकर अधूरे बने वामन अपार्टमेंट के सामने जीप को लाकर खड़ा किया 10:15 खून और मांस जमकर वहां गोकुलम के शरीर को देखने एक भीड़ जमा थी.... वह बीट इंस्पेक्टर को परशुरामन दौड़ कर कर सैल्यूट किया। "सर !" "आदमी कौन है परशुरामन ?" "थोड़ी देर पहले कंफर्म हुआ साहब ! सेल फोन नंबर को देखकर सब डिटेल्स कलेक्ट कर लिया। लड़के का नाम गोकुलम साहब! बहुत बड़े घर का लड़का है।" असिस्टेंट कमिश्नर अपने भौंहौ को ऊपर किया । "बड़ा घर मतलब....?" "रियल एस्टेट बिजनेस करते हुए झंडा गाड़ रहे आदिमूलम का ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 6

अध्याय 6 कमिश्नर उपेंद्र के कहे को सुनकर विवेक का चेहरा बदला..... उनके बात खत्म करते ही उसने पूछा। ! वह नासा वैज्ञानिक ग्रुप के लोग दोपहर को बाहर नहीं आएंगे आपने कहा। सिर्फ रात के समय उनके साथ शोध संबंधित कार्य होगा आपने कहां ऐसा एक शोध की जरूरत है क्या?" "मिस्टर विवेक ! आप नासा वैज्ञानिकों पर संदेह कर रहे हैं क्या?" "नहीं संदेह नहीं कर रहा हूं साहब ! मन के अंदर एक छोटा सा डर आ रहा है।" "क्या डर ?" "रात के समय शोध करेंगे तो उनको देखने में एक छोटी कमी नजर आती ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 7

अध्याय 7 विवेक और विष्णु जी. एच. एच. की तरफ चेन्नई नगर को जाने वाली सकरी जगह को छोड़कर कार से जा रहे थे। विष्णु को थकावट लगी। "यह क्या है बॉस?" "क्या?" "नासा वैज्ञानिक को आने के बारे में और उनके लिए सुरक्षा के बारे में कमिश्नर ने जो उसके लिए एक ग्रुप का शेप दिया है और पूरी बात ना करके कर अजीब सी स्थिति में...... गोकुलन आत्महत्या के केस को हमारे सिर पर लाद दिया। इन सब कामों को वहां के पुलिस इंस्पेक्टर नहीं देख लेते क्या?" विवेक कार के स्टेरिंग को एक हाथ में पकड़ते ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 9

अध्याय 9 दिल्ली । सुबह 10:00 बजे। कॉस्मिक रिसर्च सेंटर। सोच के मुखिया सर्वमयन अपने सहायकों के साथ एक लाइन में..... नासा के 12 वैज्ञानिक शोध के मुखिया बोथम अपने साथी वैज्ञानिकों के साथ एक लाइन में बैठे हुए थे.... धीमी आवाज में धीरे-धीरे अंग्रेजी में बात कर रहे थे। श्रवण अपनी सेट दाढ़ी के साथ अपने उंगली को ऊंचा कर बोथम की ओर इशारा किया। "हिक्स बोचान के नाम का सूक्ष्म अणु के संबंध में नासा से इंडिया आने वाले आपको और आपके ग्रुप के सभी वैज्ञानिकों को भारतीय ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 8

अध्याय 8 मोर्चरी के पास वाले कमरे में, गुस्से वाले के साथ वाले आदिमूलम बैठे थे उनके पास वह गया। उनकी पत्नी का भाई ननछुट्टन मोटे पेट आयु 40 के करीब होगी उसने 'मच्चान' (साला) संकोच के साथ बुलाया। "हां....!"-आदिमूलम की निगाहें एक ही दिशा में थी। "गोकुलन की बाड़ी बहुत ही टुकड़े-टुकड़े में होने के कारण.…….. उसे सफाई से पैक करने में एक घंटा लग जाएगा...... आप घर रवाना हो जाइए!" ननछुट्टन बोलते ही..... आदिमूलम दीर्घश्वास छोड़ते हुए सीधे हुए। "बाड़ी के बाहर आने तक मैं नहीं हिलूंगा। तुम्हारी ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 10

अध्याय 10 विवेक ड्रेसिंग रूम में था.... विष्णु बैठक में सोफे में बैठा हुआ था..... ओलंपिक सोनी के मेडल लिए चीन की वीरांगना है और जापान की वीरांगनाए टकरा रही थी उसे वह टीवी में देख रहा था। रूपल पास में आकर खडी हुई। हाथ में एक पुस्तक था "विष्णु !" टीवी देखना छोड़ कर मुड़ा। "बोलिए मैडम !" "तुम्हारे बॉस कमरे में से बाहर आने के पहले तुमसे छोटे-छोटे 4 प्रश्न पूछती हूं। तुम जो चार प्रश्नों के उत्तर दोगे उसको रखकर..... तुम्हारे कैरेक्टर किस तरह का है कह सकते हैं। इस पुस्तक में ऐसा लिखा है।" "अरे! ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 11

