अनुभव को जब भी समय मिलता वह लाइब्रेरी से अपनी मनपसंद पुस्तकें लाकर पढ़ लेता । छुट्टियों में वह घर में रखी हुई पुस्तकें निकाल कर पढ़ता,उसे पढ़ने का बहुत शौक़ था । एक दिन उसने दादी जी को पुस्तक पढ़ते हुए देखा, जब दादी जी पुस्तक रख कर चली गईं तो अनुभव उस पुस्तक को अपने कमरे में लाकर पढ़ने लगा । शुरू से उस पुस्तक को वह पढ़ने लगा लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रही थी। अनुभव दादी जी के पास जाकर किताब दिखाते हुए बोला— दादी जी मुझे यह
Full Novel
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 1
अनुभव को जब भी समय मिलता वह लाइब्रेरी से अपनी मनपसंद पुस्तकें लाकर पढ़ लेता । छुट्टियों में वह में रखी हुई पुस्तकें निकाल कर पढ़ता,उसे पढ़ने का बहुत शौक़ था । एक दिन उसने दादी जी को पुस्तक पढ़ते हुए देखा, जब दादी जी पुस्तक रख कर चली गईं तो अनुभव उस पुस्तक को अपने कमरे में लाकर पढ़ने लगा । शुरू से उस पुस्तक को वह पढ़ने लगा लेकिन उसकी समझ में नहीं आ रही थी। अनुभव दादी जी के पास जाकर किताब दिखाते हुए बोला— दादी जी मुझे यह ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 2
दादी जी— अनुभव मैं तुम्हें नकारात्मक और सकारात्मक विचारों की आपस में लड़ाई की एक कथा, जो महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी वह सुनाती हूँ । (१) सत्यवादी एक बार कहीं एक महान साधु रहते थे, वह साधु सदा सत्य बोलने के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने सत्य बोलने की शपथ ली थी इसलिए वह ‘सत्यमूर्ति’ के नाम से प्रसिद्ध थे। वह जो भी कहते लोग उनका विश्वास करते थे क्योंकि जिस समाज में वह रहते और तपस्या करते ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 3
अध्याय दो- ब्रह्मज्ञान अनुभव— दादी जी,अगर अर्जुन के हृदय में उन सबके जिन्हें युद्ध में मारना था,इतनी करुणा भरी थी,तो वह कैसे रणक्षेत्र में युद्ध कर सकते थे? दादी जी— बिलकुल यही तो अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा था । उन्होंने कहा — मैं युद्ध में अपने बाबा, गुरु और अन्य संबंधियों पर कैसे बाण चला सकता हूँ?अर्जुन की बात ठीक थी ।वैदिक संस्कृति में गुरु और वृद्धजन आदर के पात्र हैं । किंतु धर्मग्रंथों में यह भी कहा गया है कि कोई ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 4
दादी जी— अनुभव मैं तुम्हें सफलता के रहस्यों को विस्तार से बताती हूँ जो अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण बताया था । हमें अपने काम या पढ़ाई में पूरी तरह इस प्रकार खो जाना चाहिए,जिससे और किसी बात का,यहाँ तक कि काम के फल का भी ध्यान न रहे । हमें अपने कर्म के श्रेष्ठतम परिणामों की प्राप्ति के लिए हमें पूरे मन को अपने काम पर ही केन्द्रित करना चाहिए इधर-उधर नहीं । कर्म को परिणामों की चिंता किए बिना पूरे मन से करना चाहिए ।यदि हम अपना पूरा ध्यान और पूरी शक्ति कर्म ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 5
अध्याय तीन- कर्मयोग या कर्तव्य मार्ग अनुभव — दादी जी हमें अपनी इच्छाओं पर क़ाबू क्यों करना चाहिए? दादी जी— जब इंद्रियों के सुख के लिए ग़लत व्यवहार चुनते हो,तो तुम उसके परिणामों को भी चुनते हो ।इसलिए कोई भी काम सबके भले के लिए किया जाना चाहिए,अपनी इच्छाओं को शांत करने के लिए या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं ।कर्मयोग के अभ्यास करने वाले को कर्मयोगी कहते है ।कर्मयोगी सेवा का सही ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 6
