सिद्धार्थ शुक्ला 26 साल का नौजवान सरल भाषा में बताया जाए तो बेकार नौजवान। इंजीनियरिंग के बाद एमबीए करके बिजनेस खोलना चाहते हैं जनाब! बिजनेस के तो इतने आइडिया इनके पास है जितने की पिताश्री के सिर पर बाल नहीं है। थक चुके है बेचारे अभी तक, कब तक बेटे का बोझ उठायेंगे? सिद्धार्थ को अपने नये आईडिया लोगों के सामने रखने का एक शौक और ताश का आशियाना बनाने का दुसरा,पिछले 12 साल से बना रहे हैं। अपनी छोटी सी रूम में जगह ना होने के कारण उस आशियाने को जगह भी मिली तो खिड़की के पास पूरा कमरा अंधकार में कहीं गुम
ताश का आशियाना - भाग 1
सिद्धार्थ शुक्ला 26 साल का नौजवान सरल भाषा में बताया जाए तो बेकार नौजवान। इंजीनियरिंग के बाद एमबीए करके खोलना चाहते हैं जनाब! बिजनेस के तो इतने आइडिया इनके पास है जितने की पिताश्री के सिर पर बाल नहीं है। थक चुके है बेचारे अभी तक, कब तक बेटे का बोझ उठायेंगे? सिद्धार्थ को अपने नये आईडिया लोगों के सामने रखने का एक शौक और ताश का आशियाना बनाने का दुसरा,पिछले 12 साल से बना रहे हैं। अपनी छोटी सी रूम में जगह ना होने के कारण उस आशियाने को जगह भी मिली तो खिड़की के पास पूरा कमरा अंधकार में कहीं गुम ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 2
मन एक दूसरे से मिल चुकी थे, मन की गंदगी एक आलिगंन के साथ ही धुल गई थी।इस पल सिद्धार्थ को कब से इंतजार था। चित्रा ने भी बिना हिचकिचाते हुए सिद्धार्थ को गले लगा लिया।दोनों जब आलिंगन के पाश से दूर हुए तो सिद्धार्थ के आंखों में खुशी के आंसू थे और चित्रा के आंखों में अजीब सी बेचैनी। आंखें बंद करो। क्यों? चित्रा ने पूछा मुझे लगा ही था, तुम आंखें बंद नहीं करोगी। अभी भी विश्वास नहीं ना मुझ पर। सिद्धार्थ ने मजाक उड़ाते हुए चित्र की आंखों पर रेशमी फिता बांध दिया और उसका हाथ पकड़ उसको अपने कमरे ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 3
दिल टूटने का आवाज नहीं होता पर ताश का आवाज आना तो लाजमी था। आवाज सुनाई दी गंगा देवी जो पिछले 20 मिनट से हाथ में गीले कपड़ों की बाल्टी धर दरवाजे पर टूक लगाए खड़ी है।अंदर से सिर्फ कुछ गिरने की आवाज आई, बाकी सब तो अंधेरे में कहीं गुम था। आवाज से गंगा देवी को अपने बेटे की करतूत के लिए गालियां नहीं आ रही थी बल्कि उन्हे बिना बताए सब पता चल गया था।दिल टूटने का आवाज ताश के पत्तों ने कहीं दबा दिया था।मां को कैसे पता चला? या मां को कैसे पता चल जाता ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 4
यह कहानी यहीं खत्म हो जाती अगर ठीक एक साल पहले टॉप 10 ट्रैवल ब्लॉगर में सिद्धार्थ का नाम आता। सिद्धार्थ को बचपन से घूमने फिरने का फोटोग्राफी करने का बहुत शौक था।15 अगस्त, 26 जनवरी, हाई स्कूल सेंड ऑफ हमेशा से ही सिद्धार्थ एक निवेदक था उसका ही फायदा शायद उसे हुआ होगा। बंजारो का आशियाना” नाम से एक बुक 2016 में प्रकाशित हुई जो काफी बेस्ट सेलर साबित हुई।यूट्यूब के चैनल “सिद्धार्थ का सफर” को 15 मिलियन से भी ज्यादा सब्सक्राइबर थे। सिद्धार्थ एक बार फिर अपने मिट्टी में वापस आया, जिसका नाम बनारस है। ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 5
आज चित्रा ने सब खाली कर दिया जो भी गुबार था वो फट गया। उसका भी मन अब रेत तरह हल्का होकर उडने लगा। “इसलिए तो उस दिन रोका नहीं तुम्हे?” एक निर्मोही पर दिल में काटे चुभोने वाली हँसी के साथ बोला। उसदिन चित्रा की सच्चाई बताने पर बस सिद्धार्थ शांत एक पुतला बनकर बिना हिले डुले बैठा रहा। उसने चित्रा को कुछ नहीं बोला, नाहीं चिल्लाया नाहीं उससे फालतू सवाल जवाब किए क्योंकि कमेंटमेंट उनके रिश्ते को लागू ही नहीं थे। ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 6
