उस महल की सरगोशियाँ

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उस छोटी क्यूट सी सफ़ेद फ़िएट कार का दरवाज़ा खोलते हुये मीना देवी की बगल में बैठते हुये उसे रोमांच हो आया था। ये किसी राजपूती रजवाड़े की भूतपूर्व राजकुमारी एक लोकल चैनल की पी आर ओ थी। देल्ही दूरदर्शन कम था जो शहर में ये दूसरा चैनल खुल गया था। उसने बहुत उत्सुकता से पूछा था, ", "आप टी वी चैनल में एज़ अ पी आर ओ क्या काम करतीं हैं ?" "मुर्गे फँसाने का। "कहकर वह खिलखिला पड़ी थी। वह हैरान थी, "मुर्गे फँसाने का ? ये क्या बात हुई ?"

Full Novel

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उस महल की सरगोशियाँ - 1

एपीसोड - 1 उस छोटी क्यूट सी सफ़ेद फ़िएट कार का दरवाज़ा खोलते हुये मीना देवी की बगल में हुये उसे रोमांच हो आया था। ये किसी राजपूती रजवाड़े की भूतपूर्व राजकुमारी एक लोकल चैनल की पी आर ओ थी। देल्ही दूरदर्शन कम था जो शहर में ये दूसरा चैनल खुल गया था। उसने बहुत उत्सुकता से पूछा था, ", "आप टी वी चैनल में एज़ अ पी आर ओ क्या काम करतीं हैं ?" "मुर्गे फँसाने का। "कहकर वह खिलखिला पड़ी थी। वह हैरान थी, "मुर्गे फँसाने का ? ये क्या बात हुई ?" "मेरा मतलब है कि ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 2

एपीसोड – 2 ऐसा भी कभी सुना है जो कि महाराष्ट्र के मनमाड के पास के गाँव कवलाना में था ? इस गाँव में अचानक गायकवाड़ राज्य के पुलिस वाले आ गये घर घर जाकर पूछताछ करने लगे थे कि काशीराव गायकवाड़ का घर कौन सा है ?काशीराव के द्वार खोलते ही एक सिपाही ने पूछा था, "आपके कितने बेटे हैं ?" काशीराव ने डरते हुये उत्तर दिया था, "त -त -त तीन बेटे हैं । " "आप उन तीनों को लेकर बड़ौदा चलिये, वहाँ की राजमाता ने आपको बुलवाया है। " "राजमाता को मुझसे क्या काम है ?" ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 3

एपीसोड - 3 उन महाराज ने अपने सपनों का नगर कुछ इस तरह बसाया कि आज तक उनकी रोपीं इस शहर में झलकतीं हैं। कभी ये राज्य ७००० गरीब हिन्दुओं को, ३००० मुसलमानों को प्रतिदिन भोजन करवाता था। वही परंपरा इन्होंने आरम्भ करवाई। शहर के बग़ीचे में सुबह उसके केंद्र में बने बेंड स्टैंड पर शहनाई वादन के साथ होती थी जिससे सारा अलसाया शहर जागे तो उसे मधुर संगीत से सारे दिन काम करने की ऊर्जा मिले। उन्होंने एक खूबसूरत पैलेसनुमा इमारत `कलाभवन `बनवाई जिसमें संगीत की, नाटक व सांस्कृतिक महफ़िलें सजतीं रहें। जिस अब इंजीनियरिंग कॉलेज में ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 4

एपीसोड – 4 बहुत दिलचस्प रही थी सोने की तार जैसी महारानी से मुलाक़ात, ये जानना कि इस राजपरिवार आज भी क्यों इतना सम्मान दिया जाता है। इन्होने बेबाक होकर बताया था, " आई एम नॉट अ रॉयल पर्सन। लेकिन मैं ग्वालियर की एक एरिस्टोक्रेट फ़ैमिली की बेटीं हूँ । लखनऊ में मेरी एजुकेशन हुई है। " "मैंने सुना है कि अपने राजपरिवार के साथ आप भी समाज सेवा में रूचि लेतीं हैं ?" "मैं बहुत से समाज सेवी कार्यों से जुड़ीं हुईं हूँ । मैं अखिल भारतीय महिला परिषद की अध्यक्ष हूँ जिसकी नींव मेरी पर दादी सास ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 5

एपीसोड - 5 इस महल में इन्हीं कक्षों में माँ व दासियों को खिजाते दौड़ते होंगे नन्ही राजकुमारी व राजकुमार के कदम। अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने व उनके व्यक्तित्व को सम्मान देने के लिये उन्होंने नए महल, लक्ष्मी विलास पैलेस को बनाने की योजना बनाई थी कितना ख़ौफ़नाक होगा सं १८८५ जब रानी चिमणाबाई शादी के छः वर्ष बाद ही चल बसी होंगी। राजवंश के समाधि स्थल कीर्ति मंदिर में उनकी समाधि बनवा दी होगी। तब तक ये लक्ष्मी विलास महल पूरा बन भी नहीं पाया था। उसने पानी का गिलास सामने की विशाल कांच के टॉप वाली ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 6

