अपंग

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समर्पित – ‘सुशीला’ की शीलवती प्रकृति और ‘सरला’ की सरलता को अपनी दो माँ सी ननदों को जो एक ही माह में इस दुनिया को छोड़कर परम तत्व में विलीन हो गईं |  जो अदृश्य रूप में भी मेरी साँसों में रची-बसी हैं और मेरी दाहिनी, बाईं आँख बनकर सब कुछ देख-दिखा रही हैं! ============ उपन्यास से =========== मेरी आत्मा के भीगे हुए कागज़ पर बेरंगी स्याही से उतर आए हैं कुछ नाम जो बिखरते सूरज के समान लाल हैं और --- मेरे मन !मैं तुझे क्या कहूँ – पागल ? बुद्धिमान ? या और कुछ ? हर पल हर

Full Novel

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अपंग - 1

समर्पित – ‘सुशीला’ की शीलवती प्रकृति और ‘सरला’ की सरलता को अपनी दो माँ सी ननदों को जो एक माह में इस दुनिया को छोड़कर परम तत्व में विलीन हो गईं | जो अदृश्य रूप में भी मेरी साँसों में रची-बसी हैं और मेरी दाहिनी, बाईं आँख बनकर सब कुछ देख-दिखा रही हैं! ============ उपन्यास से =========== मेरी आत्मा के भीगे हुए कागज़ पर बेरंगी स्याही से उतर आए हैं कुछ नाम जो बिखरते सूरज के समान लाल हैं और --- मेरे मन !मैं तुझे क्या कहूँ – पागल ? बुद्धिमान ? या और कुछ ? हर पल हर ...Read More

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अपंग - 2

2— टुकड़ों में बाँटे हुए दिनों को उसने बड़े ही सहेजकर अपने हृदय में समोकर रख लिया था | में लगभग दस वर्ष रही थी वह ! अचानक ही एक कार-दुर्घटना में माँ-बाबा दोनों की मृत्यु का हृदय विदारक समाचार पाते ही वह स्तब्ध सी हालत में पुनीत को साथ लेकर सदा के लिए भारत वापिस आ गई थी | राजेश तो पश्चिम की रंगत में इतना डूब चुका था कि उसका उस वातावरण से निकल पाना आश्चर्य ही होता | दस वर्ष के प्रवासी जीवन में हर वर्ष ही माँ-बाबा के पास आती रही थी वह ! राजेश ...Read More

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अपंग - 3

3--- विवाह के पूर्व ही माँ-बाबा को बताना पड़ा था सब कुछ | कुछ नहीं कहा उन्होंने !मूक, मौन को झेलते हुए दो प्रौढ़ अपना कर्तव्य निबाहते रहे | और ---वह उस छटपटाहट को महसूस करती रही | झेलती रही, भीतर की घुटन से लिपटी उसकी आत्मा कुछ छंट जाने की प्रतीक्षा करती रही | परंतु सब व्यर्थ—उसे राजेश के साथ जाना था, गई | सभी पति के घर जाते हैं –विवाह के लगभग एक वर्ष तक भारत ही में थी राजेश के साथ ! उसके प्रयत्न में कोई बाधा नहीं आई थी, वह करता ही रहा विदेश जाने ...Read More

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अपंग - 4

4--- सूर्य देवता गरमाने लगे थे | जगह-जगह से धूप के टुकड़े सामने पेड़ों के झुरमुट से छिप-छिपकर यहाँ-वहाँ लगे | भानुमति वहीं बैठी थी | उन टुकड़ों को समेटती –उनकी गर्मी महसूस करती रही --- ये टुकड़ों में बंटी धूप और मेरा जीवन कहीं संग-संग ही तो हम जन्मे न थे –छिपते-छिपाते अपनों से और औरों से --- ‘न्यु जर्सी में थी वह उन दिनों !हर रोज़ नई बातें, नई रातें ! शरीर वहाँ तो मन माँ-बाबा के पास ! हर रोज़ पार्टी और पार्टी के समय की ज़बरदस्ती ओढ़ी गई मुस्कान से उसका मुख दुखने लगता \ ...Read More

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अपंग - 5

5----- रात की पार्टी में रिचार्ड की निगाहें उसे हर बार की तरह चुभेंगीं और वह हर बार की कुछ न कर सकेगी | कर सकती यदि राज उसके पक्ष में होता| परंतु अब उसके मस्तिष्क में यहाँ तक आ गया था कि राज कहीं से भी उसका था ही नहीं | यहाँ तक कि शरीर से भी उसका नहीं, मन तो बहुत दूर की बात है | रिचार्ड की कंपनी की ही कोई कर्मचारी मिस रुक राजेश के बहुत करीब आ चुकी थी | यह उड़ती खबर कब से उसके कानों में आ चुकी थी| वह बात और ...Read More

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अपंग - 6

--------- भानुमति का मस्तिष्क काम नहीं कर रहा था, क्या करे ? क्या कर सकती है ? उसको छोड़ है किन्तु इतना आसान भी तो नहीं| जिन माँ-बाबा के लाख मना करने पर भी वह अपने आपको राजेश के प्रेम में डूबने से रोक नहीं सकी थी, यदि अभी वापिस लौट गई तो माँ-बाबा उसे देखकर ही मर जाएँगे | सोचने-समझने की शक्ति क्षीण होती जा रही थी उसकी ! मानो बदन पर लकुआ पड़ गया हो जो उसे उठने ही नहीं दे रहा था | उसे क्रांतिकारी, झाँसी की रानी के नाम से पुकारा जाता था, आज उसे ...Read More

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अपंग - 7

7--- “प्लीज –हैव इट ----“ रिचार्ड बीयर लेकर भानुमति के सामने आ खड़ा हुआ था | भानुमति को झुंझलाहट लेकिन उसने चुपके से रिचार्ड के हाथ से ग्लास ले लिया और हाथ में पकड़े इधर-उधर देखती रही | न जाने राजेश कहाँ गायब हो गया था ? भानु को आश्चर्य होता था कि जिस कविता के माध्यम से वे दोनों जुड़े थे, वह संवेदना से जुड़ी थी | अचानक राजेश ने कैसे संवेदना को ताक पर रख दिया था ?न जाने राजेश की कविता अब कहाँ खो गई थी ? उसकी संवेदनशीलता ! उसका व्यवहार--–सब ही तो हवा में ...Read More

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अपंग - 8

8 राजेश ने उससे घर पर तो इस बारे में कोई बात नहीं की थी | अब क्या सुनाए ? वज केवल अपने ही लिखे हुए गीत कंपोज़ करती ही | इस मन:स्थिति में उसे कुछ याद भी तो नहीं आ रहा था | पशोपेश में थी भानु ! उसके स्वागत में तालियों की गड़गड़ाहट बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी | दरअसल, वह अपनी स्थिति को समझने का प्रयत्न कर रही थी | “प्लीज़ भानुमति ---“ रिचार्ड पियानो को पकड़े हुए उसकी ओर झुका आ रहा था | वह एकदम सकपका सी गई| उसके सामने ...Read More

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अपंग - 9

9--- दिनों की अपनी रफ़्तार होती है, वे हमारी मुठ्ठियों में कैद होकर नहीं चुपचाप बैठे रहते | वे हैं अपनी मनमर्ज़ी से, रुकते हैं तो अपनी मनमर्ज़ी से और कभी ठिठककर हमें खड़े महसूस होते हैं तो भी अपनी मनमर्जी से | दरअसल, वे कभी खड़े नहीं होते, उनका तो अपना मूड होता है जिसके अनुसार वे चलते हैं | वे हमें बताकर नहीं चलते, जैसे भानु को बताकर नहीं चलते थे | भानु को समझने की ज़रूरत थी कि आख़िर समय उससे क्या चाहता है ? दिन उससे कैसा रहने की उम्मीद करते हैं ? लेकिन नहीं ...Read More