अध्याय 11 कमिश्नर उपेंद्र अपने कमरे से हॉट लैंड सेल फोन से श्रवण थोड़े धीमी आवाज में बात कर थे। "सर! यहां रक्षा का बंदोबस्त ठीक ढंग से है। नासा वैज्ञानिक लोग कल चेन्नई के लिए रवाना हो सकते हैं। कुछ जो समाचार मिलते हैं उसमें आदि तो फेक होती हैं" दूसरी तरफ से श्रवण बोल रहे थे। "ऐसी कोई समस्या नहीं आएगी ऐसे मुझे लगता है। फिर भी कुछ भी गलत हो जाए ऐसा डर मन में समाया हुआ है।" "बिना मतलब का डर है सर..... छोटे महल में बोथम पुलिस स्टेशन से समाधान का ही उत्तर आ ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 12

अध्याय 12 विवेक, विष्णु, कमिश्नर उपेंद्र तीनों आदिमूलम के घर जा पहुंचे तो रोने की आवाज के साथ एक का वातावरण वहां पैदा हुआ था। ए. सी. संतोष दिखाई दिए। कमिश्नर को सेल्यूट किया फिर बोले "सर! आदिमूलम बुरी तरह सदमे में हैं...." "बॉडी को नीचे उतार दिया?" "उतार दिया साहब....! प्लीज कम दिस साइड सर!" "इस एरिया के इंस्पेक्टर कौन है?" "वज्रवेल.... सर!" "स्पाट पर आ गए?" "आ गए सर! उन्होंने आकर ही उस बाडी को उतारा।" बरामदे में चलते-चलते.... विवेक ए. सी. से पूछा। "मिस्टर संतोष उनकी आत्महत्या को आपने सामने देखा?" "देखा मिस्टर विवेक! मैं आदिमूलम ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 13

अध्याय 13 दो दिन हो गए। उस दिन शाम को वाकिंग जाकर घर वापस आते समय विवेक.... सोफे पर कैनवस शूज को खोल रहा था रसोई को देखकर आवाज दी। "रूबी ! एक आधा गिलास चाय चाहिए। गरम देना...." रुपल अंदर से जल्दी बाहर आई। "क्यों जी.....! मेरा चाय देना रहने दो। आपको कमिश्नर ने फोन किया था....? आपने क्यों नहीं अटेंड किया?" "अरे अरे....!" अपने सिर को पकड़ लिया विवेक ने। सेल फोन को साइलेंट मोड़ पर रख दिया। इसीलिए ध्यान नहीं गया....." विवेक ने सेल फोन उठाकर... कमिश्नर को लगाया। "सॉरी सर! आपके फोन करते समय मेरा ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 14

अध्याय 14 बढ़िया पाँच सितारे होटल में स्पेशल सूट के कमरे में कमिश्नर उपेंद्र, विवेक, विष्णु के सामने नासा वैज्ञानिक ग्रुप के बोथम फिक्र से पीले पड़े चेहरे से बात कर रहे थे। "आप लोग बात करते हैं उसे सुनकर मन में कुछ धर्य उत्पन्न होता है मिस्टर विवेक! आप लोगों ने जो बंदोबस्त किया है..... मुझे और मेरे ग्रुप के लोगों को सही ही लग रहा है। फिर भी हम लोग कारेकुड़ी जाएंगे तो कोई असंभावित बात हो जाएगी मेरा आंतरिक मन ऐसा कह रहा है। वह कॉस्मिक डांस शोध बहुत जरूरी है फिर भी उससे ज्यादा जरूरी ...Read More

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यहां... वहाँ... कहाँ ? - 15 - अंतिम भाग

अध्याय 15 पिस्टल को लिए हुए अंदर आए अग्निहोत्री को देख.... बोथम के पसीना बहना कम होकर चेहरा खिल "ठीक है टाइम पर आए हो मिस्टर अग्निहोत्री! कुछ भी योजना बनाकर हमने अपने काम को अंजाम देने में कहीं ना कहीं कुछ छोटी गलती रह जाती है। टाइम्स ऑफ इंडिया को पढ़कर.... आपको जो चाहिए उस समाचार को काट कर बाकी पेपर को कचरे में फेंकना चाहिए था।" "उसे नहीं करने से पेपर को तिपाया के ऊपर रख देने से यह गलती हुई। इस पेपर को पढ़कर इसने पहचान लिया विवेक को स्कॉटलैंड पुलिस में रहना चाहिए!" अग्निहोत्री अपने ...Read More