आज मनमोहन को मन मारकर कार्यालय आना पड़ा था। उसके बॉस का सख़्त आदेश न होता तो इस समय वह आने वाली मीटिंग की फाइल तैयार करने की बजाय अपनी पत्नी रेनु के पास अस्पताल में होता। आज सुबह जब वह उठा और रेनु को स्नानादि से निवृत्त हुआ देखा, तो उसने पूछा था - ‘आज इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गयी हो?’ तो उसने उत्तर दिया था - ‘आप भी जल्दी से तैयार हो लो। इतने में मैं नाश्ता और दोपहर का खाना बना लेती हूँ। पिछले एक पहर से रह-रहकर ‘दर्द’ उठ रहे हैं। ऑफिस जाने से पहले डॉक्टर को दिखा आते हैं।’ और वह तुरत-फुरत तैयार होकर उसे लेकर डॉ. लता के नर्सिंग होम के लिये घर से निकल लिया था। जब डॉ. लता ने चेकअप के पश्चात् रेनु को एडमिट करने के लिये कहा तो मनमोहन ने अपनी बहन मंजरी को फ़ोन करके सारी स्थिति से अवगत कराया और उसे शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचने के लिये कहा।
Full Novel
प्यार के इन्द्रधुनष - 1
अपनी बात पूर्णावतार श्री कृष्ण की क्रीड़ा-स्थली - वृन्दावन जाने का प्रथम अवसर प्राप्त हुआ था दिसम्बर 1968 के अवकाश के दौरान। हर जगह ‘राधे-राधे’ का जयघोष सुनकर मन रोमांचित हो उठा था। श्री बाँके बिहारी जी, श्री राधावल्लभ मन्दिरों व निधिवन, सेवाकुँज देखते तथा वहाँ की विशेषताएँ सुनते हुए राधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम को गहराई से समझने के लिये मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई थी। कालान्तर में श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने, पढ़ने तथा सत्संग के फलस्वरूप राधारानी और श्री कृष्ण के अनूठे, अलौकिक एवं दिव्य प्रेम को जाना-समझा। भौतिक रूप में राधारानी से अलग होने तथा सांसारिक ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 2
- 2 - दृष्टि अन्तर्मुखी हुई तो कॉलेज के प्रारम्भिक दिनों की घटना सचेत हो उठी …. तीसरा पीरियड रहा था, प्रोफ़ेसर शर्मा पढ़ा रहे थे। विद्यार्थी तल्लीन होकर सुन रहे थे। एकाएक दरवाज़े पर दस्तक हुई। प्रोफ़ेसर शर्मा बोलते-बोलते चुप होकर आगन्तुक की ओर सवालिया नज़रों से देखने लगे। सभी विद्यार्थियों का ध्यान भी प्रवेश-द्वार की ओर हो गया। आगन्तुक ख़ाकी वर्दी पहने डाकिया था। वह बोला - ‘सर, माफ़ कीजिएगा। एक रजिस्टर्ड लेटर देना था।’ प्रोफ़ेसर शर्मा - ‘किसका है?’ ‘सर, मनमोहन नाम के लड़के का है।’ अपना नाम सुनते ही मनमोहन अपनी सीट पर खड़ा हो ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 3
- 3 - पीएमटी के द्वितीय प्रयास में वृंदा को आशातीत सफलता मिली। उसका एडमिशन सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज, में हो गया। वृंदा ने यह शुभ समाचार मनमोहन को जिस पत्र के माध्यम से दिया, उसमें उसने जयपुर जाने से पहले मिलने की इच्छा व्यक्त की। मनमोहन ने जवाबी पत्र में उसे हार्दिक बधाई देते हुए लिखा कि आने वाले रविवार को वह ‘किसान एक्सप्रेस’ से भिवानी पहुँचेगा। रविवार को स्टेशन जाने के लिए घर से निकलकर अभी कुछ दूर ही गया था कि उसे याद आया कि वृंदा द्वारा दी गयी घड़ी तो उसने पहनी ही नहीं। तेज ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 4
