“सॉरी, इस वक्त मैं कुछ भी कहने के मुड में नहीं हुँ।“ उसने कहा। “क्यों क्या हुआ? सब ठिक तो है ना?” मैंने साशंकित होते हुए पुछा। “मैंने कहा ना, अभी कुछ भी नहीं, बस!” उसने भडकते हुए कहा। “ठिक है।“ मैंने अपने हथियार डालते हुए फोन रख दिया। वह बरामदे में बरबस ही चहलकदमी करने लगी। उसे ना अपना ख्याल था ना अपने आसपास के परिवेश का। वह बमुश्किल अपने मन को काबु में कर पा रही थी। कल रात से उसने ना कुछ खाया था ना वह सोयी थी। बस वह कमरे के बाहर रखे बेंच पर बैठी थी। उसने सुबह एक कप चाय तब पी थी, जब एक चाय वाला लडका तेजी से उसके सामने से गुजर रहा था। वह रुका और उसे ना जाने क्या लगा, उसने उसके आगे चाय का एक कप सरका दिया। उसने उस चाय वाले को देखा और ना चाहते हुए भी वह चाय का कप उसके हाथ से ले लिया। अब भारत में तो चाय, ऐसे या वैसे, कैसे भी पी जा सकती है। अतः उसने भी उसी मानवी स्वभाव का अनुसरण करते हुए चाय पी ली। वह लडका चाय की केतली और पेपर कप लेकर उसी तेजी से आगे बढ गया। सुबह की सुनहरी किरणे उसके बुझे हुए चेहरे को तरोताजा करने का भरसक प्रयत्न कर रही थी, किंतु वे भी ऐसा करने में विफल रहीं।
Full Novel
आइडेंटिटी क्राईसिस - 1
एपिसोड १. “सॉरी, इस वक्त मैं कुछ भी कहने के मुड में नहीं हुँ।“ उसने कहा। “क्यों क्या हुआ? ठिक तो है ना?” मैंने साशंकित होते हुए पुछा। “मैंने कहा ना, अभी कुछ भी नहीं, बस!” उसने भडकते हुए कहा। “ठिक है।“ मैंने अपने हथियार डालते हुए फोन रख दिया। वह बरामदे में बरबस ही चहलकदमी करने लगी। उसे ना अपना ख्याल था ना अपने आसपास के परिवेश का। वह बमुश्किल अपने मन को काबु में कर पा रही थी। कल रात से उसने ना कुछ खाया था ना वह सोयी थी। बस वह कमरे के बाहर रखे बेंच ...Read More
आइडेंटिटी क्राईसिस - 2
एपिसोड २. एक दिन अचानक मेरे स्टुडियो में एक फोन आया कि कोई मुझसे मिलने बाहर मेरा इंतजार कर था। मैंने बाहर आकर देखा तो वह मुझे देखते हुए हाथ हिला कर मुस्कुरा रही थी। “तुम, यहाँ कैसे?” मैं अचंबित होते हुए बोला। मैंने उसे पहली बार देखा था। फोटो के मुकाबले वह थोडी मोटी लग रही थी। हमने वह भी नजरअंदाज कर दिया था। एक बार मुँबई की हवा लग गयी तो अच्छे-अच्छों का वजन कम हो जाता है। “मुझे आज ही अपना नया ऑफिस ज्वाईन करना है। मुझे ‘मुँबई-मिरर’ पत्रिका में जॉब मिल गया है। “मुझे पत्र ...Read More
आइडेंटिटी क्राईसिस - 3 - अंतिम भाग
एपिसोड ३. ‘मुँबई-मिरर’ का नया अंक बुक स्टॉल पर आ चुका था। उसने पुरे मुँबई में धुम मचा दी हर तरफ उसकी वाह-वाही हो रही थी। हर तरफ उसके आर्टिकल ने लोगों को सोचने पर मजबुर कर दिया था। ऑफिस में उसे काफी सराहना मिली और प्रमोशन के रूप में संपादक का अतिरिक्त पद भी प्राप्त हो गया। उसे मदद के लिये जुनियर्स मिल गये, जो अब ‘फिल्ड वर्क’ संभालने लगे। उसका काफी वक्त अब ऑफिस के मैंनेजमेंट में गुजर रहा था। एक दो महीने में बात आयी गयी हो गई। वे अनाथ बच्चे अब भी रास्तों पर आवारागर्दी ...Read More