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अपंग - 10

10--- दो दिन बीतते न बीतते भानु बहुत मायूस और तनावग्रस्त हो उठी | उसे अपने भारत की याद शिद्दत से आती कि उसका मन करता वह वहाँ से अभी छलांग भरकर अपने घर, अपनी माँ की गोद में चली जाए | वहाँ पर दिन कैसे गुज़र जाते थे, पता ही नहीं चलता था| बाबुल का प्यार, माँ का आँचल सब छोड़कर वह इस देश में जिसके सहारे चली आई थी उसका तो रवैया ही न जाने क्या और कैसे बदल गया था? वहाँ उसकी सहेलियाँ होतीं, उनके साथ घूमना-फिरना, कहकहे, शैतानियाँ, क्या नहीं करती रहती थी | यहाँ ...Read More

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अपंग - 11

11— भानुमति की बात सुनकर राजेश का जैसे खून ही खौल उठा | “अदनी सी लड़की ! किसे कह हो तुम अदनी सी लड़की ? कितना साथ देती है मेरा हर चीज़ में | लोगों में हँसती बोलती, सबसे प्यार से बात करती लड़की तुम्हें अदनी सी लगी और तुम ?जिसे लोगों से बात करने का सलीका का भी नहीं है, वह क्या है ?” भानु ने महसूस किया था कि राज कुछ अधिक ही उस लड़की का दीवाना है | उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उस लड़की में ऐसा था क्या ? अपने आप ...Read More

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अपंग - 12

12 भानुमति को एक क्षण भर के लिए महसूस हुआ शायद राजेश खिल उठेगा, खुश हो जाएगा, झूम उठेगा बनने की बात सुनकर और आने वाले अतिथि के स्वागत में उसे गले से लगा लेगा | उससे चिपट जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं था | वह उसको ऐसे खड़ा रह गया जैसे उसने किसी भूत को देख लिया हो | और भूत ही उससे कुछ बात सुन रहा हो | "ये सच है ! ओ माइ गॉड ! ये सब क्या कह रही हो तुम ? मुझे जलाने के लिए ही कह रही हो न ?" उसने बौखलाहट में ...Read More

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अपंग - 13

13 --- रिचार्ड उसकी ओर बेहद आकर्षित था, वह अच्छी प्रकार जानती थी | राज चाहता था कि उसकी रिचार्ड से मित्रता कर ले जिससे उसको कम्पनी में और भी बढ़िया पोज़ीशन मिल जाए | उसे तो रिचार्ड की बगल में हर दूसरे दिन नया चेहरा दिखाई देता था लेकिन उसने महसूस किया था कि उसकी पत्नी की ओर रिचार्ड कुछ अधिक ही आकर्षित है | क्या कमी थी रिचार्ड को ? एक से एक खूबसूरत उसकी हमबिस्तर बनने को तैयार रहती लेकिन यह भानुमति थी, एक भारतीय स्त्री ! जिसका अपना चरित्र था, अपनी सोच थी और था ...Read More

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अपंग - 14

14 -- ---------------- रिचार्ड चला गया था वह जैसे बैठी थी, वैसे ही बैठी रह गई थी | आख़िर हो क्या रहा था ? उसे सचमुच लगा, वह एक अनजाने देश में, अनजानों के बीच कितनी अकेली खड़ी है | उसे लगा, वह किसी समुद्र में है और न जाने कितने समुद्री जीव उसके चारों और घूम रहे हैं, वे उसको चीर-फाड़ देना चाहते हैं | अभी और क्या- क्या देखना, सहना होगा| ऐसे भयंकर, गहन, बहावदार समुद्र में से वह कैसे निकलेगी ? उसको तो तैरना भी नहीं आता ठीक से ! उसने रिचार्ड को कभी भी ख़राब ...Read More

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अपंग - 15

15---- जीवन की कठोर वास्तविकता यह है कि हँसी-ख़ुशी का समय पँख लगाकर जाने किस पुरवाई के साथ निकल है लेकिन तकलीफ़ का, पीड़ा का, अकेलेपन का समय जैसे वहीं ठहर जाता है, धुंध भरे रास्तों में न जाने कहाँ छिपा लेता है समय अपने आपको, फिर उसमें से निकलकर कभी भी आ खड़ा होता है सामने जैसे हमें चिढ़ाना चाहता हो | उस घटना के बाद भानुमति बिलकुल अकेली रह गई थी, एकाकी ! तन और मन दोनों ! स्वयं को सँभालने में असमर्थ पाती हुई सी ! पैट, पत्नी दोनों की मन:स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो चुकी थी ...Read More

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अपंग - 16

16 गर्भावस्था में कोई तो चाहिए था जो भानु को मॉरल सपोर्ट दे सकता | लेकिन कौन ? राजेश तो उसका चेहरा देखते ही न जाने क्या होने लगता | वह अजीब प्रकार के मुंह बनाने लगता | और भानु को भी कहाँ उसका चेहरा देखकर तृप्ति मिलती थी ? केसा पिता था जो अपने ही बच्चे से छुटकारा पाना चाहता था ? कोई भी देश हो, जाति हो अथवा धर्म हो नव-आगंतुक शिशु का सब लोग स्वागत ही करते हैं लेकिन --- कभी-कभी राजेश रुक को घर ले आता जो भानुमति को ज़रा सी भी लिफ़्ट न देती ...Read More

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अपंग - 17

17 --- माँ-बाबा के पत्र बराबर आते रहते थे | माँ उसे लिखती रहतीं कि वह अपना ध्यान रखे हाँ, उन्हें राजेश के पत्र न लिखने से शिकायत रहती | भानु टाल जाती, लिख देती कि राजेश बहुत व्यस्त रहता है | माँ को चैन न पड़ता, सोचतीं और लिख भी देतीं की ऎसी क्या व्यस्तता हो सकती है आख़िर जो राजेश अपने पहले बच्चे के लिए भी थोड़ा समय नहीं निकालता, कम से कम उसे माँ-बाबा के साथ अपना उल्लास तो शेयर करना चाहिए था| उन्हें उससे बात करने की लालसा बनी रहती लेकिन जब वह पत्नी से ...Read More

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अपंग - 18

18 कई घंटों की शारीरिक व मानसिक टूटन के बाद भानु ने एक बालक को जन्म दिया, ए मेल ! भानुमति की प्रतीक्षा पूरी हो गई थी, उसने चैन की साँस ली | उसके 'लेबरपेन्स' के बीच में कई बार उससे पूछा गया था कि बच्चे का पिता उसके साथ क्यों नहीं था ? वह कुछ उत्तर नहीं दे पाई थी | डॉक्टर परिचित तो थे ही, डिलीवरी के बाद फिर डॉक्टर ने उससे यही प्रश्न पूछा | "आउट ऑफ़ स्टेशन ---" बोलकर वह चुप हो गई | उसने अपने नन्हे बच्चे का स्वागत किया, अकेले ही, ऑल अलोन ...Read More

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अपंग - 19

19 भानुमति को समझ में ही नहीं रहा था कि वह रिचार्ड को किस प्रकार से 'ग्रीट' करे ? उसे धन्यवाद दे? कितने काम दिनों की दोस्ती थी उसकी रिचार्ड के साथ, उसमें भी कोई ऐसा रिश्ता तो बना नहीं था कि उसे भानुमति का ध्यान रखने की मज़बूरी हो | "आई वॉज़ एक्सपेक्टिंग योर डिलीवरी---" कुछ देर ठहरकर बोला ; यू हैव टू सफ़र एलोन ? नो कम्पेनियन ---" उसने उदासी से कहा | "लाइफ़ इज़ लाइक दिस ओनली ---" भानु बोली "हर आदमी के अंदर एक विलपॉवर होती है जो ईश्वर के रूप में उसकी हैल्प करती ...Read More