ऐसा नहीं था चित्रा की कोई दोस्त नहीं थे। She is topper student. बादामी आकार की आंखें, काले लंबे उसकी दो चोटियां और घुटनों तक पहने मोज़े, गोरी त्वचा और उसमें भी पढ़ते डिंपल्स। हमारे स्कूल के काफी बच्चों को खास कर लड़कों को काफी पहले ही स्त्री और पुरुष भगवान ने किस कारण और वजह से बनाए है यह बात पहले ही पता चल गई थी। यह उनकी आंखों से पता चल जाता था। पर मेरे लिए चित्रा और मेरा रिश्ता दोस्त के अलावा और आगे कभी बढ़ा ही नहीं। चित्रा का एक लड़की होने के बावजूद दोस्त बनने का एक ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 7
मुझे तब लगा वो अचानक से कन्फेशन से घबराई होंगी। जैसे 2 साल पहले मेरा हाल था उसी प्रकार भी वही हाल था, पर जब वह 12वीं के बाद बिना बताए दिल्ली चली गए तब मुझे खटका। प्रकाश ने कहा वह तुझ से लव नहीं करती है। पर मुझे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ। शायद वो भी जिम्दारिया, दोस्ती, सपने इनमें दब चुकी थी। पापा ने 12वीं में 80 मिलते ही कुछ ना सोचते हुए, तुम्हें इंजीनियरिंग करना होगा। क्योंकि उनके ऑफिस में एक क्लर्क का बेटा इंजीनियरिंग कर आर्किटेक्ट बन चुका था। मेरी एक भी नहीं चलने दी मैं ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 8
चित्रा और शायद मेरी शायद कम ही बातें हुई।उसी बीच में अपने ऑफिस कलीग्स के साथ में मसूरी गया।ट्रेन से जब नीचे उतरे तब मुझे लगा जैसे मैं एक अलग जगह हूं, सारे विचार कहीं खो से गए थे।पहाड़ों को हरियाली ने ऐसे गोद में लिया था मानो मां अपने बच्चे को हवा, पानी से बचाकर सुरक्षित रख रही हो।वह भी अपनी मां से उतना ही लिपटा हुआ था मानो दोनों अगर बिछड़ गए तो शायद उनका अस्तित्व कहीं खो जाएगा। केंमटी फॉल जब हम पहुंचे पहाड़ों की गोद से झरना बह रहा था। और नीचे लोग अपने परिवार के ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 9
उसे दिल आज भी नही भुला पाया।चित्रा के जाते ही, सात दिन के अंदर मैंने बनारस छोड़ दिया।अगर नहीं तो या फिर पागल हो जाता नहीं तो, आवारा आशिक। मैं दोनों ही बनने की फिराक में नहीं था।मैंने अपनी कंपनी में रेजिक्नेशन लेटर देकर अपने फंड में जो कुछ भी पैसे थे। उसे लेकर निकल गया, एक सफर पर। पता नहीं था कहां जाऊंगा?पता नहीं था रास्ते कितने छोड़ आया हूं, मंजिल तो काफी दूर थी, हवा भी गुस्ताखी से भरी हर निशान मिटाये जा रही थी, वापस लौट जाने के। आखिरकार कहीं जगह हाथ में आया वह काम किए।उसी जगह शंकर त्रिपाठी ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 10
यहां रोज आते हो तुम? एक सवाल की शक्ल देखने के लिए सिद्धार्थ पीछे मुड़ा। सॉरी.. तुमने तो कोई गलती की ही नहीं। तड़ाक से जवाब आया। मैं तुम्हें यहां रोज देखती जब भी देखती हूं, तब लगता है यही के हो, लेकिन जिस तरह यहां की खूबसूरती में खो जाते हो, इससे लगता है की नए हो। सिद्धार्थ उस लड़की के इतने बातों के बावजूद एक शब्द भी बोल नहीं सका। गर्लफ्रेंड है तुम्हारी? सॉरी अरे फ़िरसे सॉरी! बिना गलती के सॉरी कभी नहीं बोलना चाहिए। नहीं... सिर्फ इतना जवाब सिद्धार्थ दे पाया। फिर ठीक है, Myself रागिनी भारद्वाज. भारद्वाज साडिस के मालिक की बेटी ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 11
शाम 6:30 बजे के पहले ही सिद्धार्थ घाट पर आ चुका था।श्रद्धालु भक्त, वहां के रहिवासी, पंडित सब घाट पहुंच चुके थे, उसमें सिद्धार्थ भी शामिल था। आरती शुरू हो गई आरती की धुन में कहीं खो गया था सिद्धार्थ। देखती हूं कल वैसे भी बिजी हूं। सिद्धार्थ की आंखें खुल गई। वो नहीं आई। सिद्धार्थ के बात में एक फैसला नहीं बल्कि एक निराशा जान पड़ रही थी।सिद्धार्थ के कंधे पर किसी ने हाथ रखा।सिद्धार्थ पीछे मुड़ा। रागिनी खड़ी थी। आह!!हमेशा पीछे से आकर डराना क्या आदत है तुम्हारी? आदत!? हमेशा? आदत तो बहुत बड़ी बात होती है। एक बार लगती है, तो ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 12
