गुनाहों का देवता

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इस उपन्यास के नये संस्करण पर दो शब्द लिखते समय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? अधिक-से-अधिक मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस... - धर्मवीर भारती गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती भाग 1 अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की

Full Novel

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गुनाहों का देवता - 1

इस उपन्यास के नये संस्करण पर दो शब्द लिखते समय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या लिखूँ? मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रति व्यक्त कर सकता हूँ जिन्होंने इसकी कलात्मक अपरिपक्वता के बावजूद इसको पसन्द किया है। मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना, और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बस... - धर्मवीर भारती गुनाहों का देवता धर्मवीर भारती भाग 1 अगर पुराने जमाने की नगर-देवता की और ग्राम-देवता की ...Read More

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गुनाहों का देवता - 2

भाग 2 वैसे सुधा अपने घर की पुरखिन थी। किस मौसम में कौन-सी तरकारी पापा को माफिक पड़ती है, में चीजों का क्या भाव है, नौकर चोरी तो नहीं करता, पापा कितने सोसायटियों के मेम्बर हैं, चन्दर के इक्नॉमिक्स के कोर्स में क्या है, यह सभी उसे मालूम था। मोटर या बिजली बिगड़ जाने पर वह थोड़ी-बहुत इंजीनियरिंग भी कर लेती थी और मातृत्व का अंश तो उसमें इतना था कि हर नौकर और नौकरानी उससे अपना सुख-दु:ख कह देते थे। पढ़ाई के साथ-साथ घर का सारा काम-काज करते हुए उसका स्वास्थ्य भी कुछ बिगड़ गया था और अपनी ...Read More

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गुनाहों का देवता - 3

भाग 3 'कौन पम्मी?' 'यह मेरी बहन प्रमिला डिक्रूज!' 'ओह! कब मरी आपकी पत्नी?ï माफ कीजिएगा मुझे भी मालूम था!' 'हाँ, मैं बड़ा अभागा हूँ। मेरा दिमाग कुछ खराब है देखिए!' कहकर उसने झुककर अपनी खोपड़ी चन्दर के सामने कर दी और बहुत गिड़गिड़ाकर बोला, 'पता नहीं कौन मेरे फूल चुरा ले जाता है! अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पाँच साल से मैं इन फूलों को सँभाल रहा हूँ। हाय रे मैं! जाइए, पम्मी बुला रही है।' पिछवाड़े के सहन का बीच का दरवाजा खुल गया था और पम्मी कपड़े पहनकर बाहर झाँक रही थी। चन्दर आगे बढ़ा ...Read More

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गुनाहों का देवता - 4

भाग 4 घास, फूल, लतर और शायरी का शौक गेसू ने अपनी माँ से विरासत में पाया था। किस्मत उसका कॉलेज भी ऐसा मिला जिसमें दर्जों की खिड़कियों से आम की शाखें झाँका करती थीं इसलिए हमेशा जब कभी मौका मिलता था, क्लास से भाग कर गेसू घास पर लेटकर सपने देखने की आदी हो गयी थी। क्लास के इस महाभिनिष्क्रमण और उसके बाद लतरों की छाँह में जाकर ध्यान-योग की साधना में उसकी एकमात्र साथिन थी सुधा। आम की घनी छाँह में हरी-हरी दूब में दोनों सिर के नीचे हाथ रखकर लेट रहतीं और दुनिया-भर की बातें करतीं। ...Read More

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गुनाहों का देवता - 5

भाग 5 सुधा गयी नहीं। वहीं घास पर बैठ गयी और किताब खोलकर पढऩे लगी। जब पाँच मिनट तक कुछ नहीं बोली तो चन्दर ने सोचा आज बात कुछ गम्भीर है। 'सुधा!' उसने बड़े दुलार से पुकारा। 'सुधा!' सुधा ने कुछ नहीं कहा मगर दो बड़े-बड़े आँसू टप से नीचे किताब पर गिर गये। 'अरे क्या बात है सुधा, नहीं बताओगी?' 'कुछ नहीं।' 'बता दो, तुम्हें हमारी कसम है।' 'कल शाम को तुम आये नहीं...' सुधा रोनी आवाज में बोली। 'बस इस बात पर इतनी नाराज हो, पागल!' 'हाँ, इस बात पर इतनी नाराज हूँ! तुम आओ चाहे हजार ...Read More

