जीवन और मृत्यु की निर्भरता प्रभु इच्छा पर है परंतु मृत्यु के उपरांत भी हमारी स्मृति लोगों के मन में बनी रहे यह हमारे कर्मों पर निर्भर है। जन्म और मृत्यु जीवन यात्रा का एक पड़ाव है। इस विषय पर हमारे प्रबुद्ध जनों का क्या चिंतन है जो कि आज के युवा वर्ग के लिये मार्गदर्षक एवं उपयोगी हो सकता है ? यह जानने के लिये हमने समाज के ख्यातिलब्ध बुजुर्गों से संपर्क करके उनके विचारों को लिपिबद्ध किया। हमने इस हेतु एक प्रष्नावली उनके सम्मुख रखी और हमें हार्दिक प्रसन्नता है कि प्रायः सभी ने अपना सहयोग देते हुये अपने विचारो से अवगत कराया जिसके लिए हम उनके आभारी है। उन्हें दी गई प्रष्नावली इस प्रकार है:- 1. आपने जीवन के 80 वसंत पार कर लिये है। अब जीवन संभवतः सीमित है, आपके मन में जीवन के संबंध में विचार, संभावनायें, जीवन जीने की मन में इच्छाओें एवं दृष्टिकोण के संबंध में जानकारी प्रदान करें। 2. आप अपने षेष बचे हुए जीवन के समय का सदुपयोग कैसे करना चाहते है ? 3. आपके जीवन में घटित ऐसी घटनाएँ जो कि आज भी आपको याद हो, संस्मरण के रूप में बताने की कृपा करें। 4. जीवन और मृत्यु के प्रति आपकी क्या सोच है ? आप अपने जीवन दर्षन से समाज को क्या मार्गदर्षन देना चाहते है ? 5. समाज एवं परिवार से आपकी क्या अपेक्षाएँ है ? 6. इसके अतिरिक्त आप कुछ और बताना चाहते है जैसे पुनर्जन्म आदि तो उसका भी स्वागत है। हमने विभिन्न क्षेत्रों के प्रबुद्धजनों से प्राप्त उनके विचारों कों, उनकी मूल भावना के अनुरूप रखते हुए इस पुस्तक में समाहित किया है। हमने इसके साथ ही कंैसर जैसे घातक रोग से पीडित कुछ रोगियो के विचारों को भी षामिल किया है, जिससे कैंसर पीडितों को आत्मबल मिल सके। मेरी स्वरचित प्रेरणादायक लघुकथाओं का भी संकलन इसमें किया गया है। हमारे पाठक जीवन के इन अनुभवों से मार्गदर्षन लेकर अपने जीवन को सफल ही नही सार्थक भी बनायेंगें ऐसी हमें आषा है। मुझे श्री अभय तिवारी ,योग षिक्षक श्री देवेन्द्र सिंह राठौर एवं श्रीमती वर्षा राठौर का सहयोग प्राप्त हुआ जिसके लिये मैं उनका हृदय से आभारी हूँ।
Full Novel
अवसान की बेला में - भाग १
अवसान की बेला में लेखक एवं संग्रहक:- राजेष माहेष्वरी श्रद्धांजली विचारों के संकलन, संपादन एवं प्रकाषन हेतु उन्हें प्रस्तुत करने में लगे समय समयन्तराल में डाॅ. ओ.पी. मिश्रा, पंडित केषव प्रसाद तिवारी एवं श्री राजेन्द्र तिवारी जी इस असार संसार से विदा हो गये। इस पुस्तक में उनके सहयोग के लिए हम उनके प्रति कृतज्ञ है एवं उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते है। लेखक की कलम से ...Read More
अवसान की बेला में - भाग २
6. हार-जीत सुमन दसवीं कक्षा में अंग्रेजी माध्यम की शाला में अध्ययन करती थी। वह पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी गहन रूचि रखती थी और लम्बी दूरी की दौड़ में हमेशा प्रथम स्थान पर ही आती थी। उसको क्रीड़ा प्रशिक्षक, प्रशिक्षण देकर यह प्रयास कर रहे थे कि वह प्रादेशिक स्तर पर भाग लेकर शाला का नाम उज्ज्वल करे। इसके लिये उसके प्राचार्य, शिक्षक, अभिभावक और उसके मित्र सभी उसे प्रोत्साहित करते थे। वह एक सम्पन्न परिवार की लाड़ली थी। वह क्रीड़ा गतिविधियों ...Read More
अवसान की बेला में - भाग ३
