इस बात को अब तो लगभग 24 वर्ष हो गए हैं जब मैं ‘इसरो’ की सरकारी योजना के अंतर्गत ‘अब झाबुआ जाग उठा’ सीरियल का लेखन कर रही थी | यह पुस्तककार में जयपुर के प्रतिष्ठित ‘बोधि प्रकाशन ‘से 2016 में प्रकाशित हो चुका था जो आज तक अमेज़ोन पर उपलब्ध है |गुजरात साहित्य परिषद में इसका विमोचन भी बड़े जोशोखरोश से हुआ कारण ? यह मेरा पहला ऐसा उपन्यास था जिससे मुझे थोड़ा संतोष था और इससे पूर्व मैं इसका शीर्षक गीत व लगभग 68/70 एपीसोड्स के संवाद से लेकर कथानक आदि लिख चुकी थी जिनका सीरियल रूप में भोपाल व झाबुआ के लिए प्रसारण भी हो चुका था |
Full Novel
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 1
इस उपन्यास का लेखन क्यों और कैसे ? ------------------------------------ इस बात को अब तो लगभग 24 वर्ष हो गए जब मैं ‘इसरो’ की सरकारी योजना के अंतर्गत ‘अब झाबुआ जाग उठा’ सीरियल का लेखन कर रही थी | यह पुस्तककार में जयपुर के प्रतिष्ठित ‘बोधि प्रकाशन ‘से 2016 में प्रकाशित हो चुका था जो आज तक अमेज़ोन पर उपलब्ध है |गुजरात साहित्य परिषद में इसका विमोचन भी बड़े जोशोखरोश से हुआ कारण ? यह मेरा पहला ऐसा उपन्यास था जिससे मुझे थोड़ा संतोष था और इससे पूर्व मैं इसका शीर्षक गीत व लगभग 68/70 एपीसोड्स के संवाद से लेकर ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 2
2---- ‘समाज से जुड़े बड़े-बड़े क्षेत्रों में ये छोटी - छोटी बातें अक्सर होती रहती हैं ‘ उसे किसी का एक संवाद अचानक याद आ जाता है और वह इस वाक्य को अपने मन में अपने अनुसार बुन लेती है | अक्सर ना चाहते हुए भी हमें कोई ना कोई ऐसी बात याद आती रहती है जिसका कोई औचित्य नहीं होता |बात तो गले में ढोल सा लटकाकर पीटने की ज़रूरत नहीं होती| बड़े समझदार हैं, हम फिर भी गले में ढोल लटकाते भी रहते हैं और पीटते भी रहते हैं | लेखन क्षेत्र से जुड़ी समिधा ने जिंदगी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 3
3--- दामले खूब बातूनी थे, वे एक बार शुरू होते तो अपनी रौ में बोलते ही चले जाते, बिना बात को सोचे समझे कि उनके कथन का सुनने वाले पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?छोटे से कद और साँवले रंग के दामले अपनी बातें इतने मनोरंजन पूर्ण ढंग से सामने वाले से कहते थे कि सुनने वाले के समक्ष तस्वीर बनती चली जाती और उनके शब्द -चित्र सिनेमा की भाँति चलने लगते। "कई वर्ष पुरानी बात है, झाबुआ में एक नया-नया अस्पताल खुला था जिसमें काम करने के लिए शहर से डॉक्टर्स, नर्सेज़ बुलाए गए । अस्पताल के अंदर ही ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 4
4— गुजरात की सीमा पार करने के कुछ समय बाद से सपाट इलाका शुरू हो गया जिसमें दूर-दर तक जैसी कोई चीज़ नज़र नहीं आ रही थी।आँखों के सामने केवल रेत ही रेत उड़ रही थी। भागती हुई गाड़ी में से सपाट बंजर ज़मीन पर ऊँची -नीची उड़ती रेत छोटे बड़े टीलों सी लगती पर जब गाड़ी उस स्थान पर हुँचती तब पता चलता कि ज़मीन बिल्कुल सपाट है, उड़ती हुई रेत टीले होने का भ्रम पैदा करती। यह भ्रम कभी-कभी बहुत कष्टदायक हो जाता है, समिधा सोच रही थी। यह भ्रम ही तो महाभारत की लीला के प्रमुख ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 5
5- “चाय बनाऊँ न मैडम?” “मैडम ! चाय” बना लूँ, पीएंगे न ?” युवक को समिधा से दोबारा पूछना था ---समिधा उसकी बात सुन ही नहीं पाई थी, वह न जाने किन विचारों में उलझी हुई थी | “मैडम ! चाय ---“तीसरी बार की आवाज़ से समिधा की तंद्रा भंग हुई | “अरे ! हाँ, दामले साहब के लिए भी बना लेना, साह ही लेंगे |”वह वहाँ अकेली नहीं रहना चाहती थी | शायद स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रही थी |तीर से टपकता हुआ रक्त कभी उसके अपने शरीर के भाग का तो नहीं ? ऐसे तो वह ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 6
6-- कभी उसे लगता है वह कुछ ‘आसमान्य’ सी है !मानव-मन कितनी और कैसी-कैसी बातों में उलझा रहता है सच बात तो यह है, हम जीवन का अधिकांश समय व्यर्थ की बातों में ही गँवा देते हैं | वह सोच रही थी और रैम उसके मुख चुगली खाते आते-जाते भावों को पढ़ने की चेष्टा कर रहा था |शायद रैम ने समिधा की बेचैनी ताड़ ली थी, समिधा को अपनी ओर देखते हुए पाकर उसने अपनी दृष्टि दूसरी ओर घुमा ली | “बाहर बैठें ?”समिधा ने रैम से कहा | “ठीक है मैडम, आप चलिए, मैं अभी आता हूँ ---“उसकी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 7
7-- मि.दामले रात कोई नौ बजे के क़रीब होटल से लौटे |तब तक रैम समिधा के साथ बैठकर न कितनी बातें कर चुका था | दोनों में अच्छी मित्रता हो गई थी | “भूखे पेट न होए भजन ..... मैडम ! आपके लिए –“दामले ने समिधा के हाथ में खाने का पैकेट पकड़ाते हुए कहा और कानों तक एक लंबी मुस्कान खींच ली | “धन्यवाद …. आपने डिनर कर लिया क्या ?” “नहीं, मैं जा रहा हूँ | आप खाकर आराम कर लीजिए | सुबह जल्दी निकलना होगा | समिधा जानती थी अभी दामले का पीने-पिलाने का कार्यक्रम होगा ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 8
8— पूरी रात भर समिधा अर्धसुप्तावस्था में दीवार पर लटके तीर-कमान की चुभन महसूस करती रही थी | एक आँखें खुलने पर वह दुबारा नहीं सो सकी, कमरे की खिड़की के सींकचों पर अपनी ढोड़ी अड़ाकर वहखिड़की में से बाहर का नज़ारा देखने लगी परंतु कुछ ही पलों में उसे कमरे की कैद में छटपटाहट होने लगी | धीरे से उसने कमरे का थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और उसमें से अपनी गार्डन बाहर की तरफ़ निकाली, चारों ओर नज़रें घुमाईं, ड्रॉइंग रूम में कोई नहीं था |यानि रैम उठ चुका था | उसने धीरे से पूरा दरवाज़ा खोला और ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 9
