मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू

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जी हां ये बात सौ फीसदी बिलकुल सही हैं..एक मोहल्ला ही हैं जहां ज़माने भर की चर्चाए तों होती हैं लेकिन वो कभी खबरों में शामिल नहीं हो पाती हैं.. क्योंकि जो भी खबर कनाफूसी से शुरू होकर फैलती तों हैं लेकिन मोहल्लो की गली कुचों में ही दव कर रह जाती हैं कभी कभार कुछ खबरें ऐसी भी होती हैं खबर भी बन जाती हैं.. अगर देखा जाए तों ये मुहल्लों की बैठकों में होने वाली चर्चाएं खाली पेट में गैस की तरह गुड गुड कर के रह जाती हैं क्योंकि इंसानी जरूरत की खबरों पर कौन ध्यान देता हैं.. लेकिन फिर भी घर, दुनियां और राजनीति के सारे तंत्र और प्रपंच इन्ही मोहल्लो से पनप कर यही मुरझा जाते हैं लेकिन कई खबरें ऐसी होती हैं जो खनकते भी हैं... खनक का अर्थ मुहल्लों की गुफ़्तगू में थोड़ा अलग मतलब हैं..क्योंकि ज्यादातर आज कल ऐसी ही खबरों को सुनने और सुनाने में लोगों को बेहद रस आता हैं.. सच कहूं अगर ये मोहल्लें ना होते तों ये ज़माने की दास्ताने ना होती और इंसानी मिज़ाज के हालचाल भी न पता होते और ये देश और समाज की खबरें भी ना पता होते..

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 1

1. मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू *मिरे मोहल्ले की जो भी खबर उड़ती है ना वो अखबार में छपती हैं ना वो टीवी दिखती हैं* जी हां ये बात सौ फीसदी बिलकुल सही हैं..एक मोहल्ला ही हैं जहां ज़माने भर की चर्चाए तों होती हैं लेकिन वो कभी खबरों में शामिल नहीं हो पाती हैं.. क्योंकि जो भी खबर कनाफूसी से शुरू होकर फैलती तों हैं लेकिन मोहल्लो की गली कुचों में ही दव कर रह जाती हैं कभी कभार कुछ खबरें ऐसी भी होती हैं खबर भी बन जाती हैं.. अगर देखा जाए तों ये मुहल्लों की बैठकों में होने वाली चर्चाएं ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 2

पार्ट - 2. मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूचच्चा की बातों में दम था...आखिर आज की ज़नरेसान क्या चाहती हैं मैं यही गुनताड़े उधेड़ बुन में घर आ गया था.. लेकिन मन में चच्चा की तस्वीर और उनकी सोच मुझे बार बार झंझकोर रही थी..मेरे दिमाग में बार बार वो तस्वीरें भी दिख रही थी जिन्हे सही में मैंने भी देखा हैं..मैं हर वर्ग के मोहल्ले में किराएदार रहा हूं जहां मैंने एक बात तो नोटिस की हैं के हर मोहल्ले की गली में कोई ना कोई ऐसा होता हैं जहां निराधार इश्क़ आज भी पनापता हैं.. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौड़ते हुए ज़माने ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 3

3- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (3)आज पूरे तीन माहीने हो चुके थे कॉलोनी की गतिविधियों की लिखित जानकारी देने के बाद भी सुनवाई नहीं हुई थी.... मतलब साफ था इज्जत दारों को कॉलोनी के इस माहौल से कुछ लेना देना नहीं था एरोबिक का तमाशा वखूबी वरकरार था... आज फिर कोई घटनाक्रम हुआ था जानकारी हांसिल की तो बेहद चौकाने वाली बात सामने आई थी..धटना की मज़लूमियत पढ़ कर दिल बैठ सा गया था..अख़बार को मैंने एक तरफ तह कर के रख दिया था..और फिर से मेरा मन मजलूमियत के दृश्यों में डूबने लगा था... जो खबर अखबार में छपी थी उसके ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 4

4- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-5)रोड पर आ गया का मतलब...? मैं सारा कुछ विस्तार से जानना चाहता हूं.. तभी मैं कुछ मदद कर सकता हूं.मदद वदद छोड़िए सर.. आज के ज़माने में कोई किसी बिना स्वर्थ के मदद नहीं करता..मैं आपको विश्वास दिलाता हूं के आपकी इस ज़िन्दगी की कहानी को कहीं भी इस्तेमाल नहीं करूंगा.. ये मेरा आप से वादा हैं.हम थोड़ी देर चुप रहें मैं उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा था..मेरी टकटकी भरी निगाहें उसके चेहरे पर टिकी हुई थी और मेरे कान के एरियाल उसकी और से आनेवाली आवाज़ की तरंगों को कैच करने के लिए मुस्तेद ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 5

5.मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूमैंने बिना मां बाबा को बताए नमिता के भाई के बच्चें के एडमिशन के लिए दो लाख रूपये दें थे..नमिता इस बात से वेहद खुश थी पर ये सब मिझे ठीक नहीं लग रहा था क्या मैंने गलत किया था या सही क्योंकि नमिता के घर वालों का हमारी ज़िन्दगी में कुछ ज़रूरत से ज्यादा ही होने लगा था जिसके चलते नमिता मेरे हर काम पर नज़र रखने लगी थी.. इन्ही सब के चलते मैं अपने नए प्रोजेक्ट के लिए अभी तक कोई नया कॉन्सेप्ट भी डिसाइड भी नहीं कर पाया था.. क्योंकि महीने में नमिता के तीन चार ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 6

