आज की सुबह महावीर सिंह के लिए सबकुछ बदलने वाली सुबह थी। सबकुछ पहले जैसा ही था। सूरज भी पूरब से ही निकला था, मुर्गे ने भी बांग दिया था। चिड़िया भी उसी तरह चाह्चाती हुई अपने घोंसलों से बाहर निकली थी। महवीर सिंह के बैल भी उसी तरह खेत में जाने वाले थे, गायों ने भी उतना ही दूध दिया था जितना वो रोज देती थीं। अपनी दिनचर्या में रमे महावीर सिंह को भी नहीं पता था कि ये सुबह उनके लिए विलक्षण है। कुछ अद्भुत, कुछ नया और कुछ बहुप्रतीक्षित चीज होने वाली है आज के दिन उसकी जिंदगी में। वो अपनी गायों को चारा देने के बाद अपने बैलों को लेकर अपने खेत जा चुके थे।
Full Novel
कर्मवीर - 1
आज की सुबह महावीर सिंह के लिए सबकुछ बदलने वाली सुबह थी। सबकुछ पहले जैसा ही था। सूरज भी से ही निकला था, मुर्गे ने भी बांग दिया था। चिड़िया भी उसी तरह चाह्चाती हुई अपने घोंसलों से बाहर निकली थी। महवीर सिंह के बैल भी उसी तरह खेत में जाने वाले थे, गायों ने भी उतना ही दूध दिया था जितना वो रोज देती थीं। अपनी दिनचर्या में रमे महावीर सिंह को भी नहीं पता था कि ये सुबह उनके लिए विलक्षण है। कुछ अद्भुत, कुछ नया और कुछ बहुप्रतीक्षित चीज होने वाली है आज के दिन उसकी जिंदगी में। वो अपनी गायों को चारा देने के बाद अपने बैलों को लेकर अपने खेत जा चुके थे। ...Read More
कर्मवीर - 2
अगले दिन सारे गाँव वाले महावीर सिंह को बधाई देने के लिए उनके घर आये। उन्होंने भी सभी की स्वीकार की। सभी लोग उनके बेटे को यही आशीर्वाद दे रहे थे कि ये भी उन्हीं की तरह बने। उन्हीं की तरह ये भी लोगों की सेवा पूरे मनोयोग से करे और लोगों के साथ ऐसा ही सामंजस्य बना के रखे। उसका नामकरण करने की जब बारी आई तो गाँव के एक बुजुर्ग ने ये सुझाव दिया कि महावीर तो अपने स्वभाव से महान और वीर दोनों हो गया लेकन अब ज़माना बहुत तेज़ी से बदल रहा रही इस जमाने में खैर इस जमाने क्या किसी भी जमाने में कर्म ही प्रधान होता है। इसलिए ये अपने कर्मों में वीर हो ऐसा महावीर भी चाहता है इसलिए इसका नाम कर्मवीर रखा जाए। ...Read More
कर्मवीर - 3
कर्मवीर के विद्यालय का आज पहला दिन था। महावीर सिंह उसे अपने साथ लेकर आये थे। महावीर सिंह ने साहब से जाकर खुद बात की और ये बताया कि इसे किताबी शिक्षा के साथ साथ दुनियादारी का ज्ञान भी दिया जाना चाहिए। उसे बताया जाना चाहिए कि किस व्यक्ति के साथ कैसे व्यवहार किया जाता है। बड़ों के साथ कैसे मिलना और छोटों से कैसे बात करनी है। ये सब अगर विद्यालय में भी बताया जायेगा तो उसके चरित्र का निर्माण बेहतर ढंग से होगा। मास्टर जी ने भी महावीर सिंह को ये आश्वस्त कर दिया कि अब कर्मवीर के शिक्षा के पूरी जिम्मेदारी उनपर है, वो बहुत ही अच्छे से उसका ख्याल भी रखेंगे और पढाई भी करवाएंगे। किसी भी शिकायत का कोई भी मौका नहीं आएगा। ...Read More
कर्मवीर - 4
एक हिंदी कहावत है न कि ‘होनहार वीरवान के होत हैं चीकने पात’। कर्मवीर भी जब बच्चा था तभी दिख गया था कि वो बड़ा होकर डॉक्टर इंजिनियर बने न बने लेकिन एक अच्छा इंसान जरूर बन जाएगा। उसकी कर्मवीर अब दूसरी कक्षा में चला गया था और उसकी पढ़ाई भी ठीक ठाक ही चल रही थी। उसकी गिनती मेधावी छात्रों में होती थी। कक्षा में उसका स्थान पहला या दूसरा होता था। पढाई में जो भी उससे मदद माँगने आता वो उसकी मदद जरूर करता था। वो पूरी तल्लीनता से उसे सबकुछ समझाता था। विद्यार्थी भी उसके पास पानी समस्या लेकर आते थे क्योंकि वो किसी भी प्रश्न को मास्टर जी से ज्यादा अच्छे से हल कर देता था। सभी छात्र उसके बहुत अच्छे मित्र हो गए थे। ...Read More
कर्मवीर - 5
