कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया

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मेरे देश के नागा साधुओं को जिनका त्याग, तप और शौर्य इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने सनातन धर्म और देश के रक्षार्थ शस्त्र और शास्त्र एक कमांडो की तरह उठाए। और खुलते गए द्वार महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला ....सन 2012 में इलाहाबाद(प्रयागराज) मैं 55 दिन तक चलने वाले महाकुंभ में जाने का इत्तफाक हुआ। दुनिया का अद्भुत अलौकिक नजारा। शाम होते ही मेले में लगी लाइटें जगमगा जैसे आसमान में सितारों की चादर बिछा दी गई हो जैसे 58 वर्ग किलोमीटर के गहने में हीरे जड़ दिए हैं। करोड़ों की भीड़ में अलग दिखते नागा साधु मेरे लिए उन्हें देखना, उन पर लिखना मेरी बरसों की चाह का अभूतपूर्व समय था। मैंने महाकुंभ में बिताए दिनों को नागा साधुओं के अखाड़े में जाना, उनके रहस्यमय जीवन की जानकारी लेना, उनका साक्षात्कार लेना, उनके विषय में बारीक से बारीक जानकारी लेने में ही खर्च किया। नागा साधुओं पर ऐसा कोई ग्रंथ या पुस्तक मुझे उपलब्ध नहीं हुई जिससे मैं संदर्भ लेती। उपन्यास में नागा साधुओं पर जो कुछ भी मैंने लिखा है वह नागा अखाड़ों से प्रत्यक्ष ली जानकारी के अनुसार है। नागा साधुओं पर लिखना एक चुनौती थी जिसे स्वीकार करते हुए मैंने 2015 से यह उपन्यास लिखना शुरू किया जो 2021 के मार्च में पूरा हुआ। वर्षों की कड़ी मेहनत और नागा साधुओं में मेरी प्रगाढ़ रुचि का परिणाम है यह उपन्यास। इसमें मैंने काल्पनिक कथा भी पिरोई है।

Full Novel

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 1

संतोष श्रीवास्तव समर्पण मेरे देश के नागा साधुओं को जिनका त्याग, तप और शौर्य इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने धर्म और देश के रक्षार्थ शस्त्र और शास्त्र एक कमांडो की तरह उठाए। और खुलते गए द्वार महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मेला ....सन 2012 में इलाहाबाद(प्रयागराज) मैं 55 दिन तक चलने वाले महाकुंभ में जाने का इत्तफाक हुआ। दुनिया का अद्भुत अलौकिक नजारा। शाम होते ही मेले में लगी लाइटें जगमगा जैसे आसमान में सितारों की चादर बिछा दी गई हो जैसे 58 वर्ग किलोमीटर के गहने में हीरे जड़ दिए हैं। करोड़ों की भीड़ में अलग दिखते नागा ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 2

भाग 2 अंतरिक्ष में न जाने कितने ब्लैक होल हैं। दिखलाई कहाँ देते हैं। नहीं दिखलाई दिया मंगल के का ब्लैक होल। जिसमें वह धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। शून्य जैसी स्थिति। हिप्पियों के अड्डे पर अफरा-तफरी मची थी। कुछ हिप्पी गोवा जा रहे थे, कुछ वाराणसी, कुछ उज्जैन। वह उज्जैन जाने वाले दल में शामिल हो गया। पवन ने उसकी जेब में कुछ नोट रख दिए। दो पैकेट सिगरेट, थोड़ी सी चरस भी- " संभाल कर जाना। चरस रखना गुनाह है। 5 साल की सजा 50 हज़ार जुर्माना। समझे भोलेनाथ। " पवन नहीं जानता था कि संभालने के ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 3

भाग 3 नींद नहीं आई। करवटें बदलता रहा। बेचैनी बढ़ती गई। वह बाहर खुले आकाश के नीचे निकल आया। पृथ्वी आकाश के नीचे ही नजर आती है। दूर सप्तर्षि मंडल प्रश्न चिन्ह सा आकाश में विराजमान था। इस प्रश्न चिन्ह में सात तारे यानी सात नक्षत्र के रूप में सात महान ऋषियों के नाम जगमगा रहे थे। मरीचि, वशिष्ठ, अंगीरसा, अत्री, पुलस्त्य, पुलहा और कृतु। इनके नीचे एक नन्हा सा तारा अरुंधति है। जहाँ सप्तर्षि मंडल है वहीं उत्तर दिशा में सदैव विराजमान रहने वाला ध्रुव नक्षत्र है। बेहद चमकीला और बड़ा। दोनों के बीच सतत बहने वाली आकाश ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 4