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अपंग - 20

20 ------ रिचार्ड प्रतिदिन एक करीबी रिश्तेदार की तरह भानुमति के पास आता रहा | उसने राजेश को समझाने बहुत कोशिश की लेकिन राजेश रुक और उसके जैसे लोगों में इस तरह से खो चुका था कि रिचार्ड भी उसे उस बेहूदी भीड़ में से निकालकर नहीं ला सका | न जाने क्यों रिचार्ड चाहते हुए भी राजेश को अपनी कम्पनी में से निकाल नहीं सका | बहुत बार सोचता लेकिन फिर उसे महसूस होता शायद वह सुधर ही जाए और भानु का बिखरा हुआ घर सँभल जाए | वह भानुमति को बहुत-बहुत पसंद करता था.उसे अपना बहुत अच्छा ...Read More

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अपंग - 21

21 -- सच बात तो यह थी कि भानुमति रिचार्ड की और अपनी मित्रता को कोई नाम ही नहीं पाई थी | मिरांडा को भानु के पास बैठना इतना अच्छा लगता था कि वह कभी भी चली आती और फिर बहुत देर बैठकर जाती | मिरांडा अनमैरिड थी और भगवान कृष्ण की दीवानी थी | वह धीरे-धीरे हिंदी बोलने लगी थी और उससे मीरा, कृष्ण और राधा के बारे में बात करती रहती थी | भानु से उसने बहुत सी कहानियाँ सुन ली थीं और वह कहती थी कि वह भी कृष्ण से शादी बनाना चाहती थी | "मैं ...Read More

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अपंग - 22

22 अपने देश की खुशबू आसमान से ही उसके नथुनों में समाने लगी थी और दिल्ली में उतारते ही एक चैन की साँस ली जिससे उसने अपने भीतर अपने भारत की सुगंध को समेट लिया | हाय, कहाँ बीहड़ में चली गई थी ? इतना लम्बा समय लग रहा था उसे | भावुकता के मरे उसकी आँखों में आँसू आ गए | माँ-बाबा को रिचार्ड द्वारा भेजी गई सूचना मिल चुकी थी | वे दोनों ड्राइवर को लेकर उसे लेने आ गए थे | भानुमति कुछ ऐसे माँ के चिपट गई जैसे किसी खोए हुए बच्चे को बड़े दिनों ...Read More

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अपंग - 23

23 बाबा गोद में मुन्ने को चिपकाए बैठे थे | माँ डाइनिंग टेबल पर बैठकर उसका इंतज़ार कर रही | "काकी ---" उसने बिम्मो को छोड़कर महाराजिन काकी का पल्लू पकड़ लिया था | "कैसी हो बिटिया ?" उन्होंने भानु के सर पर हाथ फेरा | "आपकी चाय के बिना कैसी हो सकती हूँ काकी ---?" "तो चलो, आओ चाय पीयो ---" महाराजिन ने कहा | "चलिए, पिलाइए --अरे ! आपने तो क्या-क्या सजा दिया काकी --इतना सारा रोज़ खिलाओगी तो फट जाऊँगी मैं ?" कहकर वह ज़ोर से हँसी और कुर्सी खिसकाकर बैठने लगी ; "ओय ! फिरंगन ...Read More

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अपंग - 24

24 वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई | कमरा देखकर भानु की आँखें फिर एक बार भर आईं माँ ने जैसे कमरे की एक-एक चीज़ इतनी साफ़ करवाकर, सँभालकर रखवाई हुई थी जैसे सब कुछ नया हो | अपने कमरे की लॉबी में खड़ी रहकर वह बगीचे की सुगंधित पवन को फिर से अपने फेफड़ों में भरने लगी | उसे महसूस हो रहा था कि कमरे की छुअन को, उसकी सुगंध को पूरी अपने भीतर उतार ले | रात भर वह अपनी किताबें, रेकॉर्ड्स, पेंटिग्स, कपड़ों को सहलाती रही | उन्हें छूती रही। गले लगाती रही | उसे ...Read More

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अपंग - 25

25 उसने पाँच मिनट में ही अपने लम्बे बालों को धो भी लिया था जैसे तैसे और उनमें से छतराती हुई नीचे उतर रही थी | "कितने प्यारे हैं मेरी भानु के बाल ---अच्छा है कटवाए नहीं --" माँ ने उसके बालों को प्यार से निहारते हुए कहा | "अरे ! आपने कितनी मेहनत की है मेरे बालों पर, कटवा कैसे लेती ?" कुछ इतराकर वह माँ के गले लिपट गई | उसे याद आ गया कि उसके बाल कटवाने के लिए राज ने उस पर कितना ज़ोर डाला था लेकिन उसने कटवाकर ही तो नहीं दिए | जब ...Read More

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अपंग - 26

26 -------- बाबा अपनी पूरी फॉर्म में आने लगे थे धीरे-धीरे | भारतीय संगीत व सभी कलाओं प्रेमी बाबा उसके साथ पहले कितनी चर्चाएं किया करते थे | उसे कत्थक नृत्य व शास्त्रीय संगीत सीखने वे स्वयं उसके साथ जाते थे | कभी, कोई बहुत व्यस्तता आ गई हो तो बात अलग है किंतु वे चाहते थे कि वे अपनी बिटिया के साथ जितना रहा सकें, रहें | उसको साथ जुड़े हुए दोस्तों की कारी गरी देखने का, उन्हें सुनने का। उनको नृत्य करते देखना, पेंटिंग देखना यहाँ तक कि बेटी की रचनाएँ सुनना भी उनके प्रिय ...Read More

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अपंग - 27

27 --- माँ -बाबा उसके पास जाने ही वाले थे लेकिन बाबा की तबियत खराब होने से उन दोनों जाना कैंसिल हो गया था | "बताओ, हो न आते बच्चों के पास, इतनी बदपरहेज़ी करते रहते हो | तभी न तबियत खराब हो गई ?" माँ ने बाबा पर नाराज़गी दिखाते हुए कहा | भानुमति को कितनी तसल्ली मिली थी जब उसने सुना था कि माँ -बाबा नहीं आ पाएँगे |जबकि बाबा की तबियत के बारे में जानकर उसकी जान भी निकल गई थी | क्या करती ? वहाँ जैसा वातावरण था उसके दिल की धड़कनें तो इतनी बढ़ ...Read More

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अपंग - 28

28 ----- भानु का मन फिर से कितना भारी हो गया था। न बाबा के पास से जाने मन था और न ही उनके पास बैठने का साहस ! बाबा उसके सर पर बार-बार हाथ फिराकर जैसे उसे शांत करने की चेष्टा करते रहे | जैसे वे जानते थे कि उसके भीतर आखिर चल क्या रहा था ? आखिर पिता थे, वो भी एक स्नेहिल मित्र पिता --कैसे न समझते ? इतना तो माँ-बाबा दोनों ही समझते थे कि उनकी बिटिया के मन में बड़ी उहापोह है ! लाखी नाश्ता करके आ गई थी | भानुमति उसे लेकर ...Read More

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अपंग - 29

29 ---- यानि जिसके पास अपनी ज़िंदगी का कोई हल न हो, वह दूसरों के लिए हल खोजने की कर रहा था | उसे याद आया, रिचार्ड अक्सर कहता है ; "लाइफ़ इज़ लाइक दिस ओनली, जो चीज़ें तकलीफ़ दें उन्हें छोड़कर आगे बढ़ो |" वह भी कुछ ऐसा ही सोचने लगी है कि रोते हुए ज़िंदगी नहीं काटी जा सकती और काटना भी क्यों? जीवन में एक बार मिलने वाली ज़िंदगी को रोकर काटो, क्या बकवासबाज़ी है ?कुछ तो सोचना ही होगा | "तू पढ़ती क्यों नहीं लाखी ?" अचानक भानु ने कहा तो वह अचकचाकर उसकी गोदी ...Read More