- 4 - दो साल में मनमोहन ग्रेजुएट हो गया। इस अवधि में दोनों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान होता रहा, किन्तु वे एक-दूसरे से मिल नहीं पाए। कारण, वृंदा के मेडिकल में एडमिशन के कुछ समय पश्चात् ही उसके माता-पिता वापस गाँव चले गए। अत: छुट्टियों में उसे गाँव ही जाना होता था। हाँ, उसने एक-आध बार अपने पत्र में मनमोहन को जयपुर आने के लिए हल्का-सा आग्रह किया था, विशेष इसलिए नहीं कि वह उसकी विवशता समझती थी। लेकिन बी.ए. का परिणाम आने के बाद जब मनमोहन ने दो दिन के लिए जयपुर घूमने की बात अपनी ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 5
- 5 - मनमोहन नौकरी पाने में सफल रहा। नौकरी लगने के पश्चात् उसके विवाह के लिए रिश्ते आने वह टालमटोल करता रहा। एक रविवार के दिन विमल मनमोहन से मिलने उसके घर आया हुआ था। मंजरी ने मौक़ा देखकर बात चलाई - ‘विमल, अब तुम दोनों विवाह कर लो। बहुओं के आने से घरों में रौनक़ आ जाएगी।’ ‘दीदी, मैं तो तैयार हूँ। किसी अच्छी लड़की का रिश्ता आने की बाट जोह रहा हूँ। लेकिन, मनमोहन के लिए तो आपको अभी डेढ़-दो साल इंतज़ार करना पड़ेगा।’ मनमोहन ने विमल की तरफ़ आँखें तरेरीं, किन्तु विमल अपनी रौ में ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 6
- 6 - एम.बी.बी.एस. की फ़ाइनल परीक्षा देकर जब वृंदा घर आई तो उसकी माँ और पापा ने उसके की बात चलाई। पहले तो वृंदा ने कहा कि अभी उसे पी.जी. करना है तो उसके पापा चौधरी हरलाल ने कहा - ‘वृंदा बेटा, पी.जी. तो तू विवाह के बाद भी कर सकती है।’ ‘पापा, एक बार पी.जी. में एडमिशन मिल जाए, उसके बाद विवाह की सोचूँगी।’ हरलाल भी समझता था कि पी.जी. के एडमिशन से पहले विवाह के बारे में सोचना ठीक नहीं, अत: उसने विवाह का प्रसंग पुनः नहीं उठाया। एक दिन जब हरलाल कहीं गया हुआ था ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 7
- 7 - वह रात वृंदा ने अन्तर्द्वन्द्व में ही गुज़ारी। वह सोचने लगी - मुझमें इतनी हिम्मत कैसे गई कि मैं पापा के समक्ष अपने मन की बात इतनी स्पष्टता और दृढ़ता से कह गई। सम्भवत: यह मेरे प्रेम की ही शक्ति थी, जिसकी वजह से मैं एक बार भी डगमगाई नहीं, घबराई नहीं। .... एक तरफ़ माँ-बाप का लाड़-प्यार था तो दूसरी तरफ़ मनमोहन का नि:स्वार्थ व पवित्र प्रेम। रात करवटें बदलते गुजरी थी, अत: ताज़ा हवा में साँस लेने के इरादे से वृंदा मुँह-अँधेरे आँगन में निकली। भोर का तारा अभी भी आकाश में गुजरती रात ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 8
- 8 - सुबह से शाम हो गई, किन्तु रेनु की स्थिति जस-की-तस रही। मंजरी और मनमोहन चिंतित तो लेकिन वे सिवा प्रतीक्षा के कुछ नहीं कर सकते थे। हाँ, डॉ. वर्मा के कारण वे आश्वस्त भी थे। जैसे ही शाम का राउंड लेने के बाद डॉ. वर्मा अपने केबिन में पहुँची, उसने अटेंडेंट को मनमोहन को बुलाने के लिए भेजा। मनमोहन के आने पर उसने उसे समझाया - ‘देखो मनु, रेनु को लेकर तुम्हारी एंग्जाइटी को मैं समझ सकती हूँ। पेन्स बीच-बीच में बिल्कुल मंद पड़ जाते हैं। पेन्स इंडूस करने वाले इंजेक्शन का भी कोई असर नहीं ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 9
