अय्याश! ये ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने समाज में अच्छे कार्यों के बदले केवल बदनामी ही पाई,दिल से अच्छे और सच्चे इन्सान की ऐसी दशा कर दी समाज ने कि फिर वो समाज मे अय्याश के नाम से विख्यात हो गया,उसने मानवतावश ऐसे कार्य कर दिए जिससे समाज को लगा कि वें कार्य समाज के विरूद्ध हैं,यहाँ तक के उसके अपने सगे-सम्बन्धियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया।। अन्त तक जो उसके साथ रही वो उसकी माँ थी,उसे जीवन में केवल तिरस्कार और अपमान के सिवाय कुछ ना मिला,वो अत्यन्त सत्यवादी था और कोई भी कार्य वो खुले मन
Full Novel
अय्याश--भाग(१)
अय्याश! ये ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने समाज में अच्छे कार्यों के बदले केवल बदनामी ही पाई,दिल से और सच्चे इन्सान की ऐसी दशा कर दी समाज ने कि फिर वो समाज मे अय्याश के नाम से विख्यात हो गया,उसने मानवतावश ऐसे कार्य कर दिए जिससे समाज को लगा कि वें कार्य समाज के विरूद्ध हैं,यहाँ तक के उसके अपने सगे-सम्बन्धियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया।। अन्त तक जो उसके साथ रही वो उसकी माँ थी,उसे जीवन में केवल तिरस्कार और अपमान के सिवाय कुछ ना मिला,वो अत्यन्त सत्यवादी था और कोई भी कार्य वो खुले मन ...Read More
अय्याश--भाग(२)
पंडित भरतभूषण चतुर्वेदी की बेगुनाही साबित हो चुकी थी और उनके गाँव से चले जाने पर सभी गाँव वालों पश्चाताप हो रहा था,लेकिन अब कोई फायदा नहीं था,चतुर्वेदी जी जब अपने आप को बेगुनाह बता रहे थे तो उनकी किसी ने नहीं सुनी.... ये खबर पाकर वैजयन्ती के मायके से उनके बड़े भाई दीनानाथ त्रिवेदी उन सबको अपने गाँव लिवा जाने के लिए जा पहुँचे,वैजयन्ती ने बहुत मना किया कि वो अपने पति का घर छोड़कर कहीं नहीं जाएगी,हो सकता है कि किसी दिन वें लौंट आएं,तब दीनानाथ वैजयन्ती की बात सुनकर बोले.... वैजयन्ती! पड़ोस में बता दो कि ...Read More
अय्याश--भाग(३)
दीनानाथ जी फौरन इलाहाबाद आएं और लड़कों के कमरें पहुँचे,गंगाधर ने उन्हें फौरन गिलास में घड़े से पानी भरकर लेकिन दीनानाथ जी ने पानी से भरा गिलास फेंक दिया और बोलें.... तुम लोगों का धरम भ्रष्ट हो चुका है,मैं तुम लोगों के हाथ से पानी भी नहीं पी सकता,मेरा धरम भी भ्रष्ट हो जाएगा,तुम लोगों ने एक चरित्रहीन औरत का अन्तिम संस्कार किया,कुल का नाम डुबोते शरम ना आई तुम तीनों को,समाज में नाम खराब कर दिया मेरा।। लेकिन मामा जी उसमें रज्जो जीजी का कोई दोष ना था,सत्यकाम बोला।। चुप कर नालायक! मुझसे जुबान लड़ाता है,तू ही इन ...Read More
अय्याश--भाग(४)
दूसरे दिन विन्ध्वासिनी की विदाई थी और सत्यकाम अपने घर में उदास बैठा था,उसके मन का हाल केवल गंगाधर श्रीधर ही समझ सकते थे,तब सत्यकाम की माँ वैजयन्ती घर के भीतर आई और सबसे बोली.... तुम सब यहाँ बैठो हो,वहाँ भाभी तुम सबको बुला रही है, मन नही है मेरा वहाँ जाने का इसलिए नहीं गया,सत्यकाम बोला।। ठीक है सत्या का मन नहीं था और तुम दोनों क्यों नहीं आएं? वैजयन्ती ने गंगाधर और श्रीधर से पूछा। सत्या नहीं आया तो हम भी नहीं आएं,श्रीधर बोला।। विन्ध्यवासिनी की विदाई होने वाली है,चलो वहाँ ,वो तुमलोगों को पूछ रही थी,वैजयन्ती ...Read More