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गुनाहों का देवता - 6

भाग 6 'हाँ, अब तो जून तक यहीं रहेगी। फिर जुलाई में उसकी शादी होगी।' डॉ. शुक्ला ने कहा। अभी से? अभी उसकी उम्र ही क्या है!' सुधा बोली। 'क्यों, तेरे बराबर है। अब तेरे लिए भी तेरी बुआ ने लिखा है।' 'नहीं पापा, हम ब्याह नहीं करेंगे।' सुधा ने मचलकर कहा। 'तब?' 'बस हम पढ़ेंगे। एफ.ए. कर लेंगे, फिर बी.ए., फिर एम.ए., फिर रिसर्च, फिर बराबर पढ़ते जाएँगे, फिर एक दिन हम भी तुम्हारे बराबर हो जाएँगे। क्यों, पापा?' 'पागल नहीं तो, बातें तो सुनो इसकी! ला, दो नानखटाई और दे।' शुक्ला हँसकर बोले। 'नहीं, पहले तो कबूल ...Read More

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गुनाहों का देवता - 7

भाग 7 'नहीं, हमें तो कभी नहीं बताया।' चन्दर बोला। 'तब तो हमने प्यार-वार नहीं किया। गेसू यूँ ही उड़ा रही थी।' सुधा ने सन्तोष की साँस लेकर कहा, 'लेकिन बस! चाचाजी के नाराज होने पर तुम इतने दु:खी हो गये हो! हो जाने दो नाराज। पापा तो हैं अभी, क्या पापा मुहब्बत नहीं करते तुमसे?' 'सो क्यों नहीं करते, तुमसे ज्यादा मुझसे करते हैं लेकिन उनकी बात से मन तो भारी हो ही गया। उसके बाद गये बिसरिया के यहाँ। बिसरिया ने कुछ बड़ी अच्छी कविताएँ सुनायीं। और भी मन भारी हो गया।' चन्दर ने कहा। 'लो, तब ...Read More

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गुनाहों का देवता - 8

भाग 8 'अच्छा, अच्छा। देखिए आप सोचेंगी कि मैं इस तरह से मि. कपूर के बारे में पूछ रही जैसे मैं कोई जासूस होऊँ, लेकिन असल बात मैं आपको बता दूँ। मैं पिछले दो-तीन साल से अकेली रहती रही। किसी से भी नहीं मिलती-जुलती थी। उस दिन मिस्टर कपूर गये तो पता नहीं क्यों मुझ पर प्रभाव पड़ा। उनको देखकर ऐसा लगा कि यह आदमी है जिसमें दिल की सच्चाई है, जो आदमियों में बिल्कुल नहीं होती। तभी मैंने सोचा, इनसे दोस्ती कर लूँ। लेकिन चूँकि एक बार दोस्ती करके विवाह, और विवाह के बाद अलगाव, मैं भोग चुकी ...Read More

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गुनाहों का देवता - 9

भाग 9 'कहाँ गयी है सुधा?' चन्दर ने पूछा। 'आज शायद साबिर साहब के यहाँ गयी है। उनकी लड़की साथ पढ़ती है न, वहीं गयी है बिनती के साथ।' 'अब इम्तहान को कितने दिन रह गये हैं, अभी घूमना बन्द नहीं हुआ उनका?' 'नहीं, दिन-भर पढ़ने के बाद उठी थी, उसके भी सिर में दर्द था, चली गयी। घूम-फिर लेने दो बेचारी को, अब तो जा ही रही है।' डॉ. शुक्ला बोले, एक हँसी के साथ जिसमें आँसू छलके पड़ते थे। 'कहाँ तय हो रही है सुधा की शादी?' 'बरेली में। अब उसकी बुआ ने बताया है। जन्मपत्री दी ...Read More

