बसंती की बसंत पंचमी

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ये दुख बरसों पुराना था। ये न मेरा था और न तेरा। ये सबका था। हर दिन का था। हर गांव का था। हर शहर का था। नहीं- नहीं, ग़लती हो गई। शायद गांव का नहीं था, केवल शहर का था। जितना बड़ा शहर, उतना ही बड़ा दुःख। ऐसा नहीं था कि इस दुख पर कभी किसी ने ध्यान न दिया हो। लोग ध्यान भी देते थे, और इससे बचने के रास्ते भी खोजते थे। यहां तक कि लोग इस पर लिखते, इस पर कविता कहते, इस पर फ़िल्म भी बनाते। फ़िल्म चल जाती, कविता हिट हो जाती, किताब खूब सराही जाती, पर दुख बदस्तूर अपनी जगह कायम रहता। ये दुख था घर में काम वाली बाई का दुःख। गांवों में तो हर घर में खुद घर की मालकिन ही चौका- बर्तन, झाड़ू- बुहारू कर लेती, मगर शहर में हर घर को एक न एक काम वाली बाई की ज़रूरत रहती थी। इसका कारण भी था। कारण ये था कि शहरों में लड़कियां- औरतें घर के बाहर खुद काम पर जाया करती थीं। कोई दफ़्तर में,कोई कॉलेज में,कोई कंपनी में, तो कोई व्यापार में। और जब महिला घर से बाहर जाकर घर की कमाई में हाथ बटाएगी तो उसे घर के कामकाज में घरेलू बाई की ज़रूरत रहेगी ही।

Full Novel

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बसंती की बसंत पंचमी - 1

ये दुख बरसों पुराना था। ये न मेरा था और न तेरा। ये सबका था। हर दिन का था। गांव का था। हर शहर का था।नहीं- नहीं, ग़लती हो गई। शायद गांव का नहीं था, केवल शहर का था। जितना बड़ा शहर, उतना ही बड़ा दुःख।ऐसा नहीं था कि इस दुख पर कभी किसी ने ध्यान न दिया हो। लोग ध्यान भी देते थे, और इससे बचने के रास्ते भी खोजते थे। यहां तक कि लोग इस पर लिखते, इस पर कविता कहते, इस पर फ़िल्म भी बनाते।फ़िल्म चल जाती, कविता हिट हो जाती, किताब खूब सराही जाती, पर ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 2

श्रीमती कुनकुनवाला सुस्ती को दूर भगा कर किचन में घुसने का साहस बटोर ही रही थीं कि फ़ोन की बजी।उनका मन हुआ कि फ़ोन न उठाएं। कोई न कोई सहेली होगी, और बेकार की बातों में उलझा कर उनका सुबह- सुबह काम का सारा टाइम खराब कर देगी।लेकिन जब रिंग एक बार बज कर दोबारा भी उसी मुस्तैदी से बजनी शुरू हो गई तो उन्हें फ़ोन उठाना ही पड़ा।उधर से उनकी सहेली श्रीमती वीर बोल रही थीं। तुरंत बोल पड़ीं- बस- बस, आपका ज़्यादा समय नहीं लूंगी, केवल इतना कहना था कि आपकी काम वाली बाई आए तो उसे ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 3

श्रीमती कुनकुनवाला की इस कॉलोनी में एक ही अहाते में कई इमारतें खड़ी थीं, किंतु एक ओर बड़ा सा भी था, जहां सुबह या शाम को थोड़ा टहलने या जॉगिंग के बहाने उनकी मित्र मंडली कभी कभी मिल भी लेती थी। ज़्यादा संपर्क तो फ़ोन के माध्यम से ही था।लेकिन इधर दो- चार दिन में ही कई सहेलियों से जब उनकी बाईयों के काम छोड़ कर चले जाने की शिकायत मिलने लगी तो अब सबका मिलना भी दूर की कौड़ी हो गया। अब घर में पड़ा काम छोड़ कर कोई कैसे टहलने या जॉगिंग करने आए।अब सबने इस तरफ़ ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 4

श्रीमती कुनकुनवाला को बेटे जॉन की मेज़ पर रखे लैपटॉप पर दिखती तस्वीर में ये तो दिखाई दे गया उनका बेटा ढेर सारी लड़कियों से घिरा बैठा है पर वो ये नहीं जान पाईं कि बेटा एक साथ अपनी इतनी फ्रेंड्स को क्या सिखा रहा है। क्या ये लोग कहीं घूमने जाने का प्लान बना रहे हैं?वो अभी कुछ सोच पाने की उधेड़ बुन में ही थीं कि एकाएक उनके मोबाइल की घंटी बजी। उन्होंने झपट कर फ़ोन उठाया तो उधर से श्रीमती वीर की बेहद चहकती हुई आवाज़ आई।वो थोड़ा हैरान हुईं। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उनकी कोई ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 5

