मृत्यु मूर्ति

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यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है । कहानी किसी भी धर्म के देव - देवी का असम्मान नहीं करती। यह केवल एक भयानक प्लाट को दर्शाने के लिए प्रयोग किया गया है। इस कहानी में वर्णित देवी व तिब्बती बौद्ध धर्म के बारे में कुछ जानकारी , तिब्बत , इस नाम को सुनकर पहले क्या दिमाग़ में आता है ? भारत के उत्तर में ऊंचे - ऊंचे पर्वत मालाओं की गोद में अति सुंदर एक स्वप्न का देश जिसे The forbidden land भी कहते हैं । इस देश ने अपने सीने में बहुत सारे रहस्य को छुपाकर रखा है । इस रहस्यमय देश में धर्म भी बहुत ही रहस्यमय है । सचमुच तिब्बती बौद्धधर्म या वज्रयान बौद्धधर्म के जैसा पहेली रुपी धर्म विश्व में बहुत कम ही हैं । बौद्ध धर्म के साथ तंत्र के देव - देवियों का एक आश्चर्य गठबंधन है । वज्रयान से संबंधित देव - देवी की चित्र या पट आपको आश्चर्य कर देंगे ।

Full Novel

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मृत्यु मूर्ति - जानकारी

यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है । कहानी किसी भी धर्म के देव - देवी का असम्मान नहीं करती। केवल एक भयानक प्लाट को दर्शाने के लिए प्रयोग किया गया है। इस कहानी में वर्णित देवी व तिब्बती बौद्ध धर्म के बारे में कुछ जानकारी , तिब्बत , इस नाम को सुनकर पहले क्या दिमाग़ में आता है ? भारत के उत्तर में ऊंचे - ऊंचे पर्वत मालाओं की गोद में अति सुंदर एक स्वप्न का देश जिसे The forbidden land भी कहते हैं । इस देश ने अपने सीने में बहुत सारे रहस्य को छुपाकर रखा है । इस ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 1

नालंदा महाविहार 812 ई. पू. ठंड भरी रात, सरोवर के पूर्व तरफ के छात्रावास में चारों तरफ सन्नाटा है सभी सो रहे हैं केवल इतनी रात को नींद छोड़कर बिस्तर पर कोई एक जाग रहा है । इस छात्रावास का सबसे मेधावी भिक्षुक यशभद्र । अंधेरे में ही वह बिस्तर को छोड़कर नीचे उतर आया तथा अंदाजे से समझ गया कि पास ही सोए दो सहपाठी श्रीगुप्त व सिद्धार्थ गहरी नींद में हैं । बहुत दिनों के अभ्यास के कारण अंधेरे में ही एक कोने से यशभद्र ने एक छोटे सन्दूक को खींचकर निकाला तथा धीरे से उसे खोला ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 2

मठाधीश छात्रावास के तरफ जितना आगे बढ़ रहे हैं उतना ही उनके मन में हलचल और बढ़ रहा है इस कोहरे में भी वह स्पष्ट देख सकते हैं कि छात्रावास के बाहर आंगन में भिक्षुओं ने भीड़ लगा रखा है । उनके वहां पहुंचते ही भिक्षुओं का भीड़ दो भागों में बांट कर उन्हें अंदर जाने कक्ष में जाने का रास्ता देने लगे तथा वहां उपस्थित सभी ने उन्हें झुककर अभिवादन किया । केवल एक ने ऐसा नहीं किया , कक्ष के कोने में वह पहले से ही सिर झुकाकर खड़ा है । अब आचार्य सूर्यवज्र आगे आए और ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 3