9- कभी-कभी वह बिना सही बात जाने ही निर्णय ले लेती है | रैम के दादा के धर्म परिवर्तन बात सुनकर वह व्यर्थ ही वाचाल हो गई थी | इंसान की भूख बड़ी है अथवा उसकी जाति व धर्म ?हम क्यों अपने मंदिरों में भगवान को दूध पिला सकते हैं पर गरीब का पेट नहीं भर सकते !उसे तो नहीं लगता कि किसी भी देवता की मूर्ति ने अपने भक्तों से दूध पीने की इच्छा व्यक्त की हो |हम इंसान ही तो इंसान के मुँह से रोटी छीनते हैं और मूर्ति को जबरदासी दूध पिलाते हैं !भूख इंसान को ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 10
10--- अब गाड़ी झाबुआ के बाज़ार में से निकलकर अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी | बाज़ार में गुज़रते हुए समिधा की दृष्टि वहाँ के वातावरण का जायज़ा लेने लगी | उसके पास रैम बैठा था |, दामले के पास्स मि. दामले और वह युवक जो उनके साथ आया था और पीछे की सीट पर झाबुआ में शोध करने आए हुए दो और युवक बैठे थे | जैसे ही गाड़ी झाबुआ के मेन बाज़ार के बीचोंबीच पहुँची समिधा ने देखा वहाँ पर भी सड़कों पर वैसा ही बाज़ार लगा था जैसा शहरों में सप्ताह में एक विशेष दिन ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 11
11 समिधा सोच रही थी करुणा का पात्र यह आदिवासी नहीं बल्कि वह व्यक्ति है जो रात-दिन घुटन में लेता है | वास्तव में अपनी उलझनों में फँसा वह हंसना, मुस्कुराना तक भूल गया है, सहज ठहाकों की बात तो उसके लिए चाँद पकड़ने जैसी हो चुकी है | समिधा ने एक युगल को बाज़ार के बीचोंबीच खुलकर हँसते हुए देखकर सोचा | उसे उनका यूँ खुलकर, खिलकर हँसना बहुत अच्छा लग रहा था | गाड़ी सड़क पर चलते हुए लोगों को छोड़कर आगे बढ़ चुकी थी पर समिधा के मस्तिष्क में खिलखिलाते युगल की तस्वीर छपकर रह गई ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 12
12 “ये तो बताओ क्यों मारा ? ”समिधा ने घबराहट भारी उत्सुकता से पूछा, उसके भीतर धुकर-पुकर हो रही पेट में जैसे गोले से गोल-गोल चक्कर काटने लगे थे | “वो---ताड़ी का पेड़ है न ? ”कहकर रैम रुका और उस ओर इशारा किया जहाँ बहुत से लोग खड़े थे | समिधा ने ध्यान से देखा वहाँ चारों ओर ही ताड़ी के लंबे-लंबे पेड़ थे | रैम कुछ कहने ही जा रहा था कि समिधा ने देखा मि. दामले के साथ सभी लोग गाड़ी की ओर आ रहे थे, वह चुप हो गया | दामले ने आते ही समिधा ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 13
13 उस दिन समिधा बहुत आनमनी रही | कितनी सस्ती है ज़िंदगी यहाँ ? किन आधारों पर जीवन जीते ये लोग ? क्या है इनके जीवन का मंत्र ? क्या जीवन का यही आदि और अंत है? देखा जाए तो ज़िंदगी है क्या ? एक गुब्बारा? एक धागा ? एक पल? कोई कण ---पता नहीं ? मगर समिधा को यहाँ ज़िंदगी एक धमाके सी लगी । ऊपर से टपकी, नीचे धम्म से गिरी और बस ---फिर दूसरी ओर यह भी लगा यहाँ लोग ज़िंदगी जीते भी हैं तो एक शिद्दत से, मस्ती से जैसे उसने बाज़ार से गुज़रते हुए ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 14
14 उस दिन भी समिधा को कुछ ऐसा एहसास हुआ था जो आज पेड़ पर से गिरने वाले युवक बारे में सोचते हुए हो रहा है, वह बहुत-बहुत आनमनी हो उठी | गाड़ी में एक ज़ोरदार ब्रेक लगा और समिधा रेल की यात्रा से वर्तमान स्थिति पर आ पहुँची | इस घटना से यूँ तो सभी क्षुब्ध थे | इस समय रैम भी कुछ भी नहीं बोल रहा था जबकि वह इस प्रकार की घटनाओं से आए दिन बबस्ता होता रहता था | गाड़ी रुकने पर मि. दामले उतरे और दरवाज़ा खोलते हुए बोले – “आइए मैडम ! इसी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 15
15 काम अपनी गति से चल रहा था, सुबह ‘लोकेशन’ पर निकल जाना, रास्ते में जो भी मिले चना-चबैना फिर आगे बढ़ जाना | दो दिन बाद ही शारीरिक तथा मानसिक थकान से समिधा के पुर्ज़े ढीले होने लगे | समय भी कम था, दामले की इच्छा थी कि एक लेखिका की हैसियत से समिधा भी उन ‘लोकेशन्स ’को तय करने में ‘टीम ‘का हिस्सा बने | जहाँ-जहाँ वे अपनी सीरियल की शूटिंग करना चाहते थे, वे समिधा को भी साथ चलने का आग्रह करते जबकि उसके जाने की कोई इतनी ज़रूरत भी नहीं थी | काम यहाँ आए ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 16
16 समिधा के मन में अनेकों प्रश्न उभरने लगे, उसके प्रश्नों का समाधान कामना ने कर दिया | उसने कि जो कुछ प्रगति वह झाबुआ में देख रही है, वह मात्र 1 / 2 प्रतिशत ही है | झाबुआ और उसके आस-पास के गाँवों में बेहद गरीबी तथा लाचारी पसरी हुई है | सरकार योजनाएँ बनाती है गरीब तबके के लिए और ये अनपढ़ लोग ताड़ी के नशे में गुनाह करके बचने के चक्कर में कहीं भी फँस जाते हैं | उनका लाभ उठाते हैं वकील, सेठ, मंत्री तथा वे सब जिन्हें अवसर मिल जाता है | पैसा चढ़ता ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 17
17 पता नहीं क्यों समिधा को उसके शब्द कुछ सहमे से हुए लगे, वह बिना कुछ उत्तर दिए चुपचाप की ओर चल पड़ी | जहाँ यह काफ़िला ठहरा हुआ था उसी बँगले के सामने एक नाला खोदा जा रहा था जहाँ दस/पंद्रह मज़दूर काम कर रहे थे | समिधा ने उन्हें पहले भी देखा था परंतु चाहते हुए भी अभी तक उनसे बात नहीं कर पाई थी | यदि किसी भी स्थान की वास्तविकता से अवगत होना हो तो वहाँ के पुराने निवासियों तथा निचले तबके के लोगों के पास जाना चाहिए | इनसे ही स्थान विशेष की संस्कृति ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 18
