खौलते पानी का भंवर

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‘आठ हज़ार तो आप अब दे दीजिए और बाकी के आठ हज़ार आख़िरी सुनवाई से पहले दे देना.’’ कल शाम से यह वाक्य उसके दिमाग़ पर हथौड़े की तरह बज रहा था. कहाँ से लाए वह आठ हज़ार रुपए? उस जैसे पन्द्रह हजार रुपए महीना पाने वाले एक मामूली क्लर्क के लिए आठ हज़ार रुपए कोई छोटी-मोटी रकम तो है नहीं कि झट जेब से निकालकर दे दी. लेकिन खन्ना साहब को रुपए अदा करना भी तो बहुत जरूरी है, क्योंकि वे ही उसके हाथों से फिसलती दीख रही उसकी नौकरी बचाकर उसे दर-दर की ठोकरें खाने से बचा सकते हैं.

Full Novel

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खौलते पानी का भंवर - 1

‘‘आठ हज़ार तो आप अब दे दीजिए और बाकी के आठ हज़ार आख़िरी सुनवाई से पहले दे देना.’’ कल से यह वाक्य उसके दिमाग़ पर हथौड़े की तरह बज रहा था. कहाँ से लाए वह आठ हज़ार रुपए? उस जैसे पन्द्रह हजार रुपए महीना पाने वाले एक मामूली क्लर्क के लिए आठ हज़ार रुपए कोई छोटी-मोटी रकम तो है नहीं कि झट जेब से निकालकर दे दी. लेकिन खन्ना साहब को रुपए अदा करना भी तो बहुत जरूरी है, क्योंकि वे ही उसके हाथों से फिसलती दीख रही उसकी नौकरी बचाकर उसे दर-दर की ठोकरें खाने से बचा सकते ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 2 - ग्रहण

‘‘सुधीर, तुम पढ़ो.’’ कहते हुए मास्टर जी ने उसकी तरफ़ इशारा किया है. सुनते ही वह एकदम से हड़बड़ा है और बैंच से उठने की कोशिश करने लगा है. मगर हड़बड़ाहट ने उसका संतुलन थोड़ा-सा बिगाड़ दिया है और वह अपने साथ बैठे लड़के पर गिरते-गिरते बचा है. एक हाथ में अंग्रेजी की किताब थामे, दूसरे हाथ से डेस्क का सहारा लेकर वह खड़ा हो गया है. इस बात पर क्लास के सभी लड़के ख़ामोश बैठे रहे हैं, पर उसके साथ वाली लाइन के तीसरे बैंच पर बैठे संजीव की हँसी छूट गई है. और कोई मौका होता तो ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 3 - दिहाड़ी

दिहाड़ी उसकी घड़ी पौने दस बजा रही है जब वह अपने दफ़्तर के भवन में दाखिल हुआ है. हालाँकि लगने का वक़्त नौ बजे है, मगर उसके चेहरे पर हड़बड़ी का कोई भाव नज़र नहीं आ रहा. दूसरी मंज़िल पर स्थित अपने कमरे में जाने के लिये सीढ़ियाँ चढ़ने की बजाय वह आराम से लिफ्ट की लाइन में लग गया है और आगे-पीछे नज़रें घुमाकर देखने लगा है कि लाइन में कोई लड़की-वड़की तो नहीं खड़ी. थोड़ी देर बाद सुस्त चाल से चलते हुए उसने अपने सेक्शन में प्रवेश किया है. कमरे से शोरगुल और हँसी-ठहाकों की हल्की-हल्की आवाज़ें ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 4 - ज्वार

ज्वार मेरे जी में आ रहा था कि उठकर विनोद का गला दबा दूँ. मैं उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं पा रहा था. वजह बिल्कुल साफ़ थी - मंजु, सिर्फ़ मंजु, दूर के रिश्ते की मेरी बुआ की लड़की. थोड़ी देर पहले ही विनोद और मैं कैथल से आगरा आए थे - घूमने. आने से पहले मेरे घरवालों ने मुझसे कहा था कि अपनी बुआ जी के यहाँ ही ठहर जाना. तुम लोगों को आराम रहेगा. बुआ जी लोग थे भी बड़े अमीर. हम दो जनों के चार-पाँच रोज़ उनके यहाँ रूकने से उन्हें कोई फ़र्क पड़नेवाला नहीं था. दोपहर ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 5 - मसीहा

