प्रस्तर मूर्ति के समान स्थिर बैठी दिव्या निर्निमेष,सूनी अश्रुविहीन नेत्रों से सामने की दीवार देखे जा रही थी।सफेद चेहरे पर ठहरी हुई पुतलियां इंगित कर रही थीं कि वह जीवित तो है, परन्तु संज्ञाशून्य हो चुकी है, अपने जीवन में विधाता या शायद निष्ठुर लोगों के कपट भरे आघात से।भले ही इसे बदकिस्मती का नाम दे दिया जाय लेकिन उसकी तकदीर की लकीरों में बर्बादी लिखने वाले लोग क्षमा के योग्य तो कदापि नहीं।ये अलग बात है कि उनकी सजा सिर्फ़ ऊपरवाले के हाथ में है। आह!कितने क्रूर होते हैं वे लोग जो अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी
Full Novel
अक्षम्य अपराध - 1
प्रस्तर मूर्ति के समान स्थिर बैठी दिव्या निर्निमेष,सूनी अश्रुविहीन नेत्रों से सामने की दीवार देखे जा रही थी।सफेद चेहरे ठहरी हुई पुतलियां इंगित कर रही थीं कि वह जीवित तो है, परन्तु संज्ञाशून्य हो चुकी है, अपने जीवन में विधाता या शायद निष्ठुर लोगों के कपट भरे आघात से।भले ही इसे बदकिस्मती का नाम दे दिया जाय लेकिन उसकी तकदीर की लकीरों में बर्बादी लिखने वाले लोग क्षमा के योग्य तो कदापि नहीं।ये अलग बात है कि उनकी सजा सिर्फ़ ऊपरवाले के हाथ में है। आह!कितने क्रूर होते हैं वे लोग जो अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी ...Read More
अक्षम्य अपराध - अंतिम भाग
गतांक से आगे…… विवाह तिथि से पूर्व दिवस में वर के यहाँ तिलक समारोह का आयोजन था,जिसमें 30 मुख्य रिश्तेदार तिलक लेकर दिव्या के ससुराल गए थे, सभी वहां की भव्य व्यवस्था देखकर अभिभूत थे।विवाह वाले दिन पहले गोदभराई की रस्म सम्पन्न की गई,जिसमें एक हीरे का जगमगाता सेट,दो सोने के सेट,कई अंगूठियां, हाथों के लिए सोने के भारी कड़े,चेन,पायल,ढेरों मंहगे कपड़े देखकर सभी दिव्या के भाग्य से रस्क कर रहे थे।किसी को कहां भान था कि इस चकाचौंध के पीछे कितने भयानक सच को छिपा दिया था वर पक्ष ने। खैर, पूरे धूमधाम से विवाह के समस्त कार्यक्रम ...Read More