भाग 4 अगली संध्या कुटिया का फिर वही माहौल। चाय पीते हुए नरोत्तम से रहा नहीं गया। पूछ बैठा जिज्ञासा बनी हुई है। आप इस वीरान, दुर्गम स्थान में अकेली क्यों और कैसे ?" जानकी देवी कंबल में दुबकी चाय के घूंट भर रही थीं। उनकी आँखों में एक लौ सी दिपदिपाई, क्षणांश में बुझ भी गई। लेकिन उन सूनी, सपाट आँखों में अतीत का एक झरोखा सा खुला। झरोखे में प्रवेश करने की नरोत्तम ने कोशिश की। "भोले भंडारी की कृपा ......बड़ा साम्राज्य है हमारा हल्द्वानी में। नाती, पोते, बंगला, गाड़ी, खेत, गाय, बैल सब कुछ। रुद्रपुर में ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 5

भाग 5 "एक और पंथ है हमारे समाज में अघोरियों का पंथ। क्या आप उनके बारे में जानती हैं जी ने पूछा। "हाँ मैंने सुना है लेकिन मैं उनके बारे में नहीं जानती। अगर आप कुछ बताएंगे तो मेरे ज्ञान में वृद्धि होगी। " उनके बारे में तो आपको अष्टकौशल गिरी अच्छे से बता सकेंगे। " नरोत्तम गिरी ने मुस्कुराते हुए अष्टकौशल गिरी की ओर देखा। "हाँ हाँ क्यों नहीं, हम पहले अघोरी ही थे। " अष्टकौशल गिरी ने चेहरे पर गंभीरता लाते हुए कहा-" सुन सकेंगी माता अघोरियों के जीवन के बारे में। बहुत कठिन और जुगुप्सा भरा ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 6

भाग 6 दिन भर कैथरीन भोजबासा के जंगलों में भटकती रही। सभी वृक्ष भोजपत्र के....... ओह यह तो बर्च वह पहचानती है इन्हें। उसके देश में भी भोजपत्र के वृक्ष हैं। वह एक वृक्ष के तने के पास गई। जिसमें से कागज की रीम की तरह छाल निकल रही थी। पतली, भूरी और सफेद। तो यही है भोजपत्र। जिस पर भारत के ऋषि मुनि ग्रंथों, पुराणों की रचना करते थे। इस पर लिखी पांडुलिपियाँ उसने भारत के कुछ पुस्तकालयों में देखी हैं। वृषभानु पंडित ने भी उसे इसी तरह की पांडुलिपि दिखाई थी। जब वह उनसे संस्कृत सीख रही ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 7

भाग 7 कैथरीन ने छाल का एक टुकड़ा तने से अलग किया और उस पर हाथ फेरती हुई देर उसे देखती रही। फिर उसने शोल्डर बैग में से डायरी और पेन निकाला और डायरी पर भोजपत्र रखकर लिखने लगी -'अद्भुत, विराट भोजवासा के जंगलों में भोजपत्र से मुलाकात। " वह चकित थी। भोजपत्र पर वह ऐसे लिख रही थी जैसे वह सचमुच कागज ही हो। समुद्रतल से करीब 3800 मीटर की ऊँचाई पर और भागीरथी के उद्गम गोमुख से करीब चार किलोमीटर पूर्व स्थित इस दुर्गम पर्वतीय स्थल पर वह देख रही है भोज पत्र के वृक्ष की छाल ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 8