अध्याय तीन दादी जी— अध्याय तीन में जिस निःस्वार्थ सेवा के बारे में विचार किया गया समझने के लिये एक कहानी सुनाती हूँ । कहानी (३) सर अलेक्ज़ेंडर फ़्लैमिंग एक दिन स्काटलैंड के एक गरीब किसान फ्लैमिंग ने, अपने परिवार को पालने के लिए अपना रोज़ का काम करते समय सहायता के लिये किसी की चीख सुनी। यह चीख पड़ौस के दलदल से आ रही थी । वह किसान अपना काम छोड़कर दलदल की ओर भागा।वहॉं कमर तक दलदल ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 7
अध्याय चार ज्ञान-संन्यास-मार्ग अनुभव— गीता में युद्ध क्षेत्र में बोले हुए कथन का विवरण है ।पर दादी जी , गीता को किसने लिखा था ? दादी जी— गीता की शिक्षाएँ बहुत पुरानी है । सबसे पहले वे सृष्टि के आरंभ में भगवान श्री कृष्ण ने सूर्य देवता को दी थीं ।बाद में वे खो गईं।वर्तमान में जो गीता का स्वरूप है,वह लगभग 5,100 वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 8
कहानी (4) एकलव्य— एक आदर्श छात्र हे धनंजय! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर । दादी जी— अनुभव मैं तुम्हें एक आदर्श छात्र, एकलव्य की कहानी सुनाकर समझाने की कोशिश करती हूँ ध्यान से सुनो— गुरु द्रोणाचार्य पितामह भीष्म द्वारा नियुक्त सभी कौरवों और पाण्डव भाइयों को शस्त्र विद्या सिखाने वाले गुरु थे । उनके नीचे अन्य राजकुमारों ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 9
अध्याय पॉंच कर्म- संन्यास मार्ग अनुभव— आपने पहले दो मार्गों की चर्चा की दादी जी, अधिकांश लोगों के लिए कौन सा मार्ग अच्छा है ?आत्म-ज्ञान का या नि: स्वार्थ सेवा का ? दादी जी— वह व्यक्ति, जिसे परमात्मा का सही ज्ञान होता है, जानता है कि सारे कार्य प्रकृति मॉं की शक्ति से किये जाते है और वह किसी कार्य का वास्तविक कर्ता नहीं है ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 10
अध्याय छ: ध्यान मार्ग अनुभव— दादी जी, आपने कहा था कि भगवान की प्राप्ति के लिए कई मार्ग हैं । आपने मुझे सेवा कर्तव्य-मार्ग और आध्यात्मिक ज्ञान-मार्ग के विषय में बताया । कृपया मुझे अन्य मार्गों के बारे में बतायें । दादी जी— तीसरा मार्ग ध्यान-योग का है । जो भगवान के साथ मिल कर एकात्म होकर एक हो जाता है,उसे योगी कहते हैं । ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 11
अध्याय सात ज्ञान-विज्ञान अनुभव— सारे विश्व का निर्माण कैसे हुआ, दादी जी? क्या उसका कोई बनाने वाला है? दादी जी — किसी भी रचना (सृष्टि) के पीछे उसका कोई बनाने वाला (रचयिता या सृष्टा) होता है ।अनुभव, कोई भी चीज बिना किसी व्यक्ति या शक्ति के पैदा नहीं की जा सकती, नहीं बनाई जा सकती । न केवल उसकी सृष्टि के लिए बल्कि उसके पालन करने और चलाने के लिए भी ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 12
परमात्मा सब जीवों में रहता है ।वह सौम्य सुंदर जीव में भी है जिन्हें हम प्यार करते हैं, दुलार हैं और गले लगाते हैं ।उन्हें छूकर उन्हें प्यार का अहसास कराते हैं । परमात्मा ख़ूँख़ार दुष्ट प्रवृत्ति के जीवों में भी है लेकिन उन्हें हम पास जाकर प्यार नहीं कर सकते न ही हम गले लगा सकते है । अनुभव तुमने देखा है लोग बहुत से जीवों से प्यार करते हैं लेकिन सॉंप, बिच्छू, बाघ आदि को देख कर दूर हो जाते है ।उनमें भी परमात्मा ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 13
