जैसे ही इशिता ने उस कमरे में प्रवेश किया उसकी साँसें ऊपर की ऊपर ही रह गईं | एक अजीब सी मनोदशा में वह जैसे साँस लेना भूल गई, लड़खड़ा गई जैसे चक्कर से आने लगे | "व्हाट हैपेंड मैडम ?" कामले कमरे में प्रवेश कर चुके थे | पीछे -पीछे एक नवयुवक भी जिसके हाथों में गाड़ी में से निकाले गए बैग्स व दूसरा सामान था | इशिता के मुख पर किसी ने टेप चिपका दिया था जैसे | वह बोलना चाहती थी लेकिन शब्द थे कि उसके मुख में गोल-गोल भरकर न जाने तलवे में कहाँ चिपक रहे थे |
Full Novel
सलाखों से झाँकते चेहरे - 1
1 ---------------- जैसे ही इशिता ने उस कमरे में प्रवेश किया उसकी साँसें ऊपर की ऊपर ही रह गईं एक अजीब सी मनोदशा में वह जैसे साँस लेना भूल गई, लड़खड़ा गई जैसे चक्कर से आने लगे | "व्हाट हैपेंड मैडम ?" कामले कमरे में प्रवेश कर चुके थे | पीछे -पीछे एक नवयुवक भी जिसके हाथों में गाड़ी में से निकाले गए बैग्स व दूसरा सामान था | इशिता के मुख पर किसी ने टेप चिपका दिया था जैसे | वह बोलना चाहती थी लेकिन शब्द थे कि उसके मुख में गोल-गोल भरकर न जाने तलवे में कहाँ ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 2
2-- रैम किचन में घुसा, शायद उसने कॉफ़ी के लिए गैस पर दूध रख दिया था, फिर बाहर निकलकर कहा ; "मैडम ! बस, पाँच मिनिट ---मैं गर्मागर्म दाल-बडे भी खिलाएगा आपको ---" वह तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गया | अब इशिता की दृष्टि उस कमरे के चारों ओर घूमने लगी | कमरा बहुत बड़ा नहीं था लेकिन उसमें सभी चीज़ें सुव्यवस्थित रूप में रखी थीं | चार कुर्सियों की डाइनिंग -टेबल थी, फ़ाइव सीटर सोफ़ा था | डाइनिंग-टेबल की साइड में ऊपर से नीचे तक एक अलमारी बनी हुई थी जिसका ऊपरी भाग लकड़ी से बंद ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 3
3-- कुछ देर में ही नीरव सन्नाटा छा गया | यह छोटा सा बँगला सड़क पर ही था | के कमरे की एक खिड़की सड़क पर खुलती थी लेकिन कमरे के बाहर छोटा लेकिन सुंदर सा बगीचा था जो रैम की मेहनत दिखा रहा था | यह उसने यहाँ प्रवेश करते ही देख लिया था लेकिन उस समय बेहद थकान थी और वह सीधे कमरे में आना चाहती थी लेकिन कमरे में सीधे आ कहाँ पाई थी? बाहर के कमरे में ही उस दीवार ने उसे रोककर असहज कर दिया था | मि. कामले भी कमाल के आदमी हैं ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 4
4-- वैसे इशिता का वहाँ आना इतना ज़रूरी भी नहीं था, वह सीरियल की लेखिका थी | इससे पहले वर्षों से झाबुआ क्षेत्र पर शोध -कार्य चल रहे थे, उसके पास सूचनाओं का पूरा जख़ीरा था | उसने कामले से कहा भी था कि वह घर बैठे हुए ही लिख सकती है लेकिन कामले का मानना था कि सीरियल का लेखक होने के नाते उसे एक बार प्रदेश की सारी बातों, उनके सारे रहन-सहन, रीति-रिवाज़, भाषा, कार्य-कलाप को जान लेना चाहिए जिससे सीरियल के लेखन में जान आ सके | अनुभव से लेखन सतही न रहकर समृद्ध होता है, ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 5
