ये कैसा संयोग

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आज फिर वसुधा जी अपनी छोटी बेटी का सिर अपनी गोद में रखकर, किसी सोच में गुम हो गई, "ईश्वर मेरी कितनी परीक्षाएँ लेंगे? मुझसे ऐसा क्या गुनाह हुआ है जो ईश्वर मुझे ये दिन दिखा रहे हैं।" इतना सोच कर वसुधा जी अपने अतीत में चली गई... वसुधा जी जब अनिल जी से विवाह करके उन के जीवन में आई थी तो कितनी खुश थी। रेलवे के उच्च पद पर आसीन अधिकारी की बेटी थी वसुधा! दुःख क्या होता है उसने कभी न तो समझा और न ही कभी जाना।

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ये कैसा संयोग - भाग - 1

आज फिर वसुधा जी अपनी छोटी बेटी का सिर अपनी गोद में रखकर, किसी सोच में गुम हो गई, मेरी कितनी परीक्षाएँ लेंगे? मुझसे ऐसा क्या गुनाह हुआ है जो ईश्वर मुझे ये दिन दिखा रहे हैं।" इतना सोच कर वसुधा जी अपने अतीत में चली गई... वसुधा जी जब अनिल जी से विवाह करके उन के जीवन में आई थी तो कितनी खुश थी। रेलवे के उच्च पद पर आसीन अधिकारी की बेटी थी वसुधा! दुःख क्या होता है उसने कभी न तो समझा और न ही कभी जाना। जब ...Read More

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ये कैसा संयोग - भाग - 2

गतांक से आगे...सहसा सामने से किसी औरत की आवाज़ सुनकर सुधा स्तब्ध रह गयी... वह कुछ देर के लिए हो गई तो उधर से प्रश्न किया गया.. "हैलो कौन?"सुधा- "मैं सुधा, कौशिक की पत्नी.. कौशिक जी कहाँ हैं और आप कौन हैं?और उनका फोन आपने उठाया?"तब उधर से- "क्या बकती हो तुम? कौशिक की पत्नी तो मैं हूँ।"सुधा- "नहीं... ये मज़ाक का समय नहीं है कौशिक की पत्नी तो मैं हूँ अभी कुछ दिन हुए हैं हमारी शादी को।"फिर उधर से- "मैं नहीं मानती क्योंकि मैं कौशिक की पत्नी हूँ तथा हमारी शादी के पूरे पाँच साल हो चुके हैं ...Read More