- 9 - डिलीवरी के दूसरे दिन रेनु की मम्मी पुष्पा को उसका भाई अस्पताल छोड़ गया था। कल को अस्पताल से छुट्टी मिली थी। घर आने के बाद जब मनमोहन कूलर चलाने लगा तो पुष्पा ने कहा - ‘जमाई बाबू, कूलर मत चलाओ। अगर चलाना ही है तो केवल पंखा ही चलाना, पम्प मत चलाना।’ ‘मम्मी जी, बिना पानी के तो हवा गर्म होगी। दूसरे, अस्पताल में तो चार दिन लगातार कूलर चलता रहा, आपने कोई एतराज़ नहीं किया। फिर घर में क्यों कूलर नहीं चला सकते?’ मनमोहन की बात तर्कपूर्ण थी, किन्तु पुष्पा ने परम्परागत सोच के ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 10
- 10 - हमारे शास्त्रों में मानव-जीवन के कल्याण एवं उत्थान के लिये गर्भधारण से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवन की अवस्थाओं में विभिन्न संस्कारों के सम्पादन का उल्लेख मिलता है। इन्हीं संस्कारों में से एक है - छठी पूजा (षष्ठी पूजा)। यह बच्चे के जन्म के छठवें दिन किया जाता है। इस दिन ‘षष्ठी देवी’ जोकि शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं, की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। मूल प्रकृति के छठवें अंश से प्रकट होने के कारण इन्हें ‘षष्ठी देवी’ कहा जाता है। ब्रह्मा जी की मानसपुत्री तथा कार्तिकेय की प्राणप्रिया षष्ठी देवी का स्वाभाविक गुणधर्म है - सन्तान को ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 11
- 11 - डॉ. वर्मा उस रात जब सोने लगी तो मनमोहन द्वारा विमल के बारे की गई टिप्पणी विचार करने लगी। मनमोहन ने कहा था - एक लम्बी और दुखद दास्तान। अवश्य ही उसके वैवाहिक जीवन में कोई विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हुई होगी वरना तो अपने मित्र की पहली सन्तान के पहले उत्सव पर न आने का कोई कारण नहीं बनता। वैवाहिक सम्बन्धों में ऐसी विस्फोटक स्थिति क्या हो सकती है, बहुत सोचने के बाद भी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाई। फिर मनमोहन के साथ अपने सम्बन्धों को लेकर सोचने लगी। मंजरी दीदी से तो कोई ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 12
- 12 - बारह बजे जब मनमोहन तैयार होने लगा तो रेनु ने टोका - ‘इतनी जल्दी जा रहे डॉ. दीदी ने तो लंच के लिये बुलाया है। वे फ़्री हो गई होंगी क्या?’ ‘अरे भई, आज वृंदा का ऑफ डे है, तभी बुलाया है। लंच तो बहाना है, ज़रूर कोई विशेष बात करनी होगी! .... फिर भी मैं फ़ोन करके उसे सूचित कर देता हूँ कि मैं आ रहा हूँ।’ जब मनमोहन डॉ. वर्मा के क्वार्टर पर पहुँचा तो डॉ. वर्मा का पहला प्रश्न था - ‘मनु, तुम घर से तो आधा घंटा पहले निकल लिए थे। रास्ते ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 13
- 13 - दिन का चौथा पहर समाप्ति की कगार पर था। अपने-अपने घोंसलों में लौटते हुए परिंदों की की डार आकाश में दिखाई दे रही थी। शाम ढलने लगी थी जब मनमोहन घर पहुँचा। रेनु ने उससे पूछा - ‘आपके लिए चाय बनाऊँ?’ ‘तूने पी ली या पीनी है?’ ‘मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी।’ ‘फिर यूँ क्यों पूछा कि आपके लिए चाय बनाऊँ।’ ‘आप भी ना शब्दों की बाल की खाल निकालने लगते हो! अब जल्दी से ‘हाँ’ या ‘ना’ कहो।’ चाहे मनमोहन डॉ. वर्मा के यहाँ से चाय पीकर आया था, फिर भी रेनु की ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 14