फ़ोन आता तो वो इस उम्मीद से उठातीं कि कहीं से उन्हें कोई ये खबर मिले- लो, मेरी महरी यहां आने के लिए भी राज़ी हो गई है, कल से आ जाएगी।पर ऐसा कुछ नहीं होता। उल्टे उधर से उनकी कोई अन्य सहेली चहकते हुए बताती कि उसे नई बाई मिल गई है। अच्छी है, पहले वाली से थोड़ा ज्यादा लेती है पर साफ़ सुथरी है। मेहनती भी। उम्र भी कोई ज़्यादा नहीं।- अरे तो उससे कह ना, थोड़ा सा समय निकाल कर मेरे यहां भी कम से कम बर्तन और झाड़-पौंछ ही कर जाए। कुछ तो सहारा मिले।- ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 6

लेकिन एक बात थी। रोग का ख़तरा कितना भी बड़ा हो, अब फ़ोन पर बात करने का सिलसिला पहले कहीं ज्यादा रसभरा हो गया।अब ऐसी कोई कुंठा तो थी नहीं कि किसी के पास नौकर है, किसी के पास महरी, किसी के पास अर्दली तो किसी के पास बाई। अब तो सब अपने - अपने घर में कैद थे, और सबका एक ही मूलमंत्र- "अपना हाथ जगन्नाथ"!अब ये जलन भी बाक़ी नहीं रही कि आपके तो बेटियां हैं, काम में हाथ बंटाती होंगी... यहां तो निखट्टू बेटे हैं और ऑफिस जाने के लिए हड़बड़ी मचाते पतिदेव, सब अपने ही ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 7

श्रीमती कुनकुनवाला के ज़रा सा कानों पर ज़ोर देते ही उनकी किस्मत ने भी उनका साथ दिया। शायद हवा जॉन के कमरे की साइड वाली खिड़की थोड़ी खुल गई। अब उसकी आवाज़ उन्हें बिल्कुल आराम से सुनाई दे रही थी। मज़े की बात ये कि उस दूसरी खिड़की को जॉन ने बंद भी नहीं किया। बंद क्यों करता, अब मम्मी श्रीमती कुनकुनवाला उसे दिख तो रही नहीं थीं। वो तो दूसरी ओर की खिड़की पर थीं। और अब जाकर श्रीमती कुनकुनवाला को अपनी शंका का समाधान मिला। वो कई दिनों से बेचैन थीं न, कि लड़के इतनी इतनी देर तक आपस ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 8

धीरे- धीरे दिन निकलते जा रहे थे। दुनिया बदलती जा रही थी। घर - घर की कहानी एक सी होती जा रही थी। परिवार सिमट- सिकुड़ कर घर में ही कैद रह गए थे।लोग भूलने लगे थे कि कभी उनके पास घर के कामकाज के लिए घरेलू नौकर, ड्राइवर, काम वाली बाई आदि हुआ करते थे।श्रीमती कुनकुनवाला भी कई दिन तक बेटे के फ़ोन की जासूसी करने के बाद अब लापरवाही से सारी बात भुला बैठी थीं। क्या करतीं, उन्हें वैसा कोई संकेत मिला ही नहीं कि बेटा किसी प्रेम - वेम के चक्कर में है। फ़िर बिना बात ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 9

श्रीमती कुनकुनवाला अब देखते देखते अपनी सब सहेलियों की मुखिया बन गईं। वो फ़ोन पर सबको समझाती थीं कि मैंने तो बाई के जाने के बाद फ़िर कोई काम वाली बाई रखी ही नहीं, अपने हाथ से ही सब काम करती रही, इसीलिए तो आज मुझे किसी का एक रुपया भी नहीं देना, और आप लोगों ने लॉक डाउन लगते - लगते भी खोज- खोज कर नई बाई रख ली... तो अब भुगतो। दो उसे अब पूरे छः महीने की पगार।सबके मुंह पर ताला लग गया।अब यह तय किया गया कि जब भी अनलॉक होने के बाद सबका इधर- ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 10

आख़िर वो दिन भी आया।सब सहेलियां सज- धज कर तैयार हुईं और रुख किया श्रीमती कुनकुनवाला के घर का।श्रीमती ने तो मानो अपनी उम्र पूरे दस साल घटा ली। ऐसे दमक रही थीं जैसे प्रियंका चोपड़ा।मिसेज़ अरोरा ही कहां कम थीं? उन्होंने तो जैसे दीपिका पादुकोण की वार्डरोब ही खंगाल डाली थी।श्रीमती चंदू तो आइना देख कर चौंक ही गईं। उन्होंने अपनी तैयारी में आलिया भट्ट के आउटफिट्स फ़ॉलो किए थे।और तो और, ख़ुद श्रीमती कुनकुनवाला कहां किसी से कम थीं। ख़ुद उनका बेटा जॉन उनके कहने पर दमादम उनकी पिक्स लिए जा रहा था उनके मोबाइल पर।साढ़े दस ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 11

