बरसो रे मेघा-मेघा

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मरुस्थल की तपती सुनहरी रेत पर जब आकाश में घिर आये स्लेटी बादल अपने आगोश में लेने की कोशिश करती तो रेत के गुब्बार भी शांत होकर धरती पर बिछ जाते, वातावरण में ठंडी हवा के झोंके जन-जन के तन को ही नहीं बल्कि मन को भी शीतल कर जाते, बूंदों से सराबोर स्लेटी घुंघराले बादल आखिर धरती पर बिछी रेत को आगोश में लेने की लुका-छिपी में आखिर बरस ही पड़ते | तपती रेत में छन्न-सी शांत होकर गर्म हवा के झोंके आसमान की ओर उछालती | आसमान बादलों की मार्फ़त ठंडी हवाएं भेज कर गर्म हवाएं एकमेक होकर अंतत: ठंडी हवाएं बन जाती, मिटते की सौंधी-सौंधी खुश्बू मेघना के घर की सलाखों वाली खिड़की से लहरा कर प्रवेश करती | नन्हीं मेघा घुटरूं-घुटरूं चल कर दरवाजे की चौखट तक आ जाती और वर्षा की बौछार से चौखट के बाहर ढलान पर इकट्ठा हुए वर्षा के पानी पर अपने नन्हीं हथेली मारती “ छपाक ” और उसकी तोतली जुबान से निकलता “ताता-थैया”

Full Novel

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बरसो रे मेघा-मेघा - 1

भाग एक : वो कागज़ की कश्ती मरुस्थल की तपती सुनहरी रेत पर जब आकाश में घिर आये स्लेटी अपने आगोश में लेने की कोशिश करती तो रेत के गुब्बार भी शांत होकर धरती पर बिछ जाते, वातावरण में ठंडी हवा के झोंके जन-जन के तन को ही नहीं बल्कि मन को भी शीतल कर जाते, बूंदों से सराबोर स्लेटी घुंघराले बादल आखिर धरती पर बिछी रेत को आगोश में लेने की लुका-छिपी में आखिर बरस ही पड़ते | तपती रेत में छन्न-सी शांत होकर गर्म हवा के झोंके आसमान की ओर उछालती | आसमान बादलों की मार्फ़त ठंडी ...Read More

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बरसो रे मेघा-मेघा - 2

भाग दो रिमझिम गिरे सावन नीले साफ़ आसमान में बादल आते तो आसमान को तो गहरे रंग में रंगते धरती पर भी धुंधलका फैला देते | बादलों को धैर्य ही नहीं होता कि कौन आगे चले | उनकी धक्का-मुक्की के इस खेल में एक दूसरे से टकराते हुए धन और ऋण के कण एक दूसरे के पास आकर बिजली की चमकीली लकीरें चमकती और आसमान को दो भागों में बांटते हुए खुद ही गर्जना करने लगती | बदल फट पड़ते झमाझम बारिश होने लगती | रंग-बिरंगी छतरियों से धूसर सड़कें छिप जाती | डिज़ाईनर छतरियों पर तड़-तड़ बूंदों की ...Read More

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बरसो रे मेघा-मेघा - 3 - अंतिम भाग

भाग तीन बरसो रे मेघा-मेघा मरुस्थल की तपती रेत को बरसात का बेसब्री से इंतज़ार रहता है | धरती तिड़की हुई देह आसमान को निरीह नज़रों से ताकती है कि कब बादल आयें और इस प्यासी धरती की प्यास बुझे | लेकिन बादल कहाँ आते हैं ? आते भी हैं तो बूँदें कहाँ सघन होती हैं, सघन हो भी जाएं तो बादल कहाँ भारी होते है कि बरस जाएं धरती पर | हलके बादलों को मरुस्थल की गरम हवाएं यूँ ही उड़ा कर तितर-बितर कर देती हैं और सूरज की गर्मी से बूँदें आसमान में ही सोख ली जाती ...Read More