18 अब तक तीन बज चुके थे, समिधा को भी पेट में घुड़दौड़ महसूस होने लगी थी | वह की तरफ चल दी | रैम फ़र्श पर लेटा हुआ था | “हो---मैडम !कितना देर कर दिया ?” समिधा ने महसूस किया, भूख से उसकी आँतें कुलबुला रही थीं जो उसके चेहरे पर पसरकर चुगली खाने लगीं थीं | “तुम्हें खाना खा लेना चाहिए था अब तक, कहकर नहीं गई थी –खा लेना !” समिधा ने रैम से शिकायती अंदाज़ में कहा | “आप भी तो नहीं खातीं मैडम, मेरे बिना –“ रैम ने समिधा पर अपना सारा बोझ लाद ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 19
19 “ज़िंदगी केवल वहीं नहीं होती जहाँ तुम रहती हो, ज़िंदगी तुम्हारे दायरे से निकलकर चारों तरफ फैली हुई और सबको अलग-अलग सबक सिखाती-पढ़ाती रहती है ! मैंने तुम्हें पहले भी कितनी बार समझाया है, जिंदगी है, इसे जीना सीखो | वो बेचारा तुम्हारा शरीफ़ पति तुम्हारी चिंता में आधा हुआ जा रहा है | अब हम अगर ज़रा ज़रा सी बातों पर मस्ती छोड़ दें तो बस, जी लिए !मैं जीता-जागता उदाहरण हूँ तुम्हारे सामने, इतनी परेशानियाँ झेलकर भी किसीके सामने रोता हूँ क्या?” झाबुआ से लौटने के बाद जब समिधा ने सारांश तथा सान्याल से झाबुआ के ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 20
20 सारांश जानते थे समिधा अपने मन से कुछ भी कह व कर सकती है पर किसी के बाध्य पर कुछ भी नहीं | फिर भी उन्होंने पत्नी को मनाने का प्रयत्न किया | “करवा दो न भाई, काम पूरा---“ ये वही सारांश थे जो उसे परेशान देखकर इस योजना को छोड़ने के लिए उसे बाध्य कर रहे थे ! कमाल है सारांश भी! कभी अट्ट, कभी पट्ट !! वैसे तो इतने अवरोध डाले बीच में, अब जब वह काम करना चाहती है और अब जब वह जाना नहीं चाहती तब दामले की सिफ़ारिश कर रहे हैं ! कहीं ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 21
21 “समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी लेकर प्रभु का नाम | ” गाड़ी अंताक्षरी शुरू हो गई | नई-पुरानी फिल्मों के गीत !सुरीली, बेसुरी आवाज़ें !तालियों की थाप, गाड़ी के साइड पर तबला बजाते, खिलखिल करते शाम के साढ़े पाँच बजे सब झाबुआ पहुँचे | अब तक यह काफ़िला एक परिवार में तब्दील हो चुका था | बंसी ने झाबुआ के ‘बाइपास’ पर गाड़ी रोक दी थी और झौंपड़ीनुमा छोटी सी दुकान पर चाय-पकौड़ों का ऑर्डर दे दिया गया था | गाड़ी से उतरकर सब अपने हाथ-पैर सीधे करने में लगे थे, दामले ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 22
22 अब लगभग शाम के सात बज रहे थे | सूर्यदेव थके-माँदे अपने निवास की ओर प्रस्थान करने के कदम बढ़ा चुके थे | कहीं कहीं उनके अवशेष दिखाई दे रहे थे, गोधूलि का झुटपुटा वातावरण में पसरने लगा था | लगभग दसेक मिनट में ही झाबुआ का विस्तार पाकर गाड़ी किसी दूसरी दिशा की ओर मुड़ गई | सब चुप थे और वातावरण के अंधकार में घिरते हुए उस अंधकार को अपनी-अपनी दृष्टि से नापने का प्रयत्न कर रहे थे | अपने-अपने विचार, अपनी-अपनी सोच ! गाड़ी में बैठे हुए मुसाफ़िर कई---जिनकी मंज़िल एक –चिंतन भिन्न ! एक ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 23
23 अब पीं-पीं करती हुई पुलिस की एस्कॉट-वैन ने उनकी गाड़ी के सामने से निकलकर आगे आकर एक टर्न लिया था और तेज़ी से भागने लगी थी | उस वैन के पीछे शूट की दो गाड़ियाँ थीं और उनके पीछे संभवत: अब तक बीस-पच्चीस गाड़ियों का एक कारवाँ चलना शुरु हो गया था | घना अंधकार—केवल गाड़ियों की आगे-पीछे की बत्तियों की रोशनी उस घने अंधकार को चीरती हुई आगे की ओर बढ़ती जा रही थी | पुलिस की गाड़ी इतनी तेज़ी से ऊपर–नीचे टीलों वाले मार्ग पर न जाने पल भर में कहाँ की कहाँ पहुँच गईं थीं ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 24
24 गाड़ी में सहज मौन पसरा रहा और लगभग दस मिनट पश्चात गाड़ी अलीराजपुर के ‘बैस्ट’ होटल के सामने रुक गई | अँधकार में आँखें गड़ाने पर समझ में आया कि होटल किसी बाज़ार में स्थित था | दो-एक चाय व पैन की दुकानें अभी खुली थीं जहाँ आदिवासी युवा लड़के मदिरा की झौंक में, बीड़ियों से वातावरण को प्रदूषित करते हुए ‘ही—ही, हो-हो’कर रहे थे | रेडियो पर सन्नाटे को चीरता हुआ ‘आजा सनम, मधुर चाँदनी में हम–तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार‘ बज रहा था | होटल पर भी एक छोटा सा बल्ब टिमटिमा ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 25
25 “क्या है, सोने दो न दीदी ?”पुण्या ने करवट बदलनी चाही लेकिन पूरी रात भर गर्दन कुर्सी पर रहने के कारण उसकी गर्दन ऐंठ गई थी | “कितनी बदबू में सोई हो, उठो न ---“समिधा थोड़ी घबरा गई थी, कहीं कोई ऊपर आ गया तो अकेली क्या करेगी ? दूसरे सारे तो निद्रा देवी की गोद में अचेतन पड़े थे, तो कम से कम पुण्य तो जग जाए –एक और एक ग्यारह ---!! पुण्या को मानो नंगा तार छू गया –उसकी आँखें तो मानो खुलने के लिए तैयार ही नहीं थीं | समिधा की आवाज़ से जैसे अचानक ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 26
26 पुण्या ने दो-तीन बार डोर-बैल बजाई परंतु उधर से कोई उत्तर नहीं मिला | समिधा ने उसको चिढ़ाती दृष्टि से देखा, मानो कह रही हो ‘मिलेगी तुम्हें चाय यहाँ –चलो अब वापिस ‘और वह चारों ओर नज़र घुमाने लगी | जेल का वातावरण शांत, सुंदर स्वच्छ लग रहा था | पीछे की ओर वे एक बड़ा सा ‘गेट’ छोड़कर आए थे जो उसके अनुसार जेल के भीतरी भाग में खुलना चाहिए था | चारों ओर नज़र घुमाते-घुमाते समिधा की दृष्टि फिर से दरवाज़े पर आकर चिपकी दरवाज़े पर लगी नाम-पट्टिका पर, जिस पर लिखा; एस. पी. वर्मा जेलर, ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 27
