रमेश ने कमरा सर पर उठा रखा था । उसकी आँखे लाल थी मुंह से कफ निकल रहा था । बाल माथे पर बिखरे हुए थे । कमीज़ आगे पीछे से फट कर झूल रही थी और वह पागलो के समान कमरे की एक एक वस्तु उठाकर फेंक रहा था । सरला आवाज़ सुन कर अपने कमरे से निकली और जैसे ही रमेश के कमरे का द्वार खोला –एक पुस्तक तीर के समान आकर उसके मुंह पे पड़ी और वह बौखला कर पीछे हट गई । कुछ क्षण तक खडी रमेश को घूरती रही, फिर घायल शेरनी के समान कमरे में दाखिल हुई और तीव्र स्वर में बोली ---- “ यह क्या उत्पात मचा रखा है तुमने ?” “ तुम भी मुझे मिस खटपट ही मालूम पड़ती हो । ” “ बंद करो बकवास -----” सरला कंठ फाड़कर चीखी । “ बकवास नहीं मिस खटखट ---” रमेश ने कहा और दो पुस्तकें उठा कर उसकी ओर फेंकी । “ मैं तुम्हारे कान उखाड़ लुंगी ----” “और मैं तुम्हें खटखट बना दूंगा ---” रमेश ने भी आंखें निकलकर कहा ।
Full Novel
विशाल छाया - 1
इब्ने सफ़ी अनुवादक : प्रेम प्रकाश (1) रमेश ने कमरा सर पर उठा रखा था । उसकी आँखे लाल मुंह से कफ निकल रहा था । बाल माथे पर बिखरे हुए थे । कमीज़ आगे पीछे से फट कर झूल रही थी और वह पागलो के समान कमरे की एक एक वस्तु उठाकर फेंक रहा था । सरला आवाज़ सुन कर अपने कमरे से निकली और जैसे ही रमेश के कमरे का द्वार खोला –एक पुस्तक तीर के समान आकर उसके मुंह पे पड़ी और वह बौखला कर पीछे हट गई । कुछ क्षण तक खडी रमेश को घूरती ...Read More
विशाल छाया - 2
(2) मगर विनोद अपनी धुन में चलता रहा । हमीद ने कई बार रुक रुक कर उन आंखों को किसके कारण वह विनोद से पीछे रह गया । विनोद ने कार की पिछली सीट पर रमेश को लिटा दिया । सरला भी पिछली ही सीट पर बैठी, और विनोद अगली सीट पर बैठा । हमीद जैसे ही कार के समीप पहुंचा, कार स्टार्ट हो गई । “अरे ---अरे –सुनिये तो –रोकिए –” हमीद चिल्लाता हुआ दौड़ा मगर कार स्पीड में आ चुकी थी । हमीद ओर तेजी से दौड़ा, मगर उसके चेहरे पर धूल पड़ी और वह आंखें मलने ...Read More
विशाल छाया - 3
(3) हमीद की आंख खुल गई । उसने चारों ओर आँखे फाड़ फाड़ कर देखा । यह एक बड़ा कमरा था, जिसमें दीवारों पर राग रागनियों की तस्वीरें बनी हुई थीं । कमरे के चारों कोनों पर संगमरमर की प्रतिमाएं थीं । फर्श पर ईरानी कालीन बिछी हुई थी और हमीद उसी पर लेटा हुआ था । कमरे में इतने रंगों का प्रकाश था कि उनसे तबियत खुश होने के बजाय भारी मालूम होने लगी थी । रंगों वाले बल्ब जाल रहे थे । एक कोने पर स्टेंडर्ड लें था जिसके पीछे कटलाख के काम का प्रतिबिम्ब डालने वाले ...Read More
विशाल छाया - 4
(4) हमीद ने दो एक बार सर को झटका दिया और फिर उठ कर दबे पाँव केबिन से बाहर उसका अनुमान गलत सिद्ध हुआ। यह लांच नहीं बल्कि एक छोटा सा स्टीमर था, जिसके शीशे चढ़े हुए थे। हमीद ने शीशों से झांक कर देखा। उसे यह अनुमान लगाना कठिन हो रहा था कि वह संसार के किस भाग में है, क्योंकि नदी के दोनों ओर ऊँची ऊँची पहाड़ियां थीं, जिस पर लम्बी नोक दार पत्तियों वाले वृक्ष दिखाई दे रहे थे। भौगोलिक ज्ञान के आधार पर हमीद इस नतीजे पर पहुंचा था कि ऐसे वृक्ष अपने देशों में ...Read More