(लंबा अध्याय)सिद्धार्थ रागिनी को इतनी रात कहा लेकर जाए समझ नहीं पा रहा था। रागिनी तुम्हारे घर का पता मै तुम्हे छोड़ देता हु। हम में राही प्यारे के हमसे कुछ ना बोलिए, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए। रागिनी पूरी तरह नशे में धुत है, इसका अंदाजा सिद्धार्थ ने लगा लिया था। कहा लेकर जाता वो रागिनी को? यहाँ भी तो नहीं छोड़ सकता था। एक लड़की को इस हालत में घर मे पेश करे ऐसे तो भारतीय संस्कारो को उलंघन हो जाता।आखिरकर निष्कर्ष निकला वो उसे पास के किसी लॉज़ पर लेकर जाएगा।वह पहुचे स्वप्नसुंदरी लॉज पर।पहुचते ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 13
बनारस की वो मनमोहक सुबह, गंगा के शितल जल से सुर्य स्नान करके खुदकी दमकती शक्ल पूरे वाराणसी को रहा था।दूसरी तरफ आ ! मेरा गला रागिनी का गला पूरी तरह सूख रहा था अब कुछ देर बाद गला स्वर्ग सिधार जाता।रागिनी का आक्रोश सुनते ही, सिद्धार्थ की जो भीक मिली नींद थी वह भी टूट गई।अब तक सिद्धार्थ रागिनी के साथ उसके बगल में ही सोया था यह उसे समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही चादर सिर से हटी रागिनी कंठ दान देकर चिल्ला उठी। How dare you? और इतना कहते ही, एक किक कृतज्ञता का आभार प्रकट करने ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 14
तुषार सिद्धार्थ का एकमेव दोस्त जो उसे समझता है, जानता है।तुषार क्रिष्णा स्वामी का बेटा और बालन स्वामी का था किसी जमाने में बालन स्वामी के पास १२ एकर जमींन थी।दो बेटे राजन स्वामी और कृष्णा स्वामी, राजन स्वामी को पढाई लिखाई में कुछ ज्यादा रूचि नहीं थी फिर भी दाँट-दपट के बालन ने उसे १० तक पढाई करवाई।राजन मन का भोला पंडित अपने छोटे भाई कृष्णा से बेहद प्यार करने वाला।राजन को भले ही रूची न हो पर कृष्णा को पढाई में रूचि होने के कारण १० के बाद गाव के बाहर जाकर चेन्नई विश्वविद्यालय से उसने सॉफ्टवेयर ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 15
मुझे बहुत भूख लगी है। रागिनी अपने मुंह का पाउट बनाते हुए बोली। घर जाकर खा लेना। ने बस एक रुखासा जवाब दिया, जो रागिणी को बिल्कुल पसंद नही आया। कंजूस मैने तुम्हारे 3200 बचाए और तुम मुझे ब्रेकफास्ट तक नही करा सकते। सिद्धार्थ उसे what the fuck लुक से देखने लगा।रागिनी सिर्फ सिद्धार्थ का हाथ पकड़ हाथो में लेकर हिलाने लगी। प्लीज!! ठीक है। या!! रागिनी ख़ुशी से खील उठी।सिद्धार्थ सिर्फ उसे देख मुस्करा दिया।दोनो ने नत्थूलाल की दुकान पर आलु कचोरी खाई।बिस्लरी की पानी की बोतल हाथ में पकड़ दुकान से बाहार निकले। कहा जा रही हो? सिद्धार्थ ने बिना किसी भाव के ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 16
रागिनी भारद्वाज श्रीकांत भारद्वाज और वैशाली भारद्वाज की छोटी बेटी और भारद्वाज परिवार के दो पुश्तों में एक लौती का आगमन मतलब लोगो के लिए कोई खुशियों से कम नहीं था।भारद्वाज खानदान को भी था और भारद्वाज गारमेंट और साड़ीझ के फैक्ट्रिस के कामगारों को भी, सबको रागिनी की जन्मदिन का बोनस जो मिला था।रागिनी को उम्र की दस साल तक वो सब खुशियां मिली, जिसे सिर्फ सपने में जीकर कर छोड़ दिया करते है।उसकी सब खुशियां मानो कही खो सी गई जब भारद्वाज गारमेंट्स को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा।उन्होंने सब पैंतरे आजमाए लेकिन कुछ नही हुआ। फिर ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 17