अध्याय आठ अक्षरब्रह्म अनुभव— दादी जी मेरी आध्यात्मिक शब्दावली बहुत बड़ी नहीं है,इसलिए मैं बहुत से शब्दों को, जो मैं मंदिर में सुनता हूँ, समझ नहीं पाता ।क्या आप उनमें से कुछ शब्दों को समझा सकतीं हैं ? दादी जी— मैं तुम्हें कुछ संस्कृत शब्दों को समझाऊँगी,तुम ध्यान से सुनो । इन शब्दों को तुम शायद इस उम्र में न समझ पाओ । जो आत्मा सब जीवों ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 14
अध्याय नौ राज विद्या- राज रहस्य अनुभव— जब भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तो क्या वे वैसे ही होंगे, जैसे हम या वे हम से अलग होते हैं ? दादी जी— भगवान जब मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं तो उनकी लीला मनुष्य और भगवान दोनों तरह की होती हैं । अम्मा तुम्हें हिंदू धर्म के दो सिद्धांतों को समझाने की कोशिश ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 15
अध्याय नौ दादी जी— आस्था और विश्वास की शक्ति की एक कथा इस प्रकार है अनुभव,सुनो— कहानी (10) लड़का जिसने भगवान को खिलाया एक कुलीन व्यक्ति भोजन अर्पण करके नित्य ही परिवार के इष्टदेव की पूजा करता था । एक दिन उसे एक दिन के लिए अपने गाँव से बाहर जाना पड़ा ।उसने अपने बेटे रमण से कहा, “देव प्रतिमा को भेंट अर्पित करना । ध्यान रहे, देवता को खिलाया जाये ।” लड़के ने पूजा घर में भोजन अर्पण किया, किंतु देव प्रतिमा ने ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 16
अभ्यास दस ब्रह्म-विभूति अनुभव— यदि भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि वे हमारी देखभाल करेंगे, यदि हम उनका स्मरण करें तो मैं भगवान को जानना और उनको प्यार करना चाहूँगा । मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ , दादी जी? दादी जी— भगवान को प्यार करना भक्ति कहलाता है। यदि तुममें भगवान की भक्ति है तो वे तुम्हें, भगवान विषय में ज्ञान और समझ देंगे । जितना अधिक तुम भगवान ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 17
अध्याय ग्यारह भगवान के दर्शन अनुभव— दादी जी, आपने कहा है , हम भगवान के बारे में बहुत कम जान सकते हैं । तब क्या भगवान के दर्शन करना लोगों के लिए संभव है? दादी जी— हॉं अनुभव । किंतु हमारी भौतिक ऑंखों से नहीं । जिसका प्रकार हमारी दुनिया में हमारे हाथ-पैर हैं, वैसे तो भगवान के नहीं हैं । किंतु जब भगवान हमारी नि:स्वार्थ सेवा भक्ति से प्रसन्न होते हैं, तो वे ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 18
अध्याय बारह भक्तियोग अनुभव— दादी जी, क्या हमें प्रतिदिन पूजा या ध्यान करना चाहिए, या केवल अवकाश या रविवार को ही ? दादी जी— बच्चों को किसी न किसी रूप में प्रतिदिन पूजा, प्रार्थना या ध्यान करना चाहिए । विद्यालय में प्रतिदिन वंदना (प्रार्थना) में अवश्य उपस्थित होना चाहिए । घर में भी प्रतिदिन भगवान की प्रार्थना करनी चाहिए ।वह जिस रूप में तुम करना चाहो ।अच्छी आदतों को जल्दी ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 19
अध्याय तेरह सृष्टि और सृष्टा अनुभव— दादी जी, मैं खा सकता हूँ, सो सकता हूँ, सोच सकता हूँ,बात कर सकता हूँ, चल सकता हूँ, दौड़ सकता हूँ, काम कर सकता हूँ और पढ़ सकता हूँ । मेरे शरीर को यह सब करने का ज्ञान कहॉं से, कैसे आता है? दादी जी— हमारे शरीर सहित सारा विश्व पॉंच मूल तत्वों से बना है । वे तत्व हैं— पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 20