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अपंग - 30

30 ---- "क्या हुआ, चुप क्यों हो गई ?" "समझ में नहीं आता, कैसे बताऊँ ? क्या बताऊँ ?' वो ही बद्री है न जो कुम्हारों वाले मुहल्ले में रहता है ?" भानु ने पूछा | "हूँ ----" "तू, बता रही थी न तेरी माँ सदाचारी पंडित जी के यहाँ काम करने लगी थी | ये वो ही सदाचारी पंडित जी हैं जो हमारे यहाँ आते रहते थे |" "हाँ दीदी, अब कहाँ आते हैं ?वो एमए हो गए थे न " "एमए --?" "वो वोट पड़े न उसके बाद --" "ओहो ! एम.एल.ए --" "हाँ, वो ही दीदी ...Read More

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अपंग - 31

31 ---- लाखी यह सब बताते हुए भी बहुत घबराई हुई थी | "पता नहीं माँ को यह सब था क्या कि वह पंडित के नाम पर बदमाश आदमी है लेकिन अब मुझे लगता है कि पता ही होगा | दुख भी होता है कि कोई भी माँ अपनी बेटी को ऐसे किसी घर में कैसे भेज सकती है ? " घड़ी भर को रुककर उसने कहा; "माँ की भी मज़बूरी थी ही, उसका पियक्कड़ आदमी !" लाखी बातें करते-करते बार-बार रोने को हो आती थी| " फिर एक दिन माँ ने कहा कि उसकी तबियत खराब है ...Read More

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अपंग - 32

32 ----- उस समय माँ-बाबा भी उसकी बात कहाँ समझ पाए थे | माँ को भानु की बात बड़ी गुज़री थी और उन्होंने बिना यह सोचे कि किशोरी बच्ची के मन पर इस सबका क्या असर पड़ेगा ? उस पर ही अपनी नाराज़गी दिखा दी थी | भानु को उस समय बहुत खराब लगा था | काफ़ी दिनों तक सदाचारी पंडित जी उनके घर पूजा-पाठ करवाने आते रहे, उसके बाद भानु माँ-बाबा के बहुत कहने पर भी कभी पंडित जी के पास पूजा में बैठने नहीं आई थी | माँ-बाबा सोचते, उनकी बच्ची ज़िद्दी है | उन्हें उसकी किशोरावस्था ...Read More

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अपंग - 33

33 ----- भारत में समय पँख लगाकर उड़ जाता है | पता ही नहीं चला कब दो महीने होने को आए | रिचार्ड के मेल आते रहते थे, फोन्स भी | माँ-बाबा को लगता राजेश के हैं | हाँ, कभी कभी माँ-बाबा उससे पूछते, आख़िर कैसे इतना बिज़ी हो गया है राजेश कि कभी उनसे दो मिनट भी बात नहीं कर पाता ? भानु कोई न कोई बहाना लगा देती, लगाना ही पड़ता, ज़रूरी था | अपनी ज़िंदगी की सच्चाई को भानु कैसे शेयर करती?उसने अपनी ज़िद से ही तो सब कुछ किया था उसने |फिर माँ-बाबा जितने ...Read More

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अपंग - 34

34 ---- लाखी का तो भानु के पास से अपने घर जाने का मन ही नहीं होता था लेकिन तो था ही वरना उसका पति मार-मारकर उसका कचूमर बना देता | उसको जाना पड़ा फिर भानु की कई सहेलियाँ आ गईं और भानु उनसे गप्पें मारने में व्यस्त हो गई | बहुत देर तक चाय-पानी, नाश्ता चलता रहा और कल्चरल कार्यक्रमों में जाने के प्रोग्राम तय होते रहे | मुन्ने की तो कोई चिंता ही नहीं थी भानु को | अब तो मुन्ना उसे देखकर उसकी ओर बाहें भी नहीं फैलाता था | "अरे ! वहाँ जाकर मुश्किल हो ...Read More

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अपंग - 35

35 ------ बच्चे का पिता नहीं, बच्चे की माँ यानि भानु का दोस्त उन दोनों को बहुत मिस कर था | जब भी वह फ़ोन करता भानु से ज़रूर पूछता कि कब आ रही है वह वापिस ? बहुत मिस कर रहा था लेकिन उसके लिए संभव नहीं था कि वह उसे कह सके कि वह उसे बहुत मिस कर रहा है | वह इतना ही कहता कि बच्चे की बहुत याद आ रही है | उतना ही मिस भानु भी उसे कर रही थी | यह बात बहुत कमाल की थी कि उसे राजेश की ज़रा याद नहीं ...Read More

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अपंग - 36

36 ---- 'बड़ी तेज़ लड़की है 'सक्सेना ने सोचा लेकिन वह कुछ कह नहीं सकता था | उसने गर्दन कहा ; "ठीक है, जैसा आप उचित समझें ---मैं शाम को सब रेकॉर्ड्स भिजवा दूँगा --|" "जी, बेहतर, शुक्रिया ---" भानु ने सक्सेना का चेहरा पढ़ते हुए कहा | "चलिए बाबा, काफी देर बैठे आप ---" भानु ने बाबा का हाथ पकड़ा और बाहर जाने लगी | दरवाज़े तक सक्सेना छोड़ने आया तो बाबा ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा ; "ये मेरी इकलौती संतान है --जैसा ये चाहेगी --आफ़्टर ऑल, तुम जानते हो --" "जी---जी---" सक्सेना के मुख ...Read More

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अपंग - 37

37 ---- भानुमति ने फ़ैक्ट्री के नं डायल किया | "प्लीज़ कनैक्ट मी टू मि. दीवान |" उसने ऑपरेटर कहा | "आप कौन बोल रही हैं ?" ऑपरेटर ने क्या पूछ लिया कि भानु गुस्से से लाल-पीली हो आई | "मैं कोई भी हूँ --आप उनकी टेबल पर फ़ोन दीजिए ---" "जी--जी --मैम ---प्लीज़ होल्ड ऑन ---जस्ट वन मिनिट ---" "लीजिए, बात कीजिए ---" ऑपरेटर ने फ़ोन मि. दीवान की टेबल पर देकर भानु से कहा | "मैं बोल रही हूँ भानुमति मि. दीवान ----" "अरे ! बिटिया, आप मुझसे बिना मिले चली गईं ?" "तभी तो आपसे बात ...Read More

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अपंग - 38

38 ----- दिन ढले से लेकर रात बढ़ बजे तक भानुमति मि.दीवान के साथ व्यस्त रही | सारे संदेह पुष्टि जा रहे थे | दीवान जी के साथ बैठकर धीरे-धीरे सारी बातें उसकी समझ में आ गईं थीं | उनकी सहायता से उसने बहुत सी गुत्थियाँ सुलझा लीं थीं | वह तो पहले ही समझ रही थी और बात स्पष्ट हो गई कि यह सब सक्सेना और धूर्त पंडित जी की मिली भगत थी | पुराने लोगों को निकालकर नई भर्तियों के लिए कमीशन खाना उनका शगल बन गया था | अब भानु को पूरी तरह समझ में आ ...Read More

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अपंग - 39

39 ------ वह माँ-बाबा की इमेज नहीं तोड़ सकती थी | "माँ, मेरी बात का बुरा न मानो तो बात कहूँ ?" भानु ने माँ से धीरे से पूछा | "बोल न ---" माँ बहुत संवेदनशील हो उठी थीं | "मैं कल से रोज़ फ़ैक्ट्री जाऊँगी ---" "तू अभी है यहाँ कितने दिन जो -----??" "लगभग दो-ढाई महीने और रह सकती हूँ --" "और वहाँ वो राजेश ? देख बेटा, अपनी गृहस्थी संभालना ---" माँ ज़रा-ज़रा सी बात से चिंतित हो जाती थीं | वैसे उन्हें तो कुछ नहीं पता था अपनी बेटी की गृहस्थी के बारे में ! ...Read More

