घबराई हुई सी पुर्णिमा तेज भागती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरती है. और घबराहट में नीचे उतरती हुई वह दो खेड़ी एक ही बार में फांद जाती है, और सीधे बुआ जी से टकराती है. बुआ जी जोर से चिल्लाती है..,”अरे..! होश कहां छोड़ आई है.. बदतमीज लड़की ऐसा क्या देख लिया.., जो यूं घबराई हुई सी भाग रही है...!” तभी पूर्णिमा बोल पड़ती है..," बुआ जी! आप सुनोगे तो आपके भी होश उड़ जाएंगे.., छोटी भाभी अपने कमरे में नहीं है, मैंने हर जगह ढूंढा वह कहीं नहीं ..है" पूर्णिमा बिना रुके एक ही सांस में सारी बातें कह जाती है. बुआ जी एक टक पूर्णिमा को देखती रह जाती हैं. और फिर बोल पड़ती हैं , "यह तो होना ही था! मुझे तो उसके हाव-भाव पहले से ही समझ आ रहे थे, पर मेरी सुनता कौन है!"
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स्वीकृति - 1
घबराई हुई सी पुर्णिमा तेज भागती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरती है. और घबराहट में नीचे उतरती हुई वह खेड़ी एक ही बार में फांद जाती है, और सीधे बुआ जी से टकराती है. बुआ जी जोर से चिल्लाती है..,”अरे..! होश कहां छोड़ आई है.. बदतमीज लड़की ऐसा क्या देख लिया.., जो यूं घबराई हुई सी भाग रही है...!” तभी पूर्णिमा बोल पड़ती है..," बुआ जी! आप सुनोगे तो आपके भी होश उड़ जाएंगे.., छोटी भाभी अपने कमरे में नहीं है, मैंने हर जगह ढूंढा वह कहीं नहीं ..है" पूर्णिमा बिना रुके एक ही सांस में सारी बातें ...Read More
स्वीकृति - 2
सुष्मिता ट्रेन की खिड़की से बाहर देखती हुई ताजी हवाओं को एक बार में ही अपनी सांसों में भर चाहती है.... ऐसी ताजी हवाएं जो किसी कैदी को एक लंबे अंतराल के बाद कैद से मुक्ति के उपरांत प्राप्त होती है, सुष्मिता को ऐसे ही आजादी की अनुभूति इस वक्त हो रही थी.. वह इस आजादी को खुलकर अनुभूत करना चाह रही थी पिता के घर में तो उसके ऊपर इतनी पाबंदियाँ थी कि उसका वहां दम घुटता था. "घर.. घर क्या! .. बस एक जेलखाना ही था , ...Read More
स्वीकृति - 3
ताराचंद अपने घर लौट आते हैं.घर आने पर अपनी पत्नी को रोता हुआ देख कर उनका क्रोध बढ़ जाता तभी ताराचंद की पत्नी उषा सिसकते हुए उनसे पूछती है, "सुष्मिता का कुछ पता.. च... ल.....". लेकिन डर में वह इसके आगे कुछ कह नहीं पाती, मानो किसी अज्ञात डर ने उसके जुबान को जकड़ लिया हो... उसका इतना पूछना था और ताराचंद गुस्से से पागल हो जाते हैं,वहगुस्से में सामने रखे हुए कांच के गुलदान को हाथ में उठाकर उसकी ओर फेंकने ही वाले थे कि तभी उनके घर का नौकर उन्हें किसी के आने की सूचना देता है. ...Read More
स्वीकृति - 4
भरोसा और उम्मीद - यह दो ऐसी चीजें हैं जिसके सहारे इंसान मुश्किल से मुश्किल वक्त को भी काट है. उम्मीद इस बात की, कि आने वाला कल आज से बेहतर होगा और भरोसा इस बात पर कि समय सदैव एक सा नहीं रहता ..दुख की परिणति सुख में और सुख की परिणति दुख में होती ही रहती है...सुख और दुख का तो आना जाना लगा रहता है, और क्योंकि समय परिवर्तनशील है ....तो परिस्थितियां भी सदैव एक समान नहीं रहेगी… यह एक प्रकार की मानवीय प्रवृत्ति भी होती है कि अत्यंत दुख की घड़ी में भी वह ...Read More