रागिनीरागिनी पूरी तरह भारद्वाज परिवार के बारे में भुल चुकी थी।उसे लगा कि वो अपनी छोटीसी जिंदगी अपने मौसी साथ काट देंगी।और इसके बारे में वो हमेशा याद दिलाती रहती।"याद रखना मासी हमे एक साथ जिंदगी भर रहना है।" मौसी हस देती।"हसो मत मासी, प्रोमिस कर रहना है, मतलब रहना है।वरना मैं रो–रो कर दिल्ली 6 को सोने नहीं दूंगी।""हा बाबा! प्रोमिस" मौसी हंसी संभालते हुए कह देती।लेकिन शायद भगवान भी रागिनी की इस बात को हसी में ही ले रहे थे। देवकी को सिर में दर्द शुरू हो गया, पहले पहले गोलियां लेने से तुरंत चला जाता इसलिए ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 18
रागिनी खुदके अतीत से ही जाग उठी। बाहर श्याम हो चुकी थी। "मैं इतने देर तक सोती रही?" पहला रागिनी के मन में यही उठा। कभी–कभी नींद थक जाने पर नही लगती जब लगती है तब हम इतना थक जाते है की उठने का मन नहीं होता। जैसे एक ही नींद में उसने पूरे हफ्ते की नींद बहा दी हो।रागिनी का सिर भारी हो चुका था, फिर भी वो उठी और फ्रेश होकर पेट का आसरा ढूंढने रूम से बाहर चल पड़ी।वैसे भी सुबह के कचोरी पर ही थी वो, दोपहर के खाने में जो बखेड़ा खड़ा हुआ उसके ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 19
गंगा रागिनी से बात करने के बाद रिक्शा में बैठी। सूरज अपने परमसीमा पर पहुंचने की कोशिश में था। गंगा की गोदी से ऊपर आया तब से लेकर सूरज सिर पर नाचने तक गंगा बाहर थी। इसलिए बिना कुछ सोचे उन्होंने रिक्शा लेना ठीक समझा। यह कोई 25 मिनट में घर पहुंच जाती रिक्शा की मदद से।घर जाकर बहाना भी तो बनाना था, जो परिस्थिति के अनुकूल हो।लेकिन अभी भी मन कुछ महीने पहले अतीत को ही कुरेद रहा था। रागिनी का सिद्धार्थ के जिंदगी में आना कोई दैवी- चमत्कार नहीं था। शास्त्री जी के चेले–सुपुत्र देवधर शास्त्री।बाप के ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 20
दोनों घर पहुंचे रागिनी को लगा घर में अपरिचित व्यक्ति की उपस्थिति देखते हुए बहुत बड़ा हंगामा होगा लेकिन उसके विपरीत हुआ।वैशाली ने बड़े आदर से प्रतीक्षा का स्वागत किया।खाने के समय खाना खिलाया चाय के समय चाय पिलाई।लेकिन शाम को जब दोनों पुरुष घर वापस आए, तब चर्चा विशेषण चालू हो गया।"नाम क्या है तुम्हारा?" श्रीकांत ने पूछा।प्रतीक्षा ने डरते–डराते हुए जवाब दिया, "जी, प्रतीक्षा सरपोत्तदार।""रागिनी को कैसे पहचानती हो?""जी, कुछ साल पहले मेरे पापा का दिल्ली ट्रांसफर हुआ था, तब हम आजू बाजू में ही रहते थे।""क्या करते हैं तुम्हारे पिताजी?" अब यह सवाल प्रताप ने दागा ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 21
वहा से चारो निकल गए।शास्त्री जी अपने अपमान से तमतमा उठे थे, श्रीकांत ने शास्त्री जी के पूरे परिवार उद्धार एक ही बैठक में जो कर दिया था।कुछ दिन तक इस विषय में कोई बात नही हुई।तब नवरात्रि के पर्व चालू थे, सब बनारस में एक नया जोश भर चुका था।रागिनी अपनी मां वैशाली के साथ मां दुर्गा के मंदिर में गई थी।उसकी मां थाल लेकर पूजा करने मंदिर के अंदर गई थी।वो बाहर ही अपनी स्कूटी से सटकर खड़ी थी की तभी एक औरत उसके पास आई।"जी कुछ चाहिए आपको?" पहले तो रागिनी ने उस औरत को पहचाना ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 22
"हम दोनों कहां जा रहे हैं इतनी सुबह सुबह?""मैंने तुम्हें बताया तो था।""मुझे एक शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में डॉक्युमेंट्री करनी है, उसके काम से ही जा रहे हैं।""तों फिर हम दोनों क्यों जा रहे हैं?" जनरली भारत में देखा जाता है कि हमेशा जब भी कभी लड़का लड़की को मिलने बुलाता है तो लड़की अपने दोस्त को भी अपने साथ लेकर जाती हैं। यही काम फिलहाल प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों कुछ ही देर में, काशी मंदिर के पास पहुंच चुके थे। प्रतीक्षा ने ऑटो वाले को पैसे दिए,रागिनी भी उसके साथ ही थी। उसने देखा, एक लाल जैकेट ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 23
