दैहिक चाहत

(158)
  • 155.3k
  • 11
  • 55.5k

उपन्‍यास भाग---१ - आर. एन. सुनगरया, हॉटल की सीडि़यॉं उतरती शीला, फुरतीले अंदाज में लगभग दौड़ती हुई, मैन गेट पहुँची ही थी कि सामने से गुजरती टैक्‍सी के ड्राइवर ने सांकेतिक भाषा में पूछा, ‘’टैक्‍सी.....मैडम.....?’’ मुण्‍डी हिलाकर शीला ने स्‍वीकृति दी। टैक्‍सी रूकी, अपनी शीट पर बैठे-बैठे ही

Full Novel

1

दैहिक चाहत - 1

उपन्‍यास भाग---१ दैहिक चाहत – १ --आर. एन. सुनगरया, हॉटल की सीडि़यॉं उतरती शीला, फुरतीले अंदाज में लगभग दौड़ती हुई, मैन गेट पहुँची ही थी कि सामने से गुजरती टैक्‍सी के ड्राइवर ने सांकेतिक भाषा में पूछा, ‘’टैक्‍सी.....मैडम.....?’’ मुण्‍डी हिलाकर शीला ने स्‍वीकृति दी। टैक्‍सी रूकी, अपनी शीट पर बैठे-बैठे ही ...Read More

2

दैहिक चाहत - 2

उपन्‍यास—भाग—2 दैहिक चाहत – 2 आर. एन. सुनगरया, सुबह-सबेरे सही समय पर सबसे पहले ऑफिस पहुँची, शीला। देवजी को अपने ऑफिस की तरफ आते देख शीला ने, आगे बढ़कर उन्‍हें रिसीव किया, ‘’गुड मोर्निंग !’’ देवजी ने मुस्‍कुराते हुये, ‘’हॉस्‍टल से होते हुये आये, शायद आपको कन्‍वेन्‍स ना मिले तो......।‘’ ...Read More

3

दैहिक चाहत - 3

उपन्‍यास भाग—3 दैहिक चाहत – 3 आर. एन. सुनगरया, शीला ने अपने आपको इस कदर व्‍यस्‍त कर लिया, किसी का साहस ही नहीं होता कि कोई उसे फुरसत के क्षणों में अपने घर परिवार की स्‍वाभाविक समस्‍याऍं, परस्‍पर आदान-प्रदान कर सके। मगर इस चकबन्‍ध वातावरण में भी देव ...Read More

4

दैहिक चाहत - 4

उपन्‍यास भाग—4 दैहिक चाहत – 4 आर. एन. सुनगरया, ...........देवजी की आवाज़ नेटवर्क की भॉंति कटऑफ हो गई। घौर सन्‍नाटा, जैसे काली अँधेरी रात जम गई, वर्फ की तरह ! शीला सन्‍न–सुट्ट हो गई, चेतना मूर्छा में बदल गई। पूछना, बोलना, जानना एवं कहना ...Read More

5

दैहिक चाहत - 5

उपन्‍यास भाग—5 दैहिक चाहत – 5 आर. एन. सुनगरया, समाज की ईकाई है, परिवार, प्रत्‍येक सदस्‍य है, परिवार की ईकाई एवं परिवार रहित सदस्‍य समग्र सवमाज की ईकाई कहा जा सकता है। देवजी का स्‍थान भी समग्र समाज की ईकाई के समान है, समाज की सम्‍पूर्ण गतिविधियॉं एवं कार्यकलाप ...Read More

6

दैहिक चाहत - 6

उपन्‍यास भाग—६ दैहिक चाहत –६ आर. एन. सुनगरया, सहकर्मी समय के परिवर्तनीय प्रवाह के साथ-साथ कार्य करते-करते परस्‍पर एक दूसरे से सहानुभूति पूर्वक बात-व्‍यवहार के स्‍तर पर अपने-अपने दु:ख-दर्द में सहभागी बनना स्‍वाभाविक प्रक्रिया है। देव जीवन के विपरीत हालातों के दुष्‍प्रभावों को गम्‍भीरता पूर्वक अंगीकार करके उदासीन होकर अपना मनोबल ...Read More