अय्याश--भाग(५)
सभी लठैत दीनानाथ त्रिवेदी की बात मानकर रामभक्त को गाँव से निकालने के लिए जुट पड़े,उन्होंने रामभक्त को बदनाम का तरीका निकाला और एक रोज सुबह के वक्त जब हीरा गाँव के बाहर वाली बावड़ी से पानी लेने गई क्योकिं गाँव के भीतर वाले कुएँ और तालाब से उसे पानी भरने की मनाही थी इसलिए, तो तभी एक लठैत जिसका नाम बाँके था वो उसके पीछे लग गया.... और रास्तें में हीराबाई के साथ छेड़छाड़ करने लगा,हीराबाई ने शोर मचाया तो वहाँ आस पास मौजूद गाँव के दो चार लोंग इकट्ठे हो गए,तब हीराबाई उन सबसे बोली.... देखिए ना ...Read More
अय्याश--भाग(६)
सेठ हजारीलाल ने फिर अपने परिवार से सत्यकाम का परिचय करवाया,सेठ हजारीलाल के घर में उनकी दूसरी पत्नी मधुमाल्ती उनका बेटा परमसुख था जो कि अभी केवल दस साल का ही था और सेठ जी की दूसरी पत्नी सेठ जी से उम्र में बहुत छोटी थी,सेठ हजारीलाल की पहली पत्नी का देहान्त हो चुका था जिसे उनको एक बेटी थी,जिसका वें ब्याह कर चुकें और वो अपने ससुराल में सुखपूर्वक थी।। सेठ हजारीलाल ने अपने घर की एक कोठरी में सत्या को शरण देदी,वहाँ और भी कोठरियाँ थी जिनमें नौकर रहते थे,लेकिन जो कोठरी सबसे बेहतर थी,जिसमें बड़ा सा ...Read More
अय्याश--भाग(७)
सत्यकाम इस बात से बिल्कुल बेखबर था कि सेठ जी को मधुमाल्ती और उसके रिश्ते से परेशानी है,अपनी बड़ी की तरह ही मधुमाल्ती से उसका रिश्ता था,लेकिन सेठ जी की आँखों पर तो शक़ की पट्टी लग चुकी थी ,इसलिए वो इस रिश्ते में पवित्रता ना देखकर गंदगी देख रहे थें।। तब एक रोज़ सेठ जी ने सत्यकाम को घर से बाहर निकालने की तरकीब निकाली,दोपहर के समय जब सत्या उनकी दुकान पर गया तो सेठ जी उसी वक्त अपने घर आ गए चूँकि सत्यकाम अपनी कोठरी का ताला लगाकर नहीं जाता था,वो कहता था उसके पास है ही ...Read More
अय्याश--भाग(८)
उस तवायफ़ को नाश्ता देकर सत्या फौरन डिब्बे से बाहर चला आया और बाहर आकर एक पेड़ के नीचें गया फिर कुछ सोचते हुए उसकी आँखों से दो आँसू भी टपक गए,वो कुछ देर यूँ ही बैठा रहा फिर उठा और अनमने मन से स्टेशन के बाहर आ गया.... काफी देर बाद अपना कार्य पूर्ण करके वो वापस अपने डिब्बे पर पहुँचा,वहाँ मुरारी नाश्ते के लिए उसका इन्तजार कर रहा था,मुरारी ने उसे देखते ही कहा.... आ गए ब्राह्मण देवता! बड़ी देर लगा दी,रेलगाड़ी बस आधे घण्टे में यहाँ से निकलने वाली है।। हाँ!रातभर से इस डिब्बे में ही ...Read More
अय्याश--भाग(९)
जब वीरेन्द्र ने मलखान से बोल-चाल बंद कर दी तो मलखान इस अपमान से तिलमिला गया और वो मन मन विन्ध्यवासिनी से बदला लेने की सोचने लगा,उसने सोचा अपने अपमान का बदला लेने के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा,इसलिए वो इसके लिए योजनाएं बनाने लगा उसने सोचा पहले मैं सबसे माँफी माँग लेता हूँ जिससे मुझे वीरेन्द्र के घर में फिर से घुसने को मिल जाएगा और फिर मैं अपने अपमान का बदला आसानी से ले सकता हूँ,यही सोचकर वो एक दिन वीरेन्द्र के गोदाम पर पहुँचा और आँखों में झूठ-मूठ के आँसू भरकर उसके पैरों ...Read More
अय्याश--भाग(१०)
