ज़िंदगी की उलझनों के दिन-रात, शामें बँट जाती हैं शब्दों में, चुप्पी साधी नहीं जा सकती यदि कोई संवेदनशील हो --कसमसाते हुए दिनों की आहट उसे परेशान करती ही तो रहती है जब तक भावों का पुलिंदा खुलकर उसमें से कतरे-कतरे लेखनी की नोक पर न आ बैठें | वे भाव बाध्य करते हैं कुछ न कुछ कहने के लिए, चुप बिलकुल ही नहीं रहने देते | पीड़ाओं को समेटे हृदय मानो एक कोठरी में साँसें लेने की मज़बूरी से कराहता रहता है | ये कराहटें शब्दों के माध्यम से जब कागज़ पर उतर जाती हैं तब कहीं जाकर घुटी साँस खुलकर जीने का साहस बटोर पाती है| कुछ चरित्र तो इतना झँझोड़ते रहते हैं कि जब तक उन्हें कागज़ या कैनवास पर न उतारा जाए तब तक टिके ही नहीं रहते |
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पुस्तकें - 1 - मोह के धागे
कहानी संग्रह लेखिका - वीणा विज ---------- ज़िंदगी की उलझनों के दिन-रात, शामें बँट जाती हैं शब्दों में, चुप्पी नहीं जा सकती यदि कोई संवेदनशील हो --कसमसाते हुए दिनों की आहट उसे परेशान करती ही तो रहती है जब तक भावों का पुलिंदा खुलकर उसमें से कतरे-कतरे लेखनी की नोक पर न आ बैठें वे भाव बाध्य करते हैं कुछ न कुछ कहने के लिए, चुप बिलकुल ही नहीं रहने देते पीड़ाओं को समेटे हृदय मानो एक कोठरी में साँसें लेने की मज़बूरी से कराहता रहता है ये कराहटें शब्दों के माध्यम से जब कागज़ पर ...Read More
पुस्तकें - 2 - बस --इतना ही करना
प्रतापनारायण सिंह की रचना पढ़ना मुझे हर बार एक अनौपचारिक छुअन से ओत -प्रोत होना लगा है की छुअन से मर्मर करते शब्द सरलता, सहजता की कोमल अनुभूति से आप्लावित करते हैं जीवन से जुड़ी कविता मन के आँगन में कभी वेणु की धुन बनकर सुनाई देती है तो कभी शाश्वत संसार के सत्य में डूबी हुई स्याही जीवन के ओर-छोर को पकड़ गहन लोरी गुनगुनाती महसूस होती है कवि प्रतापनारायण सिंह का बेशक यह प्रथम काव्य-संग्रह है किन्तु प्रकाशन होना और कलम की निरंतरता का गांभीर्य अहसास मन के कपाट खोल कह जाता है कि ...Read More
पुस्तकें - 3 - साक्षात्कार
कथा –बिंब (जुलाई-दिसंबर 2021) त्रैमासिक पत्रिका में डॉ. प्रणव भारती का साक्षात्कार ---------------------------- मधु प्रसाद -- नमस्कार दी ! पहली भेंट ही मन पर गहरी छाप छोड़ गई थी आपकी सरलता और तरलता ने मेरा आपसे गठजोड़ कर दिया वर्षों से आपके साथ कई मंच सांझा करने का भी सुयोग मिलता रहा आपने बहुत लंबा सफ़र तय किया है ज़ाहिर है, सफ़र आसान तो नहीं रहा होगा न जीवन जीने का, न ही साहित्य का ! मैं चाहूंगी पहले आपके साथ चलूँ --गुड़िया खेलती, घरौंदे बनाती, झूले झूलती प्रणव का बचपन, माता-पिता, परिवार में ...Read More
पुस्तकें - 4 - स्टेपल्ड पर्चियाँ
