मनोरमा.... मनोरमा! कहां हो भाई! धर्मवीर ने अपनी पत्नी को पुकारते हुए कहा।। अभी आती हूं जी! जरा सी सांस तो ले लिया करो,बस पुकारते ही जा रहे हो और तुम ऐसे बेवक्त़ कैसे आ धमके,मनोरमा बोली।। सांसें तो हमारी आपको देखकर बंद हो जातीं हैं,श्रीमती जी! धर्मवीर बोला।। देखो जी ! मैं मज़ाक के मूड में बिल्कुल भी नहीं हूं,अभी बहुत से काम पड़े हैं मुझे ,जो बोलना है जल्दी बोलो, मनोरमा बोली।। मैं तो ये कह रहा था कि आज बहुत बड़ा कोनट्रैक्ट मिला है,अगर वो सही समय पर पूरा हो गया तो हम लोगों के वारे-न्यारे हो जाएंगे, धर्मवीर बोला।। अच्छा! भगवान आपको यूं ही आगे बढ़ाए,आप दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो, मैं पहले भगवान के पास माथा टेक आऊं, फिर आपसे बात करती हूं, मनोरमा बोली।। तुम भी क्या घड़ी घड़ी भगवान को परेशान करती रहती हो? धर्मवीर बोला।।
Full Novel
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(१)
मनोरमा.... मनोरमा! कहां हो भाई! धर्मवीर ने अपनी पत्नी को पुकारते हुए कहा।। अभी आती हूं जी! जरा सी तो ले लिया करो,बस पुकारते ही जा रहे हो और तुम ऐसे बेवक्त़ कैसे आ धमके,मनोरमा बोली।। सांसें तो हमारी आपको देखकर बंद हो जातीं हैं,श्रीमती जी! धर्मवीर बोला।। देखो जी ! मैं मज़ाक के मूड में बिल्कुल भी नहीं हूं,अभी बहुत से काम पड़े हैं मुझे ,जो बोलना है जल्दी बोलो, मनोरमा बोली।। मैं तो ये कह रहा था कि आज बहुत बड़ा कोनट्रैक्ट मिला है,अगर वो सही समय पर पूरा हो गया तो हम लोगों के वारे-न्यारे हो ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(२)
दूसरे दिन सुबह के वक़्त मनोरमा का मन कुछ उदास सा था,वो अपने कमरे की खिड़की के पास खड़े बाहर की ओर देख रही थी,इतवार का दिन था बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए उसने स्कूल जाने के लिए बच्चों को नहीं जगाया और ना ही अभी तक कोई काम शुरू किया था।। तभी धर्मवीर भी जागा और उसने मनोरमा को ऐसे परेशान सा देखा तो पूछ बैठा___ तुम वहां खिड़की के पास इतनी परेशान सी क्यों खड़ी हो? आप मेरी परेशानी समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, मनोरमा बोली।। मैं जानता हूं कि तुम्हारी परेशानी ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(३)
अनवर चाचा ने कमरे का नज़ारा देखा तो उनके होश उड़ गए, लेकिन बच्चे.... एकाएक उन्हें बच्चों की याद अनवर चाचा ने देखा कि विश्वनाथ , मनोरमा का खून करने के बाद , पिस्तौल धर्मवीर के हाथ में थमाकर,अनवर के क्वाटर की ओर जा रहा है,तब अनवर चाचा ने इसी बात का फायदा उठाया, जैसे ही विश्वनाथ क्वाटर में घुसा,अनवर चाचा ने विश्वनाथ को भीतर की ओर जोर से धक्का देकर, क्वाटर का दरवाजा बंद कर दिया।। और फार्म-हाउस में आकर बच्चों को ढूंढने लगें, उन्हें करन तो मिल गया, क्योंकि वो अभी तक बिस्तर पर सो रहा ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(४)
