हमारी जिंदगी में कोई न कोई व्यक्ति हमें ऐसा अवश्य मिलता ही है ,जिसको देखने से ही हमारे रोम-रोम में उत्साह और रोमांच भर जाता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल दी जो मेरे रूममेट और मित्र से भी ज्यादा मेरे गुरुदेव है । जिन्होंने मुझे उदासी से भरी ज़िंदगी में हँसना सिखाया। हालाँकि ऐसा एकमात्र मैं ही नहीं हूँ जो उनसे इतना प्रभावित हुआ हुँ, एक बार जो उनसे मिल ले फिर वो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। आदरणीय गुरुदेव दीनाराम जी धारवी। जिसे सब दीन जी के नाम से बुलाते है और जो काफी जगह दीना राम धारवी की जगह अपना नाम डी. आर. धारवी लिखते है।

Full Novel

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गुरुदेव - 1

गुरुदेव पार्ट -1 (एक परिचय)हमारी जिंदगी में कोई न कोई व्यक्ति हमें ऐसा अवश्य मिलता ही है ,जिसको देखने ही हमारे रोम-रोम में उत्साह और रोमांच भर जाता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल दी जो मेरे रूममेट और मित्र से भी ज्यादा मेरे गुरुदेव है । जिन्होंने मुझे उदासी से भरी ज़िंदगी में हँसना सिखाया। हालाँकि ऐसा एकमात्र मैं ही नहीं हूँ जो उनसे इतना प्रभावित हुआ हुँ, एक बार जो उनसे मिल ले फिर वो उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। आदरणीय गुरुदेव दीनाराम जी धारवी। जिसे ...Read More

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गुरुदेव - 2 - (होस्टल लाइफ)

आमतौर पर जब हम पहली बार घर से दूर रहने जाते है तो एक बार वहाँ मन लगने में समय लगता है। मुझ जैसे अंतर्मुखी व्यक्ति के लिए तो और भी ज्यादा मुश्किल होती है। लेकिन नोरे(होस्टल) में मेरा मन कब लग गया इसका पता ही नहीं चला। कॉलेज शुरू होने के बाद यह और आसान हो गया। प्रातः जल्दी ही नोरे में से गुरुदेव वही निकर पहने और ऊपर शाखा की ही गणवेश पहने, हाथ में दंड लिए और नोरे के कुछ साथियों के साथ शाखा जाने के लिए तैयार हो जाते। कुछ ही दिनों में मैं भी ...Read More

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गुरुदेव - 3 - (मन की दुविधा)

जब मेरी बी. एस. टी. सी. पूर्ण हो गयी। तब मैंने सोचा किसी ऐसे शांत जगह पर जाने की; रहकर मैं अपना अध्ययन पूर्ण निष्ठा के साथ कर सकूँ क्योंकि असली परीक्षा तो अब आने वाली थी। उस समय गुरुदेव चाँदन गाँव के एक निजी विद्यालय में संस्थाप्रधान के पद पर कार्यरत थे। नोरे के समान ही उस विद्यालय के बच्चें और संस्थान के संस्थापक दुर्जन सिंह जी भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके 'जिगरी' बन गए थे। 'जिगरी' वो उनको कहते जो उनके खास हो जाते थे ।जिगर के पास वाले। और ऐसे जिगरी दोस्तों की संख्या दिन प्रतिदिन ...Read More

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गुरुदेव - 4 - (लालकोठी)

चाँदन से आने के पश्चात मैं बाड़मेर में मित्र नेणु जी कीता के पास चला गया। करीब दो वहाँ अध्ययन करने के पश्चात सोचा कि एक बार कोचिंग करनी भी जरूरी है। आज के इस प्रतियोगिता के समय में कोचिंग एक अच्छा सहारा होता है। हालांकि उसके बिना भी सफल हो सकते है लेकिन एक भय मन में रह ही जाता है कि कोचिंग के बिना शायद बेड़ा पार न हो सकेगा। लेकिन अधिकतर नोरे के मित्र तो जयपुर जा चुके थे और अपने -अपने रूम में सेट हो चुके थे। मैं किसके साथ जाऊं और किनके साथ रहूंगा। ...Read More