भाग 8 नरोत्तम गिरी साधना में रत हो गया। हिमालय पर्वत श्रृंखला की चोटियों पर लगातार शून्य से भी तापमान में तप करता रहा। कई कई बार तो बर्फ से ढंक जाता। जैसे ठंड के निवारण के लिए प्रकृति ने उसे बर्फ की चादर उढ़ा दी हो। प्रकृति के पास भी उस समय वही तो उपलब्ध थी। मौसम बदलते रहे, बर्फ से जमी नदियाँ बहार आने पर कल -कल करती बहने लगीं। वादियों में खुशनुमा फूल खिले। नीलकमल खिला, ब्रम्हकमल खिला। पत्थर सी देह लिये नरोत्तम गिरी ने हरिद्वार की ओर प्रस्थान किया। आश्रम चहल-पहल से भरा था। कुछ ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 9

भाग 9 मौसम ने करवट बदली। कोहरे की गाढ़ी परत ने कर्णप्रयाग के जंगलों पर अपना आसन जमा लिया। गुरु जी ने फोन पर सूचना दी-" प्रयागराज में महाकुंभ का मेला लगना शुरू हो गया है। आप लोग सभी बालकों सहित हरिद्वार आ जाओ। कर्णप्रयाग में हम बस भेज रहे हैं। " नियत समय पर सभी ने प्रशिक्षण केंद्र से कर्णप्रयाग की ओर प्रस्थान किया। प्रस्थान से पहले नरोत्तम गिरी ने बालकों को समझा दिया था कि "हम एक महत्वपूर्ण कार्य के लिए जा रहे हैं। जिस मिशन की तैयारी के लिए आप इतने दिनों तक प्रशिक्षित होते रहे ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 10

भाग 10 नरोत्तम गिरी से मिलकर कैथरीन बेचैन सी हो गई थी। भोजबासा में मिले अष्टकौशल गिरी और महाकाल से मिली ढेरों जानकारियों से समृद्ध होकर वह ऑस्ट्रेलिया लौटी थी। लेकिन नरोत्तम गिरी अजीब ढँग से उसके हृदय में हलचल मचाए था। उसने इस बात का जिक्र लॉयेना से भी किया था। "हो जाता है जीवन में ऐसा जब कोई एक दिव्य पुरुष ऐसा मिलता है जिससे मिलकर लगता है कि हम शायद उसी के लिए इस दुनिया में आए हैं। " कैथरीन ने हल्के स्मित से लॉयेना को देखा, अब उसमें काफी प्रौढ़ता आ गई है। " कैसी ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 11

भाग 11 कुंभ नगर इन दिनों भक्ति, साधना और संगीत की रसधार से समस्त श्रद्धालुओं को सराबोर कर रहा " चलो रे मन गंगा यमुना तीरे" बैनर तले होने वाले संगीत के भव्य कार्यक्रम को देखने के लिए लाखों की भीड़ इकट्ठा हो जाती। संगीत की धारा ऐसी बहती मानो आकाशगंगाएं धरती पर उतर आई हों। मशहूर शहनाई वादक उस्ताद फतेह अली खान की शहनाई की धुन पर जनसमूह आँखें मूँदे झूम रहा था। अनूप जलोटा के गाये भजन, हुसैन बंधु, हरिप्रसाद चौरसिया, तिज्जन बाई द्वारा प्रस्तुत कला की बानगियों ने कुंभनगर को संगीत सरिता में डुबो दिया था। ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 12

भाग 12 नरोत्तम गिरी एक वर्ष तक कन्दराओं में रहा। खुद को परिष्कृत कर मन को बांधा। मोबाइल फोन ऑफ करके रख दिया। वैसे भी इन पर्वतीय इलाकों में नेटवर्क नहीं पकड़ता। मोबाइल पोटली में समा गया। हालाँकि दिन भर में न जाने कितनी बार वह पोटली पर नज़र डाल लेता जैसे कि कोई संदेश बाहर आने वाला है। पोटली देखना उसकी आदत में शुमार हो गया था। वह चाह कर भी पोटली कहीं छुपा नहीं सकता था और पोटली उसके कार्यों में व्यवधान भी पैदा करती थी। पोटली या कैथरीन!! कंदराओं से निकलकर वह हरी-भरी पहाड़ी ढलान में ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 13