सुबह होने को थी,हल्का हल्का उजाला हो चला था,अनवर चाचा रेलगाड़ी के डिब्बे के भीतर पहुंचे , करन को गोद में लेकर करके बैठ गए और परेशान होकर खिड़की से बाहर देखने लगे कि कहीं विश्वनाथ उनका पीछा करता हुआ वहां तो नहीं आ पहुंचा ,तभी एक सेठ जी जैसे दिखने वाले सज्जन भी डिब्बे में घुसे..... तभी करन की आंख खुली और बोला____ मुझे पानी पीना है,अनवर चाचा! अब वहां पानी कहां से आए, फिर रेलगाड़ी चलने का भी वक़्त हो गया था और बाहर विश्वनाथ का भी खतरा था,अनवर चाचा मुसीबत में पड़ गए कि ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(५)
लेकिन आपने ये नहीं बताया कि आप उस बच्ची से इतनी नफरत क्यों करते हैं,?आखिर उस बच्ची ने आपका बिगाड़ा हैं?शकीला बानो ने विश्वनाथ से पूछा।। उसने नहीं ,उसकी माँ ने बिगाड़ा था और अपनी माँ के कर्मों की भरपाई उसे ही करनी पड़ेगी,विश्वनाथ बोला।। ऐसा इसकी माँ ने क्या किया था आपके साथ ?जो आप उस बच्ची से बदला लेने पर अमादा हैं,शकीला बानो ने पूछा।। तुम्हें ये सब जानने की कोई जुरूरत नहीं है,तुम्हें जो काम सौंपा गया है तुम बस वो ही करो,अब लड़की चौदह साल की हो चुकी है,उसके रियाज़ मे कोई कमी नहीं आनी ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(६)
जूली को सड़क पर गिरा हुआ देखकर उस टैक्सीड्राइवर ने जूली को सहारा देकर खड़ा किया,जमीन पर गिरा हुआ उठाया फिर उसके साड़ी के पल्लू को सम्भाला और अपनी टैक्सी की पीछे की सीट पर टेक लगाकर बैठा दिया,जूली को एक भी होश़ नहीं था और कुछ ही देर में वो आँखें मूँदकर सो गई...... जूली की जब आँख खुली तो तब तक सुबह हो चुकी थी,जूली ने खुद को एक टैक्सी की सीट पर आया,उसने कुछ याद करने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आया,उसने देखा कि आगें की सीट पर टैक्सी ड्राइवर की ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(७)
उधर जेल में... आओ धर्मवीर! आओ...कैसे हो ?जेलर साहब ने धर्मवीर से पूछा।। जी !बहुत अच्छा हूँ,कहिए कैसे याद मुझे?धर्मवीर ने जेलर साहब से पूछा।। बस,खुशखबरी थी तुम्हारे लिए इसलिए याद फरमाया,जेलर साहब बोले..... मेरे नसीब में ,वो भी खुशियाँ,क्यों मज़ाक करते हैं साहब! मै भला अभागा कब से खुशियों का हकदार होने लगा,खुशियों ने तो सालों पहले ही मुझसे दामन छुड़ा लिया था,धर्मवीर बोला।। अरे,कैसी बातें करते हो धर्मवीर! हमेशा रात नही रहती,जब खुशियाँ नहीं रहीं तो ग़म भी नहीं रहेंगें,जेलर साहब बोले।। ये तो सब कहने की बातें हैं जिसका एक रात में ही सबकुछ उजड़ गया ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(८)