अध्याय चौदह प्रकृति के तीन गुण अनुभव— दादी जी, कभी-कभी तो मुझे बहुत आलस आता है और कभी मैं बहुत सक्रिय (गतिशील,active)हो जाता हूँ ।ऐसा क्यों है? दादी जी— हम सभी कार्य करने के लिए अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरते हैं ।ये अवस्थाएँ अथवा गुण तीन प्रकार के हैं । सतोगुण जो अच्छी अवस्था है । रजोगुण तीव्र कामना की अवस्था है । तमोगुण अज्ञान की अवस्था है । हम तीनों गुणों ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 21
अध्याय पंद्रह परमपुरुष पुरुषोत्तम या परमात्मा ) अनुभव— दादी जी, मैं परमात्मा, दिव्यात्मा और जीव के अंतर के बारे में बहुत भ्रमित हूँ, क्या आप मुझे फिर से समझायेंगी? दादी जी— ज़रूर अनुभव, ये शब्द हैं जिनका अर्थ तुम्हें भलीभाँति समझ लेना चाहिए । परमात्मा को परमपुरुष, परमपिता , माता, ईश्वर, अल्लाह, परमसत्य और कई अनेक नामों से भी पुकारा जाता है । वही परमब्रह्म , परमात्मा, शिव, परमशिव और कृष्ण हैं ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 22
अध्याय सोलह दैवी और आसुरी गुण अनुभव— मैं अपनी कक्षा में भिन्न-भिन्न प्रकार के छात्रों से मिलता हूँ । दादी जी, विश्व में कितने प्रकार के लोग हैं? दादी जी— विश्व में लोगों की केवल दो जातियाँ हैं— अच्छी और बुरी । अधिकांश लोगों में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के गुण होते है । यदि तुममें अच्छे गुण अधिक होते हैंतो तुम्हें अच्छा आदमी कहा जाता है और यदि तुम में ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 23
अध्याय सत्रह तीन प्रकार की श्रद्धा अनुभव— दादी जी, मैं कैसे जानूँगा कि मुझे किस प्रकार का भोजन करना चाहिए? दादी जी— तीन प्रकार के भोजन हैं, अनुभव । भोजन, जो दीर्घ आयु, गुण ,शक्ति, स्वास्थ्य , प्रसन्नता, आनंद देते हैं , वे रस- भरे , तरल, सार भरे और पौष्टिक होते हैं ।ऐसे स्वास्थ्य-वर्धक भोजन सर्वश्रेष्ठ हैं । वे सात्विक या शाकाहारी भोजन कहलाते हैं । भोजन, जो कड़वे, कसैले, नमकीन, ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 24
अध्याय सत्रह दादी जी— अनुभव, एक आदमी के बारे में यह कहानी है, जिसने सीखा था कि भगवान उसी की मदद करते हैं, जो स्वयं अपनी मदद करता है— कहानी (25) आदमी, जिसने कभी हार नहीं मानी यव एक ऋषि का बेटा था ।वह देवताओं के राजा इंद्र का आशीर्वाद प्राप्त कर ने के लिए भयंकर तपस्या कर रहा था।तपस्या से उसने अपने शरीर को घोर यातना दी । इससे इंद्र की करुणा उसके प्रति जाग उठी । इंद्र ने उसे दर्शन दिए और ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 25
अध्याय अठारह कर्तापन का त्याग द्वारा मोक्ष अनुभव— दादी जी , मैं आपके द्वारा प्रयोग में लाए गए विभिन्न शब्दों के बारे में भ्रम में हूँ । कृपया मुझे स्पष्ट रूप से समझायें कि संन्यास और कर्म योग में क्या अंतर है ? दादी जी— अनुभव,कुछ लोग सोचते हैं कि संन्यास का अर्थ परिवार, घर, संपत्ति को छोड़कर चले जाना और किसी गुफा में, वन अथवा समाज से बाहर किसी दूसरे स्थान पर जाकर रहना, किंतु भगवान श्री कृष्ण ...Read More
पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 26
अध्याय अठारह यह कथा दर्शाती है कि किस प्रकार निष्ठा पूर्वक अपने कर्तव्य का करने से व्यक्ति आत्म ज्ञान प्राप्त कर सकता है । कहानी (26) मैं चिड़िया नहीं कौशिक नाम के एक ऋषि ने अलौकिक दिव्य शक्ति प्राप्त कर ली थी । एक दिन वे ध्यान मुद्रा में एक पेड़ के नीचे बैठे थे । पेड़ की चोटी पर बैठी चिड़िया ने उनके ऊपर बीट कर दी । कौशिक ने उसकी ओर क्रोध से देखा उनकी क्रुद्ध दृष्टि से ...Read More