- 14 - आज मुद्दतों बाद डॉ. वर्मा ने मनमोहन के साथ इतना लम्बा समय व्यतीत किया था। चाहे समय विमल की कहानी कहने-सुनने में ही व्यतीत हुआ, फिर भी कहीं भीतर मन में उसे अकेलेपन की भरपाई का अहसास भी हुआ। रात्रिभोज के उपरान्त बेड पर लेटी हुई डॉ. वर्मा विचारमग्न थी। सोच रही थी अनामिका के बारे में। क्या असामाजिक तत्त्वों की ब्लैकमेलिंग के कारण उसका जीवन चौपट हुआ, उसका ही नहीं, विमल का भी? अथवा अपनी नादानी का शिकार हुई होगी वह? मनु की बातों से तो लगता है जैसे कि अनामिका की मम्मी भी षड्यन्त्र ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 15
- 15 - दो-तीन दिन डॉ. वर्मा व्यस्त रही। चाहते हुए भी मनमोहन के घर नहीं जा पाई। फिर दिन ओ.पी.डी. निपटाकर दोपहर का खाना खा रही थी कि टेबल पर पास में रखे मोबाइल की रिंगटोन बजने लगी। कॉल सनशाइन टीवी चैनल से थी। ऑन करते ही दूसरी ओर से आवाज़ आई - ‘आप डॉ. वृंदा वर्मा बोल रही हैं?’ ‘जी हाँ, मैं डॉ. वृंदा वर्मा ही बोल रही हूँ। कहिए....?’ ‘डॉ. वर्मा, मैं सनशाइन टीवी से बोल रहा हूँ। कांग्रेचुलेशन्स, आप को ‘कौन बनेगा अरबपति’ के लिये चुन लिया गया है। डिटेल्स आपको ईमेल पर भेज रहे ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 16
- 16 - डॉ. वर्मा मेडिकल एसोसिएशन की कांफ्रेंस में प्रतिभागी बनने के समय हवाई यात्रा कर चुकी थी, मनमोहन प्रथम बार हवाई यात्रा करने जा रहा था। नियत तिथि को दोनों फ़्लाइट के नियमानुसार शेड्यूल टाइम से दो घंटे पहले दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुँच गए। सामान सँभलवाने, बोर्डिंग पास लेने तथा सिक्योरिटी चेकिंग के बाद डॉ. वर्मा ने पूछा - ‘मनु, तुम्हारे पास डेबिट कार्ड है?’ ‘हाँ, है। क्यों?’ ‘गुड। आओ, सामने ‘प्रीमियम लाउंज’ में चलते हैं।’ मनमोहन का प्रथम अनुभव होने के कारण उसके लिए सब कुछ नया-नया सा था। डॉ. वर्मा से एक-आध कदम पीछे चलते ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 17
- 17 - स्टुडियो से जब वे बाहर आए तो डॉ. वर्मा उदास थी और मनमोहन उसे ढाढ़स बँधा था। सप्ताह का पहला दिन था। कार्यक्रम आरम्भ होते ही अभिजीत लल्लन, फ़िल्मी दुनिया के सुप्रसिद्ध अभिनेता, ने स्टेज पर पदार्पण करते हुए कहा - ‘मैं, अभिजीत लल्लन ‘कौन बनेगा अरबपति’ में आप सभी को नमस्कार, आदाब, सतश्री अकाल करता हूँ। आप सभी का स्वागत, अभिनन्दन करता हूँ। यह एक ऐसा खेल है जिसमें प्रतिभागी अपनी एकाग्रता, बुद्धिमत्ता, प्रतिभा के बल पर ढेर सारी राशि जीत सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं। आज का खेल प्रारम्भ ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 18
-18- अगले दिन नाश्ता करने के पश्चात् उन्होंने टैक्सी ली और पहुँच गये ‘गेट वे ऑफ इंडिया’। डॉ. वर्मा ‘कौन बनेगा अरबपति’ में चयन होने के बाद सामान्य ज्ञान की काफ़ी जानकारी एकत्रित कर ली थी। उसके आधार पर उसने मनमोहन को बताया कि दिसम्बर 1911 में इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज पंचम व महारानी मेरी की प्रथम भारत यात्रा के उपलक्ष्य में इस इमारत को बनाने की योजना बनाई गई थी। यद्यपि उनके आगमन के पश्चात् इसका शिलान्यास मार्च 1913 में किया गया, तथापि उनके आगमन के समय कार्डबोर्ड का मॉडल ही उनके सम्मान में प्रदर्शित किया गया। इसका ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 19