27 आनन–फ़ानन में जेल से जीप भेजकर होटल से उनका सामान मँगवा लिया गया | मुक्ता ज़िद कर रही कि वे दोनों उसके पास ही ठहरें पर उन्होंने समझाया कि पास वाले बँगले में ही तो इंतज़ाम किया जा रहा था, मुक्ता कभी भी उनसे बात करने आ सकती थी | होटल से उनका सामान लाने वाले ड्राइवर ने बताया कि अहमदाबाद से आई हुई पार्टी अभी तक सोई है | जेलर ने होटल के मालिक महेश को फ़ोन करके स्थिति से अवगत कार्वा दिया था | “कमाल हैं मैडम आप लोग भी –“हड़बजेलर वर्मा ने उन्हें ड़ करते ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 28
28 थकान के कार्न दोनों स्त्रियों में किसी का ध्यान भी कमरे में रखे फ़ोन पर नहीं गया था कुछ देर पश्चात उजाला खिड़कियों से भीतर भरने लगा पर दोनों बेहोशी की नींद में थीं | फ़ोन की घंटी सुनकर समिधा हड़बड़ाकर उठा बैठी | मिचमीची आँखों से उसने इधर-उधर दृष्टि घुमाई | अरे!फ़ोन तो उसकी बगल में ही एक छोटी सी तिपाई पर रखा था | कमरे में अब तक उजाला भर उठा था और रोशनी से भरे कमरे में अब सब कुछ साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था | “आप लोग ठीक हैं दीदी ?” फ़ोन पर मुक्ता ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 29
29 उन्होंने ऑफ़िस से बाहर निकलकर देखा, कुछ पुलिस वाले इधर-उधर टहल रहे थे | यह शायद उनका प्रतिदिन कार्यक्रम होगा | वे दोनों आगे की ओर बढ़ चलीं, काफ़ी बड़ा स्थान था | जगह-जगह ऊँचे और सफ़ेद पायजामे, आधी बाहों के कुर्ते तथा सफ़ेद टोपी पहने क़ैदी इधर से उधर घूम रहे थे| यह बड़ा सा स्थान जेल का भीतरी भाग था | इसी लाइन में आगे जाकर एक और ‘गेट’था, बिलकुल वैसा ही सींखचों वाला दरवाज़ा था जैसे बहुधा जेलों का होता है| इसके अतिरिक्त एक और भी लोहे का पूरा बंद दरवाज़ा था जो भीतर की ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 30
30 पाँच-सात मिनट में ही जेलर साहब ने अपने सभी अतिथियों के लेकर अपने ऑफ़िस में इस अंदाज़ में किया मानो कुछ भी नहीं हुआ था | दोनों महिलाओं को हाथों में पानी के ग्लास थामे देखकर वे बोल उठे ; “अरे ! मैडम, आप लोग इतने शांत क्यों हैं ?पीजिए पानी-वानी !अरे भाई शंकर जी, बाहर से कुछ ठंडा-वंडा मँगवाओ ---“ “आइए, सर बैठिए –“जेलर ने दामले से कहा व स्भीकों बैठने का इशारा किया | कितने सहज थे सब लोग ! समिधा का सिर चकराने लगा | “कोई –एक औरत को इतनी बुरी तरह मार सकता है ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 31
31 सरकारी योजना के अंतर्गत होने के कारण दामले जी सारे आज्ञा-पत्र आदि पहले से ही जमा करवा चुके | वे अपने काम को बहुत सुघड़ता से अंजाम देते थे, बहुत पुख़्ता होता था उनका काम-काज ! जेल के अंदर के भाग में जाने की तथा शूटिंग करने की आज्ञा लेकर पूरा काफ़िला उस लोहे के मज़बूत तथा छोटे दरवाज़े की ओर बढ़ चला जिसके आगे से समिधा तथा पुण्या एक बार निकलकर आ चुकी थीं | जेलर वर्मा ने ‘गेट’ तक आए तथा अंदर खड़े संतरियों को उनका ध्यान रखने की हिदायत दी | संतरियों ने एक ज़ोरदार ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 32
32 लगभग एक घंटे तक नृत्य चलता रहा और कैमरों में कैद होता रहा | बाद में सबको पंक्ति बैठाकर कुछ मिष्ठान बाँटा गया और प्रश्नोत्तरी शुरू की गई | समिधा का मन उन बंद सींकचों के कैदियों की ओर बार -बार जा रहा था | उसने देखा उन सबको भी कागज़ की पुड़ियों में मिष्ठान दिया गया था जिसे लेते हुए उनके चेहरों पर किसी बेचारगी का भाव नहीं था | समिधा उन पर दृष्टि चिपकाए बैठी थी | कागज़ की पुड़िएँ पकड़ते हुए भी उन्हें कोई शर्म या झिझक महसूस नहीं हो रही थी | वे अपनी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 33
33 जेल में समिधा जो देखकर आ रही थी, असहज करने के लिए पर्याप्त था | ज़िंदगी यूँ किस घिसटती है? क्या-क्या खेल दिखाती है, किस प्रकार के काम करवाती है? क्या नाटक करवाती है? शेक्सपीयर की लिखी बात उसके ज़ेहन में गहरे समाई हुई थी | ’जीवन नाटक है ‘उस नाटक में भी न जाने कैसे-कैसे नाटक आदमी को खेलने व झेलने पड़ते हैं | उसका मन बेचारगी से भर उठा –कैदियों के लिए । उस पीटने वाली औरत के लिए, रौनक के लिए, उसके स्वयं के लिए या फिर जीवन से जुड़ी हर बात के लिए ? ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 34
34 मुक्ता को अस्थमा था अत: वह बहुत अधिक काम नहीं कर पाती थी | हाँ, अपनी देख-रेख में कैदियों से काम करवाती रहती थी जिन्हें घर में आने की आज्ञा थी, उन सबका लीडर रौनक था | उसने अपने मधुर व्यवहार से सबका मन जीत रखा था | मालूम नहीं उससे कैसे इतना बड़ा अपराध हो गया था ? जितना समिधा अभी तक रौनक को समझ सकी थी, उससे वह यह तो समझ गई थी कि मूल रूप से रौनक अपराधी प्रवृत्ति का नहीं था | तब क्या भूख ही उसके अपराध की जिम्मेदार थी ? मुक्ता इन ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 35
35 लड़ते-भिड़ते, झख मारते दोनों चाट की दुकान से घर तक आ गईं थीं | किन्नी जानती थी, सुम्मी साथ खेलने नहीं आई थी और उसे घर पर न पाकर वह समझ गई थी कि वह कहाँ होगी? सुम्मी भी क्या करे ? जाटनी खुद तो चाट खाती नहीं थी, उसके पीछे किसी जासूस की तरह लगी रहती थी | एक के बाद एक पृष्ठ खुलते रहे –और समिधा अपने अतीत की गलियाँ पार करती रही | पुण्या न जाने कब आकर गहन निद्रा में लीन हो चुकी थी | कुछ दिन पहले ख़बर मिली थी कि किन्नी की ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 36
36 बड़े होने पर समिधा इन सब बातों को लेकर बहुत हँसती थी और सारांश को बताती कि अब लगता है जैसे हम कोई प्रेमी-प्रेमिका हों और आँखों के इशारे से एक-दूसरे के मिलन-स्थल के बारे में सांकेतिक शब्दावली का प्रयोग करते हों | तब तक दोनों अनजान और मासूम थीं, उन्हें तो बस खेलने में रमना आता था | हाँ, घर-परिवेश से अब परिचित होने लगीं थीं | भविष्य कुछ होता है, इसके बारम्बार दोहराए जाने पर कभी-कभी उसके बारे में भी दोनों के बीच अर्थहीन चर्चाएँ होतीं, फिर विचारों के गुब्बारे हवा में उड़ जाते और वे ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 37
