23 अगस्त 2018 की सुबह 8:20 वाली मेट्रो नंबर 12427 नोएडा सिटी सेन्टर से द्वारका सेक्टर21 की और बीच में पड़ने वाले हर स्टेशन पर रुकते हुए, बड़ी तेजी से हवा को दो हिस्सों में बाटती हुई भागे जा रही थी। कहते हैं। दिल्ली जैसी जगह पर गर्मी के दिनों में, जिस व्यक्ति के पास सड़क पर चलने के लिए अपना परिवहन नहीं हैं। उसके लिए मेट्रो का सफर जन्नत के सफर की तरह हैं। और उसमें भी अगर सीट मिल जाए, तो ऐसा समझो जैसे स्वर्ग ले जाने के लिए, भगवान अपने दूत की जगह खुद तुम्हें लेने आए हो और अपने सोने के रथ पर बैठाकर तुम्हें अपने साथ ले जा रहे हो, पर उस दिन मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।
Full Novel
मेरी गर्लफ्रैंड - 1
चैप्टर - 123 अगस्त 2018 की सुबह 8:20 वाली मेट्रो नंबर 12427 नोएडा सिटी सेन्टर से द्वारका सेक्टर21 की बीच में पड़ने वाले हर स्टेशन पर रुकते हुए, बड़ी तेजी से हवा को दो हिस्सों में बाटती हुई भागे जा रही थी। कहते हैं। दिल्ली जैसी जगह पर गर्मी के दिनों में, जिस व्यक्ति के पास सड़क पर चलने के लिए अपना परिवहन नहीं हैं। उसके लिए मेट्रो का सफर जन्नत के सफर की तरह हैं। और उसमें भी अगर सीट मिल जाए, तो ऐसा समझो जैसे स्वर्ग ले जाने के लिए, भगवान अपने दूत की जगह खुद तुम्हें ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - 2
चैप्टर - 2दो साल पहले जुलाई का महीनापहली हाई सैलरी नौकरी का पहला दिन था। जिसे साप्ताहिक भाषा में और तारीक के विवरण के अनुसार उन्नीस जुलाई कहेंगे। यानी कि जोइनिंग का दिन था, वैसे मुझे नौकरी किसी बड़ी फर्म, कंपनी, या व्यावसायिक ऑफिस में नहीं मिली थी। बल्कि मेरी नौकरी एक सिल्वर एंड गोल्ड हॉलमार्किंग सेंटर पर लगी थी। जिसे एक तरह की दुकान ही कह सकते हैं। जो गोल्ड और सिल्वर को बाजार में बिकने के लिए कानूनी जामा पहनाती थी। पर मेरी किस्मत अच्छी थी। शायद इसलिए ही मुझे वहाँ काम ऑफिस का ही मिला था। ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - 3
चैप्टर- 3तुम्हारी नौकरी का पहला दिन हो और तुम उसे ही नाराज़ कर दो, जिसके साथ तुम्हें काम करना अंदाज़ा लगा सकते हो, तुम पर क्या गुज़रेगी। मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। मुझे जिसके साथ काम करना था वो वोही थी जिससे थोड़ी देर पहले, मैं बेमतलब की बातें कर चुका था। दुकान के अंदर गए हुए। बीस मिनट ही गुज़रे थे। कि दुकान का मालिक राजन हम दोनों का एक-दूसरे से परिचय कराने लगा, लेकिन अब उसे कौन बताता, हम दोनों एक-दूसरे का नाम भले ही ना जानते हो, पर एक-दूसरे से मिल चुके थे। जो ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - 4