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गुनाहों का देवता - 10

भाग 10 'हाँ-हाँ, बताया था। उसे जरूर खत लिख दो!' सुधा ने पोस्टकार्ड देते हुए कहा, 'तुम्हें पता मालूम चन्दर जब पोस्टकार्ड लिख रहा था तो सुधा ने कहा, 'सुनो, उसे लिख देना कि पापा की सुधा, पापा की जान बचाने के एवज में आपकी बहुत कृतज्ञ है और कभी अगर हो सके तो आप इलाहाबाद जरूर आएँ!...लिख दिया?' 'हाँ!' चन्दर ने पोस्टकार्ड जेब में रखते हुए कहा। 'चन्दर, हम भी सोशलिस्ट पार्टी के मेम्बर होंगे!' सुधा ने मचलते हुए कहा। 'चलो, अब तुम्हें नयी सनक सवार हुई। तुम क्या समझ रही हो सोशलिस्ट पार्टी को। राजनीतिक पार्टी है ...Read More

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गुनाहों का देवता - 11

भाग 11 रात-भर चन्दर को ठीक से नींद नहीं आयी। अब गरमी काफी पड़ने लगी थी। एक सूती चादर ज्यादा नहीं ओढ़ा जाता था और चन्दर ने वह भी ओढ़ना छोड़ दिया था, लेकिन उस दिन रात को अक्सर एक अजब-सी कँपकँपी उसे झकझोर जाती थी और वह कसकर चादर लपेट लेता था, फिर जब उसकी तबीयत घुटने लगती तो वह उठ बैठता था। उसे रात-भर नींद नहीं आयी बार-बार झपकी आयी और लगा कि खिड़की के बाहर सुनसान अँधेरे में से अजब-सी आवाजें आती हैं और नागिन बनकर उसकी साँसों में लिपट जाती हैं। वह परेशान हो उठता ...Read More

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गुनाहों का देवता - 12

भाग 12 'अबकी जाड़े में तुम्हारा ब्याह होगा तो आखिर हम लोग नयी-नयी चीज का इन्तजाम करें न। अब हुए, अब डॉक्टरनी आएँगी!' सुधा बोली। खैर, बहुत मनाने-बहलाने-फुसलाने पर सुधा मिठाई मँगवाने को राजी हुई। जब नौकर मिठाई लेने चला गया तो चन्दर ने चारों ओर देखकर पूछा, 'कहाँ गयी बिनती? उसे भी बुलाओ कि अकेले-अकेले खा लोगी!' 'वह पढ़ रही है मास्टर साहब से!' 'क्यों? इम्तहान तो खत्म हो गया, अब क्या पढ़ रही है?' चन्दर ने पूछा। 'विदुषी का दूसरा खण्ड तो दे रही है न सितम्बर में!' सुधा बोली। 'अच्छा, बुलाओ बिसरिया को भी!' चन्दर बोला। ...Read More

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गुनाहों का देवता - 13

भाग 13 'बैठो, अभी हम एक चीज दिखाएँगे। जरा गेसू से बात कर आएँ।' बिनती बड़े भोले स्वर में 'आइए, हसरत मियाँ।' और पल-भर में नन्हें-मुन्ने-से छह वर्ष के हसरत मियाँ तनजेब का कुरता और चूड़ीदार पायजामे पर पीले रेशम की जाकेट पहने कमरे में खरगोश की तरह उछल आये। 'आदाबर्ज।' बड़े तमीज से उन्होंने चन्दर को सलाम किया। चन्दर ने उसे गोद में उठाकर पास बिठा दिया। 'लो, हलुआ खाओ, हसरत!' हसरत ने सिर हिला दिया और बोला, 'गेसू ने कहा था, जाकर चन्दर भाई से हमारा आदाब कहना और कुछ खाना मत! हम खाएँगे नहीं।' चन्दर बोला, ...Read More

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गुनाहों का देवता - 14

भाग 14 सुधा सो रही थी और चन्दर के तलवों में उसकी नरम क्वाँरी साँसें गूँज रही थीं। चन्दर रहा चुपचाप। उसकी हिम्मत न पड़ी कि वह हिले और सुधा की नींद तोड़ दे। थोड़ी देर बाद सुधा ने करवट बदली तो वह उठकर आँगन के सोफे पर जाकर लेट रहा और जाने क्या सोचता रहा। जब उठा तो देखा धूप ढल गयी है और सुधा उसके सिरहाने बैठी उसे पंखा झल रही है। उसने सुधा की ओर एक अपराधी जैसी कातर निगाहों से देखा और सुधा ने बहुत दर्द से आँखें फेर लीं और ऊँचाइयों पर आखिरी साँसें ...Read More