रागिनी और सिद्धार्थ लस्सी पीने के बाद घर की तरफ निकले।दोनो के बीच कोई बातचीत ना होती देख"क्यों क्या सिद्धार्थ ने पूछा।"कुछ भी तो नही बस रागिनी ने उसी अंदाज में जवाब दे दिया।""आज बहुत शांत शांत हो।""तुम्हे ही तो पसंद नही ना मेरी बकबक औरप्रतिक्षा है ना! मैं बोलूं या ना बोलूं इससे थोड़ी फरक पड़ता है।""Are you jealous""मैं क्यों जेलस हु भला?"सिद्धार्थ हस दिया और इसी बात पर रागिनी मुंह फुलाकर बैठ गई।सिद्धार्थ कुछ बोले या ना बोले उसे रागिनी की चुप्पी खटक रही थी।"नाराज हो?" सिद्धार्थ ने चिंता भरी आवाज में पूछा।"मैं नाराज नहीं हु। (रागिनी ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 24
वही सी हर रोज की सुबह होती है।रागिनी उठती है, उसके बाजू प्रतिक्षा को ना देख उसकी आंखे खुल है।"कहा हो तुम?" रागिनी ने प्रतीक्षा को पुकारा।" मैं बाथरूम में हु, आ रही हु।" इंसान का दिमाग खाली नहीं बैठना चाहता उसे हर वक्त जिज्ञासा की भूख रहती है उसी एक जिज्ञासा को मिटाने के लिए रागिनी ने सुबह सुबह उठ इंस्टाग्राम खोला।इंस्टाग्राम खोलते ही वह नोटिफिकेशन पर गई।किसी तुषार@21(फेक Id) से मैसेज आया था।"हेलो रागिनी जी।""वह हम कल मिले थे।""मैं सिद्धार्थ के साथ आया था कल।""वह आज बॉस प्रतिक्षा के साथ जाने वाले हैं बनारस पर डॉक्यूमेंट्री करने।""आज ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 25
सिद्धार्थ का यह वाक्य सुनते हैं दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "तुम… यह.. क्या कह रहे हैं हो?" सिद्धार्थ हकलाते हुए जवाब पेश किया।"भाई मैंने पूछा, क्या आपको रागिनीजी पसंद है?"सिद्धार्थ कुछ भी जवाब देने की स्थिति में नहीं था।एक तरफ वो रागिनी की तरफ आकर्षित हो रहा था दूसरी तरफ उसकी बीमारी जिंदगी में कोई भी ऐसा कदम उठाने से रोक रही थी जिससे आगे चलकर उसे पछताना पड़ता। हम बोल सकते है की उसने दिल पर पत्थर रखकर जवाब दिया,"नहीं।""फिर आपको मेरे और रागिनी के रिश्ते से कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए, बॉस।" तुषार मिमीयाते हुए बोला।सिद्धार्थ ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 26
सिद्धार्थ का उस दिन जंगी स्वागत हुआ। घर आते ही नारायण जी ने सिद्धार्थ के गाल पर बिना कुछ खोटी सुनाएं तमाचा लगा दिया। सिद्धार्थ की आंखों में कुछ देर के लिए आंसू की बूंदे भर गई क्योंकि सिद्धार्थ और उसके पिता में चाहे कितना भी घमासान युद्ध छिड़े लेकिन कभी सिद्धार्थ को तमाचा मारने की बात उन्हें सूची नहीं। लेकिन किसी पराए के कारण उनके मान सम्मान को ठेस पहुंचने वाली बात उनके मन को कठोर कर चुकी थी, जिसका छाप सिद्धार्थ की गालों पर छपा था। सिद्धार्थ ने अपना गला गटका अपने आंसू बहने से रोक लिए ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 27
(यह कहानी शुरू करने से पहले, इस कहानी में भारत माता मंदिर पर कोई डिस्क्रिप्शन नही दिया गया है। कर कहानी में रुकावट ना हो और कहानी में अनावश्यक डायलॉग ना आए। यह काफी लंबा अध्याय है।)तुषार को पहले ही खबर हो गई थी सुबह घमासान युद्ध की घोषणा होने वाली है तो वो पहले ही रागिनी को लेने भाग गया।सिद्धार्थ ने तुषार के "सुबह ही कही निकल गया है।" यह बात डाइनिंग टेबल पर जैसे ही गंगा से सुनी वो बौखला गया। "कहा जा रहा है?" "आज फिल्म का लास्ट डे है।" "अरे नाश्ता तो करके जा।" " ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 28