चैप्टर - 4नौकरी का नौवाँ दिनइस परेशान करने वाली बातचीत के अगले दिन, मैं अपने तय समय(दुकान खुलने से घण्टा पहले) से दो घण्टे पहले ही वहाँ पहुँच गया था। उसके आँसुओं का कारण पूछने के लिए, लेकिन उस दिन वो साढ़े ग्यारह बजे आयी, मेरे पास नाराज़ होने की मेरे लिए वाजिब वजह थी लेकिन ऐसा करना, उस पर कोई असर नहीं डालता शायद, इसलिए मैंने उसके आने के आधा घण्टा बाद अपने गुस्से को एक तरफ रखते हुए उससे कहा था कि, “तुम्हारी ज़िन्दगी में, सब कुछ सही तो चल रहा हैं। समय पर पढ़ाई, वक़्त पर ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - 5
चेप्टर - 5अब पाँच अगस्त तक सबकुछ ठीक- ठाक चलता रहा था। हमने उन चीज़ों के बारे में बात बंद कर दिया था जो परेशानी का कारण बनती थी। हम केवल अपनी ही चर्चा किया करते थे। इस बीच दो अच्छी बातें हुईं थी। पहली उसने चार बजे की बजाए अब साढ़े पाँच बजे ऑफिस से जाना शुरू कर दिया था। और दूसरी हमने फोन पर एक-दूसरे के साथ बहुत ज्यादा वक़्त बिताना शुरू कर दिया था।अब आ गया था उस साल का फ़्रेंडशिप डे जो उस साल सात अगस्त को पड़ा था। यानी कि नौकरी का बीसवाँ दिन, ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - 6
मेरी गर्लफ्रैंड भाग- 6फ्रेंडशिप डे से अगला दिन यानी कि नौकरी का इक्कीसवाँ दिन; पूरी रात अंतिम के बारे सोचते हुए मैं अब उससे गुस्सा होकर भी गुस्सा नहीं था। मैं उससे बात करना चाहता था। उसे तकलीफ देने के लिए सॉरी बोलना चाहता था। लेकिन एक दिन पहले के अपने किए हुए, अदभुत कारनामे के वजह से मुझे झिझक लग रही थी। लेकिन पाउलो कोहेलो ने कहा हैं। ना कि “जब तुम किसी चीज़ को दिल से चाहो, तो सारी कायनात उसे तुमसे मिलाने की साज़िश में लग जाती हैं।“ ये बात उस दिन मुझे पहली बार सच ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - 7
नौकरी का तीसवाँ दिन यानी कि सैलरी, मिलने का दिन, मैं बड़ा खुश था उस दिन, कि आज मुझे ज़िंदगी की पहली सैलरी मिलेगी और मैंने सोच रखा था सैलरी से मैं, पहला काम अंतिम के लिए उपहार खरीदूँगा। इसलिए, मैं बातों-बातों में उस दिन उससे पूछना चाह रहा था कि उसे क्या पसंद हैं या फिर उसे क्या चाहिए जो उसे खुशी दे सकें। पर वो थी कि उस दिन किसी भी बात का जवाब नहीं दे रही थी। जब मैं उसकी इस चीज़ से परेशान हो गया, तो उससे जानबूझकर बोला, “क्या हुआ? क्यों परेशान हो? पति ...Read More
मेरी गर्लफ्रैंड - अन्तिम भाग
मैं सुन्नु द कुल्फी पर बैठा हुआ उसके बारे में सोच ही रहा था कि अचानक से मेरे उल्टे में उसकी वो आवाज़ पड़ी जिसे कभी सुनना मेरे लिए दिन का सबसे अच्छा काम था। “आँखों से आस-पास की लड़कियों का रेप कर रहा हैं। या किसी के बारे में सोच रहा हैं।"तुम आ गई। मैंने ध्यान नहीं दिया।" 'एम सॉरी'--हालात देखकर लग रहा हैं। बड़ी देर से इंतज़ार हो रहा हैं मेरा"हम्म्म्म्म….. कुर्सी खींचकर प्लेज़र दूँ या ऐसे ही बैठ जाओगी"--तू सिर्फ खाना आर्डर कर, कुर्सी मैं खुद खींच लूँगी"खाना में पुराने वाले राजमा चावल ही आर्डर करूँ ...Read More