विन्ध्यवासिनी अपने पति और सास की दशा देख देख कर परेशान हो रही थी और बराबर रोएं जा रही कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था कि इतनी रात को वो ऐसा क्या करें कि दोनों के प्राण बच जाएं और दूसरी तरफ दुष्ट मलखान विन्ध्यवासिनी को रोता देख मंद मंद मुस्कुरा रहा था।। और फिर कुछ ही देर में उसकी सास ने अपने प्राण त्याग दिए वो सास को लेकर रो ही रही थी कि इतने में उसके पति का दम भी निकल गया,पति को जाता देख वो खुद को रोक ना सकी और उसकी जोर से चीख निकल ...Read More
अय्याश--भाग(११)
जब विन्ध्यवासिनी ने कोई जवाब ना दिया तो सत्यकाम ने फिर से पूछा.... पानी पिओगी बिन्दू! लाऊँ तुम्हारे लिए भरकर।। नहीं! अभी मुझे प्यास नहीं है सत्या! विन्ध्यवासिनी बोली।। चलो ! अभी तक तुम्हें मेरा नाम तो याद है ,सत्यकाम बोला।। तुम्हारा नाम भला कैसें भूल सकती हूँ कभी? विन्ध्यवासिनी बोली।। मुझे मुरारी ने सब बता दिया है, सत्यकाम बोला।। क्या बता दिया है? विन्ध्वासिनी ने पूछा।। तुम्हारे बारें में,सत्यकाम बोला।। तो अब तुम तो मुझे गलत समझ रहे होगे,विन्ध्यवासिनी बोली।। नहीं!अब भी तुम मेरे लिए वैसी ही पवित्र हो जैसी की तुम पहले थी,सत्यकाम बोला।। मैं एक तवायफ़ ...Read More
अय्याश--भाग(१२)
उस औरत के पति के सवाल पूछने पर सत्यकाम कुछ अचम्भित सा हुआ फिर बोला.... जी! मैं दीनानाथ जी ही भान्जा हूँ ।। मैं शुभेंदु चटोपाध्याय और ये मेरी पत्नी कामिनी,तुम्हारे मामा दीनानाथ मेरे पिता के मित्र हैं,वें बोलें।। अच्छा...अच्छा...बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर,सत्या बोला।। लेकिन तुम यहाँ कैसैं? सुनने में आया था कि दीनानाथ जी ने तुम्हें घर से निकाल दिया था,शुभेंदु जी ने पूछा।। जी! शायद मुझे कारण बताने की आवश्यकता नहीं है,आपको तो कारण मालूम ही होगा,सत्यकाम बोला।। पता तो है,तुमने इतना गलत काम करके ठीक नहीं किया था? शुभेंदु जी बोले।। गलत काम....आप भी उसे ...Read More
अय्याश--भाग(१३)
वैजयन्ती ने जब ये सुना कि उसका बेटा तवायफ़ो के पास जाने लगा है तो उसे स्वयं से बहुत हुई,उसे अपनी परवरिश पर अब संदेह हो रहा था,वो मन ही मन सोच रही थी कि क्या उसने यही दिन देखने के लिए उसे पालपोसकर बड़ा किया था।। वैजयन्ती जो भी अपने बेटे के बारें में सोच रही थी उसमें उसका भी कोई कुसूर ना था,उसे तो जिसने जो बताया उसके बेटे के बारें में तो उसने समझ लिया,वो अपने बेटे की सच्चाई से बिल्कुल ही बेख़बर थी,वैजयन्ती को ये अन्दाजा ही कहाँ था कि उसका बेटा जो कार्य कर ...Read More
अय्याश--भाग(१४)
सत्या फौरन ही श्रीधर के गले लग गया ,दोनों इतने दिनों बाद एकदूसरे से गले मिले तो दोनों की आँखें नम हो गई,फिर श्रीधर ने सत्या से पूछा.... और बता कैसा है तू? मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ,तू बता ,सत्या बोला।। मैं भी एकदम भला चंगा हूँ,श्रीधर बोला।। और गंगा कहाँ है? वो नहीं आया,सत्या ने श्रीधर से पूछा... ये सुनकर श्रीधर कुछ ना बोला और पेड़ के ओट में जाकर उदास सा खड़ा हो गया,उसका ऐसा रवैय्या देखकर सत्या उसके पास गया और फिर से पूछा.... बोलते क्यों नहीं? जवाब दो मेरे सवाल का! कहाँ है गंगा? मुझ ...Read More
अय्याश--भाग(१५)