स्वीकृति - 5
स्वीकृति 5 अप्रैल महीने का यह अभी दूसरा हफ्ता ही शुरु हुआ था और गर्मी का महंगाई की ग्राफ से भी आगे निकल चुका था. सुष्मिता खिड़की के पास रखे कुर्सी पर बैठी हुयी थी और उसने अपने दोनों पैर सामने के टेबल पर रखे हुए थे... इससे पहले वह कमरे में इधर से उधर 3 - 4 चक्कर अब तक लगा चुकी थी और अब थक कर कुर्सी पर बैठ गयी थी. सुष्मिता ऊपर लगे सीलिंग फैन को एक टक देखे जा रही थी. सीलिंग फैन खड..खड...की आवाज करते हुए घूम रहा था. वह थोड़ी झुंझलाती हुयी ...Read More
स्वीकृति - 6
विनीता अपनी मौसेरी बहन मीनाक्षी के आने से बेहद खुश थी ,उसके आने से मानो उसके अकेलेपन का जैसे कम हो गया हो ..और साथ ही अपनी मौसेरी बहन को अपनी देवरानी के रूप में देखने की उसकी प्रबल इच्छा फिर से जाग उठी थी . उसके उस भूतपूर्व इच्छा को साधने का अवसर मिलने की उम्मीद भर से उसकी खुशी दोगुनी हो गयी थी . विनीता हमेशा से चाहती थी कि उसकी मौसेरी बहन की शादी श्रीकांत से हो जाती परन्तु अपने पति के विरोध के कारण उसने अपने इस इच्छा को मन में ही दबा ...Read More
स्वीकृति - 7
स्वीकृति अध्याय 7 उस बड़े और घने वृक्ष की पत्तियों के बीच से अस्त होते सूरज की झिलमिलाती रोशनी चेहरे पर गिर रहे थे. संध्या हो रही थी, परंतु शायद सूरज के इन झिलमिलाती किरणों का इस तरह से उसके चेहरे पर गिरना उसे गवारा नहीं हुआ. अतः वह झुंझलाते हुए अपने जेब से रुमाल को निकालता है और अपने चेहरे को उससे ढक कर वापस आंखें मूंदे हुए बेंच पर लेट जाता है . शहर के बीच में स्थित इस पार्क के बेंच पर लेटा हुआ यह जो शख्स है- वह संदीप ही है . आज कई दिनों ...Read More
स्वीकृति - 8
स्वीकृति अध्याय आठ सुष्मिता पार्सल को खोलती है तो पार्सल में नोटों के कुछ बंडल पड़े थे जिसे देखते उसके आंखों में विस्मय तथा संशय दोनों ही भाव एक साथ तैरने लगते हैं. एक साथ सैकड़ों सवाल उसके मन में उठने लगते हैं. बड़े ही आशंकित मन से वह नोटों के उस बंडल को अपने हाथों से उठाती है तभी नोटों के उस बंडल के बीच से कागज का एक छोटा सा टुकड़ा खिसक कर गिरता है, वह उसे उठाती है. कागज की उस टुकड़े पर कुछ लिखा हुआ था . लिखावट उसे कुछ जानी पहचानी सी लगती है. ...Read More
स्वीकृति - 9
स्वीकृति 9 श्रीकांत के कमरे से निकल कर विनीता किचन में रात के खाने की तैयारी में जाती है परंतु उसका मन श्रीकांत की स्थिति को लेकर चिंतित था वह उसकी स्थिति के विषय में रमन से चर्चा करने की सोचती है तभी उसके कानों में उसकी बहन मीनाक्षी की आवाज सुनाई देती है. मीनाक्षी दौड़ती हुई आकर विनीता से लिपट जाती है. दोनों बहनें काफी समय बाद मिल रही थी इसलिए दोनों के ही आंखें नम हो गयी थी तभी रमन जो कि मीनाक्षी के ठीक पीछे खड़ा था , उसने दोनों हाथों में दो बड़े सूटकेस ...Read More