7

दैहिक चाहत - 7

उपन्‍यास भाग—७ दैहिक चाहत –७ आर. एन. सुनगरया, मानवीय रिश्‍तों का वर्गीकरण यथास्थिति अनुसार होता है। उनका नामकरण परम्‍परागत आवश्‍यकता के आधार पर होता है, जैसे खून का रिश्‍ता, इन्‍सानियत का रिश्‍ता इत्‍यादि। रिश्‍तों के अनेक नाम प्रचलित हैं। कब किससे, कौन सा रिश्‍ता स्‍थापित हो जायेगा। ...Read More

8

दैहिक चाहत - 8

उपन्‍यास भाग—८ दैहिक चाहत –८ आर. एन. सुनगरया, देव की सहानुभूति, सम्‍वेदनशीलता, हितैसी होने का एहसास, चाहत प्रदर्शन के अवसर, आत्मिय सम्‍बन्‍धों के आधिकारिक दावे-प्रतिदावे, सम्‍मोहित करने वाला मृदुवाणीयुक्‍त, बात-व्‍यवहार, अव्‍यक्‍त रिश्‍तों की मिठास-मधुरता अपने प्‍यारे प्रभावों को शनै: - शनै: मन-मस्तिष्‍क एवं आत्‍मॉंगन में स्‍थाई स्‍थापना सुनिश्चित करते रहने ...Read More

9

दैहिक चाहत - 9

उपन्‍यास भाग—९ दैहिक चाहत –९ आर. एन. सुनगरया, देव के दिमाग में दफ़न, अपनी स्‍वर्गिय पत्‍नी के यादों का अम्‍बार ऐसा प्रगट हुआ कि देव को सॉंस लेने की फुरसत नहीं, निरन्‍तर बताये जा रहा है,……….उसकी तत्‍कालीन छबि एवं विशेषताऍं........’’तीज-त्‍यौहार, रस्‍म-रिवाज, मेहमान-नवाजी, मौहल्‍ले-बस्‍ती, पास-पड़ोस के सामूहिक कार्यकलाप या अन्‍य कोई काम इत्‍यादि की ...Read More

10

दैहिक चाहत - 10

उपन्‍यास भाग—१० दैहिक चाहत –१० आर. एन. सुनगरया, टाऊनशिप में साधारणत: चहल-पहल कम ही रहती है, दोपहर को तो और-घौर सन्‍नाटा छा जाता है। मोबाइल की वैल सुरीली होते हुये भी कर्कस ध्‍वनि की भॉंति सुनाई देती है। शीला के मोबाइल की वैल कब से सन्‍नाटा चीर रही थी; वह हाथ पोंछते-पोंछते ...Read More

11

दैहिक चाहत - 11

उपन्‍यास भाग—११ दैहिक चाहत –११ आर. एन. सुनगरया, तनूजा-तनया ने अपनी मनोदशा विस्‍तार पूर्वक, अपराध बोध के मिश्रित शब्‍दों में जब व्‍यक्‍त की........तब शीला हक्‍का-वक्‍का रह गई, ये क्‍या सोच लिया, बेटियों ने !! शीला कोई एक मात्र मॉं नहीं है, संसार में, जिसने अपनी औलाद के लालन-पालन-पोषण के लिये, भरी-पूरी युवावस्‍था कुर्बान की है। ...Read More

12

दैहिक चाहत - 12

उपन्‍यास भाग—१२ दैहिक चाहत –१२ आर. एन. सुनगरया, देव एकान्‍त में अपने अतीत को खंगाल रहा है। क्‍या खोया, क्‍या पाया, तर्कपूर्ण न्‍याय संगत, पक्षपात रहित दृष्टिकोण से सम्‍पूर्ण पूर्व दु:ख-सुख युक्‍त वाकियों को हर स्‍तर पर परखने के बाद ज्ञात हुआ कि हाथ कुछ नहीं लगा, हाथ खाली के खाली, सब कुछ गंवाया ...Read More

13

दैहिक चाहत - 13

उपन्‍यास भाग—१३ दैहिक चाहत –१३ आर. एन. सुनगरया, यौवन-जवानी के सुनहरे समय के मध्य शीला पति से वंचित हो गई। नये-नवेले दाम्‍पत्‍य जीवन में अंधियारा छा गया। आसमान टूट पड़ा, समग्र जिम्‍मेदारियों का बोझ नाजुक कन्‍धों पर सवार हो गया। ये दायित्‍व तो किसी तरह परिश्रम पूर्वक पूरे हो जायेंगे,……लेकिन जवान दिल ...Read More