स्नान करने के बाद जब सत्या और अमरेन्द्र भोजन करने बैठें तो अमरेन्द्र के घर की बूढ़ी नौकरानी झुमकी से परोसी हुई पीतल की थालियाँ लेकर उपस्थित हुई,झुमकी को देखकर अमरेन्द्र बोला.... अरे! झुमकी काकी ! तुम खाना परोस रही हो,मोक्षदा कहाँ हैं? जी! छोटे मालिक वो मोक्षदा बिटिया तो रसोई में हैं,कहतीं थीं कि तुम ही भोजन दे आओ,झुमकी बोली।। वो क्यों नहीं आती भला भोजन परोसने ? अमरेन्द्र ने पूछा।। बिटिया कहती थी कि उन्होंने मेहमान से अच्छा व्यवहार नहीं किया,झुमकी बोली।। पगली कहीं की!झुमकी काकी!उससे कहो कि मेहमान ने उसकी बातों का बुरा नहीं माना,अमरेन्द्र बोला।। ...Read More
अय्याश--भाग(१६)
झुमकी काकी अपनी कोठरी से थाली लेकर आई तो मोक्षदा ने थाली में खाना परोस दिया और स्वयं की लगाकर खाने बैठ गई,झुमकी काकी भी रसोई से बाहर खाना खाने बैठ गई,खाते खाते झुमकी काकी बोली.... बिटिया ! एक बात बोलूँ।। हाँ!काकी कहो ना! मोक्षदा बोली।। मुझे तो लड़का नेक दिखें है,तुम्हारी क्या राय है? काकी ने पूछा।। स्वाभाव का तो सरल ही दिखता है,अब मन का कैसा हो कुछ कहा नहीं जा सकता ,मोक्षदा बोली।। अब छोटे मालिक ने अपना मुनीम बनाया है तो कुछ सोचकर ही बनाया होगा,झुमकी काकी बोली।। भइया की बातें ,भइया ही जानें मैं ...Read More
अय्याश--भाग(१७)
सत्यकाम तो चला गया लेकिन उसकी बातों ने मोक्षदा के मन में हलचल मचा दी,मोक्षदा ने सोचा ऐसा कुछ तो कहकर नहीं गया सत्यकाम,मेरे मन में यही सवाल तो उठते हैं अक्सर,जिनके जवाब मैं ढूढ़ नहीं पाती,इस दुनिया में कोई तो ऐसा है जिसके मन में भी मेरे मन की तरह ही सवाल उठते हैं,अक्सर ये समाज रीतिरिवाजों का आवरण ओढ़ाकर कैसें हमारे अन्तर्मन को ढ़क देता है,माना कि इस समाज से अलग रहकर कोई भी इन्सान नहीं रह सकता लेकिन लोगों को गलत रीतिरिवाजों की बलि क्यों चढ़ाया जाता है?बस इसलिए कि ये परम्पराएँ हमारे बुजुर्गों ने बनाईं ...Read More
अय्याश--भाग(१८)
उस रात मोक्षदा के खाना ना खाने से सत्या कुछ चिन्तित सा हो गया,उसे बुरा लग रहा था कि बातों ने मोक्षदा के हृदय को शायद आहत किया है,उसने सोचा वो मोक्षदा से सुबह माँफी माँग लेगा और यही सोचते सोचते उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला..... सुबह हुई और आज मोक्षदा की तबियत ठीक थी इसलिए उसने ठीक समय पर जागकर सुबह के सारे काम निपटा लिए थे,वो घर के पीछे के आँगन में तुलसीचौरें के पास अपनी आँखें बंद किए खड़ी थीं, उसके बाल गीले और खुले हुए थे,तभी सत्यकाम जागा और उसने ...Read More
अय्याश--भाग(१९)
मोक्षदा रसोई में पहुँची और दोपहर के भोजन की तैयारी में जुट गई,चूल्हें में आग सुलगाते हुए उसने झुमकी से कहा.... काकी!तनिक कटहल तो काट देना।। बिटिया! बस अभी काटे देती हूँ,झुमकी काकी बोली। फिर मोक्षदा वहीं रसोई के बाहर के आँगन में एक कोने पर रखे सिलबट्टे पर मसाला पीसने लगी,कुछ देर में मसाला पिस गया तो वो मसाला उठाकर रसोई में पहुँची और चूल्हे पर लोहे की कढ़ाई चढ़ाकर कटहल की सब्जी बनाने लगी,फिर उसने कुछ कच्चों आमों को चूल्हे के भीतर भूनने को डाल दिए और आटा गूँथने लगी,कुछ ही देर में सारा भोजन तैयार हो ...Read More
अय्याश--भाग(२०)