6.मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-6)मैंने बिना मां बाबा को बताए नमिता के भाई के बच्चें के एडमिशन के लिए दो लाख रूपये दिए थे..नमिता इस बात से वेहद खुश थी पर ये सब मिझे ठीक नहीं लग रहा था क्या मैंने गलत किया था या सही क्योंकि नमिता के घर वालों का हमारी ज़िन्दगी में कुछ ज़रूरत से ज्यादा ही होने लगा था जिसके चलते नमिता मेरे हर काम पर नज़र रखने लगी थी.. इन्ही सब के चलते मैं अपने नए प्रोजेक्ट के लिए अभी तक कोई नया कॉन्सेप्ट भी डिसाइड भी नहीं कर पाया था.. क्योंकि महीने में नमिता के तीन ...Read More

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6.मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू (पार्ट-6)मैंने बिना मां बाबा को बताए नमिता के भाई के बच्चें के एडमिशन के लिए दो लाख रूपये दिए थे..नमिता इस बात से वेहद खुश थी पर ये सब मिझे ठीक नहीं लग रहा था क्या मैंने गलत किया था या सही क्योंकि नमिता के घर वालों का हमारी ज़िन्दगी में कुछ ज़रूरत से ज्यादा ही होने लगा था जिसके चलते नमिता मेरे हर काम पर नज़र रखने लगी थी.. इन्ही सब के चलते मैं अपने नए प्रोजेक्ट के लिए अभी तक कोई नया कॉन्सेप्ट भी डिसाइड भी नहीं कर पाया था.. क्योंकि महीने में नमिता के तीन ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 7

7. मोहल्ला -ए -गुफ़्तगूऔर बस वहीं से उन्होंने मुझ पर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि में नमिता को प्रताड़ना दें रहा हूं फिर नमिता के एक भाई और हैं जो पेशे से लॉयर हैं उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बिलकुल कायदे में रहूं..पहले तो मैं बिलकुल सादगी में ही कहता रहा उन्हें समझता रहा लेकिन जब वो लोग नहीं माने तो मैंने उन्ही से पूछ लिया अगर मेरे मानसिक प्रताड़ना से नमिता इतनी परेशान हैं तो फिर वो क्या हैं जो पिछले 8 सालों से उसका मनोचिकित्साक से इलाज चल रहा हैं.. इस बात पर वो मुकर गए ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 8

8- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूऔर अविनाश फ़फ़क़ फ़फ़क़ कर रों पड़ा था. मैंने तुरंत उन्हें सम्हाला.. और दिलाशा दी और बिना किसी के उन्हें मैंने अपने सीने में भींच लिया था..अविनाश हिचकिया लेते लेते रोये जा रहें थे.. और बोले जा रहें थे उनकी बातें सुनकर मेरे भी आंसू आंखों में झलक आए थे..निर्मल जी मैंने अपनों को कभी रोने नहीं दिया उनकी हर इक्छाए पूरी की अपना मन मार के लेकिन पता नहीं मेरी ही किस्मत में उस ऊपर वाले ने ऐसा क्यूं लिखा इतना सब करने के बाद भी मेरे अपनों ने ही मुझसे मुंह मोड़ लिया.. में अपना दर्द ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 9

9- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूपूरी बेल जानें पर भी सविता ने फोन नहीं उठाया.. तो उसे चिंता हुई उसने उस दौरान 10-12 सविता को फोन किये जब कोई रिस्पॉन्स सविता की तरफ से नहीं मिले तो विकास ने उस मार्किट की हर दूकान पर जा जा कर दुकान दारों से पूछा सविता की फोटो भी अपने मोबाईल पर दिखाई लेकिन हर दुकानदार ने ये कह कर मना कर दिया के नहीं इस शक्ल की कोई महिला यहां नहीं आई थी तब वो शाम पांच बजे मूसा खेड़ी थाने पहुंचा और टीआई एस के प्रसाद को सारी घटना सुनाई थाने ने तात्तपरता के ...Read More

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मोहल्ला-ए-गुफ़्तगू - 10

10- मोहल्ला-ए-गुफ़्तगूऔर अविनाश मुस्कुराते हुए कहता है...आपने मुझे सही पहचाना नूर भाई मेरा यकीन मानिये मैं ही अविनाश हूं मुझे सही पहचान रहें है इसमें छुपने जैसा अब मेरे पास कुछ भी नहीं है...मैं झूठ बोलता नहीं हूं अगर झूठ का सहारा मैंने लिया होता तो आज मैं भी इतना परेशान नहीं होता मैं सच पर रहा जिसका सिला मुझे मिला लेकिन इस बात का मुझे कोई मलाल नहीं है..लेकिन मैंने कभी भी झूठ फरेव का सहारा नहीं लिया है..अब मुझे विश्वास हो चुका था के निर्मल एक खुद्दार इंसान है..तभी किसी ने आ कर कहा था..हम से अच्छा ...Read More