37 उनकी मूल दुकान में बनने वाली किसी मिठाई में न जाने क्या गड़बड़ हुई कि जिन लोगों ने खाई उन्हें वमन शुरु हो गई | पेट में भयंकर दर्द तथा ऐंठन होने लगी | इस सीमा तक कि मिठाई खाने वाले लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा | दीपावली का बड़ा उत्सव और अस्पताल के चक्कर ! मिठाई खाने से भयंकर ‘फूड-प्वायज़न’ होने से वातावरण में घबराहट पसर गई | जब तक पता चलता कि मामला कहाँ गड़बड़ है, किस प्रकार इसमें रोक-थाम हो सकती है?तब तक तो चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई थी | परिस्थिति उनके ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 38
38 किन्नी की बीबी एक दिन यूँ ही अपना मन हल्का करने समिधा की माँ के पास आकर बैठ थीं | आजकल उनके मुख से प्रसन्नता की जगम्गाहट कहीं दूर जा छिपी थी जैसे खुशी उनके साथ आँख-मिचौनी खेल रही हो | कुछ दिनों पहले तक तो परिवार के प्रत्येक सदस्य के मुख पर प्रसन्नता झलकती रहती थी परंतु अब—सपाट और सूनी आँखों में ढेरों प्रश्न भरे दिखाई देते | अब उनके पास चर्चा का विषय केवल उनके पति की बीमारी व बच्चों का लालन-पालन ही होता था | वे दया से इसी बात की चर्चा कर रही थीं ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 39
39 कुछ पलों में ही दया एक हाथ में सुम्मी की गुल्लक तथा दूसरे में गुल्लक की चाबी लेकर आई | चारपाई पर बैठते हुए बोली ; “चलो, उठो –हमारे पास काम शुरू करने के लिए पैसे हैं | कोई ज़रूरत नहीं है कड़े रखने की !” राजवती एक झटके से उठकर बैठ गईं | “कहाँ हैं हमारे पास पैसे ?” “ये क्या हैं ? चलो गिनते हैं | ”दया ने पास पड़े एक तौलिए पर गुल्लक खोलकर ख़ाली कर दी जिसमें छुट्टे पैसों के साथ एक-एक रुपयों के भी कई नोट दिखाई दे रहे थे | “ये तो ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 40
40 घर की व बीमार पति की ज़िम्मेदारी थी ही | बच्चे पढ़ रहे थे, उन्हें खाने से लेकर पर हर चीज़ मुहैया कराना उनका कर्तव्य था | गर्ज़ ये कि बीबी ने अपने जीवन के प्रत्येक क्षणको होम कर दिया था, जिसका उन्हें कोई मलाल न था | बस वे जितना संभव हो उतनी ही शीघ्रता से अपनी इस ‘बेचारगी’से उबरना चाहती थीं जिसमें उन्हें समय ने जकड़ दिया था | उनका पूरा विश्वास व श्रद्धा थी कि इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता –बस, उसे अपनी भीतरी शक्ति को पहचानने की देरी होती है | कभी-कभी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 41
41 समिधा बीती बातों की डोर में उलझकर रह गई थी, अनेक अनुत्तरित उलझे प्रश्नों ने उसके मस्तिष्क की नसों को उलझाकर मकड़ी के जाले में कैद कर दिया था | पूरी रात भर वह एक ही स्थिति में पड़ी रही | पुण्या ने उसे उठाने का प्रयास किया परन्तु वह नहीं उठ पाई | उसके शरीर की चुस्ती, फुर्ती, ऊर्जा मानो भीतर ही चूस ली गई थी | उसकी सुबकियों ने पुण्या को बेचैन कर दिया था और वह अनचाहे करवटें बदलते हुए अपनी पिछली तस्वीरें खोलकर उन्हें उलट-पुलट करने लगी थी | अभी उसकी तस्वीरें इतनी धुंधली ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 42
42 वैसे यह बात करने का सही समय नहीं था परंतु दोनों स्त्रियों के दिल इतने भारी थे कि भीतर की असहनीय संवेदना बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगी | ऐसी घनी पीड़ा सारांश में नहीं उँड़ेली जाती, उनके विस्तार होते हैं, उनमें आहें होती हैं, आँसू होते हैं, सिसकियाँ होती हैं, गिले-शिकवे होते हैं –और भी बहुत कुछ होता है –और उसके बाद होती है सहानुभूति, संवेदनात्मकता और संबल का एहसास व विश्वास !पुण्या ने अपना दिल हल्का करने के लिए समिधा को जो बातें बताईं उनकी कल्पना मात्र से ही समिधा सिहर उठी | कैसा नर्क झेलकर ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 43
43 कुछेक मिनट में जेलर वर्मा डॉक्टर को लेकर पहुँच गए | फ़र्श पर फैले रक्त को देखकर उनके पर भी चिंता झलक उठी | डॉक्टर ने अपना दवाइयों का बक्सा खोलकर पुण्या के पैर का इलाज़ शुरू कर दिया था | काँच निकल जाने से पुण्या की आधी पीड़ा कम हो गई थी | जेलर साहब ने दामले से पूछा कि दुर्घटना कैसे हुई ? जिसका उत्तर दमले के पास नहीं था, वे स्वयं भी यही जानना चाहते थे | “यह मेरी वजह से हुआ है | ”समिधा के शब्दों में शर्मिंदगी थी | “क्या-- दीदी ! लगनी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 44
44 पुण्या का ज़ख्म अभी काफ़ी गहरा था परंतु उसने आज पूरा दिन काम किया था सो पीड़ा अधिक गई थी | ’शूट’ से लौटकर वह दवाई खाकर बिस्तर पर लेट गई | खाना पूरी यूनिट ने बाहर ही खा लिया था | सभी थके हुए थे, समिधा व पुण्या के भीतर तो कोई और ही जंग छिड़ी हुई थी | कितना कठिन होता है मन से संवेदनाओं का बाहर निकालकर बाहर फेंक देना, वे मन में चिपक ही तो जाती हैं | हम सब मुखौटे या खोल पहनकर जीते रहते हैं, ऐसे मुखौटे जिनमें कभी-कभी साँस लेना भी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 45
45 अलीराजपुर से लौटने के पश्चात समिधा का मन न जाने कितने टुकड़ों में बँटा रहा | घर लौटकर वह काफ़ी दिनों तक घर में नहीं थी | अजीब से अहसासों की चिंदी-चिंदी उसके दिमाग़ में उड़ती रहतीं | जब तक प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ दूरदर्शन में पुण्या से बार-बार मिलना होता | पुण्या से मिलकर वह स्मृतियों की गलियों में घूमने लगती और घर पर भी कभी अपने पीछे घूमते सायों में या फिर मुक्ता की स्थिति के बारे में सोचती रहती | सच तो यह था कि उसके काम में अवरोध बढ़ता ही जा रहा था | ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 46