प्रगति गुप्ता 'स्टेपल्ड पर्चियाँ' प्रगति गुप्ता का कहानी संग्रह अपने शीर्षक से ही एक उत्सुकता को जन्म देता है ग्यारह विभिन्न शीर्षकों में बँटी ये कहानियाँ हौले से बहुत से प्रश्न कानों में उंडेल जाती हैं | एक लम्बे अर्से से यह पुस्तक मेरे पास थी लेकिन मेरी कुछ अवशताओं के कारण मुझे इन सबको पढ़ने में, इनके पात्रों के साथ संवाद करने में देरी होती गई और इसीलिए इन पर थोड़ा-सा भी कुछ लिखने में बहुत देरी हो गई | प्रगति की कुछ कहानियाँ मैंने पहले भी पढ़ी थीं, उन पर उनसे चर्चा भी हुई थी लेकिन पुस्तक ...Read More
पुस्तकें - 5 - धनंजय
धनंजय -- संवेदनात्मक अभिव्यक्ति 'धनंजय' जैसा नाम से ही स्पष्ट है, लेखक प्रताप नारायण सिंह का एक ऐसा उपन्यास जिसके सारे चरित्र पौराणिक हैं | इस उपन्यास के सारे चरित्र व घटनाएँ वेदव्यास के ग्रंथ से उदृत किए गए हैं किन्तु उपन्यासकार ने इस कथा को ऐसे इंद्रधनुषी धागों से बुनकर एक अनुपम रंग-बिरंगा दुशाला तैयार किया है जिसमें आज का मौसम मुखर होता है, शीत व ग्रीष्म की सभी ऋतुओं के भीनेपन की कोमल छुअन महसूस होती है | लेखक ने धनंजय की चौहदवीं वर्षगांठ से कथा का प्रारंभ किया है और क्योंकि कथा की धुरी धनंजय हैं, ...Read More
पुस्तकें - 6 - श्री अखिलेश मिश्र जी की दृष्टि से.
श्री अखिलेश मिश्र जी की दृष्टि से.. डॉ प्रणव भारती का 'गवाक्ष' बहुमुखी प्रतिभा की धनी, बहुआयामी वरिष्ठ हिंदी डॉ. प्रणव भारती जी का उपन्यास ‘गवाक्ष’ एक विशिष्ट, स्व-निर्मित श्रेणी में आता है, जिसमें ‘साइंस-फिक्शन’ की काल्पनिकता भी है, आधुनिक समाज के असंतोषजनक, विकृत यथार्थ के चित्रण की बेबाकी भी, भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता और जीवन-दर्शन का निरुपण भी और समाज के नैतिक परिष्कार, शिवेतर क्षतये’ के लिए सतत प्रयास भी। गवाक्ष के कथानक को एक सूत्र में बाँधे रखने वाला पात्र ‘कॉस्मॉस’, जो यमराज द्वरा प्रथ्वी से ‘सत्य’ ले आने के लिए भेजा गया दूत है, अलौकिक अवम ...Read More
पुस्तकें - 7 - गवाक्ष - एक दृष्टि
जो भी रचनाएँ जितनी बड़ी होती हैं उन्हें उतने ही भिन्न-भिन्न तरह सेव्याख्यायित किया गया है। अलग अलग पाठक रचनाओं के अलग-अलगअर्थ निकालकर उसकी सकारात्मकता की पुष्टि करते रहे हैं और यह बात हीरचना को बहु आयामी बनाती है। गवाक्ष एक ऐसा ही उपन्यास है। इसे पढ़करलोग इसमें से भिन्न-भिन्न बातें ग्रहण करेंगे और इसे अपने अपने ढ़ंग सेव्याख्यायित करेंगे।मैंने पढ़ते हुए इस उपन्यास से जो ग्रहण किया यदि उसे एक पंक्ति में कहूँतो यह मनुष्य के वाह्य जगत से अंतर्भुवन की ओर की एक यात्रा है। यहयात्रा करवाता है गवाक्ष का सूत्रधार कॉस्मॉस। कॉस्मॉस वास्तव में मुझेमनुष्य की ...Read More
पुस्तकें - 8 - गवाक्ष - जैसा मैंने जाना