वक़्त का पहिया ना तो कभी थमा था और न ही कभी थमेगा। जिस तरह इस धरा पर नदियाँ प्रवाहमान है। जिस तरह झरने लगातार बह रहे हैं उसी तरह समय भी निरंतर अपने वेग से बढ़ा जा रहा है। समय जिस तरह बदल रहा होता है उसी तरह समय के साथ साथ चीजें भी उसी तेज़ी से बदल रही होती हैं। जैसे एक बालक समय के साथ किशोर होता है फिर एक युवक का आकर लेता है और फिर बढ़ते समय के साथ वो वृद्ध भी हो जाता है और फिर वो समय के साथ दौड़ से कहीं आगे निकल जाता है। वो इस धरा के परम सत्य को प्राप्त कर लेता है। मृत्युलोक में चला जाता है।कोई वहाँ जाने से नहीं बच पाता। ...Read More
कर्मवीर - 6
कर्मवीर पहली बार गाँव से बाहर शहर आया था। गणेश के लिए भी यही स्थिति थी। दोनों के लिए बिल्कुल ही नया था। दोनों का कॉलेज अलग अलग था। शहर भी दोनों के एक ही था इसलिए कभी कभार मुलाक़ात हो ही जाती थी। कर्मवीर को शहरी जीवन बिल्कुल भी रास नहीं आ रहा था लेकिन गणेश को शहर में बहुत ही ज्यादा मजा आ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि कैसे कोई शहर की जिंदगी को बुरा कह सकता है।उसे तो यहाँ इतना ज्यादा मन लग गया कि उसने ये सोच लिया कि वो अब गाँव वापस ही नहीं जाएगा। उसके पिता भी किसी दूसरे शहर में काम करते थे और कमाकर पैसे भेजा करते थे। गाँव में उसकी माँ अकेली हो गयी थी। उसे कभी माँ की भी याद नहीं आती थी। ...Read More
कर्मवीर - 7
आगे की पढ़ाई में कर्मवीर का बहुत ज्यादा मन लगने लगा। उसने चूँकि इस बार अपनी बेहद ही ज्यादा का विषय चुना था इसलिए उसे पढाई में मन भी दोगुना लग रहा था। कर्मवीर कॉलेज में जा चुका था और थोड़ा और बड़ा हो गया था। अब वो किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश करने वाला था। उसकी उम्र सत्रह साल से ज्यादा की हो गयी थी। वो समझदार तो बचपन से बहुत ज्यादा था लेकिन अब वो और भी ज्यादा प्रबुद्ध हो गया था। चूँकि ये वो अवस्था थी जिसमें जिंदगी में सबसे ज्यादा बदलाव आते हैं। शारीरिक और मानसिक दोनों बदलाव बराबर हो होते हैं। ज्याद डर इस अवस्था में बिगड़ने का ही रहता है। एक से एक धुरंधर उम्र के इस पड़ाव को सम्भाल नहीं पाते और बहक जाते हैं। ...Read More
कर्मवीर - 8
कर्मवीर दो वर्षों बाद अपने गाँव आया था। उसे गाँव ज्यादा बदला हुआ नहीं दिखा। गाँव में उसे कोई नहीं दिखी। रास्ते में सडक पर के कुछ गाँव में उसने देखा था कि कुछ पक्के मकान भी थे लेकिन उसके गाँव में स्थिति जस की तस बनी हुई थी। पूछने पर पता चला कि गाँव की बहुतायत आबादी शहर की ओर पलायित हो चुकी है। वहीं रोजगार करती है और अपना पेट भरती है। उसने शहरों में गाँव से जाने वाले मजदूरों की जिंदगी देख राखी थी उसने बस अब ये ठान लिया कि अब वो जो भी गाँव के लोगों को बाहर नहीं जाने देगा और अपने गाँव को फिर से वो उतना ही खुशहाल बनाएगा जैसे वो पहले था। समय के साथ उसका गाँव अपने आप को बदल नहीं पाया इसलिए उसके गाँव से खुशहाली जाती रही। ...Read More
कर्मवीर - 9
चारों तरफ कर्मवीर चर्चाएँ शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। एक दिन कर्मवीर के मैनेजर का फोन जी हेल्लो क्या मेरी बात कर्मवीर से हो सकती है?” उधर से आवाज आई। “हाँ जी वो यहीं है रुकिए मैं अभी उसे फोन देता हूँ।” महावीर सिंह ने उत्तर दिया और फोन कर्मवीर को देने लगे। फोन लेते समय कर्मवीर ने उन्हें धीरे से कहा कि एक बार पूछ तो लिया कीजिये कि कौन बोल रहा है उसने कहा कि कर्मवीर से बात करनी है और आपने मेरी ओर फोन बढ़ा दिया। हालाँकि उसने फोन लिया और फिर कहा, ...Read More
कर्मवीर - 10
कुछ दिनों बाद प्रधान का चुनाव होने वाला था। वर्तमान प्रधान एक दिन महावीर सिंह के पास आया। और सिंह जी जिस तरह हर बार आपका सहयोग मिल रहा था उस तरह इस बार भी आपका सहयोग मुझे चाहिए होगा।” “अरे अब तो मुझे तुम सेवा निवृत ही समझो अब तो ना तो उतनी भाग दौड़ मुझसे होती है और ना मैं करना ही चाहता हूँ सबकुछ अब कर्मवीर ही देखता है इसलिए उससे ही बात करने में तुम्हारा फायदा है।” महावीर सिंह जानते थे कि कर्मवीर इस बार मुखिया के लिए मंगरू को चुनाव लड़वाने वाला है इसलिए महावीर सिंह ने पहले ही अपना पल्ला इससे झाड लेना चाहा। ...Read More