46 समिधा की सास इंदु भारतीय तथा अँग्रेज़ी रक्त से सिंचित एक बेहद खूबसूरत खिला हुआ गुलाबी रंग का थीं | वे मन की गहराइयों से भारतीय संस्कारों में रची-बसी संस्कारी तथा विदुषी महिला थीं | जिन दिनों स्त्रियों का घर से निकलना चर्चा का विषय बन जाता था उन दिनों वे कत्थक नृत्य और अपनी माँ के साथ घर पर पंडित जी से शास्त्रीय संगीत सीख रही थीं | विलास का युवा मन इंदु की कलाप्रियता व माता-पिता के संस्कारों से इतना प्रभावित हुआ कि इलाहाबाद आकर भी उसके भीतर बनारस की ओर से आने वाली पवन हिलोरें ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 47
47 विलास व इंदु का विवाह बिना किसी टीमटाम के आर्य समाज रीति से संपन्न हो गया | विलास उसकी माँ पहले ही स्पष्ट कर चुके थे की वे लड़की को अपने घर केवल पहने हुए कपड़ों में ही लेकर आएँगे | विलास की माँ अपने स्मृद्ध पिता की दौलत छोड़कर अचानक पड़ी विपदा को सहते हुए पति की अनुपस्थिति में अपने पैरों पर खड़े रहकर पूरे सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रही थीं | उन्होंने अपनी शिक्षा का सही उपयोग अपने घर व समाज को बेहतरीन बनाने में किया था | ऐसे वातावरण की उपज विलास ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 48
48 कॉलेज में शिक्षा के प्रति गंभीर छात्र बहुत कम थे | कॉलेज नाम भर के लिए जाना एक सा होने लगा था | गाँवों से आकर कॉलेज में प्रवेश लेने वाले लड़के दिल्लगी करने, मस्ती करने के लिए आते थे | इनमें अधिकतर ऐसे उद्दंड व बिगड़े हुए लड़के होते थे जिनके संरक्षकों के पास गाँव में बहुत ज़मीन-जायदाद थी पर शिक्षा के नाम पर मस्तिष्क की कोरी स्लेट ! माता-पिता चाहते थे कि उनका जीवन तो जैसे-तैसे व्यतीत हो ही गया है अब उनके सुपुत्र शहर में जाकर सही मायनों में शिक्षा प्राप्त करें जिससे वे अपनी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 49
49 मोहनचंद खन्ना ‘खन्ना गुड भंडार’ के मालिक लखपति रमेशचंद खन्ना का एकमात्र सुपुत्र था | कुछ दिनों से की शिकायतें आ रहीं थीं कि वह गुंडों की जमात में शामिल हो गया है | मोहन से बड़ी दो बहनें थीं जो विलास की माता जी के कन्या कॉलेज में पढ़तीं थीं | खन्ना जी भारद्वाज परिवार का बहुत सम्मान करते थे | रमेश जी की दोनों बेटियाँ अब इंदु के पास कत्थक नृत्य की शिक्षा लेने आतीं थीं | अचानक एक दिन शहर में हा –हाकार माच गया | मोहन ने आत्महत्या कर ली थी | पिछले दिन ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 50
50 सुम्मी व माँ के दिल की धड़कनें हफ़्ते भर तक कैसी धुकर-पुकार करती रहीं थीं !असहज हो गए दोनों माँ –बेटी ! एक सप्ताह तक परिणाम की प्रतीक्षा की प्रतीक्षा करना उन दोनों के लिए एक लंबी प्रतीक्षा की सज़ा थी | ऊपर से पापा के नकारात्मक संवाद घर भर को बोझिल करते ---सो अलग !एकसुम्मी की सफ़लता पर माँ, बेटी पड़ौसन सूद आँटी ही थीं जो ‘लेडी विद द लैंप’सी माँ-बेटी के अंधकार में रोशनी भरती रहतीं | आखिरकार परिणाम सामने आ गया | डेढ़ सौ प्रत्याशियों में से केवल दो का चयन किया गया था | ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 51
51 समिधा के जीवन में जो खालीपन आ गया तब उस स्थान को केवल काम ही नहीं भर सकता | कुछ रिश्ते, कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो ताउम्र मस्तिष्क की दीवार पर चिपकी रह जाती हैं | आँखें बंद करती तो माँ, पापा के साथ बिताए चंद खूबसूरत दिन उसकी पलकों पर तैरने लगते और वह अपने बिस्तर पर पड़े खाली तकिये को आँखों पर रखकर फफक पड़ती | कई दिनों तक बोस दंपति ने उसे उसके घर में अकेले नहीं सोने दिया था, ज़िद करके दोनों उसे अपने साथ अपने घर में ही सुलाते थे | खाने-पीने ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 52
52 रोज़ी और समिधा की अच्छी मित्रता हो गई थी | दोनों एक-दूसरे का सुख –दुख बाँटने लगीं | बहुत पहले से नृत्य सीखना चाहती थी परंतु माता-पिता के अभाव मेन उसका पूरा जीवन ही अभावग्रस्त रहा था | ऐसी स्थिति में रहकर उसने बचपन को बहुत नज़दीक से देख लिया था, उसकी न्श्वरता समझ ली थी और बचपन में ही वह बड़ी बन गई थी| बंबई आए हुए उसे केवल ढ़ाई वर्ष ही हुए थे, समिधा के साथ उन्हें दो नहीं, एक और एक ग्यारह बना दिया था | अब उसे अवसर मिला था कि वह अपने शौक ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 53
53 मुँह घुमाने से या परिस्थितियों का पीछा छुड़कर भाग जाने से कोई कब तक बच सकता है ? को अपने सामने आई हुई परिस्थिति का सामना करना ही पड़ता है और वह जितनी जल्दी स्थिति को समझकर अपनी नियति स्वीकार कर ले, उतना ही उसके लिए अच्छा होता है अन्यथा उसका चाइनोकरार चला जाता है | सबने अपने –अपने हिस्से के रंजोगम को, स्थिति को झेला था, परिस्थितियों को स्वीकार करके दुख-सुख अपना लिए थे | तीनों मित्र अपने-अपने जीवन के बारे में चर्चा करते हुए कभी मुरझा जाते तो कुछ समय बाद तीनों के चेहरों पर मुस्कुराहट ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 54
54 अचानक ! समिधा पाशोपेश में पद गई | उसने तो कुछ सोचा ही नहीं था इस बारे में हाँ, वह सारांश को एक अच्छे इंसान की, एक अच्छे मित्र की हैसियत से पसंद करती थी पर --- समिधा को भौंचक्की देखकर रोज़ी खिलखिलाकर हँस पड़ी | “हाँ, मैं समिधा के साथ अपना पूरा जीवन बिताना चाहता हूँ | ”सारांश ने अब खुलकर कहा | समिधा अचकचा उठी और कुछ अजीब सी दृष्टि से उसने सारांश की ओर देखा | उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सारांश इतनी आसानी से उसके सामने अचानक यह सब कुछ परोस ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 55