घर में पहुंचते ही सिद्धार्थ ने पहला फोन पहली बार किसी को लगाया होगा तो वो थी, प्रतीक्षा।विषय एक "रागिनी घर पहुँची क्या?" "नहीं सिद्धार्थजी वो नहीं आई।"यह वाक्य मानो कोई गरम लावा घोल रहा था कानो में। उसने कोई और बात ना सुनते झट से फोन काट दिया। बेचैनी ने कब अधीरता का रूप ले लिया पता ही नहीं चला।और अब जब सिद्धार्थ ने तुषार की गले पर निशान बने देखा तो उसने अपना आपा खो दिया।गुस्सा और अधीरता शत्रु होते हैं विवेक बुद्धि के।जो कोई भी झूठ साबित कर सकता था, सिद्धार्थ ने वही सच मान लिया ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 29
इसलिए वो वहा पे आंखे बंद कर बैठा रहा।खुदका सिर, दीवार को टीका, सिर्फ छत की तरफ एकटक देखने साल पहले भी यही हुआ था। बस सिचुएशंस कुछ अलग थी।सिद्धार्थ ने नया नया काम करना शुरू किया था।बैंगलोर के शंकर त्रिपाठी के ट्रैवल एजेंसी में टूर गाइड काम करता था।जब उसके काम से खुश होकर एक फॉरेन यात्री, फ्रेंज मार्विक ने उसे ब्लॉग लिखने का आइडिया सुझाया तो वो उसपर भी काम करने लगा।जब एक डेढ़ सालो में लोगो को ब्लॉग पसंद आए तो व्यूअर के सुझाव के चलते वीडियो डालना भी शुरू किए, उसी समय तुषार की एंट्री ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 30
जैसे ही सुबह हुई, तुषार की नींद खुल गई।उसने एक बार फिर सिद्धार्थ को देखा।उठ भी जाओ अभी रागिनिजी ही है।बस उठ जाओ, बहुत सारे प्रोजेक्ट बाकी है।भूल गए क्या? आप शादी लायक लड़की धुडंकर देने वाले हो मुझे, वादा किया है ना आप ने बड़ी मां से।तुषार के आंखो से आसू टपक गया जो सिद्धार्थ के हाथो को गीला कर दिया।वो बिना और कुछ बोले बाथरूम में चला गया। वो हिम्मत नहीं हारेंगा यही सोच रख उसने अपने आंखो को पानी से साफ किया।बाहर आया तो नर्स आइवी बदलने आई थी।"सिस्टर!" नर्स पीछे मुड़ी।"कब तक भाई ठीक होगा।""वो ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 31
सिद्धार्थ जाग गया, रागिनी को वहा देख कर वो ज्यादा ही शॉक में था और रागिनी उसे देखकर खुश।"क्या रहे हो? कैसे लग रहा है अब तुम्हे?"यह दोनो सवाल के साथ ही सिद्धार्थ थोड़ा सिहर सा गया। मानो उसे रागिनी के कुछ ना बोलने का ही इंतजार था, कुछ गलत कर दिया था रागिनी ने।" ठीक हू अभी।" जवाब इतना रूखा सा था की कोई भी ऑफेंडेड हो जाता, पर रागिनी सिद्धार्थ के मूड से वाकिफ थी।"यह सब कैसे हुआ रात में बिना किसी को बताए निकल गए, अच्छा हुआ वहां के लोग काफी अच्छे थे।""ट्रैफिक पुलिस ने तुषार ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 32
रागिनी सीधे रूम में चली गई रूम में जाते ही उसका फोनबज उठा।Michael Hello Ragini come back baby.I already my mom dad.RaginiAbout what? MichaelThey agreed for our marriage, I mean me and Andrew. Ragini But how?MichaelJust I tell them; you didn't want me to marry Ragini so I fell in love with someone else.And he is Andrew my teammate. RaginiThis is so cliche. do you get this reason only?Michael So what can I tell them that your son is gay and we make a plan to make a marriage of convenience.Sorry, but this is Most trustworthy reason I got. ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 33
सिद्धार्थ घर में घुसते ही पहला सवाल था, "यह क्या हो गया सिद्धार्थ? तुषार यह सब क्या है?""वो एक्सीडेंट गया था आंटी।""एक्सीडेंट! एक्सीडेंट कैसे? कब?""आंटी वो लंबी बात है थोड़ा पहले फ्रेश हो जाए। भूख भी बहुत लगी है।""ठीक है। तुम दोनो फ्रेश हो जाओ। आज मैंने दाल –चावल ही चढ़ा दिया है, तड़का मार परोसती हु।"अपने–अपने काम निपटते ही तीनो खाना खाने किचन में ही बैठ गए।तीनो अपनी–अपनी जगह से आए थे, गंगा भी काफी थक चुकी थी। इसलिए डाइनिंग टेबल पर दुनिया की तमाम चीजे रखी थी। इसलिये तीनो नीचे ही खाना खाने किचन में बैठ गए ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 34