5 - " तुम्हारा नाम रैम किसने रखा ? क्या मतलब है इसका ? " रैम थोड़ा हिचकिचाया फिर ; "मैडम ! आपको यहाँ की गरीबी के बारे में तो पता होगा, हम लोको बी भोत गरीब थे | अमारी मम्मी बताते हैं के उनके परिवार के सारे बच्चा लोको अपने को छुपाने का वास्ते अपने मुख पर चूला का राख मलके भीक माँगने को जाता | दादा जी के पास हमेरे परिवार को खिलाने का वास्ते कुछ बी नहीं था | उन दिनों में ---आपने देखा --रास्ते में जो बड़ा सा चर्च है ने --तब्बी वो बनरा था ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 6
6--- होटल से क्रू के सब लोग आ चुके थे | तब तक नाश्ता भी ख़त्म हो चुका था ने बताया था कि रैम भी हमारे साथ में 'लोकेशन -हंट' पर जा रहा है | मिसेज़ जॉर्ज ने बेटे को भी नाश्ता करवा दिया था और कुछ नाश्ते के पैकेट्स एक थैले में रखकर उसको पकड़ा दिए थे | पानी के थर्मस तो साथ ही रहते थे | सबके गाड़ी में बैठने के बाद मिसेज़ जॉर्ज ने कामले को याद दिलाया कि वे हम लोगों का डिनर बनाकर रखेंगी | उनको मैडम को लेकर उनके घर आना है | ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 7
7--- उस गाँव से निकलकर कामले ने गाड़ी का रुख एक छप्पर वाले होटल जैसी जगह पर करवाया | तक शाम के चार बजने वाले थे |सबके पेटों में बैंड बज-बजकर शांत होने लगे थे | " सर ! पाँच बजे हमको कलेक्टर साहब को भी मिलना है ---" सुबीर ने कहा | " हाँ, याद है, नहीं तो कल कैसे अलीराजपुर जा सकेंगे ?" अहमदाबाद से लाए गए आज्ञा-पत्र पर कलेक्टर साहब के हस्ताक्षर करवाकर उनका आज्ञा-पत्र भी लेना था | अलीराजपुर की जेल के कैदियों से मिलने जाना था और वहाँ यह भी नोट करवाना था कि ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 8
8 --- इशिता अपने कमरे में आकर गहरी नींद सो गई, उसे बिलकुल पता नहीं चला कि रात में समय मि. कामले आए थे | रोज़ की तरह चिड़ियों की चहचहाहट के साथ ही उसकी आँखें लगभग पाँच बजे के करीब खुलीं | उसने कमरे का दरवाज़ा खोलकर देखा, रैम करवट बदल रहा था | दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से उसकी आँखें खुलीं, वो हड़बड़ाकर उठने लगा | "अरे ! सो जाओ रैम, मेरी नींद पूरी हो गई तो आँखें खुल गईं |" "गुड मॉर्निंग मैडम। मैं भी जाग गया है ---" वह उठकर अपनी चटाई लपेटने लगा | ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 9
9 -- अलीराजपुर पहुँचते हुए रात के दस बज गए | एस्कॉट की जीप अलीराजपुर की सीमा पर ही छोटे से होटल पर खड़ी मिल गई थी | उसमें से उतरे हुए सिपाही और ड्राइवर आराम से ठहाके लगते हुए चाय पी रहे थे | "कमाल है, इन लोगों को ये भी ध्यान नहीं कि जिन लोगों के लिए इनकी ड्यूटी लगी है, वे सही सलामत पहुँचे भी या नहीं ?"इशिता ने फुसफुसाकर रैम से कहा | " मैडम ! सब ऐसेइच चलता है ---" वह भी इशिता के कान में फुसफुसाया | इशिता को गुस्सा आ रहा था। ...Read More
सलाखों से झाँकते चेहरे - 10 - अंतिम भाग
10 -- एक भद्र महिला को अपने सामने देखकर लुंगी वाले महानुभाव कुछ खिसिया से गए, उन्होंने अपनी लुंगी कर ली फिर अपने पास खड़े हुए दो युवा लड़कों को देखकर उनमें से एक से कहा ; "रौनक ! इसको अंदर लेकर कोठरी में बैठाओ, मैं बाद में इससे बात करूँगा --" "जी, कहिए --" वे लुंगी वाले महाशय इशिता की ओर मुखातिब हुए | "मैं डॉ.इशिता वर्मा, अहमदाबाद से ---मि. कामले के साथ ----" "अरे ! आपको तो आज जेल की मुलाकात लेनी है, लेकिन आप इस तरह से ?---माफ़ करिए, मैं यहाँ का जेलर अनूप सिन्हा ----" ...Read More