- 19 - रेनु को जब मनमोहन ने फ़ोन पर बताया था कि डॉ. वर्मा पचास लाख रुपए जीत है और उसने पच्चीस लाख गुड्डू के नाम जमा करवाने की सोची है, तब एक बार तो उसे बड़ी प्रसन्नता हुई थी, किन्तु उस रात बिस्तर पर लेटे हुए उसके मन में शंका का कीड़ा कुलबुलाने लगा। मानव-मन की प्रवृत्ति ही ऐसी है कि नकारात्मक विचार बहुत शीघ्र पनपते हैं। शंका करने का कोई आधार नहीं होता, व्यक्ति केवल कल्पना करता है कि ऐसा हुआ होगा! और यही उसकी सोच को विकृत करने लगता है। मन में एक बार शंका ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 20
- 20 - दुनिया के प्रत्येक धर्म में व्रत-त्योहारों का महत्त्व है। व्रतों का प्रावधान जहाँ वैयक्तिक स्वास्थ्य से है, वहीं त्योहार-उत्सव सामाजिक व्यवस्था में हर्षोल्लास का संचार बनाए रखने के लिए मनाए जाते हैं; किसी महान् ऐतिहासिक घटना अथवा समाज के महानायक के योगदान की स्मृति में मनाए जाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा लेकर सत्कार्यों की ओर उन्मुख हों। व्रत रखने के पीछे वैज्ञानिक सोच है। व्रत रखने से शरीर में से विषैले पदार्थों का उत्सर्जन होता है और शरीर स्वस्थ रहता है। हमारे ऋषि-मुनियों तथा धर्माचार्यों ने साधारणत: अशिक्षित जनता को इस ओर प्रवृत्त ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 21
- 21 - मंजरी के पति का देहान्त हुए महीना भर हो गया था। इस अवधि में मृत्योपरान्त मिलने सरकारी अनुदान के लिए मनमोहन ने सभी आवश्यक काग़ज़-पत्र तैयार करके जीजा के ऑफिस में जमा करवा दिए थे। घर में ग़म का माहौल धीरे-धीरे कम होने लगा था। श्यामल ने एन.डी.ए. के लिए अप्लाई किया हुआ था, जिसकी लिखित परीक्षा नवम्बर में होने वाली थी, इसलिए उसने “कौन बनेगा अरबपति” देखना आरम्भ कर दिया था। एक दिन कार्यक्रम आरम्भ होते ही जैसे ही उसकी नज़र प्रतिभागियों की ओर गई तो उसे डॉ. वर्मा दिखाई दी। उसने वहीं से मंजरी ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 22
- 22 - आज प्रातः चिड़ियों की हृदय-विमोहक चहचहाहट सुनकर जैसे ही डॉ. वर्मा की आँख खुली, वह बेड ही आलथी-पालथी मारकर बैठ गई और सोचने लगी - आज स्पन्दन एक वर्ष की हो गई है। चाहे रेनु की कोख से उसने जन्म लिया है और वे ही उसे पाल-पोस रहे हैं, फिर भी मुझे एक माँ के सुख की अनुभूति होती है जब-जब वह मेरी ओर आँखें फैलाकर देखती है या मेरी छाती से लगी होती है। रोती हुई स्पन्दन मेरी छाती से लगकर तुरन्त चुप हो जाती है। ज़रूरी तो नहीं कि कोख से जायी सन्तान के ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 23
- 23 - मनमोहन ने ऑफिस से छुट्टियाँ स्वीकृत होने से पहले ही दिल्ली में बाराखम्बा रोड स्थित आई.ए.एस. कोचिंग देने वाली एक प्रतिष्ठित अकादमी में ‘मेन एग्ज़ाम’ के लिए तीन महीने के कोर्स के लिये रजिस्ट्रेशन करवा लिया था, क्योंकि उसके बॉस को जब उसकी मंशा का पता चला था तो न केवल उसने शुभकामनाएँ दीं, बल्कि आर्थिक सहायता की पेशकश भी की। मनमोहन ने आर्थिक सहायता की पेशकश के लिए बॉस को धन्यवाद दिया, किन्तु तत्काल कोई सहायता स्वीकार नहीं की। मनमोहन के दिल्ली जाने से एक दिन पूर्व शाम के समय डॉ. वर्मा उसके घर आई। ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 24