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गुनाहों का देवता - 15

भाग 15 बिनती स्तब्ध, चन्दर नहीं समझा, पास आकर बैठ गया, बोला, 'सुधा, क्यों, पड़ गयी न, मैंने कहा कि गैरेज में मोटर साफ मत करो। परसों इतना रोयी, सिर पटका, कल धूप खायी। आज पड़ रही! कैसी तबीयत है?' सुधा उधर खिसक गयी और अपने कपड़े समेट लिये, जैसे चन्दर की छाँह से भी बचना चाहती है और तेज, कड़वी और हाँफती हुई आवाज में बोली, 'बिनती, इनसे कह दो जाएँ यहाँ से।' चन्दर चुप हो गया और एकटक सुधा की ओर देखने लगा और सुधा की बात ने जैसे चन्दर का मन मरोड़ दिया। कितनी गैरियत से ...Read More

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गुनाहों का देवता - 16

भाग 16 थोड़ी देर में डॉक्टर साहब की कार आयी। सुधा ने अपने कमरे के दरवाजे बन्द कर लिये, ने सिर पर पल्ला ढक लिया और चन्दर दौड़कर बाहर गया। डॉक्टर साहब के साथ जो सज्जन उतरे वे ठिगने-से, गोरे-से, गोल चेहरे के कुलीन सज्जन थे और खद्दर का कुरता और धोती पहने हुए थे। हाथ में एक छोटा-सा सफरी बैग था। चन्दर ने लेने को हाथ बढ़ाया तो हँसकर बोले, 'नहीं जी, क्या इतना-सा बैग ले चलने में मेरा हाथ थक जाएगा। आप लोग तो खातिर करके मुझे महत्वपूर्ण बना देंगे!' सब लोग स्टडी रूम में गये। वहीं ...Read More

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गुनाहों का देवता - 17

भाग 17 सुधा आयी, सूजी आँखें, सूखे होठ, रूखे बाल, मैली धोती, निष्प्राण चेहरा और बीमार चाल। हाथ में लिये थी। आयी और चन्दर के पास बैठ गयी-'कहो, क्या कर आये, चन्दर! अब कितना इन्तजाम बाकी है?' 'अब सब हो गया, सुधा रानी! आज तो पैर जवाब दे रहे हैं। साइकिल चलाते-चलाते पैर में जैसे गाँठें पड़ गयी हों।' चन्दर ने कार्ड फैलाते हुए कहा, 'शादी तुम्हारी होगी और जान मेरी निकली जा रही है मेहनत से।' 'हाँ चन्दर, इतना उत्साह तो और किसी को नहीं है मेरी शादी का!' सुधा ने कहा और बहुत दुलार से बोली, 'लाओ, ...Read More

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गुनाहों का देवता - 18

भाग 18 चन्दर की आँखों में आँसू आ गये, वह फूट पड़ा और बिनती को एक डूबते हुए सहारे तरह पकडक़र उसकी माँग पर मुँह रखकर फूट-फूटकर रो पड़ा। लेकिन फिर भी सँभल गया और बिनती का माथा सहलाते हुए और अपनी सिसकियों को रोकते हुए कहा, 'रो मत पगली!' धीरे-धीरे बिनती चुप हुई। और खाट के पास नीचे छत पर बैठ गयी और चन्दर के घुटनों पर हाथ रखकर बोली, 'चन्दर, तुम आना मत छोड़ना। तुम इसी तरह आते रहना! जब तक दीदी ससुराल से लौट न आएँ।' 'अच्छा!' चन्दर ने बिनती की पीठ पर हाथ रखकर कहा, ...Read More

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गुनाहों का देवता - 19

भाग 19 चन्दर एक फीकी मुसकान के साथ बोला, 'बिनती! अब तुम इतना ध्यान न रखा करो! तुम समझती बाद में कितनी तकलीफ होती है। सुधा ने क्या कर दिया है यह वह खुद नहीं समझती!' 'कौन नहीं समझता!' बिनती एक गहरी साँस लेकर बोली, 'दीदी नहीं समझती या हम नहीं समझते! सब समझते हैं लेकिन जाने मन कैसा पागल है कि सब कुछ समझकर धोखा खाता है। अरे दही तो आपने खाया ही नहीं।' वह पूड़ी लाने चली गयी। और इस तरह दिन कटने लगे। जब आदमी अपने हाथ से आँसू मोल लेता है, अपने-आप दर्द का सौदा ...Read More