40

अपंग - 40

40 ----- एक दिन माँ के पास सदाचारी का गुर्राता सा फ़ोन आया | माँ ने ही रिसीव किया |'यही है मेरी दयादृष्टि का फल ?" माँ पता नहीं क्यों उनसे इतनी भयभीत रहती थीं | पंडित जी वो भी सदाचारी ! यदि कहीं श्राप दे देते तो ? कितना अपशकुन था पूरे परिवार के लिए ! "पंडित जी मेरी तो ---" माँ बोलते हुए कैसी लड़खड़ा रही थीं | "क्या मेरी तो ---क्या लच्छन दिए हैं अपनी लाड़ली को ---आख़िर आप लोगों ने समझ क्या रखा है ? सबको देख लूँगा | ये विद्या है कोई मज़ाक नहीं ...Read More

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अपंग - 41

41 ----- माँ -बाबा का पुनीत से बहुत लगाव हो गया था | इतने दिनों में माँ घर में छोटे बच्चे को देखकर माँ फूली नहीं समाती थी | खूब ध्यान रखा जाता था उसका सो खूब गोल-मटोल हो गया था | लेकिन अब भानुमति के वापिस जाने का समया गया था केवल पाँच दिन शेष थे | लाखी आती तो खूब रोने लगती ; "दीदी ! आपके बिना बिलकुल अच्छा नहीं लगता | " लाखी से छोटी बहन की तरह प्यार करती थी भानु, उसकी सारी बातें सुनती, उसे पास बिठाकर समझाती, उसके आँसू पोंछती लेकिन अपनी पीड़ा ...Read More

42

अपंग - 42

भानु के वहाँ पहुँचते ही वहाँ इक्कठी हुई औरतों ने अपने मुँह पल्लू में छिपाकर अजीब से स्वर में विलाप करना शुरू कर दिया था | लाखी सहमी सी एक कोने में बैठी थी | वह उसकी ओर बढ़ गई ; "ला---खी ----" भानु ने कहा | "क्या हो गया ये सब ? कैसे ?" उसने लाखी को अपने गले से चिपका लिया | लाखी की आँखें जैसे कहीं कुछ घूर रही थीं | लाखी कुछ बोल ही नहीं प रही थी | औरतों ने और भी ज़ोर से चिल्लाकर रोना शुरू किया | भानु का दिल घबराने लगा ...Read More

43

अपंग - 43

43 ---- फ़्रेश होकर भानु नीचे आ गई, अब उसने मुन्ना को गोद में लेकर प्यार किया | "क्या था ?" माँ ने पूछा | वह बहुत बेचैन थीं | "कच्ची शराब पीकर और क्या ?" "हाँ, आज के पेपर में भी है, सात आदमी मरे हैं ---" "पता नहीं, बाबा कहाँ हैं, दिखाई नहीं दे रहे---|" "फ़ैक्ट्री ---" "वेरी गुड़ ! ज़रा इसको ले लो माँ, मैं ज़रा आती हूँ --"उसने बेटे को माँ को दे दिया | वह नींद में ही था | माँ ने उसे झूले में लिटा दिया और पास ही बैठकर झूलने लगीं | ...Read More

44

अपंग - 44

44 ----- भानुमति ने उसके सिर पर फिर से हाथ फेरा और बाहर निकल आई | लाखी वहीं खड़ी गई थी | रिवाज़ के अनुसार वह बाहर नहीं आ सकती थी | जैसे ही वह बाहर निकली, देखा कुछ औरतें बरामदे में खड़ी हुई फुसफुस कर रहीं थीं | उसे देखते ही वे तितर-बितर होने लगीं | लाखी कमरे में खड़ी हुए ही कच्ची सड़क पर गाड़ी के पीछे की धूल उड़ते हुए देखती रही | आखिर भानु के वापिस लौटने का दिन आ ही गया | माँ ऎसी व्यस्त हो गईं जैसे बेटी को पहली बार ससुराल भेज ...Read More

45

अपंग - 45

45 ----- रिचर्ड एयरपोर्ट पर लगभग घंटा भर पहले ही पहुँच चुका था | वह बाहर खड़ा प्रतीक्षा कर था | अब फ़्लाइट लैंड कर चुकी थी और उसके दिल की धड़कने बढ़ती जा रही थीं | उसने भानु और बच्चे को कितना मिस किया था जैसे वह उसका ही परिवार हो | दूसरी ओर राजेश को कोई चिंता ही नहीं थी | वही तो करता रहा था भानु को फोन्स और माँ-बाबा समझते कि राजेश के फोन्स आते रहते हैं | फ़्लाइट समय पर थी | यात्रियों की भीड़ में भानु उसे दिखाई दे रही थी जो अपने ...Read More

46

अपंग - 46

46 ----- रिचार्ड गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर एक शोफ़र की तरह साइड में खड़ा हो गया था | उसकी हरकतें भानु को आशिकों जैसी लगतीं | वह कई बार सोचती भी थी कि आखिर रिचार्ड को उससे क्या मिलेगा ? हम -एक दूसरे को प्यार करते हैं, ध्यान रखते हैं तो दोनों ही ओर से होता है न ! लेकिन यहाँ तो रिचार्ड ही हर समय भानुमति की सहायता के लिए खड़ा नज़र आता था | कोई भी रिश्ता एक ओर से नहीं बनता और टिकता तो हरगिज़ नहीं | जब तक एक-दूसरे को समझा न जाए और समय ...Read More

47

अपंग - 47

47 ------ कुर्सी आगे की और सरकाकर रिचार्ड ने भानु से कहा ; "इस कुर्सी पर बैठकर तुम लिखोगी --बढ़िया कविताएँ --!" "कमाल है ! कविता? वो कब ? काम-धाम नहीं करना है क्या ?आइ हैव टू वर्क --"भानु ने सोचा, कमाल है ये रिचार्ड भी ! अरे ! मैं यहाँ साहित्य-साधना और संगीत करुंगी या काम करूंगी और अपने बच्चे को पालूंगी ? "काम भी करोगी और अपने टेलेंट को भी नहीं छोड़ोगी ?" "मतलब ?मेरे बच्चे का ---" भानु कुछ कहना चाहती थी लेकिन रिचार्ड बीच में ही टपक गया | "उसके लिए आया है, तुम चिंता ...Read More

48

अपंग - 48

48 -------- रिचार्ड का इतना बोझ अपने सिर पर चढ़ाना अच्छा नहीं लग रहा था भानु को | न संबंध, न आगे उसके लिए कुछ करने की सोच ! हाँ, कुछ था जिसका कोई नाम नहीं था | उसे कोई नाम दिया भी नहीं जा सकता था | कैसे उतारेगी इतना सब कुछ ? भावनाओं का कोई मोल नहीं होता किंतु धन का तो होता है और खूब होता है | किसी का इतना अहसान ठीक नहीं था | वह बात अलग थी कि जब भी उसने रिचार्ड से बात की उसने यही कहा ; "क्यों वरी करती हो, ...Read More

49

अपंग - 49

49 ---- भानु को चिंता होना स्वाभाविक ही था यदि माँ-बाबा आए तो राजेश को कहाँ से लाएगी ?ऐसे के पाँव भी तो नहीं पड़ा जा सकता जो इस स्वभाव व ख़राब नीयत का हो जिसके इरादों में ही खोट हो, बेवक़्त का भौंपू बजा सकता हो, किसी को समझना उसके लिए छोटा बन जाना होता हो, उसे कहाँ तक बर्दाश्त किया जा सकता है ? भानु के लिए वह जैसे अब था ही नहीं | अपने बच्चे के लिए जिसके मन में कोई प्यार न हो, वह और किसी से कैसे प्यार करेगा ? उसका केवल अपना स्वार्थ ...Read More

50

अपंग - 50

50 ---- चलती रही ज़िंदगी ! सैटिल होने लगी थी भानु | बच्चे की नैनी बहुत अच्छी, समझदार थी जैसे भानु को भारत में अपने घर पर बेटे का ध्यान रखने की कोई ज़रूरत नहीं होती थी, इसी तरह यहाँ पर भी इंतज़ाम हो चुका था | मज़े की बात यह कि बच्चे और उसकी आया का कुछेक दिनों में ही ऐसा संबंध हो गया था कि वह भानु को याद ही नहीं करता था | आया उसकी माँ बन चुकी थी | एक दिन रिचार्ड ने चाय पीते-पीते पूछा ; "यू नो ----?" और चुप्पी साधकर चाय की ...Read More