तुषार से नंबर मिलते ही रागिनी ने सिद्धार्थ को सुबह फोन लगाया। पहली बार फोन लगा नहीं लेकिन दूसरी दूसरी बार में ही फोन उठा लिया, सिद्धार्थ ने व्यक्ति का परिचय पूछा।"मैं रागिनी बोल रही हूं।" सिद्धार्थ का मन एकाएक अस्थिर हो गया धड़कनें बढ़ गई। वह चाहे कितना भी दूर भागे लेकिन उसका मन रागिनी पर ही अटका था यह बात रागिनी की एक आवाज से ही साबित हो गई।रागिनी ने सिद्धार्थ का ध्यान खींचते हुए, "कैसे हो तुम?" "मैं ठीक हूं।" सिद्धार्थ के आवाज में पहली बारी में जो कमजोरी दिखाई दे रही थी वह अब थोड़ी ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 35
2 दिन हो चुके थे lसिद्धार्थ को उससे मिले हुए, उसका का कोई जवाब नहीं आया था। फिर रागिनी अपने लंदन के टिकट बुक कर ली थी, आज शाम के फ्लाइट से ही वह लंदन वापस जाने वाली थी।जाने से पहले वह अपने कपड़े भर रही थी तभी उसकी नजर कपड़ों में दबे उस सोने के कंगन के डिबिया पर गई जिसको गंगाजी ने उसे दिया था कैफे वाली मुलाकात में।उन्हे अटूट विश्वास था की, रागिनी ही उनके घर की बहू बनेंगी। यह जानते हुए भी कि उनका लड़का एक मेंटल पेशेंट , मानसिक रोगी है। फिर भी उन्हें ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 36
गंगा तुम मुझे बताओ की भी कि आखिर तुम दोनों के बीच क्या हुआ है ऐसा जो सिद्धार्थ पर तरह की नौबत आ गई। गंगा वहां रखे डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ गई।"अपने हाथों को अपने माथे पर लगा पीटने लगी। मैं ही अपने बेटे की जान की दुश्मन बन गई। मुझे तभी समझ जाना चाहिए था कि जब वह शादी नहीं करना चाहता था।अपनी जिंदगी नहीं बसाना चाहता था तो वह सही था।""गंगा यह तुम क्या बोल रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा तुम थोड़ा साफ-साफ बोलोगी।"सिद्धार्थ और रागिनी का रिश्ता टूटने के बाद ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 37
सिद्धार्थ के लिए लंदन का प्रोजेक्ट एक सपने जैसा था वहां उसे पहली बार एक ओटीटी–युटुब प्लेटफ़ार्म छोड़ टीवी आने का मौका मिलने वाला था। वह भी वहां के सक्सेसफुल एंकर और ट्रैवल व्लॉगर के साथ। उसे तुषार से बात करना जरुरी था।तुषार के घर में आते ही इस बात की खबर, सिद्धार्थ को पता चल गई। वातावरण गर्मा-गर्मी का हो गया था।नारायणजी ने आते बराबर सवाल दागा, "बात की तुमने उन लोगो से? बोल दिया ना! सिद्धार्थ ने यह काम छोड़ दिया है।"तुषार सोच में पड़ गया। झूठ बोलना सही था उसके मायने में।क्योंकि ट्रेवलिंग सिद्धार्थ का पैशन ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 38
आखिरकार सिद्धार्थ पूरी तरह अपना आपा खो बैठा।उसे अजीब–अजीब आवाजो का आभास होने लगा।वह खुद के प्रति इनसिक्योर होने नारायण जी ने सिद्धार्थ की बीमारी को ट्रिगर कर दिया था।आगे कहीं बढ़ न पाना उसके लिए बहुत बड़ी हार साबित हो रही थी। उसकी अंदर की आवाजे उसे पागल कर रही थी।प्रकाश जो उसका कोपिंग मेकैनिज्म था वो भी थक गया था समझा–समझा कर की सब कुछ ठीक है।धीरे-धीरे खुद पर का संतुलन खोते जा रहा था वो।"अच्छा हुआ मैं लंदन चली गई, तुम मेरे लायक ही नहीं हो। I hate you Sidharth, I hate you.""तुम बिलकुल नालायक हो, ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 39