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गुनाहों का देवता - 20

भाग 20 इतने में छाता लगाये पोस्टमैन आया, उसने पोर्टिको में अपने जूतों में लगी कीचड़ झाड़ी, पैर पटके किरमिच के झोले से खत निकाले और सीढ़ी पर फैला दिये। उनमें से ढूँढ़कर तीन लिफाफे निकाले और चन्दर को दे दिये। चन्दर ने लपककर लिफाफे ले लिये। पहला लिफाफा बुआ का था बिनती के नाम, दूसरा था ओरियंटल इन्श्योरेन्स का लिफाफा डॉक्टर साहब के नाम और तीसरा एक सुन्दर-सा नीला लिफाफा। यह सुधा का होगा। पोस्टमैन जा चुका था। उसने इतने प्यार से लिफाफे को चूमा जितने प्यार से डूबता हुआ सूरज नीली घटाओं को चूम रहा था। 'पगली ...Read More

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गुनाहों का देवता - 21

भाग 21 ''खाओ न!'' सुधा ने कहा और एक कौर बनाकर चन्दर को देने लगी। ''तुम जाओ!'' चन्दर ने रूखे स्वर में कहा, ''मैं खा लूँगा!'' सुधा ने कौर थाली में रख दिया और चन्दर के पायताने बैठकर बोली, ''चन्दर, तुम क्यों नाराज हो, बताओ हमसे क्या पाप हो गया है? पिछले डेढ़ महीने हमने एक-एक क्षण गिन-गिनकर काटे हैं कि कब तुम्हारे पास आएँ। हमें क्या मालूम था कि तुम ऐसे हो गये हो। मुझे जो चाहे सजा दे लो लेकिन ऐसा न करो। तुम तो कुछ भी नहीं समझते।'' और सुधा ने चन्दर के पैरों पर सिर ...Read More

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गुनाहों का देवता - 22

भाग 22 अच्छा, अब माँजी नीचे बुला रही हैं...चलती हूँ...देखो अपने किसी खत में इन सब बातों का जिक्र करना! और इसे फाड़कर फेंक देना। तुम्हारी अभागिन-सुधी।'' चन्दर को खत मिला तो एक बार जैसे उसकी मूर्च्छा टूट गयी। उसने खत लिया और बिनती को बुलाया। बिनती हाथ में साग और डलिया लिये आयी और पास बैठ गयी। चन्दर ने वह खत बिनती को दे दिया। बिनती ने पढ़ा और चन्दर को वापस दे दिया और चुपचाप तरकारी काटने लगी। वह उठा और चुपचाप अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद बिनती चाय लेकर आयी और चाय रखकर ...Read More

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गुनाहों का देवता - 23

भाग 23 आज कितने दिनों बाद तुम्हें खत लिखने का मौका मिल रहा है। सोचा था, बिनती के ब्याह महीने-भर पहले गाँव आ जाऊँगी तो एक दिन के लिए तुम्हें आकर देख जाऊँगी। लेकिन इरादे इरादे हैं और जिंदगी जिंदगी। अब सुधा अपने जेठ और सास के लड़के की गुलाम है। ब्याह के दूसरे दिन ही चला जाना होगा। तुम्हें यहाँ बुला लेती, लेकिन यहाँ बन्धन और परदा तो ससुराल से भी बदतर है। मैंने बिनती से तुम्हारे बारे में बहुत पूछा। वह कुछ नहीं बतायी। पापा से इतना मालूम हुआ कि तुम्हारी थीसिस छपने गयी है। कन्वोकेशन नजदीक ...Read More

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गुनाहों का देवता - 24

भाग 24 चन्दर ने विचित्र हृदय-हीन तर्क को सुना और आश्चर्य से बुआ की ओर देखने लगा।....बुआजी बकती जा थीं- ''अब कहते हैं कि बिनती को पढ़उबै! ब्याह न करबै! रही-सही इज्जत भी बेच रहे हैं। हमार तो किस्मत फूट गयी...'' और वे फिर रोने लगीं, ''पैदा होते काहे नहीं मर गयी कुलबोरनी… कुलच्छनी...अभागिन!'' सहसा बिनती छत से उतरी और आँगन में आकर खड़ी हो गयी, उसकी आँखों में आग भरी थी-''बस करो, माँजी!'' वह चीखकर बोली, ''बहुत सुन लिया मैंने। अब और बर्दाश्त नहीं होता। तुम्हारे कोसने से अब तक नहीं मरी, न मरूँगी। अब मैं सुनूँगी नहीं, ...Read More

