इस सुबह को नाम क्या दूँ - महेश कटारे

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रामरज शर्मा अभी अपना स्कूटर ठीक तरह से स्टैंड पर टिका भी नहीं पाए थे कि उनकी प्रतीक्षा में बैठा भगोना-चपरासी खड़ा हो, चलकर निकट पहुँच गया-'मालिक आपकी बाट देख रहे हैं ....बहुत जरूरी में ....मैं यहाँ चार बजे से बैठा हूँ।' भगोना ने सूचना, कार्य की गंभीरता और उलाहना एक साथ बयान कर दिया। 'क्यो ?' स्कूटर के सही खड़े होने के इत्मीनान की खातिर उसे जरा-सा हचमचाकर परखते हुए शर्मा जी ने पूछा। भगोना कोई उत्तर न दे चुपचाप खड़ा रहा। वह चपरासी है-उसे तो सौंपी गई जिम्मेदारी की भरपाई करनी है। यहाँ नौकरी करते-करते वह समझ गया है कि वह इधर- उधर का न सोचे, न करे। क्या पता, कौन-सा ठीकरा फूटे और उसके सिर पड़ जाए ? चेरी को चेरी ही रहना है...तौनार-बधार के रानी तो हो नहीं सकती।

Full Novel

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इस सुबह को नाम क्या दूँ - महेश कटारे - 1

महेश कटारे - इस सुबह को नाम क्या दूँ 1 रामरज अभी अपना स्कूटर ठीक तरह से स्टैंड पर टिका भी नहीं पाए थे कि उनकी प्रतीक्षा में बैठा भगोना-चपरासी खड़ा हो, चलकर निकट पहुँच गया-''मालिक आपकी बाट देख रहे हैं ....बहुत जरूरी में ....मैं यहाँ चार बजे से बैठा हूँ।'' भगोना ने सूचना, कार्य की गंभीरता और उलाहना एक साथ बयान कर दिया। ''क्यो ?'' स्कूटर के सही खड़े होने के इत्मीनान की खातिर उसे जरा-सा हचमचाकर परखते हुए शर्मा जी ने पूछा। भगोना कोई उत्तर न दे चुपचाप खड़ा रहा। वह चपरासी है-उसे ...Read More

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इस सुबह को नाम क्या दूँ - महेश कटारे - 2

महेश कटारे -इस सुबह को नाम क्या दूँ 2 रामरज मिसमिसाकर पड़ना चाहते थे। पर जानतेथे कि इससे स्थिति तो बदलेगी नही, उल्टे उन्हीं की हानि होगी। इसलिए घूँट-सा भरकर बोले- ''देखिए मालिक ! कुछ ऐसी-वैसी चींजे जब सरेआम होने लगती हैं, तो संस्था की साख गिर जाती है।'' ''सुनो शर्मा जी ! इस तरह के भाषण 26 जनवरी और 15 अगस्त को बच्चों के सामने अच्छे लगते हैं। नेतागिरी और मास्टरी का ऐसा ही दस्तूर है, क्योंकि उन्हें सुनना है और तालियाँ बजानी हैं, फिर दो-दो लड्डू लेकर घर लौटना है। आप मास्टर लोग आधी ...Read More

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इस सुबह को नाम क्या दूँ - महेश कटारे - 4 - अंतिम भाग

महेश कटारे - इस सुबह को नाम क्या दूँ 4 फट-फट फटक फट फट की दनदनाती आवाज़ के साथ प्रवेश द्वार पर वजनी एन्फील्ड़ मोटर-साईकिल चमकी और मैदान में अपनी भरपूर आवाज़ घोषित करती हुई सीधे कार्यालय के सामने जाकर रूकी। केन्द्र तथा केन्द्राध्यक्ष की सरेआम अवहेलना से रामरज शर्मा रोष से भर उठे, किंतु यह इलाके का थानेदार था जिसे संस्था के मंत्री भी मान देते हैं। कमर में पिस्तौल लटकाए थानेदार के पीछे मार्क थ्री से सज्जित प्रधान आरक्षक था। दोनों को सिंह-ध्वनि के साथ कार्यालय में प्रवेश करते और तुरन्त निकलते देखते रहे शर्मा। ...Read More

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इस सुबह को नाम क्या दूँ - महेश कटारे - 3

महेश कटारे - इस सुबह को नाम क्या दूँ 3 बाबू के जाने के बाद रेडियो खोलकर शर्मा जाने क्या-क्या सोचते रहे। दूध पीकर सोने की किश्तवार कोशिश करते हुए रात काटी और सुबह नित्यप्रति के अनुसार नहा-धोकर विद्यालय पहुँच, नाक की सीध चलते हुए अपने कार्यालय में घुस गए। पर्यवेक्षणवाले लगभग सभी शिक्षक उपस्थित थे। डयूटी-चार्ट पर निगाह डालते हुए शर्मा ने आवाज5 में अतिरिकत कड़क भरकर पूछा-''आप लोगों ने अपने-अपने कक्ष नोट कर लिये ?'' ''हाँ, के संकेत में सब के सिर हिलने पर शर्मा की घूमती दृष्टि गणित वाले शर्मा के ऊपर ...Read More