एपीसोड - 6 महारानी चिमणाबाई के भाषण से ही सन १९२७ में पूना में भारत के प्रथम स्त्रियों के अखिल भारतीय महिला परिषद का शुभारम्भ हुआ था. जिसके लिए सरोजिनी नायडू व कमला देवी चट्टोपाध्याय जैसी स्त्रियों ने धन दिया था। वह इस महल की दीवारों में उन विचारों की आहट सुनने की कोशिश करती रही थी कि जो महारानी चिमणाबाई के दिमाग़ में इस शहर में लौटकर सरसराये होंगे कि क्यों नहीं हमारे शहर में स्त्री संगठन बन सकता ?और सच ही सन १९२८ में उन्होंने बड़ौदा आकर इस स्त्री संगठन की स्थापना करके स्त्रियों को अपने पैरों ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 7

एपीसोड - 7 उसने राजमाता का राजमहल में इंतज़ार करते हुये चाय का ख़ाली कप मेज़ पर रक्खा था सोनल देवी के साथ हुई लीना देवी से मुलाक़ात को याद करने लगी थी। उनसे मिलने से पहले ही उसने सुन रक्खा था कि ये किसी हाई स्कूल, इंग्लिश मीडियम की प्रिंसीपल थीं। ये अचानक स्कूल के एक क्लर्क के साथ गायब हो गईं थीं। पांच बरस बाद ये अपने शहर में फिर प्रगट हुईं तो ये उस क्लर्क की पत्नी थीं व इनके पास काफ़ी पैसा आ चुका था। जब इन्होंने अपना लोकल चैनल आरम्भ किया तो उसके उद्घाटन ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 8

एपीसोड - 8 "कोई ख़ास नहीं। "वह राजमाता के प्रश्न को टाल जाती है। वह नहीं बताती कि अक्सर के बाज़ारों में मटमैली साड़ी में, बिखरे बालों में घूमती हाल बेहाल सिगरेट पीती औरत को दिखाकर उसकी मम्मी कहतीं थीं, "देख वो राजा कासगंज की बेटी जिसकी शादी बड़ौदा के डॉक्टर से हुई थी। " पहली बार तो ये जानकर वह हैरान हो गई थी, "आप मुझे बुद्धू बना रहीं हैं। ये अधपगली सी औरत कोई राजा की बेटी हो सकती है ?" "सच ये वही है। तब इसके डॉक्टर पति मुंबई में थे लेकिन ये उन्हें तंग करती ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 9

एपीसोड – 9 अंदर जाते ही गेरूआ रंग का महल दिखाई देने लगा था । किसने सोचा था उस के पार इतना भव्य महल होगा। महल के मुख्य द्वार तक जाने के लिए चार पांच सीढ़ियाँ बनी हुईं थीं जिनके दोनों तरफ़ थे दो मदमत्त शेरों के पत्थर के सिर। महल का लकड़ी का द्वार भी राजदरबारी था जिसके काले रंग पर पीतल से डिज़ाइन बनी हुई थी व पीतल के ही बड़े बड़े कुंडे व सांकल थीं। साथ में आये आदमी ने हत्थेदार सोफ़े पर बैठने के लिए इशारा किया और बाहर निकल गया. उसकी आँखें इस हॉल ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 10

एपीसोड - 10 वह रहस्यमय मुस्कान से मुस्कराईं थीं, "यही कहानी तो मैं आपको बताना चाह रही थी। राजा ने इस दुर्घटना के बाद मिलट्री से रिटायरमेंट ले लिया था व वापिस इसी अपने महल में रहने लौट आये थे। तब उनकी पहली पत्नी ज़िंदा थीं, वही इनकी देखभाल करतीं थीं लेकिन तीन साल बाद वे भी चल बसीं। राजा साहब का मन उचाट हो गया था। यू नो --कहाँ मिलट्री की पार्टीज़, मस्ती, शेम्पेन के दौर व डांस ---कहाँ ये सूना महल। और इस महल के विशाल कक्षों में घूमते नेत्रहीन राजा साहब। राजा साहब अपने कुछ सेवकों ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 11

एपीसोड – 11 बाद में महारानी छोटा उदेपुर से भी एक दिलचस्प कहानी सुनने को मिली थी, " महाराजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे व मुम्बई में व्यवसाय किया करते थे। मैं अकेले महल में रहकर नौकरों के षणयंत्र झेलती थीं। हमारे महल से कीमती पीतल का फूलदान या चौकी या चांदी के डिनर सेट की कटोरियाँ या कोई प्राचीन मूर्ति गायब होती रहती थी। ओहदेदारों को डांटती तो वे धमकी देते कि वे हमारे बच्चों को मार डालेंगे। "महारानी जी की आँखें सजल हो आईं थीं, "मैं राजमहल में अकेली होती थी इसलिए उनकी धमकी से बहुत डर ...Read More

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उस महल की सरगोशियाँ - 12 - अंतिम भाग

एपीसोड - 12 एक सेवक ने उन्हें सीधे ही डाइनिंग हॉल में चलने का आग्रह किया। डाइनिंग हॉल में लोगों की खाने की मेज़ पर पंद्रह सोलह मेहमान बैठ चुके थे। महारानी कुर्सी पर बैठी अपने राजसी भारी भरकम गहनों में व बनारसी सिल्क साड़ी में शानदार लग रही थीं। उन्हें देखते ही उन्होंने कहा, "वेलकम टु ऑल। प्लीज़ हैव अ सीट। " महाराजा छोटा उदेपुर ने भी उनका सिर हिलाकर अभिवादन किया। महाराज भी घर की पूजा के कारण पारम्परिक राजसी पोषक में थे। सिर पर कलंगी वाली पगड़ी थी व कमर में कटार। मेज़ पर डोंगों का ...Read More