उधर छत पर खड़ी मोक्षदा वहीं घुटने के बल बैठ गई और फूटफूटकर रोने लगी,वो मन में सोच रही कि क्या करें? क्या ना करें,क्योंकि एक तरफ उसका भाई था और दूसरी तरफ उसका प्यार,वो भाई जिसने केवल उसकी खातिर आज तक ब्याह नहीं रचाया और दूसरी तरफ उसका प्रेमी जिससे वो ब्याह रचाना चाहती है।। जिन्दगी ने उसे किस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया था,वो यही सोच रही थी,काश के आज उसकी माँ जिन्दा होती तो वो उसके कलेजे से लगकर जीभर के रो लेती,उससे अपना दुःख बाँटकर मन हल्का कर लेती,लेकिन आज वो कितनी मजबूर है,क्या ...Read More
अय्याश--भाग(२१)
कुछ देर में मोक्षदा अपना खाना परोसकर बैठक में पहुँची और सत्यकाम के बगल में अपनी थाली लेकर बैठ ही सत्यकाम ने मोक्षदा की थाली में आम का नया अचार देखा तो बोला..... अरे! आप अपने लिए अचार लेकर आईं हैं और मेरी थाली में लौकी की सादी सी सब्जी और रोटी,ये तो बहुत नाइन्साफ़ी है।। तो तुम मेरी थाली से ये अचार उठा लो,मोक्षदा बोली।। जी! नहीं! आप अपने लिए लाईं हैं तो आप ही खाएं,सत्यकाम बोला।। ठहरो! मैं अभी तुम्हारे लिए भी रसोई से अचार लेकर आती हूँ,इतना कहकर मोक्षदा उठने लगी तो सत्यकाम ने उसका हाथ ...Read More
अय्याश--भाग(२२)
मोक्षदा की बात सुनकर सत्यकाम के आँसू आखिर छलछला ही पड़े और वो बोला.... ये सज़ा ही तो है प्यारी मोक्षदा! जो मैं ना जाने कब से भुगत रहा हूँ? मैं जिसे चाहता हूँ उसे अपना बना ही नहीं सकता,उसे अपने कलेजे से लगा कर ठंडक नहीं पहुँचा सकता,उसके हाथों में अपना हाथ लेकर ये नहीं कह सकता की तुम मेरे जीवन में एक किरण की भाँति आई और देखते ही देखते मेरा जीवन उजाले से भर गया,तुम्हारे प्रतिबिम्ब को मैं निःसंकोच अपने लोचनों में स्थान नहीं दे सकता,तुमसे खुलकर ये नहीं कह सकता कि तुम ही मेरी प्राणप्यारी ...Read More
अय्याश--भाग(२३)
फिर अमरेन्द्र ने सबसे कहा कि.... वें सब कल ही मोक्षदा को देखने आ रहे हैं,इसलिए सारी तैयारियांँ आज शुरू करनी होगीं,मैं महाराज को बुलवाकर कुछ मीठा और नमकीन बनवा लेता हूँ और वही कल का भोजन भी बना देगा,मोक्षदा अब केवल आराम करेगी,इतने सालों बहुत काम कर चुकी।। सही कहा छोटे मालिक आपने,झुमकी काकी बोली।। तो फिर सत्यकाम बाबू चलिए मेरे साथ ,महाराज से बात करके आते हैं,अमरेन्द्र बोला।। जी चलिए! सत्यकाम बोला।। और फिर दोनों घर से निकलने ही वाले थे कि मोक्षदा बोल पड़ी.... दोपहर का भोजन तो कर लेते भइया! फिर कहीं जाते।। अरे! मेरा ...Read More
अय्याश--भाग(२४)
सत्यकाम अमरेन्द्र के घर से कुछ भी लेकर नहीं आया था,वो बिल्कुल खाली हाथ था उसके पास अगर कुछ तो वो था मोक्षदा की कढ़ाई किया हुआ रूमाल,जिसे उसे मोक्षदा ने उपहारस्वरूप भेंट किया था,जिस रास्ते पर वो चल रहा था वो रास्ता उसका स्वयं का चुना हुआ ही था।। वो रास्ते में यूँ पैदल चलता रहा जहाँ आसरा मिल जाता तो वही टिक जाता,रात कभी किसी पेड़ के तले गुजारता तो दिन के पहर रास्तों पर चलते चलते,अगर कहीं मजदूरी का काम मिल जाता तो एक दो दिन मजदूरी करके आगें जाने के लिए खर्चा निकाल कर फिर ...Read More
अय्याश--भाग(२५)