51

अपंग - 51

51 ------------ कोई किसी का इतना ख्याल कैसे रख सकता है ? भानु के मन में बार-बार ये बात और उसके दिल की धड़कन तेज़ हो जाती । सच तो यह था कि उसे खुद से ही डर लगने लगा था । वह चुपचाप रिचार्ड की बातें सुन रही थी । ऑफ़िस जाना शुरु कर चुकी थी । बेटे की तो कोई चिंता थी ही नहीं उसे। नैनी जो थी । वह भी इतनी पर्फेक्ट ! वह तो ताउम्र अपने बच्चे को इतनी लक्ज़री में नहीं पाल सकती थी ! इतना क्यों और कैसे ? उसके मन में प्रश्न ...Read More

52

अपंग - 52

52 ----- अगले दिन अपने समय पर भानु ऑफ़िस पहुँच गई थी लेकिन कुछ अनमनी सी थी । आजकल को देखकर उसका दिल घड़कने लगता और पेट में कुछ गुड़गुड़ होने लगती । कितना समझदार था रिचार्ड जो उसने राजेश और रुक का उस ब्रांच से कहीं और ट्रांसफर कर दिया था । वैसे वह उसे फ़ायर भी कर सकता था, कोई भी बहाना बनाकर। वह मालिक था, अपनी फ़र्म का, उससे कोई क्या पूछ सकता था? आफ़िस में सब कुछ ऐसा ही रहता, नार्मल --जैसे और सब एम्प्लॉई रहते, वैसे ही वह भानु के साथ रहता। वहाँ जब ...Read More

53

अपंग - 53

दोनों ही तो सोचते थे एक-दूसरे के बारे में, दोनों की धड़कनें बढ़ जातीं लेकिन दोनों ही चुप रहते | ऑफ़िस में बस काम से काम ! कई बार रिचार्ड सोचता कि उसने राजेश को क्यों पाल रखा है, उसके साथ ही उस औरत को भी ? वैसे तो यहाँ किसी के पास भी कोई इतना समय नहीं होता था कि किसीके बारे में गॉसिप्स जी जाएँ | लेकिन आम हिंदुस्तानी जब तक अपने हिन्दुस्तानी भाई के भीतर झाँककर न देख ले तब तक उसे चैन कहाँ पड़ता है ? यहाँ काम का अच्छा पैसा मिलता था इसलिए बेचारे ...Read More

54

अपंग - 54

------- " मैं एक हिन्दुस्तानी औरत का बेटा हूँ ---" रिचार्ड ने कहा और एक लम्बी साँस खींची | के पास आँखें चौड़ी करने के अलावा और कुछ था ही नहीं, उसका मुँह खुला रह गया और वह रिचार्ड को ऐसे ताकने लगी जैसे किसी अजायबघर में बंधा कोई ऐसा अनजाना जानवर जिसे किसी ने यूँ खुला हुआ देखा ही न हो | उसकी फटी हुई आँखों के आगे रिचार्ड ने चुटकी बजाई ; "क्या हो गया ? क्या मैं कोई भूत हूँ ?" वह हँसा | बिलकुल नॉर्मल था वह ! "नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है ?" ...Read More

55

अपंग - 55

----- " उन्होंने मेरे डैडी की इतनी सेवा की थी कि डैडी का मन हो आया कि उन्हें उनसे कर लेनी चाहिए लेकिन उनके पति ने तलाक देने से इंकार कर दिय | बिना तलाक के वो शादी तो कर नहीं सकते थे लेकिन उन दोनों को आपस में प्यार हो गया था| उनका मेरे डैडी के उनसे फिज़ीकल रिलेशंस रहने लगे और कुछ दिनों बाद मैं माँ के गर्भ में आ गया।" रिचार्ड बार-बार लम्बी साँसे ले रहा था जो बिलकुल भी बनावटी नहीं थीं | "माँ के पति तो पहले से ही डैडी की प्रॉपर्टी के लिए ...Read More

56

अपंग - 56

56.. -------- पुनीत बड़ा होने लगा था, तोतली बोली में कुछ बोलने भी लगा। जब कभी काम के अलावा रिचार्ड के साथ थोड़ी बहुत देर के लिए बाहर चले जाते तो उसे थोड़ा चेंज मिल जाता। माँ का फोन आया था सक्सेना को 2 वर्ष का कारावास तो हो ही गया था। बाबा और दीवान अंकल मिलकर फैक्ट्री को फिर उसी रफ्तार पर ले आए थे। लाखी का पढ़ने में खूब मन लगता। घर पर ही रहने लगी थी और माँ उसे अच्छी तरह पढ़ा रही थीं। एक बात विशेष थी, सदाचारी का पता ही नहीं चला था। न ...Read More

57

अपंग - 57

57.. ------- " सच्ची भानुमति! कई बार तुम्हारा कैरेक्टर समझ नहीं पाता, तुम इतनी फाइट करने वाली स्त्री हो, चेंज ला सकती थी, तुम सब कुछ कर सकती थीं। पर बस सफ़र करती रही क्यों आखिर? " " पता नहीं मेरे अंदर इतना साहस ही नहीं हुआ। " " तुम्हारे अंदर इतना साहस नहीं हुआ... लक्ष्मी बाई की देश की संतान हो तुम, तुम साहस नहीं कर सकी तो पता नहीं... "उसने एक लंबी सी साँस छोड़ी। " तुम्हें बहुत दुख हुआ.. " " दुख नहीं, अफ़सोस... कितने चैलेंज आते हैं.. लोगों में बदलाव आ रहा है,तुम अभी वहीं ...Read More

58

अपंग - 58

58 ----- कितना अपमानित महसूस कर रहा था रिचार्ड ! राजेश को इतना संयम और तहज़ीब नहीं थी कि उसे अपने पास नौकरी देकर उसका ध्यान रखता रहा है, आज उसी के लिए वह ऎसी बातें बोलकर अपना छोटापन दिखा रहा था | जिसने अपनी पत्नी को छोटा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, बच्चा ! जिसको इतने सालों तक न वह ख़ुद पहचानता था और न ही बच्चा उसे पहचानता था, वही इस प्रकार की बदतमीज़ी कर रह था और उसकी आँखों में शर्म नाम की कोई चीज़ भी नहीं थी | कैसे इतना नीच हो सकता ...Read More

59

अपंग - 59

59 ---- राजेश जिस मूड में अपार्टमेंट्स से बाहर निकला था, उसके बारे में सोचकर भानु के पसीने छूटने | उसके दिलोदिमाग़ पर जैसे दहशत छाने लगी | रिचार्ड के लिए भी परेशानी की स्थिति तो थी ही | माँ को याद करते हुए वह अपनी कंपनी में अधिकतर भारतीय कर्मचारियों की भर्ती करता था | उसका अधिक स्टाफ़ 'एशियन' था | उसका वैसे कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था लेकिन यह एक ज़बरदस्त कमज़ोर कड़ी थी कि वह बिना तलाक के अपने कर्मचारी की पत्नी के साथ लोगों की निगाह में संबंध बनाए हुए था जबकि वह भानुमति ...Read More

60

अपंग - 60

60 ------ जीवन में हर बात कहाँ सोची हुई होती है ? आदमी सोचता कुछ है, होता कुछ है यह हर रोज़, हर पल होता है | विधाता का लिखा हुआ भला कौन टाल सकता है ? एक उम्र होती है जब आदमी हर परिस्थिति से जूझ सकता है | फिर एक समय होता है जब आदमी टूटने लगता है, वह कमज़ोर पड़ जाता है | यही हाल भानु का हो रहा था | भानु पहले बहुत पक्की थी, एक चट्टान जैसी लेकिन अब पुरानी चट्टान जैसे बुरबुराने लगी थी |वह कमज़ोर हो गई थी, साथ ही भाग्यवादी भी ...Read More