55 इस सप्ताह समिधा व रोज़ी का कार्यक्रम काफ़ी व्यस्त था, सारांश भी व्यस्त था परंतु वह जैसे ही से ख़ाली होता उसे अकेलापन कचोटना लगता | उसे अपनी इन मित्रों के साथ अपनी शामें बिताने की आदत पड़ गई थी अत: इस बार उसने अकेलापन महसूस किया | अपने ऊपर सारांश को हँसी आई, पहले भी तो वह अकेला ही घूमता रहता था, अब उसे इन मित्रों की आदत पड़ गई थी | इस ख़ाली व अकेले समय में उसने अपने व समिधा के बारे में गंभीरता से सोचा | फ़ोन पर माँ से बात करके समिधा के ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 56
56 कई दिनों से वह समिधा से नहीं मिल सका था | उस दिन रविवार था और दफ़्तर का दिन ! माँ से सुबह ही बात हुई थी माँ ने उसे समिधा से स्पष्ट बात करने के लिए कहा था | सारांश ने समिधा की सारी परिस्थिति से उन्हें अवगत करा दिया था | इंदु समझ गई थी मातृविहीन कन्या का लालन-पालन किस परिवेश में हुआ होगा, उसमें पिता से उसके लिए अपने प्रेम की बात करना सरल नहीं था | उसने सारांश को आश्वासन दिया और कहा कि सबसे पहले उनके रिश्तों की स्पष्टता भी आवश्यक थी | ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 57
57 सारांश की माँ इंदु बहुत चुस्त निकलीं, उन्हें अपने पुत्र के विवाह की बड़ी शीघ्रता थी | उन्होंने से बात करने के दूसरे दिन ही समिधा के पिता तथा श्रीमती सूद से बात करके उन्हें बता दिया था कि वे अपने बेटे सारांश के लिए उनकी बेटी का हाथ माँगना चाहती हैं | इंदु ने पहले श्रीमती सूद से बात की, उन्हें बताया कि वे जानती हैं कि समिधा अपनी माँ के समान ही उन्हें आदर देती है | अत: वे समिधा के पिता से आसानी से बात कर सकेंगी | श्रीमती सूद को बहुत आश्चर्य हुआ, उनका ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 58
58 इंदु के व्यक्तित्व की पारदर्शिता से समिधा के पिता तथा सूद अंकल-आँटी प्रभावित हुए, उनकी बेटी को सारांश सुयोग्य तथा उच्च शिक्षित परिवार मिलेगा, इसकी उन्होंने कल्पना तक न की थी | वैसे उनके जीवन में सुख और दुख दोनों अचानक तथा अकल्पनीय ही तो आते रहे हैं| इंदु की सरलता तथा भद्रता देखकर वे अपनी बेटी से यह पूछना भी भूल गए कि उसका तथा सारांश का रिश्ता कैसे तथा किन परिस्थितियों में शुरू हुआ था ? उन्होंने अपने घर की परिस्थिति एवं स्थिति के बारे में इंदु को स्पष्ट रूप से बताया | इंदु पहले ही ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 59
59 बिना किसी टीम-टाम के दोनों शादियाँ सम्पन्न हो गईं | समिधा के पिता, सूद आँटी-अंकल, बोस पति –पत्नी, के कुछ साथी, रोज़ी, जैक्सन व उसके माता-पिता -----बस, इतने लोग दोनों शादियों में सम्मिलित हुए| जैक्सन तो अभी बंबई आया था, उसका कोई मित्र यहाँ नहीं था |आर्य-समाज व चर्च, दोनों शादियों में वही लोग थे | दोनों समय सबने एकअच्छे होटल में भोजन किया, आनंद किया और दोनों जोड़ों को शुभकामनाएँ प्रदान कीं | इंदु को अगले ही दिन सुबह वापिस लौट जाना था अत: वह समिधा को अपने पुत्र के घर प्रवेश करवाकर जाना चाहती थी | ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 60
60 उस दिन मौसम कुछ खुशगवार सा था, आकाश पर बदली छने के कारण वातावरण में अभी रोशनी नहीं थी | विलास व इंदु दोनों बाग की ओर जाने वाले मार्ग पर चलने के आदी हो चुके थे अत: उन्हें हल्के अँधेरे में बाग तक पहुँचने में कोई परेशानी नहीं हुई | दोनों अपने प्रतिदिन के स्थान पर पहुँचे ही थे कि पेड़ों के झुरमुट से कदमों की कुछ आहटें सुनाई दीं | होगा कोई उनके जैसा प्रात: भ्रमण का शौकीन ! दोनों बातें करते हुए बाग में घूमते रहे | अचानक बारिश ने ज़ोर पकड़ लिया और वे ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 61
61 जहाज रन-वे पर उतरने वाला था, पेटी बाँधने की घोषणा होने पर इंदु के पास बैठे युवक ने हिलाया, वह तंद्रा से जागी | “थैंक्स” उसके मुख से मरी हुई आवाज़ निकली | विकास ने गाड़ी भेज दी थी, वो घर पर ही थे | गाड़ी की आवाज़ सुनते ही वे लपककर बाहर आए, इन्दु ने उनकी उत्सुकता भाँप ली थी | विलास का चेहरा देखकर उसे सुकून मिला | विलास ने हर बार की भाँति पत्नी को एक ठंडा आलिंगन दिया | “सब ठीक से हो गया ?” “हूँ –” विलास ने बहादुर को चाय बनाने की ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 62
62 इंदु विलास के चेहरे पर देखती आई थी, उसने बहुत बार विलास को उस कठिन स्थिति से उबारने प्रयास में अपनी नारी-सुलभ सीमाएँ भी पार करीं थीं | परंतु पत्नी के समीप आते-आते वर्षों पीछे छूट गया चलचित्र विलास की दृष्टि के समक्ष पुन: खुल जाता और वह अचानक शिथिल हो जाता | इंदु के समीप पहुँचने की स्थिति में पहुँचता, उसका शरीर निढाल होने लगता | इंदु के तन व मन की अतृप्त प्यास की स्थिति समझे बिना वह लंबी-लंबी साँसें लेते हुए इंदु को अधर में लटकता छोड़ देता और करवट बदलकर सिकुड़ जाता | अपनी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 63
63 अगले ही दिन रोज़ी व जैक्सन का भी आरक्षण हो गया और दो दिन बाद वे सब दिल्ली | समिधा विवाह के बाद पहली बार पापा के पास आई थी, वह भी बिना बताए | पापा के हर्ष का ठिकाना न था | उन्होंने अपनी बेटी-दामाद के साथ रोज़ी और जैक्सन का भी वैसा ही सत्कार किया जैसा अपने बेटी-दामाद का किया था | समिधा व सारांश को देखकर सूद आँटी इतनी प्रसन्न हो उठीं जैसे उनकी अपनी बेटी पहली बार ससुराल से आई हो | उनसे पूछकर पापा ने जो बेटियों को लेना-देना होता है, वह सब ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 64