सत्या भी उस महिला को जाते हुए देखता रहा लेकिन रोक ना सका,ये रामप्यारी भी देख रही थी लेकिन सत्या से कुछ पूछा नहीं,बस उसके दर्द को समझते हुए मौन हो गई,दोनों बरतन बेंचकर घर लौटे,रामप्यारी ने रात का भोजन बनाकर थाली सत्या के सामने परोस दी,भोजन से भरी थाली देखकर सत्या बोला.... माई! ले जाओ इसे,आज खाने का मन नहीं है!! ये सुनते ही रामप्यारी ने पूछा.... कौन थी वो? बस! थी कोई जान-पहचान वाली,सत्या बोला।। ऐसा लगता है कि कभी बहुत गहरा रिश्ता रहा था तुम दोनों के बीच,रामप्यारी बोली।। था तो ! बहुत गहरा रिश्ता था,सत्या ...Read More
अय्याश--भाग(२६)
आजी को ये सुनकर भरोसा ही नहीं हुआ कि जमींदारन मुझे अपनी भाभी बनाना चाहती है इसलिए आजी ने पूछा.... मालकिन! ये कैसे हो सकता है,हमरी पोती आपके खानदान के जोड़ की नहीं है, तो क्या हुआ ?खानदान ही सबकुछ नहीं होता,रूपरंग भी तो कुछ होता है,तुम्हारी पोती की खूबसूरती ने मुझे मोह लिया है,अब तो यही मेरी भाभी बनेगी,जमींदारन राजलक्ष्मी बोली... लेकिन हमरी औकात नहीं है आपकी बराबरी करने की,आजी बोली।। ऐसे ना कहो आजी! इस दुनिया में भगवान ने सभी को एक जैसा ही बनाकर भेजा है,वो तो इन्सानों ने भेदभाव बना दिए है,नहीं तो तुम्हारा खून ...Read More
अय्याश--भाग(२७)
हाँ !दिखावा था ये ब्याह,अष्टबाहु बोला।। लेकिन क्यों? मेरा ब्याह तो माधव के संग हुआ था,उसमें सब शामिल थे दिखावा कैसें हुआ? मुझे जमींदारन ने कहा था कि वो मेरा ब्याह अपने भाई के साथ करवाना चाहती हैं,मैं जोर से चीखी।। मैं ही तो हूँ जमींदारन राजलक्ष्मी का भाई,अष्टबाहु बोला।। तो फिर माधव कौन है? मैनें पूछा।। माधव...माधव मेरे नौकर का बेटा है,अष्टबाहु बोला।। तो इसका मतलब है राजलक्ष्मी ने मुझसे झूठ बोला,मैं ने कहा।। अगर झूठ ना बोलती तो तुम यहाँ कैसे आती ?अष्टबाहु बोला।। लेकिन क्यों?,मुझसे झूठ क्यों बोला गया?मैं चीखी।। वो इसलिए कि मुझे इस हवेली ...Read More
अय्याश--भाग(२८)
देवनन्दिनी के कमरें में आने के बाद माधव कमरें से चला गया,उस दिन के बाद जब भी जमींदार बाहर होते तो मुझे माधव से मिलने का मौका मिल जाता,मैं वहाँ से आजाद होना चाहती थी,मैनें कई बार वहाँ से भागने की कोशिश की लेकिन कामयाब ना हो सकीं,जमींदार अब मुझ पर और भी कड़ी निगरानी रखता,उसे कहीं से भनक हो गई थी कि माधव मुझसे मिलने आता है,इसलिए उसने कहा कि.... अगर मुझे पता हो गया कि तू माधव से मिली है तो उसी रात मैं माधव की बोटियाँ बोटियाँ करके गाँव की नदी में बहवा दूँगा।। मैं इस ...Read More
अय्याश--भाग(२९)
रामप्यारी और सत्यकाम घर से निकल पड़े अपने प्रियजनों से मिलने,सत्या का तो पता नहीं लेकिन रामप्यारी अपने बेटे को देखने के लिए उतावली हुई जाती थी और उसे देवनन्दिनी से मिलने की भी बहुत इच्छा थी क्योंकि उसके बेटे को तो उसी ने ही तो पालपोसकर बड़ा किया होगा,इतने सालों बाद वो उस हवेली में वापस जा रही थी,उस नर्क में जिसने उसे केवल दुःख ही दिए थे,लेकिन उस हवेली का दूसरा और सकारात्मक पहलू भी वो देख रही थीं जहाँ उसे उसका प्यार माधव मिला था और उसी के प्यार की निशानी ही तो उसका बेटा वीरप्रताप ...Read More
अय्याश--भाग(३०)
सत्यकाम अपनी बहन त्रिशला के घर से लौट तो आया लेकिन काशी में उसके ठहरने का कोई ठिकाना नहीं इसलिए उसने सोचा कि यहाँ वहाँ भटकने से तो अच्छा है क्यों ना मैं काशी की किसी धर्मशाला में एक दो दिन ठहरकर कहीं नौकरी ढ़ूढ़ लूँ और नौकरी मिल जाने पर कोई कमरा लेकर उसमें रहने लगूंँगा,बस बहुत हो गया भटकना,शायद मेरे जीवन में अपनों का साथ नहीं लिखा है और फिर यही सोचकर सत्या ने एक धर्मशाला में अपना ठिकाना बना लिया और दो दिनों के भीतर ही उसे एक विद्यालय में अंग्रेजी का अध्यापक भी नियुक्त कर ...Read More