61

अपंग - 61

------------ कैसे बात करे बच्चे से ---? आसान नहीं होता इतने छोटे बच्चे को समझाना लेकिन ज़रूरी तो है उसे बताना | कल को कोर्ट उससे पूछेगा कि उसे किसके पास रहना है ? मासूम बच्चा अपने निर्णय कैसे बता सकता है जब वह उस आदमी को अपना पिता ही नहीं समझ पाता है | उसके मन में उसका पिता इतनी गंदी भाषा व व्यवहार वाला नहीं ,रिचार्ड अंकल की तरह सोफेस्टिकेटेड होना चाहिए | " आई लव यू ,नो डाउट एबाउट इट --बट रीयली फैड-अप ऑफ दिस नॉनसेंस | " रिचार्ड ने उस दिन एक लम्बी सी साँस ...Read More

62

अपंग - 62

------ "आई नो,समटाइम्स आई बिकम वैरी रूड ---" रिचार्ड भानु का हाथ अपने हाथ में लेकर कह रहा था उसे वाक़ई अफ़सोस भी होता कि वह जिसको प्रेम करता है ,उससे कई बार ऐसा व्यवहार आख़िर क्यों कर बैठता है ? हर इंसान के सहन करने की एक सीमा होती है फिर वह अनमना होने लगता है | यह मनुष्य जीवन की एक स्वाभाविक गति होती है | "मुझे लगता है ,आई एम सो--सो टायर्ड ,आई कांट थिंक प्रॉपर्ली ---" रिचार्ड उसका हाथ सहलाते हुए कह रहा था और वह गुमसुम हो डबडबाई आँखों से उसकी ओर ताके जा ...Read More

63

अपंग - 63

------------ कैसी गुहार, इस छोटे से बच्चे की ! क्या इस प्रवाह में बह गए थे दोनों ? जब को होश आया, वे एक-दूसरे से आँखें नहीं मिला पा रहे थे | कैसे नाज़ुक क्षणों के घेरे में फँस गए थे दोनों ! जिससे वे बचते रहे थे, वही सब कुछ उनकी देहों को थर्रा रहा था | भानुमति रिचार्ड के सीने में मुँह छिपाकर सिसक उठी | अंतर में मीठी ज्वाला के शांत होने की संतुष्टि के साथ मन के भीतर कहीं दूसरे प्रश्न आवरण में सिकुड़े पड़े थे | रिचार्ड पूरी रात भर सिटिंग -रूम में ही ...Read More

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अपंग - 64

64 ------- उस दिन दोनों असहज थे, जो कुछ हुआ था वह इतना अचानक था जैसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था दोनों को | वो दोनों ही न तो बच्चे थे, न किशोर और न ही उस सब से अनजान लेकिन फिर भी जो कुछ हुआ था वह इतना अचानक था कि वे स्वयं ही चौंक से गए थे | आख़िर उस दिन खुद पर संयम नहीं कर पाए थे |मनुष्य संवेदनाओं का पुतला ही तो है, उससे किन्हीं क्षणों में कुछ भी हो सकता है फिर चाहे हम उसको कुछ भी नाम क्यों न देते रहें ...Read More

65

अपंग - 65

65 ------ जैनी बाहर से 'बाबा'--'बाबा' पुकारती रह गई उसे बच्चे को समय पर नाश्ता कराना होता था लेकिन तो उन दोनों के बीच में ऐसा मस्त था जैसे उसने कोई बड़ा सा खिलौनों, चॉकलेट्स या आइसक्रीम के साथ अपने प्यारे दोस्तों का खज़ाना पा लिया हो |भानु और रिचार्ड उसे इतना ख़ुश देखकर तृप्त हो रहे थे |एक बच्चे को क्या चाहिए ? प्यार, दुलार--- लैंड-लाइन की आवाज़ सुनकर कूदता-फांदता पुनीत कोने में रखी कॉर्नर टेबल पर रखे फ़ोन के पास जा पहुँचा | वह जानता था इस फ़ोन पर अधिकतर उसके नाना-नानी का फ़ोन आता था | ...Read More

66

अपंग - 66

66 ----- रिचार्ड ने कितनी मेहनत लगाकर भानु और पुनीत को भारत भिजवा तो दिया था लेकिन तब तक देर हो चुकी थी | भानु को माँ-बाबा का शरीर ही मिल सका था | पुनीत बार-बार पूछता, कुछ न कुछ ऐसे सवाल करता जो भानु को और भी परेशान करते क्योंकि वह बच्चे को उन बातों का उत्तर देने में असमर्थ थी, परेशान तो ही ----| रिचार्ड भी दो दिन बाद आ गया था और उस अनजाने वातावरण में उसने अपने आपको सारे क्रियाकर्म करने के लिए तत्पर कर लिया था | राजेश के स्थान पर एक गोरे विदेशी ...Read More

67

अपंग - 67

67 ------ अपने पति के गुज़र जाने के बाद लाखी यहीं माँ -बाबा के पास रहने लगी थी | उन दोनों का सगी बेटी की तरह ध्यान रखती और पढ़ाई करती | भानु माँ से उसका पूरा ध्यान रखने को कहकर गई थी और उसे पढ़ाई भी करनी है, यह बात उसे अच्छी तरह समझा गई थी | लाखी उसकी इतनी अपनी थी कि उसने कभी उसका कहना नहीं टाला | उसे मालूम था कि भानु दीदी कभी उसका साथ नहीं छोड़ सकती | अगर उसका कोई है तो भानु दीदी ही हैं | वह खूब मन से पढ़ाई ...Read More

68

अपंग - 68

68 ----- एक बार फिर से गाड़ी पटरी पर आने लगी लेकिन अभी सब कुछ बीच में था | तक भानु को राजेश से छुटकारा नहीं मिलता तब तक वह असहज थी ही | "बेटा ! अब मुझे भी कुछ अकेला और थका हुआ लगने लगा है |सेठ जी के बाद में किसी से सलाह लेना मुश्किल हो रहा है | फ़ैक्ट्री के लिए किससे सलाह लूँ --? अब जबसे तुम आ गई हो, तुम्हें एक बार सब खोलकर समझा दूँ तो ---" दीवान जी ने कहा | "अंकल ! एक ज़रा वहाँ से फ़्री हो जाऊँ तब यहीं ...Read More

69

अपंग - 69

69 ------ अकेली होने के बावज़ूद भी रिचार्ड ने उसे अकेले कहाँ रहने दिया था | रोज़ाना ही उससे करके भानु महसूस करती कि वह उसके पास ही है | फ़ैक्ट्री खूब अच्छी तरह चल रही थी, पुनीत बड़ा हो रहा था| भानु ने लाखी को बारहवीं कक्षा पास करवा दी थी | भानु चाहती थी कि लाखी बी.ए कर ले | सब कुछ ठीक-ठाक ही चलने लगा था, बस कभी-कभी भानु को बहुत अकेला लगता | रिचार्ड भी कुछेक महीनों के अंतराल में चक्कर मार ही लेता | " दी--दी --एक बात बताऊँ ?" लाखी भागती-भागती भानु के ...Read More

70

अपंग - 70

70 ------ भानुमति सदा से शिव-रात्रि का व्रत तो रखती थी लेकिन कभी भी मंदिर नहीं जाती थी | बात लाखी बहुत अच्छी तरह से जानती थी | न जाने कितने वर्ष हो गए थे भानु को मंदिर में गए हुए थे | "लाखी ----" अचानक भानु ने कहा | 'जी, दीदी ---" "इस बार मैं मंदिर जाऊँगी ---" अचानक ही भानु ने लखी से कहा | "क्या----दीदी ---?? क्या कह रही हैं आप ? कभी गई हैं क्या ?" उसने तुरंत चौंककर कहा | "क्यों? मैं इतनी पापी हूँ क्या जो मंदिर नहीं जा सकती ?" उसने हँसकर ...Read More