समीक्षा “गवाक्ष” जैसा मैंने जाना ; “Reality exists only through experience and it must be personal experience “ नोबल winner Gao Xing ने अपनी कालजयी पुस्तक soul mountain में उपरोक्त कथन है वे चीन के ling shiam नामक legend की खोज दूर दराज दुरूह इलाको का भ्रमण करते हैं, उसी का विविध वर्णन करते हुये उनके ज्ञान चक्षु खुलते है ठीक वैसे ही ‘ गवाक्ष’ पृथ्वी पर बसते सांसारिक प्राणियों के अनुभवों का पुलिंदा है | “ सार सार गही रहे थोथा दिया उड़ाय---- ” सोचा,कुछ ऐसा ही करूँ पर,थोथा खोजन मैं चली थोथा मिला न कोय | गवाक्ष ...Read More
पुस्तकें - 9 - बसंतपंचमी
संदेशयुक्त लघु-कथाएँ बसंतपंचमी 16/2/21 ------------------------ जीवन उतार-चढ़ाव का, तालमेल बैठाने का नाम है | ज़िंदगी के झरोखे मनुष्य के में कभी प्रसन्नता का प्रकाश बिखेरते हैं तो कभी अन्धकार से भरकर एक कोने में चुप्पी ओढ़ाकर बैठा देते हैं | मेरे विचार में इन अँधेरे-उजालों, ऊबड़-खाबड़ सतहों पर चलना ही ज़िंदगी है | अपने चारों ओर देखने से पाएँगे हर मनुष्य के भीतर न जाने कितनी कहानियाँ, कहानियाँ भी क्या, उपन्यास छिपे हैं | ज़रुरत होती है इनके बाहर निकलने की | लेकिन प्रत्येक मनुष्य के पास वह भाषा व स्वयं को मुखरित करने की माँ शारदे द्वारा प्रदत्त ...Read More
सफ़र एहसासों का
लीना खेरिया ------------- एक गुलदस्ता होता है न जिसमें ख़ुशबू होती है, छुअन होती है, रफ़्ता-रफ़्ता चलते कुछ सवाल हैं और उसी रफ़्तार से चलते उनके जवाब भी ! वे सब गुम होती दिशाओं के साथ कदम से कदम मिला चलते ही तो रहते हैं | वे जज़्बातों को दिल की मुट्ठी में कैद कर एक सुहानी सी भोर से लेकर साँझ के पल्लू में ऐसे झरते हैं जैसे हारसिंगार के ऐसे फूल जो अपने प्रियतम को पूरी रात प्रतीक्षा करवाते हैं | लेकिन ---लेकिन उन खुशबुओं की तैरती फ़िज़ाओं में ख़ुश्बू फीकी नहीं पड़ती | ये ताक़त है ...Read More
मधुशाला के बारे में कुछ चिंतन
----------------------- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,कभी न कण-भर होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला। 1935 में इस काव्य की रचना हुई | सर्व विदित है कि मधुशाला प्रतीकात्मक रूप में लिखी गई है।सबसे पहले इसी विषय पर उम्र ख़ैयाम की रुबाइयों की रचना समक्ष आई जिसका अंगेज़ी में फ़िटजेरॉल्ड ने अँग्रेज़ी में अनुवाद किया | बच्चन जी ने पहले इन रचनाओं का अनुवाद किया और इनके भौतिक प्रतिमाओं और प्रतीकों ने उनका ध्यान अपनी और खींचा | उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकारा भी ...Read More
मैं, मैं हूँ, मैं ही रहूँगी
कवयित्री बीनू भटनागर ------------------------------ कई बार प्रश्न उठता है कि आखिर कोई कविता क्यों लिखता है ? सच कहूँ 12 वर्ष की उम्र से लिखना शुरू करने के बावजूद मेरे मन में कई बार इस प्रकार की संदिग्धता उत्पन्न हुई है कि आखिर मैं लिख क्यों रही हूँ ? देखा जाए तो इस प्रश्न का उत्तर जितना सरल है, उतना ही कठिन भी है | संभवत: जब अपने चारों ओर देखकर एक संवेदनशील मन असह्य वेदना महसूस करने लगता है तब उसकी कलम रुक नहीं पाती | ये संवेदनाएँ केवल कवि की ही नहीं होतीं, ये उससे जुड़े उन ...Read More