- 24 - सुबह-शाम की ठंड होने लगी थी। रात को पंखा भी आधी रात के बाद बन्द करना था या हल्के-से कंबल की ज़रूरत महसूस होती थी। ऐसे ही एक दिन सुबह-सुबह रेनु के पास डॉ. वर्मा का फ़ोन आया। रेनु ने अभी बिस्तर का त्याग नहीं किया था, क्योंकि स्पन्दन जाग गई थी। उसने ‘पापा, पापा’ की रट लगा रखी थी और रेनु उसे शान्त कराने के प्रयास में जुटी थी। रेनु ने मोबाइल ऑन तो कर लिया था, किन्तु अभी उत्तर नहीं दे पाई थी कि डॉ. वर्मा ने पूछा - ‘रेनु, स्पन्दन क्यों रो रही ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 25
- 25 - डॉ. वर्मा का नियमित अलार्म - पंछियों की चहचहाहट - तो यहाँ सम्भव नहीं था, किन्तु ने अलार्म की क्षतिपूर्ति कर दी। पाँच बजने ही वाले थे कि स्पन्दन की रूँ-रूँ की आवाज़ से डॉ. वर्मा की आँख खुल गई। उसने स्पन्दन का डायपर बदला और उसके लिए दूध की बोतल तैयार की। दूध पीने के बाद स्पन्दन तो फिर से सो गई और डॉ. वर्मा फ्रेश होकर योग-प्राणायाम करने लगी। प्राणायाम करने के पश्चात् वह सोचने लगी कि मनु को फ़ोन करूँ या नहीं! पता नहीं, वे अभी उठे भी होंगे या नहीं! वह अभी ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 26
- 26 - दिल्ली में मनमोहन ने रेनु को बता दिया था कि अब तो मैं परीक्षा की समाप्ति ही आऊँगा, बीच में आना सम्भव नहीं होगा। मौसम बदलने लगा था। सुबह-शाम की ठंड होने लगी थी। एक दिन शाम को ड्यूटी से आने के पश्चात् डॉ. वर्मा ने फ़ोन करके रेनु को कहा - ‘ठंड होने लगी है, स्पन्दन को सुबह-शाम गर्म कपड़े ज़रूर पहनाये करो, रेनु।’ ‘दीदी, मैंने तो हफ़्ता पहले से ही एहतियात बरतनी शुरू कर दी है,। .... आपसे मिलना था, आप कब फ़्री होंगी? ‘मैं तो फ़्री हूँ, चाहे अब आ जाओ’, कहने के ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 27
- 27 - प्रसूति विभाग में एक नर्स थी मिसेज़ अनीता थॉमस। काम के प्रति पूर्णतः समर्पित। डॉ. वर्मा रही थी कि मिसेज़ थॉमस पिछले कुछ दिनों से खोई-खोई रहती है। एक दिन शाम की ड्यूटी देने के पश्चात् घर जाने से पूर्व अपने केबिन में फ़ुर्सत में बैठी डॉ. वर्मा ने मिसेज़ थॉमस को बुलाने के लिए अटेंडेंट को कहा। मिसेज़ थॉमस ने आकर ‘गुड इवनिंग डॉक्टर साहब’ कहा और पूछा - ‘आपने मुझे याद किया?’ ‘हाँ, मिसेज़ थॉमस। मैं कई दिनों से देख रही हूँ कि तुम स्वाभाविक व्यवहार नहीं कर रही हो। मैं जान सकती हूँ ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 28
- 28- तीन-चार दिन बाद अनिता डॉ. वर्मा से बातचीत करने के लिए उसके केबिन में आई। नमस्ते के के उपरान्त अनिता ने शुरुआत करते हुए कहा - ‘डॉ. साहब, मैंने आपकी सलाह पर शान्त मन से विचार किया है। मेरी पहली शंका तो यह है कि क्या आपके मित्र के मित्र मुझ ईसाई धर्म की अनुयायी के साथ विवाह के लिये सहमत होंगे? दूसरे, क्या वह एक तलाकशुदा स्त्री को स्वीकार कर पाएँगे, क्योंकि प्राय: तलाकशुदा आदमी भी दूसरी पत्नी के रूप में कुँवारी लड़की की चाह रखता है?’ ‘अनिता, तुम्हारी दोनों शंकाएँ निर्मूल नहीं हैं। मैंने अपने ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 29
- 29- अनीता को देखते ही विमल के हृदय की धड़कन तेज हो गई थी, लेकिन उसने अपनी मनोदशा आभास डॉ. वर्मा या अनिता को नहीं लगने दिया। अस्पताल से लौटने के बाद से अनिता की छवि उसे आँखों के समक्ष डोलती-फिरती प्रतीत हो रही थी। उसको लग रहा था, यह समय बीतने में क्यों नहीं आ रहा। आख़िर रविवार की सुबह हुई। जब वह सैर को निकला तो अभी अँधेरा ही था। आकाश में बादल तो नहीं थे, किन्तु धुँध की वजह से दिखाई बहुत दूर तक नहीं देता था। शायद आम दिनों की अपेक्षा वह घर से ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 30