मसीहा आखिर मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ देने का फैसला उसने कर ही लिया है. इसके साथ ही संतुष्टि एक भाव उसके चेहरे पर तैरने लगा है. पिछले आठ-दस दिनों से वह बड़े असमंजस की स्थिति में झूल रहा था कि मिसेज़ पुरी का मकान छोड़ा जाए या नहीं? मकान छोड़ने की बात अचानक ही सामने आई थी, वरना उसका इरादा फिलहाल तो यहाँ से जाने का था नहीं. वह तो आठ-दस दिन पहले उसका दोस्त, अनिल, एक इम्तिहान देने दिल्ली आया और एक रात उसके पास ठहरा, तभी यह चक्कर शुरू हुआ. अनिल ने तो पहली बार उस ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 6 - पाँच रुपये का दर्द

पाँच रुपये का दर्द शाम को दफ़्तर से छुट्टी करके तेज़-तेज़ कदमों से चलता हुआ वह केन्द्रीय भण्डार की लोहिया अस्पताल शाखा के सामने पहुँचा है. महीने की शुरूआत की वजह से होने वाली अन्दर की भीड़ उसे बाहर से ही दिखाई दे गई है. अन्दर जाने से पहले उसने अपने ब्रीफकेस में से प्लास्टिक का थैला निकाला है और साथ ही पैंट की पिछली जेब में पड़े पर्स से ख़रीदने वाले सामान की लिस्ट. अन्दर पहुँचकर उसने एक तरफ से ख़रीदारी शुरू की है. सबसे पहले उसकी नजर घी के डिब्बों पर पड़ी है. अलग-अलग तरह और अलग-अलग ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 7 - जोंक

जोंक दिल को बार-बार तसल्ली दे रहा हूँ, मगर डर फिर भी लग रहा है. प्रदीप बस की लाइन मेरे पीछे खड़ा स्त्री जाति की महानता पर लगातार बोले जा रहा है. मेरा जी चाह रहा है कि अब वह अपनी बक-बक बन्द करके चुपचाप अपने घर जाने वाली बस पकड़ने की फ़िक्र करे, लेकिन वह तो जैसे मुझसे चिपका ही हुआ है. उसकी बातें सुनने का उपक्रम करते हुए बीच-बीच में आँख उठाकर मैं बस आने वाले रास्ते की तरफ़ भी नज़र मार लेता हूँ. छह बीस पर बस आनी चाहिए. मैंने घड़ी की ओर देखा है - ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 8 - चक्रव्यूह

चक्रव्यूह आख़िर उसने तय कर लिया है कि अपने लिए अलग कमरे काम इन्तज़ाम वह अब कर ही लेगा. और घुटनभरी ऐसी ज़िंदगी अब और नहीं जी जाती उससे. अब और बर्दाश्त करना मुश्किल है. इस घर में रहकर जलने और कुढ़ने के सिवा वह और कुछ नहीं कर सकता. यहाँ अपनेआप को वह चाहे कितना भी बेइज़्ज़त क्यों न महसूस करता रहे, अपनी बेइज़्ज़ती के जवाब में एक लफ़्ज भी अपने जीजा जी को नहीं कह सकता. कुछ भी जवाब देने से पहले दीदी की सूरत उसकी आंखों के आगे घूमने लगती है और उसे जबरदस्ती अपनेआप को ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 9 - रोशनी का अंधेरा

रोशनी का अंधेरा ‘‘क्यों बे, अपनी पढ़ाई-लिखाई का भी कुछ ख़याल है या सारा दिन इन किस्से-कहानियों में ही रहना है?’’ राकेश पर उसके बाबूजी बिगड़ रहे थे. पिछले कुछ महीनो से उसके बाबूजी उसकी पढ़ाई का ख़याल कुछ ज़्यादा ही रखने लगे थे. उन्हें हर वक़्त बस उसकी पढ़ाई की ही चिंता लगी रहती. वे उससे ज़्यादातर उसकी पढ़ाई, इम्तहानों, नंबरों, नौकरी वगैरह की ही बातें करते. राकेश के ऐसे हर काम को, जो उसकी पढ़ाई से संबंधित न होता, नहीं करने को कहते. अगर उन्हें राकेश के दो-चार कामों पर ही एतराज होता, तब भी चलो कोई ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 10 - शराफ़त

