ऐसे थे मेरे बाऊजी

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वो कहते हैं ना कि माँ हमेशा चाहती है कि उसके बेटे का पेट भरा रहें लेकिन एक बाप हमेशा चाहता है कि उसके बेटे की थाली हमेशा भरी रहें,माँ की ममता और बाप की बापता में इतना ही फर्क होता है कि माँ की ममता की छाँव बच्चों को हमेशा शीतलता प्रदान करती है और बाप की कठोरता उसे धूप में जलना सिखाती है,जीवन से संघर्ष करना सिखाती है, माँ का बच्चे के जीवन में एक अलग स्थान होता है,लेकिन पिता बच्चे की रीढ़ होता है,जो बच्चे को कभी भी झुकने नहीं देता,माँ को बच्चे का पहला गुरू कहा जाता है,लेकिन गुरू भी ईश्वर की ही उपासना करता है,तो पिता का अस्तित्व और योगदान उतना ही होता है बच्चे के जीवन में जितना कि माँ का....

Full Novel

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ऐसे थे मेरे बाऊजी - भाग(१)

वो कहते हैं ना कि माँ हमेशा चाहती है कि उसके बेटे का पेट भरा रहें लेकिन एक बाप चाहता है कि उसके बेटे की थाली हमेशा भरी रहें,माँ की ममता और बाप की बापता में इतना ही फर्क होता है कि माँ की ममता की छाँव बच्चों को हमेशा शीतलता प्रदान करती है और बाप की कठोरता उसे धूप में जलना सिखाती है,जीवन से संघर्ष करना सिखाती है, माँ का बच्चे के जीवन में एक अलग स्थान होता है,लेकिन पिता बच्चे की रीढ़ होता है,जो बच्चे को कभी भी झुकने नहीं देता,माँ को बच्चे का पहला गुरू ...Read More

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ऐसे थे मेरे बाऊजी - (अन्तिम भाग)

इधर ब्याह की तैयारियाँ हो रही थीं और उधर दुर्गेश की आत्मा प्रयागी के लिए तड़प रही थी,ज्यों ज्यों की तिथि नजदीक आती जा रही थी दुर्गेशप्रताप का दिल डूबता जा रहा था,आखिरकार ब्याह का दिन आ ही पहुँचा और उसने गैर मन से हल्दी और तेल चढ़वाया मण्डप वाले दिन,मायने वाले दिन भोज हुआ और फिर तीसरे दिन बारात चल पड़ी अपनी अपनी बैलगाड़ियों में और ट्रैक्टरों में क्योकिं लड़की नजदीक के गाँव की थी उसका गाँव यही कोई सोलह सत्रह किलोमीटर ही दूर था उसके गाँव से .... बुझे मन से दुर्गेश ने फेरे पड़वाएं,सब नेगचार ...Read More