14

दैहिक चाहत - 14

उपन्‍यास भाग—१४ दैहिक चाहत –१४ आर. एन. सुनगरया, ‘’हैल्‍लो......तनया अभी तक पहुँची नहीं।‘’ ‘’टू व्‍हीलर में पेट्रोल भरवाना था.......पेट्रोल पम्‍प पर पहले ही लम्‍बी लाईन थी........ अभी पहुँची।‘’ ‘’हॉं जल्‍दी आ, मगर सुरक्षा पूर्वक.....।‘’ तनूजा व्‍याकुल है, कैसी, कैसी शंका-कुशंकाएँ उमड़-घुमड़ रही हैं, दिमाग में। ...Read More

15

दैहिक चाहत - 15

उपन्‍यास भाग—१५ दैहिक चाहत –१५ आर. एन. सुनगरया, तनया-तनूजा संयुक्‍त रूप से मोबाइल लगाकर बैठ गईं, ‘’हैल्‍लो मॉम !’’ ‘’ हॉं बोलो।‘’ शीला ने टोका, ‘’दोनों एक साथ बोल रही हो !’’ ‘’हॉं, साफ सुनाई दे रहा है।‘’ संयुक्‍त स्‍वर। ‘’बोलो, स्‍पष्‍ट है..........।‘’ शीला ...Read More

16

दैहिक चाहत - 16

उपन्‍यास भाग—१६ दैहिक चाहत –१६ आर. एन. सुनगरया, छुट्टी के दिन का अपना जुदा ही असर रहता है, माहौल पर, दिनचर्या पर, आदतों पर दिल-दिमाग अथवा मानसिकता पर..........ऐसे ही स्‍वाभाविक प्रभाव में शीला, अपने केश, सेम्‍पु बगैरह से धोकर, सोफे पर किनारे में ...Read More

17

दैहिक चाहत - 17

उपन्‍यास भाग—१७ दैहिक चाहत –१७ आर. एन. सुनगरया, ’’हैल्‍लो मॉम !’’ तनूजा-तनया ने संयुक्‍त स्‍वर में मोबाइल पर बात की, ‘’मिला आपका सरप्राइज !’’ ‘’हॉं तो बताओ कैसा लगा।‘’ ‘’क्‍या बतायें, आपने तो विडियो भेजा है, मोबाइल पर। इसमें सरप्राइज जैसी कोई बात तो ...Read More

18

दैहिक चाहत - 18

उपन्‍यास भाग—१८ दैहिक चाहत –१८ आर. एन. सुनगरया, सुखद समय ने शीला के सामान्‍य जीवन में दस्‍तक दी है। जिससे उसकी बेरंग जिन्‍दगी रंगीन हो सकती है, वीरान जीवन के पतझड़ में बहार आ सकती है। उबाऊ दिनचर्या से छुटकारा मिल सकता है। समाज, जात-बिरादरी के निर्धारित नियम, कानून, वरिष्‍ठ ज्ञानियों, ...Read More

19

दैहिक चाहत - 19

उपन्‍यास भाग—१९ दैहिक चाहत –१९ आर. एन. सुनगरया, प्रत्‍येक प्राणी द्वारा जीवन पर्यन्‍त सुख पाना, पाते रहना ही उद्देश्‍य, मकसद, ध्‍येय इत्‍यादि होता है। सुख का रूप कोई भी हो, प्रकार कोई भी हो, भौतिक, मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, आत्मियक, हार्दिक, दिव्‍य अथवा आलोकिक, कैसा भी हो। ...Read More

20

दैहिक चाहत - 20 - अंतिम भाग

उपन्‍यास भाग—२० दैहिक चाहत –२० आर. एन. सुनगरया, प्रत्‍येक शख्‍स, जब कोई यादगार उल्‍लेखनीय इवेन्‍ट का अवसर पाताख्‍ है, तब वह उम्‍मीद,आशा, इच्‍छा, अकॉंक्षा आदि रखता है कि उसके हृदय के निकट, जितने भी चहेते हैं, अपने हैं, सम्‍बन्धित हैं, वे सब उसके उत्‍साह, ...Read More