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गुनाहों का देवता - 25

भाग 25 ''देखो, अब मैंने विवाह स्वीकार कर लिया। जेनी को स्वीकार कर लिया। चाहे यह जीवन का सत्य क्यों न हो पर महत्ता तो निषेध में होती है। सबसे बड़ा आदमी वह होता है जो अपना निषेध कर दे...लेकिन मैं अब साधारण आदमी हूँ। सस्ती किस्म का अदना व्यक्ति। मुझे कितना दुख है आज। मेरा तोता भी मर गया और मेरी असाधारणता भी।'' और बर्टी फिर तोते की कब्र के पास सिर झुकाकर बैठ गया। वह घर पहुँचा तो उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। उसने उफनी हुई चाँदनी चूमी थी, उसने तरुणाई के चाँद को ...Read More

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गुनाहों का देवता - 26

भाग 26 ''मुझसे मुहब्बत करते हैं!'' गेसू बात काटकर बोली और बड़ी गम्भीर हो गयी और अपनी चुन्नी के में टँके हुए सितारे को तोड़ती हुई बोली, ''मैं सचमुच नहीं समझ पायी कि उनके मन में क्या था। उनके घरवालों ने मेरे बजाय फूल को ज्यादा पसन्द किया। उन्होंने फूल से ही शादी कर ली। अब अच्छी तरह निभ रही है दोनों की। फूल तो इतने अरसे में एक बार भी हम लोगों से मिलने नहीं आयी!'' ''अच्छा...'' चन्दर चुप होकर सोचने लगा। कितनी बड़ी प्रवंचना हुई इस लड़की की जिंदगी में! और कितने दबे शब्दों में यह कहकर ...Read More

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गुनाहों का देवता - 27

भाग 27 लेकिन वह नशा टूट चुका था, वह साँस धीमी पड़ गयी थी...अपनी हर कोशिश के बावजूद वह को उदास होने से बचा न पाता था। एक दिन सुबह जब वह कॉलेज जा रहा था कि पम्मी की कार आयी। पम्मी बहुत ही उदास थी। चन्दर ने आते ही उसका स्वागत किया। उसके कानों में एक नीले पत्थर का बुन्दा था, जिसकी हल्की छाँह गालों पर पड़ रही थी। चन्दर ने झुककर वह नीली छाँह चूम ली। पम्मी कुछ नहीं बोली। वह बैठ गयी और फिर चन्दर से बोली, ''मैं लखनऊ जा रही हूँ, कपूर!'' ''कब? आजï?'' ''हाँ, ...Read More

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गुनाहों का देवता - 28

भाग 28 ''मैंने किसी को नहीं बटोरा! जो मेरी जिंदगी में आया, अपने-आप आया, जो चला गया, उसे मैंने नहीं। मेरे मन में कहीं भी अहम की प्यास नहीं थी, कभी भी स्वार्थ नहीं था। क्या मैं चाहता तो सुधा को अपने एक इशारे से अपनी बाँहों में नहीं बाँध सकता था!'' ''शाबाश! और नहीं बाँध पाये तो सुधा से भी जी भरकर बदला निकाल रहा है। वह मर रही है और तू उस पर नमक छिड़कने से बाज नहीं आया। और आज तो उसे एकान्त में भ्रष्ट करने का सपना देख अपनी पलकों को देवमन्दिर की तरह पवित्र ...Read More

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गुनाहों का देवता - 29

भाग 29 ''आयी हैं, देखो न! कुछ तबीयत खराब हो गयी है। जी मितला रहा है।'' और उसने बाथरूम ओर इशारा कर दिया। सुधा बाथरूम में बगल में लोटा रखे सिर झुकाये बैठी थी-''देखो! देखती हो?'' कैलाश बोला, ''देखो, कपूर आ गया।'' सुधा ने देखा और मुश्किल से हाथ जोड़ पायी होगी कि उसे मितली आ गयी...कैलाश दौड़ा और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा और चन्दर से बोला-''पंखा लाओ!'' चन्दर हतप्रभ था। उसके मन ने सपना देखा था...सुधा सितारों की तरह जगमगा रही होगी और अपनी रोशनी की बाँहों में चन्दर के प्राणों को सुला देगी। जादूगरनी की ...Read More