अय्याश--भाग(३१)
उस लड़की को रोता हुआ देखकर सत्यकाम कुछ परेशान सा हो गया और उससे कहा..... तुम पहले रोना बंद सत्या की बात सुनकर वो लड़की चुप हो गई और चारपाई के नीचे से बाहर निकलकर डरी- सहमी सी वहीं चारपाई के पास सिकुड़कर बैठ गई फिर सत्या ने सुराही से गिलास में पानी भर कर उसे दिया और बोला..... पानी पी लीजिए,फिर तसल्ली से मुझे बताइएं कि क्या हुआ? उस लड़की ने एक ही साँस में गिलास का सारा पानी खतम कर दिया और जैसे ही बोलने को हुई तो बंसी वहाँ आ पहुँचा,वो सत्यकाम से बोला...... आप आ ...Read More
अय्याश--भाग(३२)
सत्यकाम संगिनी की माँग भरकर सबसे बोला..... आज ये मेरी धर्मपत्नी हैं और आज से इनकी हिफ़ाज़त की जिम्मेदारी है अगर इस पर किसी को कुछ कहना है तो कह सकता है।। सत्या की बात सुनकर फिर वहाँ मौजूद महिलाएं और पुरुष कुछ भी ना बोले,फिर सत्या ने संगिनी का हाथ पकड़ा और अपने कमरें में ले गया,संगिनी भी डरी सहमी सी चुपचाप सत्या के साथ चली आई,तब सत्या संगिनी से बोला.... मुझे माँफ कर दीजिए,मैं ये सब नहीं करना चाहता था लेकिन ना चाहते हुए भी मुझसे ये हो गया।। आपने तो मेरा उद्घार किया है,संगिनी पलकें नींचे ...Read More
अय्याश--भाग(३३)
संगिनी अपने लिए लाए हुए सामान को देखकर बहुत खुश थी,आज उसकी खुशी का का कोई ठिकाना नहीं था,उसने अपने बाल गूँथे और उसमें मोगरें का गजरा डाल लिया,फिर उसने अपनी माँग में सिन्दूर डाला ,माथे पर बिन्दिया लगाई ,अपनी कजरारी आँखों में काजल भी डाला, अपनी गोरी कलाइयों में काँच की लाल चूडियांँ डालीं,फिर उसने अपने पैरों में पायल और बिछियों पहने और खुद को आइने में निहारने लगी,उसकी ऐसी अल्हड़ सी हरकतें देखकर सत्यकाम बस मन ही मन मुस्कुराता रहा लेकिन बोला कुछ नहीं,जब संगिनी स्वयं को आइने में निहार चुकी तो वो सत्या से बोली.... मैं ...Read More
अय्याश--भाग(३४)
बंसी कमरें के भीतर आते ही बोला.... लीजिए! आप दोनों का नाश्ता,खा लीजिए, काका! तुम नाश्ता रख दो,मैं बाबू लिए परोस देती हूँ,संगिनी बोली।। ठीक है बिटिया! मैं बाद में थालियाँ ले जाऊँगा,इतना कहकर बंसी नीचें चला गया,बंसी के जाते ही संगिनी ने फिर से सत्या से पूछा.... आप मुझे पसंद करते हैं या नहीं।। मैनें कहा ना! मैं तुम्हारे सवाल का जवाब नहीं दे सकता।। लेकिन क्यों?संगिनी बोली।। क्योंकि मैं जिसे भी पसंद करता हूँ वो मुझसे हमेशा बिछड़ जाते हैं,चाहे मेरा भाई हो ,चाहें मेरी माँ हो,चाहें बाबूजी हों या फिर और कोई,डर लगने लगा मुझे अब ...Read More
अय्याश--भाग(३५)
शुभगामिनी ने संगिनी से बहुत ही खुले दिल से बातें की इसलिए संगिनी ने भी शुभगामिनी के समक्ष अपना खोलकर रख दिया,संगिनी की बात सुनकर शुभगामिनी बोली..... बहन! तुम चिन्ता मत करो,सत्यकाम बाबू बहुत ही अच्छे इन्सान हैं,उन्होंने अपनी जिन्दगी में बहुत कष्ट देखें हैं,जिसे वें अपना मानने लगें वो ही उनसे बिछड़ गया,इसलिए अब वें शायद रिश्तों के नाम से डरने लगें हैं,लेकिन तुम्हारे आने से शायद अब उनके उजड़े हुए जीवन में बहार आ जाएं,अब तुम आ गई हो तो मुझे उम्मीद है कि उनके सारे दुःख बाँट लोगी,उन्हें एक सच्चे दोस्त की बहुत आवश्यकता है जो ...Read More
