चच्चा खीस से एकमुस्त लाल-पीला हो भुनभुनाए जा रहे थे मगर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। मतलब एकदम चुप्प! बहुत देर तक उनका भ्रमर गान सुनने के बाद जब मेरे अन्दर का कीड़ा कुलबुलाने लगा। अन्त में वो अदभुत परन्तु सुदर्शन कीड़ा थककर बाहर निकल ही पड़ा। कुलबुलाहट का रोग ही ऐसा है। बिना निकले रहा नहीं जाता। ‘चच्चा! कुछ बोलोगे भी कि बस गाते ही रहोगे? मेरे कान में शहनाई बजने लगी है; पकड़कर शादी करा दूँगा आपकी अब!’
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चोलबे ना - 1
चच्चा खीस से एकमुस्त लाल-पीला हो भुनभुनाए जा रहे थे मगर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। मतलब एकदम बहुत देर तक उनका भ्रमर गान सुनने के बाद जब मेरे अन्दर का कीड़ा कुलबुलाने लगा। अन्त में वो अदभुत परन्तु सुदर्शन कीड़ा थककर बाहर निकल ही पड़ा। कुलबुलाहट का रोग ही ऐसा है। बिना निकले रहा नहीं जाता। ‘चच्चा! कुछ बोलोगे भी कि बस गाते ही रहोगे? मेरे कान में शहनाई बजने लगी है; पकड़कर शादी करा दूँगा आपकी अब!’ चच्चा हैरान होकर मेरी तरफ देखने लगे। जब मैंने एक बुद्धिजीवी की तरह प्रश्नात्मक मुद्रा में उनकी ओर देखा ...Read More
चोलबे ना - 2 - बैटन, लाइब्रेरी, कसाब और देशद्रोही
मैं सुबह-सुबह ‘रमता जोगी, बहता पानी’ की तरह बहता ही जा रहा था। एकदम बरसाती नदी की तरह! कि जाने कहाँ से चच्चा अचानक ही मेरे सामने प्रकट हो गए। एकदम ही रामायण और महाभारत में दिखाए गए आकाशवाणी करने वाले किरदारों की तरह! मैं भी हैरान होकर शक्तिमान की तरह गोल-गोल घूमने के बाद उनकी ओर आँखे फाड़कर देखने लगा परन्तु जैसे ही उनकी किलविश के जैसी फटी-फटी आँखों को देखा तो मैं गिलहरी की तरह अपने डर को कुतरते हुए बोला, ‘क्या बात है चच्चा? आज कुछ ज्यादे ही नाराज लग रहे हो! देश में कहीं कुछ ...Read More
चोलबे ना - 3 - 370 का रीचार्ज
टीवी खोला ही था कि एक धमाका हुआ। एक जबरदस्त धमाका। धमाका देखकर मेरे बालमन का मयूर नाच ही जवानी के बालमन का मयूर होता ही ऐसा है। जब तक उटपटांग घटनाओं पर नाचे उसे संतोष ही नहीं होता है। विघ्नसंतोषी सा जो होता है। वैसे मयूर भी कई प्रकार के होते हैं। एक बालमन का, एक युवामन का, तो एक अधेड़मन का। ये चर्चित मयूर हैं। हालाँकि ऐसा नहीं है कि वृद्धमन का नहीं होता है परन्तु बहुत ही कम वृद्धों का मयूर नृत्य करता है। खैर! बालमन का मयूर था तो नर्तक का नौसिखिया होना तो लाजमी ...Read More
चोलबे ना - 4 - रवीश भाई, कन्हैया और मेरा सपना
कल अचानक ही रवीश भाई से मिलना हो गया। कौन? अरे भाई! वही अपने रवीश भाई जी! है अभी भी आप नहीं समझे! अरें भई रवीश कुमार के बारे बात कर रहा हूँ। अब तो आप समझ गए न! हाँ तो फिर ठीक है। तो हुआ ये कि कल रवीश भाई से मिलना हुआ। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उनसे मिल रहा था। एकदम्मे भक्क मार दिया था मुझे। उनको देखकर मुँह खुला का खुला रह गया था। फिर खुद को यकीन दिलाने के लिए हाथ पाँव मारा तो पता चला कि मैं उनसे ...Read More
चोलबे ना - 5 - चुनावी चक्कलस का मंत्र