कहानी कुछ इस तरह थी- बसंती एक काम वाली बाई है जो कई घरों में काम करती है। वह है इसलिए मेहनत में कोई कोताही नहीं करना चाहती।मोहल्ले भर के अधिकांश घरों में वह काम करती है। वह बेहद फुर्तीली भी है जो काम से कभी थकती नहीं। आसपास की लगभग सभी गृहिणियां उस पर किसी न किसी रूप में अवलंबित हैं। वह उनके छोटे - मोटे कामों के लिए समायोजन करती हुई फिरकी की तरह मोहल्ले में नाचती है।ये कहानी सुन कर सभी महिलाएं भीतर तक अभिभूत हो गईं। श्रीमती चंदू ने तो मन ही मन ये कल्पना ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 12

शाम को श्रीमती कुनकुनवाला आराम से बैठ कर टीवी देख रही थीं कि उनका बेटा जॉन आया।आज सुबह की का बचा खाना ही इतना रखा था कि श्रीमती कुनकुनवाला को इस समय रसोई में जाकर झांकने की भी जरूरत नहीं थी। किचन मे ढेर सारा खाना रखा हुआ और सबके पेट इस तरह भरे हुए कि खाने के नाम पर ही खीज आए।बस इसीलिए वह इत्मीनान से टेबल पर पैर फ़ैला कर सोफे पर जमी हुई थीं। लेकिन अचानक जॉन को देख कर श्रीमती कुनकुनवाला की आंखों में चमक आ गई। जॉन जेब से निकाल कर रुपए गिन रहा था। ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 13

रसोई में गैस पर बनने वाली कढ़ी उबल- उबल कर आधी रह गई थी लेकिन श्रीमती कुनकुनवाला का उधर ही नहीं था। शायद रख कर भूल गई हों। वो तो गनीमत थी कि बर्तन बहुत बड़ा लिया गया था और दूसरे गैस भी एकदम कम मोड पर थी इसलिए उबल कर फैली नहीं।वो पिछले पच्चीस मिनट से फ़ोन पर ही थीं। श्रीमती चंदू उन्हें समझाते - समझाते थक गईं कि उन्होंने जॉन को कोई रुपए नहीं दिए। ना- ना, कहा न, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर को भी नहीं दिए... अरे देती तो वहीं सबके सामने देती न, अकेले में मैं ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 14

जॉन की पार्टी शुरू होने में तो अभी पूरा आधा घंटा बाक़ी था। पार्टी में आने वाले अभी आए नहीं थे, लेकिन उससे पहले ही श्रीमती कुनकुनवाला ने जो दृश्य ख़ुद अपनी आंखों से देखा उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया।वे तो बालकनी में बैठी हुई अपनी सहेलियों से फ़ोन पर टूटे हुए तार फ़िर से जोड़ने की कोशिश कर रही थीं कि अचानक उन्होंने देखा दो आदमी उनके घर के बाहर नीचे गेट पर आकर रुके। आश्चर्य तो उन्हें तब हुआ जब उन्होंने देखा कि वो लोग घर के भीतर नहीं आए बल्कि उनका बेटा जॉन ही ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - 15

श्रीमती कुनकुनवाला अब बेटे की बात सुनने के लिए उसे एक कुर्सी पर बैठा कर ख़ुद उसके सामने आ लेकिन अभी बेटे ने मुंह खोला भी न था कि दरवाज़े की घंटी बजी और देखते देखते धड़धड़ाते हुए एक के बाद एक जॉन के सब मित्र चले आए। जिस पार्टी के लिए कुर्सियां जमा कर जॉन इंतजार कर रहा था उसकी गहमा गहमी शुरू हो गई। उसकी मम्मी, श्रीमती कुनकुनवाला उन सब के अभिवादन का जवाब देती हुई रसोई में चली गईं।वैसे रसोई में उनके करने के लिए कोई ख़ास काम नहीं था क्योंकि जॉन ने पार्टी के लिए ...Read More

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बसंती की बसंत पंचमी - (अंतिम भाग)

श्रीमती कुनकुनवाला भी सब कुछ जान लेने के बाद अब हल्के- फुल्के मज़ाक के मूड में आ गईं। उन्हें बात की हैरानी हो रही थी कि बच्चों ने देखो कितना दिमाग़ दौड़ाया। कहां से कहां की बात सोची। सच में, उस समय किसी को ये सब सोच पाने की फुरसत ही कहां थी? सबका कलेजा डर से मुंह को आया हुआ था। न जाने कब क्या हो जाए? कब कौन सी मुसीबत टपक पड़े। और ये बच्चे भी देखो, किस शरारत में लगे पड़े थे! वे बोलीं- अच्छा, मगर ये फ़िल्म का क्या चक्कर था? ये कौन लोग थे ...Read More