जूली क्लब के भीतर गई और इधर प्रकाश ने उदास मन से अपनी टैक्सी घर की ओर घुमाई,आज जूली बेरूखी ने उसका मन खराब कर दिया था,उसने मन में सोचा कि मैं तो इसे एक शरीफ़ लड़की समझता था लेकिन....ये तो...,अब क्या बोलूँ? मुझे खुद समझ नहीं आ रहा,कहीं ऐसा तो नहीं वो एक शरीफ़ लड़की हो और मैं उसे गलत समझ रहा हूँ,इसी सब जद्दोजहद के बीच प्रकाश घर पहुँच गया,खाना खाया और बिस्तर पर सोने के लिए पहुँचा,लेकिन नींद तो आँखों से दूर थी,क्योंकि जूली उसके लिए एक पहेली थी,जिसको वो सुलझा नहीं पा रहा था।। ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(९)
और इधर अनवर चाचा घर पहुँचे,काफ़ी देर हो जाने के कारण जूली ने पूछा.... अनवर चाचा! बहुत देर कर आपने! हाँ!बिटिया!पुलिसचौकी जाना पड़ गया,अनवर चाचा ने जवाब दिया।। पुलिसचौकी...लेकिन क्यों?,जूली ने चौंकते हुए पूछा।। एक चोर मेरा बटुआ चुराकर भाग रहा था,लोगों ने पकड़ लिया,मैने सोचा बेचारे गरीब की ये लोंग पिटाई कर देंगें इसलिए सबको पुलिसचौकी चलने को कहा,खुशकिस्मती से थानेदार अच्छा इन्सान निकला,उस गरीब को काम देने के लिए कहा....फिर थानेदार ने अपना नाम बताया तो मुझे थोड़ा अजीब सा लगा और मैं चला आया,अनवर चाचा बोले।। क्यों ?आपको अजीब क्यों लगा थानेदार का नाम सुनकर,जूली ने ...Read More
विश्वासघात(सीजन-२)--भाग(१०)
गिरधारीलाल जी अनवर चाचा को देखकर कुछ सोच में पड़ गए..... गिरधारी लाल जी के कुछ बोलने से पहले अनवर चाचा उनसे पूछ बैठे.... सेठ जी! क्या इन्सपेक्टर करन ही मेरा करन है? बोलिए ना....बताइए ना...! जी! हाँ!मैने आपको पहचान लिया है आप वहीं हैं ना जो किसी मजबूरी बस रेलगाड़ी में करन को मेरे हवाले कर गए थे,जी आपका करन अब इन्सेपेक्टर करन ही है,सेठ गिरधारीलाल जी बोले।। ओह....सेठ जी! मैं आपका एहसानमंद हूँ,मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ? आपने करन को पालपोसकर बड़ा किया और इस काबिल बनाया,आज मैं बहुत खुश हूँ कि मेरा करन मिल गया,अनवर ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग(११)
मैं टैक्सी में नहीं आऊँगी,लाज बोली।। लेकिन क्यों? प्रकाश बोला।। मै तुम्हारा भरोसा क्यों करूँ?लाज बोली।। अच्छा !तो तुम्हें पर भरोसा नहीं,तुम्हें याद है,पहली मुलाकात में तुम रातभर मेरी टैक्सी में सोती रही,उस दिन तो तुमने भरोसा कर लिया था, अगर मैं बुरा इन्सान होता तो सुबह तुम मुझे शुक्रिया कहते हुए ना जाती,प्रकाश बोला।। उस दिन मैं होश में नहीं थी,इसलिए भरोसा कर लिया था,तो आज तुम क्या चाहते हो?लाज बोली।। मैं तुम्हें चाहता हूँ,प्रकाश बोला।। क्या बकते हो? मुझे जाने-पहचाने बिना तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?लाज ने पूछा।। मौहब्बत जान-पहचान करके नहीं होती,मेमसाहब!प्रकाश बोला।। तुम तो ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग(१२)