वर्तमान समय , मैक्लोडगंज , हिमांचल प्रदेश किसी चित्र की तरह सुंदर है यह छोटा शहर मैक्लोडगंज , जो से कुछ ही ऊपर है । कॉलेज की तरफ से पर्यटन भ्रमण में धर्मशाला आया हूं। वहां से ही 2 दिन के लिए यहां पर घूमने चला आया । यहां रास्ते पर निकल कर चारों तरफ देखने से ऐसा लगता है कि यह शहर भारत के अंदर नहीं है। तिब्बत के धर्म गुरु स्वयं दलाई लामा का यह वास स्थान है । रास्ते के दोनों तरफ कई सारे तिब्बती रेस्टोरेंट , कई सारे तिब्बती प्रार्थना गृह व सभी जगह तिब्बती लोगों ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 4

812 ईस्वी , पूर्व तरफ से आसमान सफेद हो रहा है। यशभद्र नालंदा बस्ती से बहुत ही दूर चला है। नालंदा महाविहार के आस-पास के गावों में रुकने का उसने पागलपन नहीं किया। ओदंतपुरी व विक्रमशिला महाविहार में भी जाकर कोई लाभ नहीं है। वहां पर भी उसे प्रवेश नहीं मिलेगा क्योंकि इन दो महाविहार के साथ नालंदा महाविहार का एक घनिष्ठ संबंध है इसीलिए अब यशभद्र की यात्रा उद्देश्यहीन है। कहीं रुकने की एक जगह खोजना ही अब उसके लिए जरूरी कार्य है। अपमान व क्रोध से उसका सिर गरम हो गया है। बाल्यावस्था से ही नालंदा महाविहार ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 5

812 ईस्वी, छोटे से प्रार्थना कक्ष के सामने 3 लोग खड़े हैं। प्रार्थना कक्ष के अंदर के भयानक दृश्य देखकर तीनों आतंक से जम गए हैं। तीन बौद्ध संन्यासी , सुबह के इस मनोरम किरण में भी उनके बलिष्ट शरीर में डर व आतंक का तरंग दौड़ रहा है । सामने ही एक लगभग सूखा हुआ शरीर पड़ा हुआ है। आँख आश्चर्य से भरा तथा मुँह खुला हुआ। मस्तक व पहनावे को देखकर समझा जा सकता है कि बौद्ध धर्म से जुड़ा हुआ है। मृत शरीर से कुछ दूरी पर एक संदूक है तथा उसका ढक्कन खुला हुआ है। ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 6

वर्तमान समय , लखनऊ इतने दिनों के ट्रिप के बाद केवल एक को छोड़ लगभग सभी मेरे घर आने मुझसे मिलकर खुश हैं। इस वक्त दोपहर का समय है मैं लंच करके अपने रूम में लेटा हुआ हूं। मैं सुबह आया हूं लेकिन वह अभी तक मुझसे मिलने नहीं आया। हालांकि सुबह मेन गेट खोलकर अंदर आते ही वह मुझ पर कूद पड़ा था। मेरे आने से वह बहुत ही खुश है यह मैं समझ चुका था लेकिन केवल उतना ही इसके बाद से उसका कोई अता-पता नहीं। बात कर रहा हूं रॉकेट की, वह मेरा एकमात्र पालतू डॉग ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 7

बाथरूम से लौटकर बिस्तर पर लेटते ही नींद नहीं आई। इधर-उधर करके ही कुछ समय बीत गया। कमरे के की ठंडी और कौवे की आवाज को मैं अपने मन से निकाल ही नहीं पा रहा था। एक हल्का घुटन आंखों को बंद होने नहीं दे रहा था। बिस्तर पर कुछ देर इधर-उधर करने के बाद अचानक से ऐसा लगा कि इस कमरे में मेरे अलावा भी दूसरा कोई उपस्थित है। उसके सांस की आवाज और पैरों की आवाज नहीं सुनाई दे रहा लेकिन यहां कोई तो है। 6th सेंस द्वारा उसे अच्छी तरह अनुभव किया जा सकता है। मैं ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 8