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गुरुदेव - 5 - (मिशन)

मानसरोवर का किरण पथ जहाँ मेरी ज़िंदगी में एक नई किरण ने प्रवेश किया और मेरी जिंदगी और मेरी को पूरी तरह बदल दिया और उस ज्ञान रूपी किरण के सूर्य थे गुरुदेव दीनाराम जी। जयपुर में भूराराम जी के रूम में रुकने के पश्चात मैं और गुरुदेव मानसरोवर के किरण पथ पर उनके एक परिचित के मकान में गए और वहाँ रहना शुरू किया जहाँ हमारे से पहले ही जैसलमेर का ही एक विद्यार्थी रोहितांश सिंह अकेला ही रहता था और वो भी गुरुदेव के प्रभाव से बच नहीं सके और कुछ ही दिन में वो भी" खास" ...Read More

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गुरुदेव - 6 - (संघर्ष)

जयपुर की सिटी बस और उसमें कोई अनजान व्यक्ति किसी से फ़ोन नंबर मांगे और कहे कि "मुझे आप अच्छे लगे। आपसे और बाते करनी है कृपया मुझे अपने फ़ोन नंबर देना।" यह विलक्षण प्रतिभा गुरुदेव में कैसी थी इसका वर्णन करना मेरी लेखनी से परे है। बस में और साथ ही बाजार हो या कोई भी अन्य जगह मेरी और गुरुदेव की अधिकतर बातें तुकांत में ही होती थी। मेरे काव्य में अगर थोड़ा बहुत रस है तो उसमें गुरुदेव के सानिध्य का ही प्रभाव है। एक बार हम ऐसे ही बस में तुकांत में बातें कर रहे थे और ...Read More

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गुरुदेव - 7 - (इश्क)

सात फरवरी दो हजार सोलह को हमारा रीट का एग्जाम था और दिसम्बर दो हजार पंद्रह के अंत में कोचिंग पूरी हो गयी। उसके पश्चात एग्जाम तक हम रूम में ही रहे और अपना अध्ययन किया।संघर्ष के दिनों में यह महीना सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। दिनचर्या में पढ़ाई ऐसे बस गयी थी कि अब सपने में भी जीके और कोचिंग क्लास ही आती। प्रातः तो आराम से ही उठते थे । गुरुदेव से मैं थोड़ा सा जल्दी उठ जाता था क्योंकि गुरुदेव तो रात के तीन तक बजा देते थे और मेरी आँखें एक बजाते- बजाते बेहोशी में चली जाती ...Read More

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गुरुदेव - 8 - (किनारा)

सात फरवरी को हमारा रीट का एग्जाम था। जयपुर में निवास कर रहे हम अधिकतर मित्रों का एग्जाम सेंटर आया था। अब समय था हमारी कर्मभूमि से विदा लेने का। वो शाम का समय हमेशा याद रहेगा जब रोहितांश सिंह मुझे और गुरुदेव को गांधीनगर रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये थे। विदा लेते समय उनकी आँखों में जो प्रेम और अपनापन था वो केवल चार महीनों में उत्पन्न हुआ था लेकिन यह कहना मुश्किल था कि हम केवल चार महीनों से ही एक-दूसरे को जानते है। गांधीनगर रेलवे स्टेशन पर हमारे अन्य साथी पहले से मौजूद थे और कुछ हमारे ...Read More

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गुरुदेव - 9 - (माली )

गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ।।साधु असाधु सदन सुक सारीं।सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच (नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता-मैना राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता - मैना गिन-गिनकर गालियाँ देते हैं। संत तुलसीदास द्वारा बताया गया संगति का यह महत्व आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उस समय था। गुरुदेव की सुसंगति और सानिध्य में रहकर मेरे जीवन का तम मिट गया और जीवन प्रकाशमय ...Read More