संयोग - अनोखी प्रेम कथा

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"धीरे धीरे अंधेरे को खदेड़कर उजाला धरती पर अपने पैर पसार रहा था।भोर का आगमन होते ही पेड़ो पर बैठे पक्षियों का कलरव स्वर गूंजने लगा।शीतल मन्द मन्द हवा बह रही थी।चारो तरफ हरियाली।खेतो में पीली पीली सरसों लहरा रही थी।सुबह के सुहाने मौसम में ट्रेन विन्घ्याचल के लम्बी श्रंखला के साथ दौड़ी चली जा रही थी।ट्रेन के फर्स्ट क्लास कोच में संगीतकार शंकर यात्रा कर रहे थे। भोर का आगमन होते ही उन्होंने अपनी वीणा उठाई।लोग सुबह उठकर व्यायाम करते है।घूमने जाते है।शंकर रोज सुबह रियाज करते थे।यह उनका नियम था।उनकी आदत में सुमार था।कही भी हो रियाज करना नही भूलते थे। शंकर की उंगलियां वीणा के तारो पर थिरकने लगी।और मधुर वीणा की तान वातावरण में रस घोलने लगी।कुछ ही मिनट गुज़रे थे कि वीणा के स्वरों को भेदती हुई दूर से आते गाने की आवाज उनके कानों में पड़ी।हारमोनियम की धुन पर मधुर नारी स्वर में कोई गा रही थी,

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संयोग-- अनोखी प्रेम कथा - (भाग 1)

"धीरे धीरे अंधेरे को खदेड़कर उजाला धरती पर अपने पैर पसार रहा था।भोर का आगमन होते ही पेड़ो पर पक्षियों का कलरव स्वर गूंजने लगा।शीतल मन्द मन्द हवा बह रही थी।चारो तरफ हरियाली।खेतो में पीली पीली सरसों लहरा रही थी।सुबह के सुहाने मौसम में ट्रेन विन्घ्याचल के लम्बी श्रंखला के साथ दौड़ी चली जा रही थी।ट्रेन के फर्स्ट क्लास कोच में संगीतकार शंकर यात्रा कर रहे थे। भोर का आगमन होते ही उन्होंने अपनी वीणा उठाई।लोग सुबह उठकर व्यायाम करते है।घूमने जाते है।शंकर रोज सुबह रियाज करते थे।यह उनका नियम था।उनकी आदत में सुमार था।कही भी हो रियाज करना नही ...Read More

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संयोग-- अनोखी प्रेम कथा - (भाग 2)

संगीता अपने बूढ़े पिता के साथ रहती थी।पिता को शराब पीने की बुरी लत थी।जिसकी वजह से उसे बी हो गयी थी।रात रात भर खांसता रहता लेकिन दारू पीना नही छोड़ता था।गांव में इलाज की कोई सुविधा नही थी।इसलिए बीमारी लाइलाज होती गयीं और एक दिन बाप यह दुनिया छोड़कर चला गया।पिता की मौत के बाद संगीता अकेली रह गयी।मोहन की नज़र संगीता पर थी।बाप था तब तक तो उसकी हिम्मत नही होती थी।लेकिन संगीता के अकेली रह जाने पर वह उसे तंग करने लगा।एक रात वह उसकी झोपड़ी में जा पहुंचा।"तुम यहाँ क्यो आये हो?"मोहन को अपनी झोपड़ी ...Read More

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संयोग-- अनोखी प्रेम कथा - (भाग 3)

"मालती""आपने बुलाया?"शंकर की आवाज सुनकर मालती चली आयी।"मालती यह संगीता है।इसे नहलाकर नए कपड़े मंगाकर पहनाओ।""यस सर्"।मालती, संगीता अपने साथ ले जाती है।वह उसे बाथरूम में ले जाकर सब समझा देती है।मालती अपने एक जोड़ी नए कपड़ दे देती है।संगीता शॉवर के नीचे खड़ी होकर काफी देर तक नहाती रही।फिर तौलिये से बदन पोंछकर कपड़े पहन कर बाहर निकली थी।फिर मालती उसे शंकर के पास ले गयी।"सुंदर।अति सुंदर,"सरला,संगीता को बदले रूप में देखकर बोली,"तू कमल के फूल के समान है।कमल का फूल गन्दगी में खिलकर भी कितना सुंदर होता है।कितना लुभावना होता है।लक्ष्मी का प्रिय।""माँ यह फूल नही हीरा ...Read More

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संयोग-- अनोखी प्रेम कथा - (भाग 4)

"ज्यादा तारीफ मत करी।ऐसा कुछ नही है।""अगर ऐसा न होता तो लाखों दीवानन होते आपके।""यह सब शंकरजी की है।"संगीता, राजन के व्यक्तित्व से प्रभावित हुई और राजन तो उसकी आवाज का दीवाना था।पहली मुलाकात में ही दोनो दोस्त बन गये।और धीरे धीरे उनकी दोस्ती बढ़ने लगी।संगीता जब फ्री होती राजन के घर अगर उसकी शूटिंग चल रही होती तो फ़िल्म के सेट पर पहुंच जाती।शंकर को संगीता की राजन से बढ़ती नजदीकियों से दिल को ठेस लगी।वह संगीता को चाहने लगा।प्यार करने लगा था।वह संगीता को अपनी बनाना चाहता था।लेकिन उचित समय पर वह अपने दिल की बात बताना ...Read More