लगता है कि ये हरदयाल थापर भी नमकहरामी करेगा,इस पर नज़र रखनी होगी,विश्वनाथ ने मन में सोचा.... तभी एकाएक पीटर को बुलाने के लिए आवाज़ दी..... पीटर! फौऱन इधर आओ... आया बाँस!,पीटर ने आवाज़ दी.... यस बाँस! क्या बात है,पीटर ने विश्वनाथ से पूछा।। ऐसा है जरा अपने आदमियों से कह दो की हरदयाल थापर पर नज़र रखें,वो कहाँ कहाँ जाता है और किस किसे मिलता जुलता है,विश्वनाथ बोला।। यस बाँस! मैं सबसे हरदयाल पर नज़र रखने को कह देता हूँ,पीटर बोला।। और सुनो! जरा जूली को जल्दी ढ़ूढ़ो ना जाने कहाँ चली गई,मुझे जल्द से जल्द उसकी खबर ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१३)
करन के एक्सीडेंट की खबर सुनकर सेठ गिरधारीलाल,धर्मवीर,अनवर चाचा सभी दौड़े आए..... परेशान होकर सेठ गिरधारी लाल जी बोले... अब तू ये पुलिस की नौकरी छोड़ दे,अपना इतना बड़ा व्यापार है उसे सम्भाल,ये तेरा रोज रोज खून बहते हुए मैं नहीं देख सकता।। डैडी! ये कैसीं बातें कर रहे हैं आप!नौकरी छोड़ना तो बुजदिली होगा,करन बोला।। और ये तेरा रोज रोज घायल होकर बिस्तर पकड़ लेना,ये क्या ठीक है? सेठ गिरधारीलाल जी बोले।। लेकिन डैडी! ये सब तो पुलिसवालों के साथ अक्सर होता रहता है,करन बोला।। भला हो उस लड़की का जिसने तुझे समय पर अस्पताल पहुँचा दिया,लेकिन वो ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१४)
प्रकाश और लाज बातों बातों में अस्पताल पहुँच गए,प्रकाश बोला... अगर बुरा ना माने तो क्या मैं भी करन देखने चल सकता हूँ? हाँ..हाँ...बुरा किस बात का? करन को भी अच्छा लगेगा आपसे मिलकर,लाज बोली।। ठीक है तो मैं टैक्सी पार्किंग में लगा दूँ फिर चलते हैं,प्रकाश बोला।। और दोनों करन से मिलने पहुँच गए,जहाँ सुरेखा पहले से मौजूद थी,लाज को देखकर बोली.... दीदी! आ गई आप! मैं कब से आपका इन्तज़ार कर रही थी? और ये जनाब! कौन हैं? जी,मैं इनका दोस्त प्रकाश हूँ,प्रकाश बोला।। जी,केवल दोस्त या ख़ास दोस्त,सुरेखा मज़ाक करते हुए बोली।। चुप कर ,हर घड़ी ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग-(१५)
शकीला ने जब विश्वनाथ की सच्चाई सुनी तो उसके होश उड़ गए,उसने कहा... वहशी,दरिन्दा इसलिए फूल सी बच्ची से लेना चाहता था,इतने सितम किए इस नन्ही सी जान पर,मुझे नहीं मालूम था कि वो इतना गिरा हुआ इन्सान है नहीं तो मैं कभी भी उसका साथ नहीं देती, कोई बात नहीं बहनजी! जो आपसे हुआ वो अन्जाने मे हुआ,धर्मवीर बोला।। लेकिन अब मैं किसी भी कीमत पर उसका साथ नहीं दूँगी,कितने दुख सहे हैं मेरी बच्ची ने ,अब और नहीं,शकीला बोली।। लेकिन बहनजी! आपकी वज़ह से ही तो हमारी बेटी को ममता की छाँव नसीब हो पाई,गिरधारीलाल जी ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)-भाग(१६)