शराफ़त भागकर लोकल बस में चढ़ने के बाद जब उसने कंडक्टर से टिकट ले ही ली है, तो पोजीशन के लिए वह इधर-उधर नज़रें दौड़ाने लगा है. पिछले दरवाज़े के सामने वाली जगह पर तो आदमी ही आदमी हैं, कोई लड़की या औरत दिखाई नहीं दे रही. हाँ, महिलाओं वाली सीटों के पास एक लड़की व दो-तीन औरतें ज़रूर खड़ी हैं. औरतों में से एक तो वाकई बहुत ख़ूबसूरत है. वह आगे बढ़कर उसी औरत की बगल में खड़ा हो गया है. अभी वह उससे कुछ दूरी बनाये हुए है. मज़े लेने धीरे-धीरे शुरू करेगा. या हो सकता है ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 11 - औक़ात

औक़ात बड़ी हीनता-सी महसूस हो रही है उसे. अपना अस्तित्व उसे मखमली चादर पर लगे टाट के पैबंद जैसा रहा है. हँसते-मुस्कुराते चेहरे, अभिजात्य मुस्कानें, कीमती कपड़े, जेवर - सब उसकी हीन भावना को और बढ़ा रहे हैं. इसके जी में आ रहा है कि जल्दी से जल्दी यह सब ताम-झाम खत्म हो ताकि वे लोग घर की राह लें. पर घर पहुँचना ही तो सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है इस वक़्त. दिनेश के बेटे की तबीयत अचानक खराब न हो गई होती तो उन्हीं के साथ उनकी गाड़ी में घर वापिस चले जाते. पर उन्हें बच्चे को ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 12 - दलदल

दलदल वार्षिक परीक्षा के लिए चार दिन पहले भरे अपने एग्जामिनेशन फॉर्म को वह अभी-अभी तीसरी बार अच्छी तरह आया है. फॉर्म देखते वक़्त वीरेन्द्र भी उसके साथ था. अपनेआप को अब वह काफी आश्वस्त-सा महसूस कर रहा है. उसे लग रहा है जैसे उसके सिर से एक भारी बोझ उतर गया है. मन-ही-मन उसने इस बात का फैसला किया है कि अब वह किसी भी वहम-शहम के चक्कर में नहीं पड़ा करेगा और एक सामान्य ज़िंदगी जीने की कोशिश करेगा. लेकिन इस बोझ के उतर जाने की ख़ुशी का अहसास अभी उसे पूरी तरह हो भी नहीं पाया ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 13 - मौत

मौत शाम को दफ़्तर से लौटकर घर आया तो ड्राइंगरूम से आ रही आवाज़ों को सुनकर ही समझ गया मंजु आ चुकी है. मंजु यानी मेरी पत्नी वीना की छोटी बहन. मंजु के साथ उसके पति सतीश जी भी आए थे. मंजु से लगभग दो साल बाद मुलाक़ात हो रही थी. दो साल पहले शादी के बाद वह अमरीका चली गई थी, जहाँ सतीश जी का हीरे-जवाहरात का व्यापार है. ड्राइंगरूम में पहुँचकर जैसे ही मैंने मंजु को देखा, मेरी हैरानगी की कोई सीमा न रही. सतीश जी तो अब भी पहले जैसे दीख रहे थे, मगर मंजु को ...Read More

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खौलते पानी का भंवर - 14 - काँच के सपने (अंतिम भाग)

काँच के सपने बाएं हाथ में उपहार के पैकेट को बड़े ध्यान से पकड़े हुए जब वह घर से तो अंधेरा पूरी तरह छा चुका था. सधे हुए कदमों से वह बस स्टॉप की ओर चल पड़ा. हर साल 21 जुलाई के दिन दीदी के धर जाना एक तयशुदा कार्यक्रम होता था. इस दिन उसकी दीदी और जीजा जी के विवाह की वर्षगांठ होती थी. इस रोज़ आमतौर पर वह दफ़्तर से सीधे ही दीदी के घर की बस पकड़कर वहाँ चला जाया करता था, मगर इस बार ऐसा करना संभव नहीं था. कारण था वह उपहार जो वह ...Read More