- 30 - रात को अनिता ने सोचा था कि सुबह अस्पताल में डॉ. वर्मा को अपने निर्णय से कराऊँगी, किन्तु उसे प्रतीक्षा करनी भारी लग रही थी। इसलिए उसने नित्यकर्म से निवृत्त होते ही फ़ोन पर डॉ. वर्मा को विमल से विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। यह सुनते ही डॉ. वर्मा ने कहा - ‘अनिता, कांग्रेचूलेशन्स एण्ड गुड लक्क। मैं अभी विमल को फ़ोन करती हूँ। बाक़ी जैसा उसके पेरेंट्स चाहेंगे, उसके अनुसार आगे का प्रोग्राम बना लेंगे।’ अनिता से बात समाप्त करते ही डॉ. वर्मा ने विमल को फ़ोन मिलाया और उसे बधाई देते हुए ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 31
- 31 - दीवाली का त्योहार त्रेता युग से मनाया जा रहा है। चौदह वर्षों के वनवास के अंतिम में आसुरी शक्तियों के महानायक रावण का वध करने के पश्चात् भगवान् श्री रामचन्द्र, माता जानकी व शेषनाग के अवतार लक्ष्मण के अयोध्या पहुँचने पर समस्त प्रजा ने उनके स्वागत में दीपोत्सव मनाकर अपना हर्ष प्रकट किया था। तब से दीवाली ख़ुशियों के उत्सव के रूप में मनाने की परम्परा अनवरत चली आ रही है। इकलौती बेटी का आग्रह मानकर चौधरी हरलाल पत्नी सहित दीवाली से एक दिन पूर्व ही डॉ. वर्मा के पास आ गए थे। डॉ. वर्मा ने ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 32
- 32 - आरम्भिक गर्भावस्था के कारण रेनु की तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती थी। दूसरे ठंड पड़ने लगी सुबह-शाम की तो अच्छी-खासी ठंड होने लगी थी। रेनु स्पन्दन का ख़्याल तो पूरा रखती थी, फिर भी कई बार जब वह आराम कर रही होती तो स्पन्दन रज़ाई में से निकलकर नंगे पाँव ठंडे फ़र्श पर खेलने लग जाती। इस प्रकार वह ठंड की पकड़ में आ गई। मनमोहन ने डॉ. वर्मा को बताया तो उसने कहा - ‘मनु, तुम्हें स्पन्दन को स्कूटर पर लेकर आने की आवश्यकता नहीं। मैं लंच के समय देख आऊँगी। लगे हाथ रेणु की ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 33
- 33 - क्रिसमस की पूर्व-रात्रि को अनिता ने बड़े संकोच से विमल से पूछा - ‘कल क्रिसमस है। चर्च चलेंगे?’ ‘मुझे चर्च जाने में कोई एतराज़ नहीं अनिता। तुम्हारा मन है तो ज़रूर चले चलेंगे, लेकिन चलेंगे दुकान से आने के बाद।’ ‘हाँ, ठीक है। रात को अच्छी रौनक़ भी होती है। … मैं सोचती हूँ कि डॉ. दीदी और मनमोहन भाई साहब को भी पूछ लें। यदि वे साथ होंगे तो बहुत अच्छा लगेगा।’ ‘फिर एक काम करते हैं, कल तुम इन लोगों को डिनर के लिए इन्वाइट कर लो। कहीं बाहर इकट्ठे डिनर करने के बाद ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 34
- 34 - चढ़ते सूरज को सलाम। मनमोहन ऑफिस में अपनी सीट पर बैठा एक फ़ाइल पर नोटिंग लिखने व्यस्त था कि विशाल जो कम्प्यूटर डेटा ऑपरेटर है, ने आकर कहा - ‘मनमोहन, तुमने आई.ए.एस. का एग्ज़ाम दिया था। अभी मैं नेट पर सर्च कर रहा था तो पता लगा कि ‘रिटन’ में पास होने वालों के रोल नम्बर यू.पी.एस.सी. ने अपलोड किए हैं। तुम्हारा रोल नम्बर क्या है?’ मनमोहन यह सुनकर नर्वस हो ग्यारह, पता नहीं कैसा रिज़ल्ट होगा! रोल नम्बर बताने की बजाय वह विशाल के साथ कम्प्यूटर रूम में आया। स्क्रीन पर यू.पी.एस.सी. की साइट खुली ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 35