मैं लखनऊ शहर में जिस जगह रहता हूं, गोमती नदी वहां से ज्यादा दूर नहीं है। वहां तक चल ही पहुंच सकता हूं। सूर्य के पश्चिम में ढलने से पहले ही मैं निकल पड़ा। उस मूर्ति को एक अखबार में लपेटकर बैग में रख लिया है। उसे स्पर्श करने में भी अब मुझे डर लग रहा है। पहली बार इस मूर्ति को देखकर यह कितना सुंदर लगा था लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि नहीं इसमें सुंदरता नाम की कुछ भी नहीं है। वीभत्स,भयानक उसमें कोई सुंदरता नहीं है। मूर्ति को देखकर ही शरीर में डर दौड़ जाता है। ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 9

अगले दिन 4 बजे बस स्टैंड पर अवधूत से मिला। वह सही सलामत है यह देखकर मेरे मन को प्राप्त हुई। मूर्ति उसे हैंडोवर करके मैं बहुत ही चिंता में था। वहाँ से बाराबंकी के लिए बस पकड़ा। बस से बाराबंकी जाते हुए मैंने अवधूत से पूछा, " कल रात तुमने भी कुछ देखा? " अवधूत ने बोलना शुरू किया, " हां , मैंने सोचा था कि तुम्हें बताऊंगा। तुमने जो कुछ भी देखा था वह सब एकदम सही है। उस मूर्ति को जानबूझकर ही मैंने अपने कमरे में रखा था। कल रात को बहुत ही ठंड लगने के ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 10

पूरे कमरे में पिन ड्रॉप साइलेंस है। घड़ी के टिक - टिक की आवाज सुनाई दे रहा है। कमरे केवल कस्तूरी की महक के अलावा मानो सबकुछ ठहर गया है। सामने ही कृष्ण प्रसाद भट्टराई जी मूर्ति को हाथ में पकड़कर लगभग 5 मिनट से ज्यादा ध्यान मग्न हैं। लगभग 10 मिनट के बाद कृष्ण प्रसाद जी ने आँख खोला। उसके बाद हम दोनों की ओर देखकर बोले, " मूर्ति को हाथ में पकड़ते ही मैं पहचान गया था। वर्तमान में मैं अपने एक विशेष शक्ति का प्रयोग करके इसके अतीत के बारे में थोड़ा बहुत पता लगाने में ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - 11

वह रात अच्छे से बीता था। अवधूत के बारे में नहीं जानता लेकिन मुझे मां की कई प्रश्नों का करना पड़ा था। जैसे कि पिछले कुछ दिनों से मैं घर के बाहर इतना क्यों जा रहा हूं? इतनी रात घर क्यों लौटता हूं इत्यादि? अगला दिन बहुत ही चिंता में बीता, क्योंकि उसके घर सीधा जाए बिना अवधूत से कांटेक्ट करने का कोई उपाय नहीं है? वैसे इस वक्त वह अपने घर नहीं होगा, बाराबंकी कृष्ण प्रसाद भट्टराई जी को लेने गया होगा। शाम तक मैं अवधूत के एड्रेस पर पहुंच गया। कई लोगों से पूछने के बाद आखिर ...Read More

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मृत्यु मूर्ति - अंतिम भाग

कृष्ण प्रसाद जी और अवधूत दोनों की आंखें बंद है। उन्हें अब तक नहीं पता कि इस कमरे में सारे भयानक बदलाव हो रहे हैं। अचानक जब मेरी नजर ऊपर सीलिंग की ओर पड़ी तो वहाँ का दृश्य किसी को भी अंदर से हिला देगा। कमरे के उस तरफ से सीलिंग पर एक बच्चा उल्टा चलता हुआ मेरे ही तरफ आ रहा था। उसके शरीर का रंग हल्का हरा है। एक नहीं उसके तीन सिर हैं। लाकिनी! मेरे मुंह से ही तेज सिहरन की आवाज निकल गई। मेरे सीने के बाएं तरफ तेज दर्द होने लगा। वह भयानक छोटा ...Read More