१६. सच्चा प्रायश्चित नर्मदा नदी के किनारे पर बसे रामपुर नाम के गाँव में रामदास नामक एक कृषक अपने दो पुत्रों के साथ रहता था। उसकी पत्नी का देहांत कई वर्ष पूर्व हो गया था, परंतु अपने बच्चों की परवरिश में कोई बाधा ना आए इसलिये उसने दूसरा विवाह नही किया था। उसके दोनो पुत्रों के स्वभाव एक दूसरे से विपरीत थे। उसका बडा बेटा लखन गलत प्रवृत्ति रखते हुए धन का बहुत लोभी था, परंतु उसका छोटा पुत्र विवेक बहुत ही दातार, प्रसन्नचित्त एवं दूसरों के ...Read More
अवसान की बेला में - भाग ४
२६. चेहरे पर चेहरा रामसिंह नाम का एक व्यक्ति था, वह पेशे से डाक्टर था। वह बहुत लोगों को नौकरी पर रखे था। उसने यह प्रचारित किया था कि वह जनता के हित में एक सर्वसुविधा युक्त आधुनिक तकनीक से सम्पन्न अस्पताल बनाना चाहता है। वह हमेशा मंहगी कारों पर चला करता था। उसके पास घर पर मरीजों का तांता लगा रहता था। कुछ तो उससे अपना इलाज कराने के लिये दूर-दूर के दूसरे नगरों से भी आते थै। वह बीमारों के इलाज के बदले उनसे एक ...Read More
अवसान की बेला में - भाग ५
36. उत्तराधिकारी मुंबई में एक प्रसिद्ध उद्योगपति जो कि कई कारखानों के मालिक थे, अपने उत्तराधिकारी का चयन चाहते थे। उनकी तीन संताने थी, एक दिन उन्होने तीनों पुत्रों को बुलाकर एक मुठठी मिट्टी देकर कहा कि मैं देखना चाहता हॅँ कि तुम लोग इसका एक माह के अंदर क्या उपयोग करते हो। एक माह के बाद जब पिताजी ने तीनों को बुलाया तो उन्होने अपने द्वारा किये गये कार्य का विवरण उन्हें दे दिया। सबसे पहले बड़े पुत्र ने बताया कि वह मिट्टी किसी काम की नही थी इसलिये मैनें उसे फिंकवा ...Read More
अवसान की बेला में - भाग ६
46. अंतिम दान सेठ रामसजीवन नगर के प्रमुख व्यवसायी थे जो अपने पुत्र एवं पत्नी के साथ सुखी बिता रहे थे। एक दिन अचानक उन्हें खून की उल्टी हुयी और चिकित्सकों ने जाँच के उपरांत पाया कि वे कैंसर जैसे घातक रोग की अंतिम अवस्था में हैं एवं उनका जीवन बहुत कम बचा है। यह जानकर उन्होने अपनी सारी संपत्ति अपनी पत्नी एवं बेटे के नाम कर दी। कुछ माह बाद उन्हें महसूस हुआ कि उनके हाथ से बागडोर जाते ही उनकी घर में उपेक्षा आरंभ ...Read More
अवसान की बेला में - भाग ७
56. मानवीयता श्रेष्ठ धर्म जबलपुर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष और भारत सरकार में अस्सिटेंट सालिसिटर जनरल पद पर अपनी सेवाएँ दे चुके श्री राशिद सुहैल सिद्दीकी ने जन्म और मृत्यु के संदर्भ में कहा कि मृत्यु एक शाश्वत सत्य है। पुनर्जन्म पर मेरा विश्वास नही है। ये दुनिया एक सराय है, जिसने भी यहाँ जन्म लिया है वह अपना समय बिताकर पुनः ब्रह्म में लीन हो जाता है। जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम नैतिकता और ईमान के रास्ते पर चलते हुए जीवन व्यतीत करें। ...Read More
अवसान की बेला में - भाग ८ (अंतिम भाग )
63. श्रेष्ठ कौन ? “ अरे राकेश ! यह देखो, ये फूल कितने सुंदर और प्यारे है, इन्हें ही हमारा मन कितना प्रफुल्लित हो रहा है।“ यह बात शाला की क्यारी में लगे हुये फूलों को देखकर आनंद ने राकेश से कही। यह सुनकर फूल तने से बोला- देखो मुझे देखकर सब लोग मेरी कितनी तारीफ करते हैं, और मानव को मेरी कितनी आवश्यकता है। उसे जन्म से लेकर अंतिम यात्रा तक मेरी जरूरत रहती है। मैं पूजा स्थलों में परम पिता परमेश्वर ...Read More