यह उपन्यास डायरी विधा में लिखित एक स्त्री की दास्तान है। समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ साँचे बना रखे हैं जैसे अच्छी माँ ....सुगढ़ गृहणी और फरमावदार बीबी, जो इन साँचों में फिट हो जाती है उसकी जिंदगी की गाड़ी आराम से चलती रहती है पर कुछ ऐसी भी होती हैं जो सिर्फ फिट होने को तैयार नहीं होतीं –वे अपने लिए अधिकार के साथ जगह चाहती हैं, उनकी दुर्दशा होती है ।
Full Novel
वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 1
यह उपन्यास डायरी विधा में लिखित एक स्त्री की दास्तान है। समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ साँचे बना हैं जैसे अच्छी माँ ....सुगढ़ गृहणी और फरमावदार बीबी, जो इन साँचों में फिट हो जाती है उसकी जिंदगी की गाड़ी आराम से चलती रहती है पर कुछ ऐसी भी होती हैं जो सिर्फ फिट होने को तैयार नहीं होतीं –वे अपने लिए अधिकार के साथ जगह चाहती हैं, उनकी दुर्दशा होती है । भाग एक – जब भी मैं अपने जीवन के विषय में सोचती हूँ तो सारा अतीत दृष्टि के समक्ष प्रतिबिम्बित हो जाता है | कितनी बड़ी ...Read More
वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 2
भाग दो- कभी-कभी अपने ठगे जाने का एहसास मन को उदासियों से भर देता है और एक साथ ही विवशता, मोह, ग्लानि, घृणा जैसे भावों से जूझने लगती हूँ | सोचती हूँ निश्चय ही मुझमें कुछ गंभीर दोष होंगे, जिसके कारण मैं एक असफल जीवन जी रही हूँ | या फिर मैं सचमुच ही इतनी महत्वाकांक्षी हूँ कि कोई मेरा साथ नहीं दे सकता | अपनी महत्वाकांक्षा के बीज बचपन में ढूंढती हूँ | गहरी दृष्टि से निरीक्षण करती हूँ तो देखती हूँ कि मैं बचपन से ही उपेक्षित, हीन- भावना से ग्रस्त, भयभीत, उदास, निराशावादी लड़की थी, जो ...Read More
वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 3
भाग तीन मैं क्या करूं भगवान क्या करूँ, कैसे रहूँ तेरी इस दुनिया में ? मुझे अभी कितनी पीड़ा पड़ेगी | कितना अपमान झेलना पड़ेगा ? अब और सहा नहीं जाता | तूने मेरे भाग्य में कितने ढेर –सारे दुख-दर्द लिख दिए है | मेरे भीतर की स्त्री छटपटा रही है | मेरा कहीं कोई संबल नहीं | कोई मुझे प्यार नहीं करता | क्या तुम भी मुझे प्यार नहीं करते ? क्या तुम्हें भी मुझसे गुरेज है ? क्यों नहीं मुझे अपने पास बुला लेते ? अगर तुम कहीं हो तो मेरी पुकार सुन लो | मुझे अपने ...Read More
वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 4
भाग चार अपने विद्रोही स्वभाव के चलते मैं हर जगह अनफ़िट हूँ | इसी वज़ह से न मेरा घर पाया, ना मैं परिवार बना सकी | एक हद के बाद मैं किसी की नहीं सुन सकती, न किसी को सह सकती हूँ, जबकि सहे बिना स्त्री का घर –परिवार नहीं बना रह सकता | झूठ, बेईमानी, धोखा मुझे असह्य है और किसी के दाब में रहना भी | हाँ, प्रेम से मुझे गुलाम बनाया जा सकता है और उसी प्रेम की तलाश में मैं ताउम्र भटकती रही, पर प्रेम होता तो न मिलता | इस संसार में सिर्फ स्वार्थ ...Read More
वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 5
भाग पाँच फिर बरसात का मौसम आ गया | ये मौसम मुझे बहुत भारी पड़ता है | मन घबराता | एक अनजानी पीड़ा परेशान करती है | बादल के गरजने से भय नहीं लगता | बस जी चाहता है कि मैं भी उनके साथ उड़ूँ ....भागूँ ....दौड़ूँ ...पर मेरे पास पंख कहाँ हैं ? बारिश में प्रिय के साथ भींगने का भी मन होता है पर प्रिय कहाँ ? वही सूना कमरा....अंधेरा....अकेलापन और उदासी ...| खिड़की से वर्षा की बूंदें आकर कमरे को भिंगोती हैं फिर खिड़की भी बंद करनी पड़ जाती है | बाहर का सौंदर्य-बादलों का उमड़ना...बिजली ...Read More
वर्जित व्योम में उड़ती स्त्री - 6 - अंतिम भाग
भाग छह रात के एक बजे ही मेरी नींद खुल गई। आंधी आज फिर प्रचंड रूप में तांडव मचा थी। इस बार उसके साथ बिजली .तेज बारिश और भयंकर आवाज़ में गरजते बादल भी थे। जैसे पूरी तैयारी, पूरी फ़ौज के साथ हमला बोला गया हो। छतों से टीन, फाइवर, घास -फूस के छज्जे उड़कर दूर- दूर जा पड़े थे। भड़ -भड़ तड़ -तड़ की आवाज़ आ रही थी। प्राचीन शास्त्र में मेघ -नाद को पुरूष सौंदर्य का मापदंड माना गया है, पर इस समय तो उनका नाद दिल को दहला दे रहा है। लगता है वे फट कर ...Read More