करन भइया! हमने सोचा था कि आप दोनों को कुछ देर अकेले छोड़ दे तो आप लोंग दूसरे से दिल का हाल बयां कर लें लेकिन आपलोंग तो आपस में अपनी अपनी रसोई बयां करने लगें,सुरेखा हँसते हुए बोली।। ऐसा कुछ नहीं था सुरेखा,शर्मिला बोली।। हाँ...हाँ...अब छुपाने से कोई फायदा नहीं,हमें सब पता चल गया है,सुरेखा बोली।। लाज दीदी! आप ही सुरेखा को कुछ क्यों नहीं समझातीं?करन बोला।। अब मैं क्या समझाऊँ? वो सही तो कह रही है,लाज बोली।। दीदी! आप भी! करन बोला।। जो दिल में है कह दो ना एकदूसरे से,लाज बोली।। ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)-भाग(१७)
बाँस! शकीला और जूली ,इन्सपेक्टर करन से मिलीं हुई हैं,आपने मुझे उनकी मुखबरी करने के लिए कहा था और खब़र बिल्कुल पक्की है,वो ड्राइवर प्रकाश जो क्लब में आता रहता है ,उसे भी मैने जूली से मिलते हुए देखा है,हो ना हो कोई तो खिचड़ी पक रही है सबके बीच।। और मैने एक दो बूढ़ो को भी जूली से मिलते हुए कई बार देखा है,उन्हें देखकर ऐसा लगा कि वें बुढ्ढे जूली के बहुत करीबी हैं,वो जब भी उन्हें विदा करती है तो हमेशा उनके गले लगती है,ये सब खबर विश्वनाथ को रंगा ने दी।। ठीक है ...Read More
विश्वासघात-(सीजन-२)--भाग(१८)
दूसरे दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर शर्मिला बुझी बुझी सी नहीं लग रही थी,उसे रात में करन ने प्यार से समझाया था,करन का साथ पाकर शर्मिला को जीने की राह मिल गई थी,वो भी उसे चाहने लगी थी,सेठ गिरधारीलाल जी ने भी सोचा था कि जैसे ही विश्वनाथ वाला मामला रफा-दफा होता है तो वे करन और शर्मिला की शादी कर देंगें, यही मर्जी धर्मवीर और अनवर चाचा की भी थी,उन्हें भी शर्मिला,करन के लिए पसंद थी और लाज के लिए उन्हें प्रकाश पसंद था,धर्मवीर चाहते थे कि विश्वनाथ के जेल जाने के बाद वें दोनों बच्चों ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--भाग(१९)
विश्वनाथ ने पीटर से कहा.... इन दोनों को अपने अड्डे पर ले चलो,अभी बताता हूँ इन्हें कि से पंगा लेने का क्या अन्जाम होता है? रंगा!अड्डे पर ही इसके भाई को फोन करके कह दो कि ये दोनों मेरे कब्जे में है अगर ज्यादा चूँ-चपड़ की तो इन दोनों का भेजा उड़ाने में ज्यादा टाइम नहीं लगेगा मुझे।। यस बाँस,रंगा बोला।। और पीटर लाज और प्रकाश को मोटर में बैठाकर अड्डे की ओर रवाना हो गया लेकिन विश्वनाथ को ये पता नहीं चला कि विकास वहीं पर छिपा हुआ था,आज वो दाढ़ी-मूँछ लगाकर आया था इसलिए विश्वनाथ ...Read More
विश्वासघात--(सीजन-२)--(अन्तिम भाग)
बुढ़िया इतना मत चीख,हाँ! मैं ही तेरे पति का हत्यारा हूँ और तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती और ही तेरा बेटा,विश्वनाथ बोला।। बेटा! उस रात हम लोंग किसी की शादी से लौट रहे थे,सड़क के किनारे लगे लैम्पपोस्ट की रोशनी थी,सुनसान सड़क थी,तुम दोनों छोटे थे,रास्ते में ये अपने दो तीन साथियों के साथ खड़ा था और इसने किसी के पेट पर चाकू भोंक दिया तेरे पिताजी उस समय हवलदार थे तो उन्होंने अपना फर्ज निभाया और इसे रोकने की कोशिश की थी तो ये तेरे पिताजी का खून करके फरार हो गया और मैं तुम दोनों ...Read More