भाग 13 सूर्य उगता है, ढलता है। उसका उगना और ढलना प्रकृति के चक्र का प्रत्यक्ष उदाहरण है। संसार नहीं रुकता। वह गतिमान है। उसकी गति में लाखों-करोड़ों तारे आकाशगंगाएं, ग्रह नक्षत्र अपने रास्ते बदलते हैं। प्रकाशवान होते हैं, धूमिल होते हैं, टूटते हैं। कहीं कोई कार्य नहीं रुकता। नरोत्तम की भी जीवन गति नहीं रुकती। प्रशिक्षण, अखाड़े से जुड़ी जिम्मेदारियां, सतत कुंभ के मेले, नए नागाओं की दीक्षा,, बर्फ के पर्वतों पर, गहरी अंधकारमयी गुफाओं में तपस्या, साधना में बीत गए लंबे-लंबे ग्यारह वर्ष। इन ग्यारह वर्षों में एक बार भी कैथरीन से मुलाकात नहीं हुई। जब नेटवर्क ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 14

भाग 14 5 वर्ष हिमालय में तपस्या कर नरोत्तम गिरी हरिद्वार लौटा। आते ही उसे बुखार ने जकड़ लिया। के वैद्य जी ने जड़ी बूटियों का काढ़ा पिलाया पर बेअसर। महीना भर गुजर गया। बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। छाती में कभी-कभी तेज़ दर्द उठता और वह तड़प जाता। " यह तुम्हें क्या हो गया नरोत्तम?" गुरुजी उसकी हालत पर चिंतित थे। " ठीक हो जाएगा गुरुजी। अभी समय अनुकूल नहीं है। व्याधि के घेरने का यही कारण है। " नरोत्तम ने गुरुजी को प्रणाम करते हुए कहा। " मुझे लगता है तुम्हें विशेषज्ञ को ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 15

भाग 15 शाम को 5 बजे लॉयेना ने अपने को बिजी बताते हुए कैथरीन से आग्रह किया -" तुम जाओ न प्रवीण के ऑफिस। मैं तुम्हारी पसंद का डिनर तैयार करने में कुक की मदद करूँगी। अम्मा की दवाई, डिनर आदि भी देखना पड़ेगा। " समझ गई कैथरीन। प्रवीण के साथ वह उसे अकेला छोड़ना चाहती है। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। अब ऐसा कुछ दोनों के बीच रहा नहीं। ऑफिस में कैथरीन को अकेले आया देख प्रवीण ने पूछा-" लॉयेना नहीं आई? सोचा था गोमती के किनारे थोड़ा वक्त गुजारेंगे। तुम चलना चाहोगी ?" "चलो ताजी हवा ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 16

भाग 16 इस बार लॉयेना से विदा लेते हुए कैथरीन का मन भारी था। लॉयेना भी उदास थी। कैथरीन है लॉयेना में बर्दाश्त का जज्बा उससे कम है। वह हर बात मन पर ले लेती है और फिर अवसाद से घिर जाती है। जिंदगी की हर बात हर घटना बर्दाश्त कर लेना नामुमकिन है। लेकिन अगर बर्दाश्त कर लिया तो रूह में फकीरी नजर आती है। जैसे नरोत्तम फकीर हो गया है। सूफी संत हो गया है। उसने ईश्वर में लौ लगा ली है। बाकी सब कुछ उसके लिए बेमानी है। कैथरीन थोड़ी व्यथित हो जाती है खासकर उन ...Read More

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कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 17 - अंतिम भाग

अंतिम अध्याय बिछोह नरोत्तम गिरी से कैथरीन का, कैथरीन से नरोत्तम गिरी का। दोनों अपनी अपनी धुन में अकेले चले गए। घाटियाँ वीरान होती रहीं। फिर -फिर फूलों से भरती रहीं। मौसम बदलते रहे। काल का चक्र कहाँ ठहर पाता है। लंबे-लंबे 10 वर्ष गुजर गए। इन 10 वर्षों में नरोत्तम गिरी ने कठोर साधना की। हिमालय की चोटियों, घाटियों से लेकर अमरकंटक की चण्डिका गुफा जिसे साधक एक शक्तिपीठ के रूप में पूजते हैं में भी साधना और तप किया। दुर्गम चंडिका गुफा। साधारण मनुष्यों का तो वहाँ जाना लगभग नहीं के बराबर है। खड़ी चट्टानों के बीच ...Read More