स्वीकृति - 10
स्वीकृति 10 निरंजन संदीप को अपने साथ चलने के लिए कहता है परंतु संदीप उसके साथ चलने से कर देता है. तब निरंजन उससे जोर देते हुए कहता है, "अगर तुम्हें सच में काम चाहिए ..तो, तुम मेरे साथ चलो . मैं तुम्हें ऐसी जगह ले जाऊंगा ..जहां तुम्हें तुम्हारे उम्मीद से भी ज्यादा पैसे मिलेंगे ...'' "लेकिन ,भाई मेरे..., वो ऐसी कौन सी जगह है , जहां तुम मुझे लेकर जाना चाहते हो? तुम्हारी बातों से तो ऐसा लगता है , मानों कि जैसे .., तुम्हें अलादीन का कोई चिराग मिल गया है .. या फिर कहीं ...Read More
स्वीकृति - 11
स्वीकृति 11 सुष्मिता को जल्द ही याद आ जाता है कि दुकान के बाहर जो शख्स खड़ा है उसने पहले कहाँ देखा था . उसने उसे अपने पिता के उसी कमरे में एक बार देखा था , जिस कमरे में उसे या किसी अन्य को, यहां तक कि उसकी मां को भी बिना उसके पिता की अनुमति के अन्दर जाने की इजाजत नहीं थी . वह कमरा उसके पिता का खास कमरा था या फिर यों कहें कि ताराचंद सारे गोपनीय काम उसी कमरे से करता था . उसके पिता उस वक्त गुस्से में किसी शख्स पर बड़े ही ...Read More
स्वीकृति - 12
" दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है.. मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है.. का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है " टैक्सी के अंदर निदा फ़ाज़ली के इस गजल की मीठी बौछार और बाहर बारिश की हल्की फुहार ने श्रीकांत को थोड़ी देर के लिए नींद के हवाले कर दिया था . ना जाने पिछले कितनी ही रातों से जो नींद आंख मिचौली का खेल खेल रही थी आज अचानक से उस पर मेहरबान हो गई थी. टैक्सी के अंदर सुष्मिता की उस ...Read More
स्वीकृति - 13
पार्ट 13 कल जमके हुई भारी बरसात के बाद आज सुबह से ही मौसम काफी साफ था. रमन देर बिस्तर पर सोया रहा, आंख खुलते ही वह बिस्तर से उठा और अपने लिए चाय का पानी चढा ही रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर सामने मीनाक्षी खड़ी दिखी. अंदर आते ही उसने उससे अपने साथ बाहर चलने की जिद की. रमन ने घड़ी देखी तो सुबह के 8:30 बज रहे थे. मीनाक्षी ने बड़े ही प्यार और अधिकार के साथ उसे अपने साथ चलने का आग्रह किया. उसे आज अपनी एक प्रोजेक्ट से संबंधित किसी ...Read More
स्वीकृति - 14
बड़के चाचा के इस दावे से, कि पिछले 2 दिन से होटल के उस कमरे में जो महिला बंद थी उसे वह जानते है, वह उनकी ही परिचित हैं , पुलिस वाले ने राहत की सांस ली कि चलो.., इस मामले से जल्दी ही निपटारा मिल जाएगा और अधिक मेहनत करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, इधर होटल मैनेजर ने भी चैन की सांस ली कि जैसे भी करके यह मामला यहीं शांतिपूर्वक सुलझाया जा सकता है, उसे किसी भी सूरत में होटल की बदनामी नहीं चाहिए थी...होटल के उस कमरे के दरवाजे पर खड़े बड़के चाचा पर उस महिला ...Read More