विशाल छाया - 5
(5) “हेलो ! कर्नल विनोद स्पीकिंग ?” “इट इज सिक्स नाईन सर !” “हां हां ...कहो क्या रिपोर्ट है विनोद ने कलाई घडी कि ओर देखा। समय एक घंटे से अधिक हो गया था। “केप्टन साहब सड़क पर जा रहे थे कि तरबी ने लिली और उसकी माँ से यह कहा कि गुप्तचर विभाग का एक आदमी उसकी निगरानी कर रहा है। उन लोंगों ने खिड़की से झाँका मगर उन्हें कोई नहीं दिखाई पड़ा। मगर फिर केप्टन साहब उनके सामने आ गए । फिर टेबि उनको फ्लैट में ले गया और फिर ...” उसकी आवाज भर्रा उठी। “टेबि ने ...Read More
विशाल छाया - 6
(6) “मेरी समझ में नहीं आता कि जब हम दोनों एक दुसरे को चैलेंज कर चुके है तो फिर इस प्रकार की बातें क्यों कर रहे हो !” “तो तुम नहीं मानोगे ?” “नहीं । ” विनोद ने गरज कर कहा । “अच्छा यह बताओ कि तुमने अब तक मेरा चेहरा देखने की कोशिश क्यों नहीं की, जब की, जब कि तुम्हारा पहला काम यही होना चाहिये था ?” “तुमने यह प्रश्न पूछ कर फिर अपनी पराजय स्वीकार कर ली दोस्त !” विनोद ने हँस कर कहा । “वह कैसे ?” नारेन सिटपिटा गया । “वह इस प्रकार कि ...Read More
विशाल छाया - 7
(7) क्लोक रूम में पहुंच कर उसने कपडे बदले और फिर रेखा के साथ उस ओर आई जहां झरने पास बहुत सी मेजें लगी हुई थी। एक मेज पर रेखा और सरला आमने सामने बैठ गई। उनके बगल की दो कुर्सियां खली थी। मेजों के मध्य तीन अर्ध नग्न लड़कियाँ थिरक रही थी। वह तीनों विदेशी थीं। एक बेरा तीर के समान रेखा की मेज पर आया । “एक बोतल व्हाइट हार्स ?” रेखा ने आर्डर दिया। बेरा सर झुका कर चला गया। “तुम जानती हो कि मैं शराब नहीं पीती” सरला ने कहा। “शराब तो मैं भी नहीं ...Read More
विशाल छाया - 8
(8) लान से हाल तक और हाल से पोर्टिको तक भरी रहेने वाली भीड़ काई के समान फट गई लोग एक एक करके भागे जा रहे थे। इस भाग दौड़ में अभी तक सरला को रेखा नहीं दिखाई पड़ी थी और अब कासिम भी लापता हो गया था! हां सरला ने यह अवश्य महसूस किआ था कि रोबी पर इस घटना का वह प्रभाव नहीं है जो स्वाभाविक तौर पर होना चाहिए था। उसकी बौखलाहट बिलकुल बनावटी मालूम हो रही थी, वह बार बार हाल से पोर्टिको तक का चक्कर लगा रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे ...Read More
विशाल छाया - 9
(9) “कौवा नहीं, वह एक औरत थी । ” हमीद ने कहा । “यहां से निकलने का मार्ग जानते ?” अचानक शशि पूछ बैठी । “मैं आदमी की औलाद हूँ और केवल जन्नत से निकलने का मार्ग जानता हूँ पता नहीं तुम जन्नत का अर्थ समझती हो या नहीं ?” “जन्नत स्वर्ग को कहते है । ” शशि जल्दी से बोली । “हो सकता है की तुम्हारा कहना ठीक हो । ” हमीद ने कहा”मगर मेरी भाषा में औरत की गोद को जन्नत कहते है । ” “यह मिर्चे क्यों जला रहे हो ?” शशि हँस कर बोली । ...Read More
विशाल छाया - 10