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गुनाहों का देवता - 30

भाग 30 ''सुधा, यह तो सच है कि मैंने तुम्हारे मन को बहुत दुखाया है, लेकिन तुम तो हमारी बात को, हमारे हर क्रोध को क्षमा करती रही हो, इस बात का तुम इतना बुरा मान गयी?'' ''किस बात का, चन्दर!'' सुधा ने चन्दर की ओर देखकर कहा, ''मैं किस बात का बुरा मान गयी!'' ''किस बात का प्रायश्चित्त कर रही हो तुम, इस तरह अपने को मिटाकर!'' ''प्रायश्चित्त तो मैं अपनी दुर्बलता का कर रही हूँ, चन्दर!'' ''दुर्बलता?'' चन्दर ने सुधा की अलकों को घटाओं की तरह छिटकाकर कहा। ''दुर्बलता-चन्दर! तुम्हें ध्यान होगा, एक दिन हम लोगों ने ...Read More

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गुनाहों का देवता - 31

भाग 31 ''सुधा कहाँ गयी?'' चन्दर ने नाचते हुए स्वर में कहा। ''गयी है शरबत बनाने।'' गेसू ने चुन्नी सिर ढँकते हुए और पाँवों को सलवार से ढँकते हुए कहा। चन्दर इधर-उधर बक्स में रूमाल ढूँढऩे लगा। ''आज बड़े खुश हैं, चन्दर भाई! कोई खायी हुई चीज मिल गयी है क्या? अरे, मैं बहन हूँ कुछ इनाम ही दे दीजिए।'' गेसू ने चुटकी ली। ''इनाम की बात क्या, कहो तो वह चीज ही तुम्हें दे दूँ!'' ''हाँ, कैलाश बाबू के दिल से पूछिए।'' गेसू बोली। ''उनके दिल से तुम्हीं बात कर सकती हो!'' गेसू ने झेंपकर मुँह फेर लिया। ...Read More

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गुनाहों का देवता - 32

भाग 32 चन्दर ने सुधा के हाथों को अपने हाथ में ले लिया और कुछ भी नहीं बोला। सुधा देर चुप रही, फिर बोली- ''चन्दर, चुप क्यों हो? अब तो नफरत नहीं करोगे? मैं बहुत अभागी हूँ, देवता! तुमने क्या बनाया था और अब क्या हो गयी!...देखो, अब चिठ्ठी लिखते रहना। नहीं तो सहारा टूट जाता है...'' और फिर वह रो पड़ी। कैलाश कुछ किताबें और पत्रिकाएँ खरीदकर वापस आ गया। दोनों बैठकर बातें करते रहे। यह निश्चय हुआ कि जब कैलाश लौटेगा तो बजाय बम्बई से सीधे दिल्ली जाने के, वह प्रयाग से होता हुआ जाएगा। गाड़ी चली ...Read More

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गुनाहों का देवता - 33 - अंतिम भाग

भाग 33 चन्दर ने कुछ जवाब नहीं दिया। चुपचाप बैठा रहा। बिनती ने सभी खिड़कियाँ खोल दीं और चन्दर पास ही बैठ गयी। सुधा सो रही थी चुपचाप। थोड़ी देर बाद बिनती उठी, घड़ी देखी, मुँह खोलकर दवा दी। सहसा डॉक्टर साहब घबराये हुए-से आये-''क्या बात है, सुधा क्यों चीखी!'' ''कुछ नहीं, सुधा तो सो रही है चुपचाप!'' बिनती बोली। ''अच्छा, मुझे नींद में लगा कि वह चीखी है।'' फिर वह खड़े-खड़े सुधा का माथा सहलाते रहे और फिर लौट गये। नर्स अन्दर थी। बिनती चन्दर को बाहर ले आयी और बोली, ''देखो, तुम कल जीजाजी को एक तार ...Read More