एक अमूल्य संध्या 'हिडिम्बा' की लेखिका डॉ. नताशा अरोरा के साथ
एक अमूल्य संध्या 'हिडिम्बा' की लेखिका; डॉ. नताशा अरोरा के साथ ------------------------ पहली बार 'अस्मिता' नारी मंच पर जिस से परिचय हुआ उससे प्रभावित न हो पाना कठिन था, कुछ उनका सरल अपनत्व भरा व्यवहार और कुछ इसलिए भी कि उन्होंने मुझे सीधे पूछ लिया ; " प्रणव जी आप हिडिम्बा' की समीक्षा करेंगी?" पुस्तक से पूर्व में प्रकाशित उनकी इसी विषय पर कहानी मेरे मस्तिष्क पर छाई हुई थी, यह कहानी 'वर्तमान साहित्य'की श्रेष्ठ कहानियों में से थी । उस दिन 'अस्मिता' की बैठक में उन्होंने उस कहानी का पाठ भी किया था।मैं उसके पात्रों के साथ मानसिक ...Read More
सिर्फ़ स्थगित होते हैं युद्ध
परत -दर-परत अनबिके संकल्प --------------------------------------- पुस्तक... सिर्फ़ स्थगित होते हैं युद्ध लेखिका... डॉ. प्रभा मुजुमदार -------------------------------------- 'लिखूँगी तो ज़रूर'की से छटपटाती इन 65 रचनाओं की यात्रा आज की वास्तविकता पर आकर एक साँस लेने का प्रयास करती दृष्टिगोचर होती है | फिर भी कहाँ थम पातीं हैं घायल संवेदनाएं --यहीं आकर लंबी साँस लेते हुए कवयित्री पार करती हैं अनेकों पड़ाव जिससे गुजरते हुए, कसैले लम्हों को पीते हुए वे एक लंबी, थकान भरी यात्रा से गुजरती महसूस होती हैं| 'सिर्फ़ स्थगित होते हैं युद्ध ' पर आकर वे एक आह छोड़ती, छटपटाती दिखाई देती हैं | युद्ध जितना ...Read More
गुर्जरी पल्लव
गुर्जरी पल्लव ---एक नई फिज़ा का स्वागत -------------------------------------------------- जैसे कोई महके -सबा, जैसे फूलों में बहार आ जाए, वैसे 'गुर्जरी पल्लव' को देख क्यों न करार आ जाए !! चिर-प्रतीक्षित, गुजरात की सुगंध से सराबोर 'आज़ादी के अमृत महोत्सव ' पर आखिर अवगुंठन खुल ही गए | यह सुश्री मंजु महिमा का अथक प्रयास था, न जाने कितने दिनों से जूझती हुई वे सबसे मिलने का, सबको जोड़ने का, इस गुलशन को खिलाने का प्रयास कर रहीं थीं | उनके साथ पैंतीस महिला-हाइकुकार प्रतीक्षा के झरोखे से बार-बार कुछ ऐसे झाँकतीं जैसे 'चौहदवीं का चाँद' कहीं खो गया हो ...Read More
गीत के आरोह-अवरोहों के बीच बुनी गई अंतर यात्रा
------------------------------ मन के अंधेरे कोने से न जाने कब? कैसे? क्यों ? किरणें अचानक प्रस्फुटित हो जाती हैं, जगाती रोशनी देती हैं, कुछ ऐसे एहसासों को जन्म देती हैं जो मन और दिल दोनों से जुड़े होते हैं | कहा गया है 'मनुष्य बनना भाग्य है कवि बनना सौभाग्य!' मुझे लगता है कवि ईश्वर की वह अनुकृति है जो स्वाभाविक रूप से संवेदनाओं को अपने गर्भ में उपजती हुई जन्म के साथ लेकर ही अवतरित होती है | किसी के मन में संवेदना बोई नहीं जा सकतीं। हाँ, संवेदनशील हृदय को समयानुसार सुंदर आकार दिया जा सकता है, उसे ...Read More