64 इंदु कभी भी अपने में खोने लगती, उसकी आँखों की कोर गीली हो जातीं फिर किसी की ज़रा भी आहट सुनते ही उसकी मुस्कान कानों तक खिंच जाती, अचानक सूखे गुलशन में जैसे बाहर आ जाती | “माँ!आपकी मुस्कान कितनी प्यारी है } उदासी आप पर अच्छी नहीं लगती | ” “पर –मैं उदास कैसे रह सकती हूँ भला, इतने प्यारे बच्चे हैं मेरे !”इंदु दुलार से समिधा पर ममता बरसा देती| सब एक-दूसरे की पीर पहचानते थे पर सब गुम थे, आख़िर है क्या इस ज़िंदगी का मसला ? जो कभी न तो हल हुआ है और ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 65
65 अभी इंदु पचास की भी नहीं हुई थी कि उसे दादी बनने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला था उसका मन अब भी अपने हिस्से की सौंधी धूप की प्रतीक्षा कर रहा था | सूरज की प्रात:कालीन रश्मियाँ मनुष्य के मन में कैसा उत्साह, कैसा उजियारा भर देती हैं ! यह धूप इंदु के जीवन में भी आई, झुलसा देने वाली धूप ! अंतर को झुलसा देने वाली धूप !उसके अंतर की चीर ने बार-बार उसे ऐसे स्थान पर ला खड़ा किया जहाँ वह गुमसुम हो कई बार अजनबी रास्ते पर भी चल पड़ी थी फिर न जाने कौनसी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 66
66 आँसुओं की नमी ने विलास की बंद आँखों में हलचल पैदा कर दी | धीरे से आँखें खोलकर इंदु पर एक स्नेहयुक्त मुस्कान डालने की चेष्टा की | “आ गईं तुम ? मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था | ”विलास के क्षीण स्वर इंदु के कानों से टकराए | उसकी अश्रुपूरित बंद आँखें खुलीं | वह विलास के वक्ष से ऐसी बेल की भाँति लिपट गई जो टूटने की स्थिति में तत्पर हो | “इंदु ! मुझे माफ़ करना, मैं तुम्हारा साथ नहीं निभा पाया ---” स्वर टूट गए ।प्रिय से मिलन की प्यासी इंदु ने विलास ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 67
67 जब समिधा के पिता इलाहाबाद गए थे तब से ही प्रोफ़ेसर पति-पत्नी की आकस्मिक दुर्घटना को देखकर उनका विक्षिप्त हो उठा था | प्रोफ़ेसर व इंदु के पार्थिव शरीरों को देखकर वे जड़ हो गए थे | उन्हें सूद परिवार का बहुत सहारा था, यह परिवार प्रत्येक मोड़ पर उनके साथ खड़ा था और हमेशा एक पड़ौसी का धर्म बखूबी निभाता रहा था | उन्होंने हर समय उनका ध्यान रखा था, यहाँ तक कि विलास व इंदु की मृत्यु के समय भी सूद साहब उनके साथ इलाहाबाद गए थे | इलाहाबाद से आकर वे काफ़ी बेचैनी में रहने ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 68
68 भाग्यवश बहादुर को एक नेपाली लड़का मिल गया था जिसे उसने कैंटीन का काम बढ़ जाने के कारण से पूछकर अपने पास रख लिया था | बातों-बातों में बहादुर ने उसकी जन्मपत्री पढ़ डाली थी और नेपाल के उसके खानदान का पता चलते ही वह उस पर लट्टू हो गया था | उसका नाम विजय था और वह नेपाल के राजा के किसी कर्मचारी के दूर के रिश्तेदार का नाते-रिश्ते में कुछ लगता था | वह यहाँ पर बचपन से ही अपने फूफा के पास पढ़ने आ गया था और अब बी. ए में था| उसे अपने अध्ययन ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 69
69 झाबुआ की घटनाओं ने समिधा के जीवन में फिर से ऐसे कई अनुत्तरित प्रश्न खड़े कर दिए जिनके में उसने सोचना छोड़ दिया था | अपने मित्र सान्याल के अचानक इस संसार से विलुप्त हो जाने पर समिधा के मन में उगे हुए उलझे प्रश्नों को सारांश के अतिरिक्त कोई समझने वाला नहीं था | वह बहुत व्यस्त रहने लगा था | समय इस द्रुत गति से भाग रहा था मानो सबको अपने पीछे भगाना ही उसका मकसद हो, होता भी यही है | बच्चे अपने में समर्थ होने लगे, सुमित्रा का उनका ध्यान रखना पर्याप्त था | ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 70
70 आज सतपाल वर्मा ने पत्नी का हाथ पकड़कर उसे खुले आसमान के नीचे घर के सहन में लाकर कर दिया था | अपने सारे जीवन चारदीवारी में कैद रही मुक्ता एक अजीब सी मनोदशा में थी | पति को स्नेहमयी दृष्टि से निहारते हुए वह चारों ओर के वातावरण को लंबी-लंबी साँसें खींचकर अपने भीतर उतारने का प्रयास करने लगी | साफ़-सुथरा वातावरण, फल-फूल, बेलों से सज्जित बँगले से बाहर का छोटा सा किंतु सुंदर बगीचा ! पवन के नाज़ुक झौंकोरों के साथ बड़ी नज़ाकत से हिलते-डुलते पुष्प गुच्छ और पत्ते, लहलहाती कोमल टहनियाँ, इतराती पेड़ों से लिपटी ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 71
71 साँझ होने लगी थी लेकिन मन वैसा ही बना हुआ था | मुक्ता ने प्रयासपूर्वक मुस्कुराने का सिलसिला रखा | वह उठकर जाने ही लगी थी कि सतपाल ने उसे प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया – “अब चाय-वाय बनाने मत चल देना, बाहर ही चलेंगे | लालजी बता रहा था कि हमारे शहर में एक बहुत सुंदर रेस्तरां खुला है | ” पत्नी को आलिंगन से मुक्त करके वे आगे बढ़ गए, अलमारी खोलकर उन्होंने नई साड़ी और मोतियों का सैट निकाला और मुस्कुराते हुए मुक्ता से पहनने का अनुरोध किया | सतपाल मुक्ता को लेकर फिल्म देखने ...Read More
नैनं छिन्दति शस्त्राणि - 72 - अंतिम भाग
72 कितने वर्षों के पश्चात वह अपनी मातृभूमि की रज छूने जा रही थी, समिधा का मन लरजने लगा बीबी के घर तक पहुँचने तक वह खोई रही स्मृतियों में | पवन उड़ती रही जाने कहाँ –कहाँ ?वह गलियारों में आँख-मिचौनी खेलती रही किन्नी के साथ !न जाने वह कैसे आ गई थी ?जब अचानक कार उसके निर्देशित स्थान पर रुकी तब वह चौंकी उतरकर उसने वहाँ की रज उठाई और अपने माथे पर लगा ली | यह उसकी जन्मभूमि थी | स्वाभाविक था, घर बंद पड़ा था –पड़ौस की चौबे पंडताइन उसे पहचानकर फूट-फूटकर रोने लगीं | काफ़ी ...Read More