नारायण जी ने नंबर मिलते ही, डॉक्टर चतुर्वेदी को फोन घुमाया।फोन डॉक्टर (यहाँ साइकैटरिस्ट) चतुर्वेदी के रिसेप्शनिस्ट ने उठाया। लेने को कहा।जो अगले सुबह 11:00 की मिल गई, यह भी बताया की सेशन एक घंटे का होता है, हर एक सेशन का खर्चा हजार रुपए|तीनो ने मिलकर एक दूसरे से चर्चा की।"हमे कल सुबह 11:00 बजे की अपॉइंटमेंट मिल गई है, लेकर जाएंगे इसे वहां पर?"गंगा बोली, "आज राजू की बहू का फोन आया था। वह बोल रही थी कि, राजू गाजियाबाद से वापस आ चुका है। उसी की ही गाड़ी से लेकर चलते है।""पर कैसे? भाई चलने के ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 40
"आपने हा क्यों कहा?"" हमारे पास और कोई रास्ता नहीं।""और कोई रास्ता नही का क्या मतलब?2,00,000 भरने है जी!""मेरे सिद्धार्थ को ठीक करना ज्यादा जरुरी है।""वो ठीक ही जायेंगे, जी डॉक्टर ने गोलियां तो लिख कर दी है ना!""पर वो जब तक गोलियां है तब–तक बाकी फिर?"नारायणजी ने पूछा तो गंगाजी के पास जवाब नही था।जब तक गोलियां थी सब अच्छा था। पूरा एक हफ्ता।गोलियां देते तो सिद्धार्थ ठीक रहता। खाना, पीना,सोना यही उसका काम हो गया था। लेकिन गोलियां इतनी हाई डोसाज की थी की सिद्धार्थ का खुद पर कुछ कंट्रोल नही था। जो काम मां बचपन में ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 41
यह बोलना गलत नहीं होंगा की ऐसा एक दिन नहीं गया होंगा जहा सिद्धार्थ को याद ना किया हो|आदत गयी थी सबको उसकी| आदते छुटती थोड़ी है जल्दी|जैसे की तीन की जगह चार लोगो का खाना बनाना, उसकी पसंदीदा कटहल, छोटी छोटी बातो में सिद्धार्थ का जिक्र करना|उसके लिए सुबह सबके चाय के साथ बनायीं गई कॉफ़ी जो की बाद में पता चलना की वो पिने वाला फीलहाल मौजूद नहीं| उसकी पसंदीदा मोती चूर के लड्डू उसके पिताजी द्वारा लाया जाना और फिर उसको अपने कमरे से बुलाना की वो लड्डू खा ले| लेकिन फिर वो भ्रम बचे हुए ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 42
तीनों का समय समाप्त होने को आया था सजक हो गए तिन्हो|बाकी दो तो बाहर आ गए लेकिन तुषार कुछ देर अपने भाई के साथ बिताना चाहता था।जो भी चीजे गंगा ने मेल नर्स को दी थी वह कोई सिद्धार्थ के अकेले के हिस्से में आने थोड़ी वाली थी| वह सब में बाटी जाति और कुछ बचा हुआ सिद्धार्थ को मिलता| उसको वो चीजे मिलने पर भी गोलियों को स्वाद उसे फीका ही तो कर देती| तो उसका लाभ खुद क्यों ना उठाया जाए?इस बात का कैलकुलेशन पहले से ही नर्स ने कर-कर रखा था कौन सी ऐसी चीज ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 43
एक बनाया गया चक्रव्यूह एक वक्र(curve) जो कहीं जाकर रुक ही नहीं रहा था और बीचो बीच बनाया गया बिंदु।उस डूडल के नीचे लिखा गया था, चक्रव्यूह में फंसा अर्जुन। तीन राक्षस जिनके बड़े बड़े सिंग थे। और दिखने में भी काफी भद्दे थे। तस्वीर में जो बीच में एक महिला दिखाई दे रही थी उसे एक डायन का रूप दे दिया गया था।और बाकी दोनो को किसी राक्षस का हुलिया। जैसे की वो कोई सुख खाने वाले दानव हो। जिनकी आंखें लालसा और गुस्से से भरी थी।चित्र का नाम : थ्री डेविलएक काली डायरी जिसपर पेन से लिखता ...Read More
ताश का आशियाना - भाग 44
2 महीने से भी ऊपर का समय बीत चुका था।नारायण जी के हाल पूछे जाने अनुसार सिद्धार्थ किसी भी में रुचि नहीं दिखाता।लेकिन मेडिटेशन, उसमे अलग बात थी।सिद्धार्थ का झुकाव अध्यात्म और उससे जुड़े बातों में ज्यादा था।बहुत बार सिद्धार्थ को आध्यात्म सेशन अटेंड करते हुए पाया गया था।मन लगाकर वह सब सुनता और इतना ही नहीं उसे आत्मसात करने की भी कोशिश करता।उसकी हालत इस बात से ठीक नहीं होती लेकिन अब वह थोड़ा नॉर्मल दिखने लगा था।सिद्धार्थ धीरे-धीरे डायरी लिखने लगा था।जो चक्रव्यूह, आंखें उसने बनाई थी वह धीरे-धीरे शब्दों का जाल बुनने लगी थी।लेकिन उस में ...Read More