अय्याश--भाग(३६)
सत्या और संगिनी की गृहस्थी रूपी गाड़ी अब सुचारू रूप से चलने लगी थी क्योंकि अब दोनों पहिओं का असन्तुलित नहीं था,दोनों एकदूसरे के पूरक बन गए थे,दोनों एकदूसरे की भावनाओं का ख्याल रखते हुए जीवनधारा में बह रहे थे,संगिनी को सत्या के रूप में मनचाहा मीत मिल गया था और सत्या को संगिनी के रूप में प्यारा सा साथी जो वो उसका हरदम ख्याल रखती थी,दोनों को इसके सिवाय कुछ और चाहिए भी नहीं था,सत्या को वो ठहराव मिल गया था जिसकी उसे बहुत समय पहले से आवश्यकता थी,दोनों अपने छोटे से घरोंदे को सँवारने में लगे थे,इसी ...Read More
अय्याश--भाग(३७)
संगिनी को अब समझ में आ रहा था कि इतने समय से उसके मामा दयाराम से मुलाकात क्यों ना थी?वो इसलिए कि वो जेल में हैं,संगिनी को अब इस बात का डर सता रहा था कि कहीं उसकी कंठी का भेद ना खुल जाएं और ये बात कहीं उसके पति को पता चल गई तो वें ना जाने क्या सोचेगें?संगिनी के मस्तिष्क में विचारों का आवागमन निरन्तर जारी था और वों इस झमेले से छुटकारा पाना चाहती थी,उसने ये बात शुभगामिनी से भी कही और इस बार शुभगामिनी ने संगिनी को सलाह दी कि वो इस बार सत्या को ...Read More
अय्याश--भाग(३८)
सत्या ना चाहते हुए भी उन मोहतरमा के संग उनके रिजर्वेशन वाले डिब्बे में बैठ तो गया था लेकिन बहुत संकोच हो रहा था,कुछ ही देर में रेलगाड़ी चल पड़ी और टीसी टिकट जाँचने आया,तब वें खातून बोलीं.... जनाब! ये भाईजान भी हमारे संग ही है,आप इनका टिकट बना दीजिए,जितने रूपऐं लगेगें तो हम आपको दे देते हैं,खुदा के लिए इन्हें परेशान मत कीजियेगा।। मोहतरमा!मुझे भला क्या परेशानी हो सकती है आप कितने भी जन अपने डिब्बे में बैठा लीजिए,मुझे टिकट के रूपऐं मिल रहे हैं ना!तो आप इत्मीनान रखिए,मैं इन साहब का टिकट भी अभी बनाएं देता हूँ ...Read More
अय्याश--भाग(३९)
फिर इसके बाद क्या हुआ?आपकी अम्मी का निकाह किसी ऐसे इन्सान के साथ हो गया जो उनके काबिल ना ने पूछा।। जी!नहीं!भाईजान!हमारी अम्मीजान ने खुद से ही अपनी जिन्दगी तबाह कर ली,आलिमा बानो बोली।। वो कैसें भला?सत्यकाम ने पूछा।। वो इस तरह कि उन्हें एक आवारा और बदचलन इन्सान से मौहब्बत हो गई,तब उन्होंने अपने भाइयों की परवाह नहीं की और भाइयों की इज्ज़त को द़ागदार करके उसके संग घर से भाग गईं,इस बात से उनके भाई बहुत ज्यादा ख़फा हो गए और कसम खाई कि वें अपनी बहन की शकल फिर कभी नहीं देखेगें और वो उनके लिए ...Read More
अय्याश--(अन्तिम भाग)
शौक़त के घरवाले उन पर दबाव बनाने लगें,यहाँ तक कि शौक़त की अम्मी और अब्बाहुजूर भी चाहते थे कि भी उन पर दबाव बनाकर हमारा उनसे तलाक़ करवा दिया जाएं, वें सभी इस मक़सद में कामयाब भी हो गए और एक बार फिर हम अपनी जिन्दगी तनहा गुजारने लगें,हमसे अब ये ग़म सहना मुश्किल हो रहा था,हमारी तकलीफ़ को हमारी अम्मीजान ने महसूस किया और वें दोबारा हमें अपने घर लें गईं,वहाँ हमें कुछ राहत महसूस हुई लेकिन अब्बाहुजूर ने हमसे फिल्मों में काम करने के लिए दबाव डाला,मजबूर होकर फिर से हमने खुद को फिल्मों मसरूफ़ कर लिया,जिससे ...Read More