71

अपंग - 71

71 ------------ शुरू से ही कहाँ मंदिरों में जाती थी भानु लेकिन कोई विरोध नहीं था उसे ! विरोध तो ऐसे लोगों से जो मुँह में राम बगल में छुरी दबाए घूमते थे | कैसे माँ को अपने शब्दों से बाँध लेता था वह बंदा जिससे वह किशोरावस्था से चिढ़ती रही थी | ऐसे ही लोग होते हैं अपंग जो तन से नहीं मन से अपंग होते हैं | यह मन की अपंगता ही वास्तव में मनुष्य को बेचारा बनाती है, तन की अपंगता होना ब्रह्मांड का खेल है लेकिन मन की अपंगता मनुष्य के स्वयं की बुनी हुई ...Read More

72

अपंग - 72

72 ----- कुछ ही दिनों बाद एक दिन उसने अचानक ही फिर से रिचार्ड को अपने सामने पाया | जानती थी कि रिचार्ड का काम इतना फैला हुआ था कि बार-बार उसका वहाँ आना उसके लिए इतना आसान भी नहीं था | "अरे ! अचानक ही ---" भानु की आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे | "कोई इंफॉर्मेशन नहीं, फ़ोन कर देते तो गाड़ी लेकर आ जाती ---" उसने शिकायती लहज़े में रिचार्ड से कहा | "अरे ! क्या ज़रुरत थी, टैक्सी से आ गया हूँ न ----" रिचार्ड ने उत्तर दिया | पुनीत बरामदे में बैठा अपने ...Read More

73

अपंग - 73

73 ---- कोठी के हर कोने से जैसे महक उठ रही थी | रसोईघर से महक, कमरों में लाखीो द्वारा घर के बगीचे तोड़कर लाए गए फूलों के बनाए गए, सजाए गए गुलदस्तों की महक ! तन की महक !मन की महक ! बातों में मुस्कान की महक ! तन में एक-दूसरे की महक ! "लो, तुम्हारी पसंद की सब चीज़ें आ गईं टेबल पर ----" भानु ने मुस्कुराते हुए रिचार्ड से कहा | "ओ माई गॉड ! तुम सब मुझे 'गार्बेज बैग' बना दोगे ---" रिचार्ड ने टेबल को यहाँ से वहाँ तक भरा देखते हुए कहा | ...Read More

74

अपंग - 74

74 ---- अगले दिन सुबह 'जागो मोहन प्यारे' की शास्त्रीय धुन वातावरण में जैसे एक पवित्र, सौंधी बयार घोल थी | भानु कब की नीचे आ चुकी थी | नहा-धोकर उसने तुलसी चौरा में दीप व अगरबत्ती लगा दी थी | उसके काले, लम्बे, घने बाल खुले थे जो उसके चेहरे पर पवन के झौंके के कारण मंडरा रहे थे | वह बरामदे की उस आराम कुर्सी पर बैठी आज का अखबार उलट-पलट रही थी जिस पर बाबा बैठा करते थे |वह कुर्सी आगे-पीछे झूलती रहती | आजकल पुनीत को भी जब वह कुर्सी ख़ाली मिल जाती, वह उस ...Read More

75

अपंग - 75

75 -------------- आश्चर्य में पड़े हुए रिचार्ड को देखकर भानु ने उसे बताया कि रुक इसी शहर में है हकबका था | उसने एक गहरी दृष्टि से उसे देखा और अचानक उसके मुँह से निकला ; "क्या तुम्हें पता था कि रुक इसी शहर की है ?" "नहीं, मैं नहीं जानती थी ---अभी कुछ समय पहले पता चला है | " भानु ने उसे बताया | "यह शॉकिंग है --मुझे रुक से कोई सिम्पैथी नहीं है |" वह अपने उस एम्प्लॉई के परिवार को तलाशने आया था जिसका परिवार रुक ने बर्बाद कर दिया था, इससे पहले उसने भानु ...Read More

76

अपंग - 76

76 ------ भानु रिचार्ड को अंदर ले आई थी, वह जानती थी वह काफ़ी परेशान था | उसने रिचार्ड कहा ; "मैं जानती हूँ, तुम बहुत परेशान हो---" "तुम भी तो हो " रिचार्ड ने भानु का हाथ अपने में ले लिया जैसे उसे आश्वस्त करना चाहता हो |" "मैं शिव मंदिर जाना चाहता हूँ ---" "क्यों ?" "मैं कन्फ़र्म करना और पुलिस को इन्फॉर्म करना चाहता हूँ ---|" "यहाँ पुलिस क्या करेगी ?" भानु को समझ में नहीं आ रहा था | "वहाँ करेगी न ! न्यू जर्सी की पुलिस की ब्लैक लिस्ट में इसका नाम आ चुका ...Read More

77

अपंग - 77

77 ----- अचानक भानुमति के कमरे के दरवाज़े पर नॉक हुई | "प्लीज़ गैट अप ---इट्स 4 ----" लगता रिचार्ड सारी रात सोया ही नहीं था | "इट्स टू अर्ली ---"कमरे में से आवाज़ आई | "नो--प्लीज़ गैट अप---बी रेडी ---" "हम्म---कमिंग ---" "आई एम गोइंग डाउनस्टेयर्स ---कम फ़ास्ट "कहकर वह नीचे उतर गया | भानु ने उसके नीचे उतरने की पदचाप सुनी | वह फटाफट बाथरूम में चली गई | उसका दिल भी तेज़ी से धड़क रहा था | रिचार्ड को नीचे देखकर लाखी की ऑंखें खुल गईं | वह किचन के पास वाले कमरे में सोती थी ...Read More

78

अपंग - 78

78 ----- मंदिर में पूजा की तैयारियाँ की जा रही थीं | छोटे-छोटे दो-तीन लड़के मंदिर की सफ़ाई में हुए थे | अब तक सूर्य देवता की आभा छटक आई थी | मंदिर की बत्तियाँ बंद कर दी गईं थीं | " चाइल्ड लेबर !" रिचार्ड के मुँह से निकला | उसके अंदर बहुत सा क्रोध भरा हुआ था लेकिन वह भी आसानी से कहाँ अपना क्रोध प्रदर्शित कर पाता था ! "देवी जी कहाँ हैं ?"लाखी ने बताया था कि मंदिर में जो रहती हैं उन्हें सब देवी जी कहकर पुकारते हैं | "देवी जी ??वाव --द गौडस ...Read More

79

अपंग - 79

79 ----- "आ---प ----" वह जैसे चकराकर पीछे की ओर हटी | फिर शायद हिम्मत की होगी, आगे बढ़ी "आप --कौन ---?" उसने नाटक करने का प्रयास किया | आज वह सफ़ेद साड़ी में थी | अमेरिका में तो 'वैस्टर्न ड्रैस' में रहती थी | पहले घबरा गई होगी फिर अचानक ध्यान आया होगा कि अपने लिबास का व बदले हुए रूप का सहारा ले लिया जाए | यहाँ तो सबके सामने देवी जी का यही रूप रहता था | "ओह ! आप मुझे नहीं पहचानतीं ?" रिचार्ड के चेहरे पर व्यंग्य पसर गया | "जी---जी---आप ---" रुक्मणी यानि ...Read More

80

अपंग - 80 - अंतिम भाग

80 ----- " एक्च्वली, मेरी समझ में कुछ बातें नहीं आ रही हैं, नॉट एबल टू अंडरस्टैंड ---" रिचार्ड से ही काफ़ी परेशान था | भानु भी बहुत परेशान थी | कैसे होते हैं लोग ? जीवन के मंच पर पहले ही हम नाटक करने आए हैं, उस पर यह और झूठे पात्रों का जमावड़ा ?? सदाचारी, रुक, सक्सेना --इन जैसे लोग विश्वास को सूली से लटका देते हैं | " सदाचारी अच्छी तरह जानता था कि इसी शहर में उसका कच्चा चिट्ठा जानने वाले लोग रहते हैं, फिर भी उसका इतना दुस्साहस रहा कि उसी शहर में उसने ...Read More