सुबह सुबह की बात है (कहने का मन तो था कि कहूँ कि बहुत पहले की बात है मतलब पहले की परन्तु सच ये है कि आज शाम की ही बात है)। मैं अपनी रौ में सीटी बजाता टहल रहा था। टहल क्या रहा था बल्कि पिताजी से नजर बचाकर समय घोंटते हुए मटरगश्ती कर रहा था (इसका चना-मटर से कोई संबंध नहीं है परन्तु आप भाषाई एवं साहित्यिक स्तर पर कल्पना करने को स्वतंत्र हैं। शायद कोई अलंकार या रस ही हो जिससे मैं परिचित ना होऊँ और अनजाने में मेरे सबसे बड़े साहित्यिक योगदान को मान्यता मिलते-मिलते ...Read More
चोलबे ना - 6 - राम को आईएसआई मार्का
इस बार के दशहरा में वो हुआ जो कभी भी नहीं हुआ था। जिसका सपना लोग सत्तर साल से रहे थे वो इस बार ‘पहली बार’ हो ही गया। कहने का मतलब है कि कई सौ साल पर लगने वाले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की तरह! हजारों सालों में पहली बार आनेवाली दैवीय मूहुर्त की दीपावली की रात की तरह। ये सब कुछ इस तरह से चमत्कारी तरीके से हुआ कि चमत्कार ने अपनी परिभाषा बदल ली है और हैरानी ने हैरान होने का पैमाना! इस बार का दशहरा अलकायदा के बम ब्लॉस्ट की तरह था जिसने भारत के ...Read More
चोलबे ना - 7 - फ्रैक्चर, प्लॉस्टर और चुनाव
अभी मैं उहापोह की स्थिति में पेंडुलम की तरह डोल ही रहा था कि चच्चा हाँफते हुए कहीं चले रहे थे। देखकर लगा कि चिढ़े हुए हैं। जैसे उन्होंने कोई भदइला आम जेठ के महीने में खा लिए हों और जहर की तरह दाँत से ज्यादा मन एकदम ही खट्टा हो गया हो। जब मैंने उनकी गाड़ी को अपने स्टेशन पर रुकते नहीं देखा तो मैंने चच्चा को जोर से हॉर्न देते हुए बोला, ‘अरे चच्चा! कहाँ रफ्फू-चक्कर हुए फिर रहे हैं। पैर की चकरघिरन्नी को थोड़ी देर के लिए मेरे स्टॉप पर रोकिए तो सही! क्या पता कोई ...Read More
चोलबे ना - 8 - गाली ही आशीर्वाद है
मुझे भाषण देने की आदत जो है कि लोग देखा नहीं कि बस उड़ेलना शुरू कर देता हूँ। बस दोस्त मिल गये तो मैं लग गया झाड़ने। खैर झाड़ते वक्त ये देख लेता हूँ कि सामने कौन है। खैर दोस्तों को भाषण पान करा रहा था (वैसे घर पर तो घरवीर बनने में यकीन रखता हूँ। अपना-अपना किस्सा है।) कि चच्चा जाने कहाँ से अवतरित हो गये? शायद थोड़ी देर मेरे महाज्ञान को सुना होगा फिर कान पकड़कर बोले -“मतलब कर दिये ना नाजियों वाली बात। अरे भाई उन लोगों ने पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी इसका मतलब ...Read More
चोलबे ना - 9 - इज्जतदार लेखक
लेखक नामक प्रजाति के सदस्य अक्सर अकादमियों और मंत्रालय के अधिकारियों को कोसते रहते हैं। ये उनकी स्पष्ट राय कि ये अधिकारी लेखकों को उनके जीते-जी सम्मान नहीं देते हैं। ये अधिकारी इंतजार करते रहते हैं कि लेखक कब परलोक गमन कर इज्जत पाने लायक बने कि वो उनके सम्मान में कोई बड़ा कार्यक्रम कर सकें जो उनकी धन की छोटी-छोटी आवश्यकताओं को पुरा कराने हुते अवसर प्रदान कर सके! वो क्या है कि अधिकारी भी लेखक का सम्मान करते हुए परम्पराओं पुरा निर्वहन करना चाहते हैं। हालाँकि और भी कई कारण हैं जिन्हें या लेखक समझ सकता ...Read More