• 1. (ईश्वर का सम्बोधन) मैं ईश्वर हूँ, में कभी कुछ नही कहता किसी से नहीं कहता बस सुनता हूँ क्योंकि मैं ईश्वर हूँ। मेरा कोई धर्म नहीं न ही कोई जाति, और न कोई देश है, न तो में नर हूँ, न नारी और न ही पशु। न तो मेरे विचार हैं और न ही कोई सोच, न धरती, न जल, न वायू, न अग्नि, न आकाश क्योंकि में निर्विकार हूँ।मैं न राम, न रहीम, न ईश हूँ और न ही वाहेगुरु, मैं तो बस ईश्वर हूँ। तुम्हारी नज़रों में सब कुछ पर मेरी नज़र मैं- मै कुछ भी
Full Novel
मैं ईश्वर हूँ - 1
• 1. (ईश्वर का सम्बोधन) मैं ईश्वर हूँ, में कभी कुछ नही कहता किसी से नहीं कहता बस सुनता क्योंकि मैं ईश्वर हूँ। मेरा कोई धर्म नहीं न ही कोई जाति, और न कोई देश है, न तो में नर हूँ, न नारी और न ही पशु। न तो मेरे विचार हैं और न ही कोई सोच, न धरती, न जल, न वायू, न अग्नि, न आकाश क्योंकि में निर्विकार हूँ।मैं न राम, न रहीम, न ईश हूँ और न ही वाहेगुरु, मैं तो बस ईश्वर हूँ। तुम्हारी नज़रों में सब कुछ पर मेरी नज़र मैं- मै कुछ भी ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 2
एक आवाज ,एक शब्द मुझे सुनाई दिया। आश्चर्य है इस शांत अंधकार में ये शब्द कैसा, ये आवाज क्या अब वो आवाज लगातार आने लगी, कुछ रुक-रुक कर पर लगातार। में उस आवाज को सुनकर बैचेन हो गया और अपने भ्रूण रूपी शून्य में घूमने लगा, उस शब्द को सुनने और उसकी बजह जानने के लिए। मुझे लगा शायद ये आवाज कुछ समय बाद बंद हो जाएगी, पर वो लगातार, अनवरत आ रही है।इस शब्द से, आवाज से अब अंधकार डरावना सा लगने लगा, पहले जो आवाज मुझे अच्छी लग रही थी अब वही मुझे डराने लगी। पर में ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 3
बिम्ब काल.....शून्य अब विकास की दूसरी अवस्था जिसे बिम्ब कहा जाता है उसमें प्रेवेश कर गया है, शून्य अपनी नई एवं विकासशील अवस्था में आकर भी पहले के समान ही अंधकार में है। बिम्ब का आकार शून्य से विकसित और बड़ा जरूर है पर अभी भी वो अपनी पहचान से परे है उसका मन ही सिर्फ उसका एक मात्र सहारा है।बिम्ब एक बार फिर एक तेज मगर नाज़ुक झटके के साथ हिला और चल पड़ा, कहाँ ? उसे क्या पता। उस नए सफर में उसकी गति प्रकाश की गति से भी तेज और प्रकाशमय है। उसे अपने आजु-बाजू केवल ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 4
बिम्ब रात्रि में उसी जगह पर स्थिर है जहाँ उसे अपने आत्मीय जन रोते और परेशान होते हुए दिखे बिम्ब रात्रि काल में ईश्वर के साथ हुए वार्तालाप को अपने अंतः-मन में सोचने लगता है। “वह तेजस्वियों का तेज, बलियों का बल, ज्ञानियों का ज्ञान, मुनियों का तप, कवियों का रस, ऋषियों का गाम्भीर्य और बालक की हंसी में विराजमान है। ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। वह शब्द नहीं भाव पढता है, होंठ नहीं हृदय देखता है, वह मंदिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, प्रेम करने वाले के हृदय ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 5
बिम्ब ईश्वर के साथ अपने अधूरे वार्तालाप को याद कर के सोचता है.......... प्रश्न: आप ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं ? उत्तर: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों के द्वारा । प्रश्न: लेकिन ईश्वर में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं घट सकता, तब फिर आप उसके अस्तित्व को कैसे सिद्ध करेंगे ? उत्तर: 1. प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट रूप से जाना गया निर्भ्रांत ज्ञान । परन्तु यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि ज्ञानेन्द्रियों से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं । उदाहरण के लिए जब ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 6
बिम्ब अपने और ईश्वर के बीच की बातों को सोच रहा है एवं साथ- साथ इन सभी बातों को के माध्यम से अपने पुत्र तक पहुंचा भी रहा है जिससे जीवित अवस्था में ही उसे ईश्वर का ज्ञान हो सके, बिम्ब ईश्वर के साथ हो रहे सवाल जबाब को आगे बढ़ाते हुए सोचता है.......................... प्रश्न- तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि ईश्वर अपवित्र वस्तुओं जैसे कि मदिरा, मल और मूत्र में भी रहता है ? उत्तर- (1) पूरा संसार ईश्वर में है । क्यूंकि ईश्वर इन सब के बाहर भी है लेकिन ईश्वर के बाहर कुछ नहीं है । ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 7
बिम्ब ईश्वर और देवता, ईश्वर और उसकी महानता, ईश्वर के गुण, उसके विस्तार आदि को याद करने के बाद स्वरुप और आकार का वर्णन अपने पुत्र के स्वप्न में करते हुए, ईश्वर के साथ हुए साक्षात्कार का स्मरण करने लगता है और सोचता है........................... प्रश्न- ईश्वर साकार है या निराकार ? उत्तर- वेदों के अनुसार और सामान्य समझ के आधार पर भी ईश्वर निराकार है । (1) अगर वो साकार है तो हर जगह नहीं हो सकता । क्यूंकि आकार वाली वस्तु की अपनी कोई न कोई तो परिसीमा होती है । इसलिए अगर वो साकार होगा तो वह ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 8
बिम्ब अब अपने अंतिम प्रश्न काल में पहुँच चूका है जहाँ ईश्वर के साथ हुई बातचीत का अंतिम चरण यहाँ कुछ बातें ईश्वर की हैं और कुछ बिम्ब की सोच पर आधारित जो वो अपने पुत्र को ईश्वर के सत्य का ज्ञान कराने के लिए सोचता है........................ प्रश्न- क्या ईश्वर सर्वशक्तिमान है ? उत्तर- हाँ, वह सर्वशक्तिमान है । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वह जो चाहे वो कर सकता है । अपनी इच्छा से कुछ भी करते जाना तो अनुशासनहीनता का संकेत है । इसके विपरीत ईश्वर तो सबसे अधिक अनुशासनपूर्ण है । सर्वशक्तिमत्ता का अर् ...Read More
मैं ईश्वर हूँ - 9 - अंतिम भाग
मैं ईश्वर हूँ – अंतिम भाग अब तक आपने पढ़ा : मनुष्य अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपने भगवन के दर्शन करता है और भगवन के द्वारा बताये गए मार्ग अपर चलता हुआ अपनी आत्मा को शरीर से अलग करता है. फिर उसकी आत्मा तीन अलग – अलग चरण से गुजरती हुई अपनी वास्तविक स्थिति को देखती है जहाँ उसे अपने लोगों के द्वारा ही दुःख और सुख दोनों देखना पड़ता है यहाँ कुछ समय बिता कर आत्मा फिर अपने गंतव्य पर चलना चालू कर देती है। अब आगे : बिम्ब अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव पर है ...Read More