(10) “मैं कानूनी और गैर कानूनी मामले की बात नहीं कर रहा हूँ । मैं तो यह जानना चाहता कि वह मुझे क्यों भेज रहा था ?” “कैप्टेन हमीद !” शशि ने कहा”तुम और कर्नल विनोद शैतान के समान प्रसिध्ध हो । नारेन ने तुम्हारा चित्र उस देश को भिजवा दिया था जिससे तुम्हारे देश के संबंध कुछ अच्छे नहीं है और साथ में यह पत्र भी लिख दिया था कि हमीद राजेश के इलाके से गुजर कर दाखिल होगा । इसलिये उस देश के जासूस राजेश के आस पास मौजूद होंगे । वह तुम्हें देखते तो गिरफ़्तार कर ...Read More
विशाल छाया - 11
(11) रोबी कुछ क्षण तक उसे घूरती रही, फिर उसने इतनी जोर की टक्कर मारी कि अगर सरला हट गई होती तो दिन में भी तारे नजर आ गये होते। रेखा के हटने के कारण रोबी अपने ही झोंक में मुंह के बल फर्श पर गिर पड़ी। रेखा बच्चों के समान तालियां बजा कर गिनती गिनने लगी। “तुम दोनों कौन हो?” रोबी ने खड़े होते हुए पूछा। उसके ललाट से रक्त बह रहा था। “लाओ ! मैं खून पोंछ दूं—” रेखा ने कहा। “यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं है-” रोबी दहाड़ी। इसके पहले कि रेखा कुछ कहती, कमरे ...Read More
विशाल छाया - 12
(12) रोबी झल्ला कर ड्राइवर की ओर इस प्रकार झपटी जैसे सचमुच उसे नोच्दालेगी, मगर ड्राइवर का उलटा हाथ मुंह पर पड़ा और उसने चीख कर दोनों हाथों से अपना सर थाम लिया। “आज का दिन तुम्हारे लिये बहुत ही खराब है “ ड्राइवर ने कहा “थोड़ी देर पहले तुम सरला से टकरा गई जिसमें तुम्हेंचोत खानी पड़ी और इस समय मेरा थप्पड़ खाना पड़ा, इसका मुझे हार्दिक दुख है। अगर तुम्हें अधिक चोट लगी हो तो मैं माफ़ी चाहता हूं। ” रोबी मौन रही। “शधिक दुख करने की कोई बात नहीं है । ” ड्राइवर ने कहा”नारेन तुम्हें ...Read More
विशाल छाया - 13
(13) “कितने ट्रेनिंग सेंटर है?”विनोद ने बात काट कर पूछा। “तीन...” रोबी ने कहा –”और तीनों नगर की बाहरी पर है। मैं उनकी प्रेसिडेंट हूं। मेरा यह काम है कि मैं जवान और सुंदर लड़कियों की उनमें भारती कराऊँ। ” “और मेरा विचार है वह लड़कियाँ गरीब घराने की ही होती होगी। ” “यह मैं नहीं जानती कि उनमें कितनी गरीब है और कितनी अमीर। मुझे तो बस सुंदर और जवान लड़कियों के लिये आदेश मिला था। अमीरी गरीबी का कोई प्रतिबंध नहीं था। प्रकट में तो उन्हें दस्तकारी की शिक्षा दी जाती है, मगर साथ ही साथ उन्हें ...Read More
विशाल छाया - 14 - अंतिम भाग
(14) “हां, मगर जब उस शेर की कोठी पर पहुंचोगे, तो वह शेर पुलिस वालों के साथ यहाँ रहेगा। रीबी और लिली को लेकर चल देना। यहाँ तो कुछ नहीं है?” “नहीं, मगर यहाँ से गोदाम का पता चलाया जा सकता है। ” “तुम जाओ! बाहर कार खडी है। यहाँ मैं संभाल लूँगा। ” “अपनी कार से जाऊं ?” बालचन ने पूछा । “पागल हो गये हो क्या! नगर की सारी पुलिस जाग रही है। पहचान लिये गये तो बचाना कठिन हो जायेगा । ” “अच्छा ....” बालचन ने कहा और अपने दो साथियों को लेकर कार तक आया ...Read More