बालमन की संवेदना
बालमन की संवेदना ---डॉ.वीना शर्मा बालमन की संवेदनशील अभिव्यक्ति से जुड़ाव ============== जीवन की पगडंडी पर चलते हुए न कितने रास्ते ऐसे आते हैं जहाँ मानव-मन अधिक संवेदनशील हो उठता है | मनुष्य में संवेदना न हो,ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि वह संवेदना से बना है किन्तु कभी ऐसी परिस्थिति भी आती है कि मनुष्य अधिक संवेदनशील हो उठता है | यह स्थिति तब अधिक संताप दे जाती है जब परिवार में बुजुर्गों की स्थिति पर उनकी तीसरी पीढ़ी की दृष्टि पड़ती है | हम सब इस सत्य से वकिफ़ हैं कि बच्चे मन के सच्चे और ...Read More
त्रिवेणी की तीन प्रमुख धाराओं का मिलन
============= त्रिवेणी अर्थात तीन ऐसी वेगवती धाराएँ जो मिलती हैं जाकर एक में और घुलमिलकर एक रंग की बन हैं | जीवन की राहें भी कुछ ऐसी ही हैं, कभी थिरकती चाल से चलकर, कभी हिचकोले खाकर, कभी थोड़ी देर ठिठककर एक नया धरती और आसमान का अहसास देती हैं | त्रिवेणी की इन तीन पावन गहराई के भाव में से प्रस्फुटित रचनाओं की तारतम्यता मन को एक वेग देती है, विवश करती है कुछ सोचने के लिए | मनुष्य के मन में जो अथाह गहराई है वह इस त्रिवेणी से कहाँ कमतर है जो कभी हिचकोले खाती है, ...Read More
चेत:पँचाशिका
================== माँ वीणापाणि को नमन करते हुए सर्वप्रथम आ.गुरुदेव डॉ. उमाकांत जी शुक्ल को ह्रदय से प्रणाम करती हूँ यह आदरणीय डॉ.शुक्ल का मेरे प्रति अतिरिक्त स्नेह व आशीष ही है कि इतनी दूर गुजरात में बैठी हुई मुझे अपने ज्ञान से सिंचित कराने हेतु मुझ तक अपनी चार पुस्तिकाओं को पहुंचाने का कष्ट किया | जैसा मैं बहुधा कहती हूँ, अपने हर साक्षात्कार में भी मन से स्वीकार करती भी हूँ कि मेरी गिनती तो कभी उच्च स्तरीय छात्रों में रही ही नहीं | हाँ, शैतान छात्रों में अवश्य मुझे उच्च आसन पर आसीन किया जा सकता है| ...Read More
अनुबोधपंचशिका
प्रणेता डॉ.उमाकान्त शुक्ल: आद्यसम्पादक: पद्म श्री –डॉ. रमाकान्त शुक्ल: मनुष्य के जीवन में विभिन्न मौसम आते हैं बाल्यावस्था से किशोरावस्था फिर यौवनावस्था उसके बाद क्रमश: जीवन के झरोखे खुलते,बंद होते ही रहते हैं हर मौसम की भिन्न रवानी है तो भिन्न कहानी है कभी पवन के वेग से पल्लवित झरोखे से सुगंधित वायु की बयार है जो कभी प्राणवायु बनकर उसकी श्वासों के साथ लहराकर चलती है तो कभी जीवन-तरंगों से उठती हुई ऐसी अद्भुत कहानी कहती है कि उसकी गति जीवंत कर देती है, कभी निराशा की आँधी भी मन के आँगन में ...Read More