- 35 - संयोग ही कहा जाएगा कि जिस दिन दूसरे प्रसव के लिए रेनु डॉ. वर्मा की देखरेख अस्पताल में भर्ती थी, उसी दिन यू.पी.एस.सी. द्वारा अखिल भारतीय सिविल सेवाओं के अंतिम परिणाम घोषित किए गए। मनमोहन तो रेनु के साथ अस्पताल में था। डॉ. वर्मा और अनिता लेबररूम में रेनु के साथ थीं। इसलिए इनको तो फ़ुर्सत ही कहाँ थी कि नेट पर आई.ए.एस. के इन्टरव्यू का रिज़ल्ट देखते। कोई आधेक घंटे बाद मनमोहन के मोबाइल की रिंगटोन बजी। उसने देखा, श्यामल फ़ोन कर रहा था। इधर लेबररूम से बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी, उधर ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 36
- 36 - आसमान में उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी सूरज को ढक लेते थे तो कभी सूरज बादलों की दीवार प्रकट हो जाता था। ऐसे माहौल में कमरे में लेटना हरलाल को दुष्कर लगा तो उसने अपनी चारपाई आँगन में लगी त्रिवेणी की छाँव में डलवा ली। कई दिनों से तबीयत ठीक न रहने के कारण हरलाल खेत की ओर नहीं गया था, इसलिए उसने मामन सीरी को घर पर ही बुला लिया था। मामन उसे बता रहा था कि नरमे की बिजाई पूरी हो गई है और ट्यूबवेल की मोटर भी मैकेनिक ठीक कर गया है। दस बीघे ज़मीन ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 37
- 37 - हरलाल का स्वास्थ्य पिछले काफ़ी समय से ठीक नहीं चल रहा था, इसलिए डॉ. वर्मा को भी समय मिलता, वह गाँव चली जाती थी। जब जाती थी तो एक रात अवश्य वहाँ रुकती थी। पिछले रविवार को जब वह गई तो उसने परमेश्वरी को कहा - ‘माँ, आप पापा को समझाओ और मेरे साथ चलो। वहाँ पापा की देखभाल अच्छे से हो सकेगी। खेत और फसल के बारे में मामन से फ़ोन पर पूछ लिया करेंगे।’ ‘तेरी बात तो ठीक है, किन्तु तेरे पापा इसलिए शहर नहीं जाना चाहते, क्योंकि वहाँ लगातार रहने में इन्हें घुटन ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 38
- 38 - मानव-स्वभाव ऐसा है कि जवानी में पति-पत्नी की इच्छा होती है नितान्त एकान्त की और प्रौढ़ावस्था गुजरते-गुजरते जब बच्चे बड़े होकर जीवन में नई राहों की तलाश में निकल पड़ते हैं तो उन्हीं पति-पत्नी को अकेलापन खलने लगते है। और बहुधा ऐसा अकेलापन बीमारियों का वायस बन जाता है व जीवन अभिशप्त लगने लगता है। गाँव में रहते हुए हरलाल के साथ भी यही हुआ था। लेकिन शहर में आकर निरन्तर उचित चिकित्सा, देखभाल तथा डॉ. वर्मा की अंतरंग मंडली विशेषकर स्पन्दन के सान्निध्य ने हरलाल को कुछ ही दिनों में चंगा-भला कर दिया। स्पन्दन अधिकतर ...Read More
प्यार के इन्द्रधुनष - 39 - अंतिम भाग
- 39 - प्रायः ड्यूटी निभाकर घर आने पर जब टॉमी दुम हिलाता हुआ उसकी पिण्डुलियों से सिर रगड़ता और वासु उसके हाथों में गर्मागर्म कॉफी का कप पकड़ाता था तो डॉ. वर्मा की सारे दिन की थकान छूमंतर हो जाती थी और वह कोई-न-कोई किताब लेकर पढ़ने बैठ जाती थी, किन्तु आज टॉमी द्वारा किया गया लाड़ और वासु द्वारा दी गई कॉफी थकान दूर करने में नाकाफ़ी रहे, क्योंकि आज थकान शारीरिक से अधिक मानसिक थी। इसीलिए डॉ. वर्मा टॉमी के लाड़ का प्रत्युत्तर न देकर बेडरूम में आकर लेट गई। टॉमी भी बेड के नज़दीक आकर ...Read More