पतझड़ का महीना था। कभी कभी हवाएं बहती तो ठंड से तन सिहर उठता। रोज की तरह विवान अपने छत पर सूर्योदय देखने के लिए आया था। आज सूर्योदय तो हो चुका था पर उसकी आंखें नीम के पेड़ पर जा ठहरी। जोर हवा चलने से कभी कभी उसके पत्ते झड़ रहे थे। एकटक बहुत देर तक वो देखते रहा। उसके चेहरे पर उदासी का भाव झलक रहा था। पत्ते तो वापस वसंत में आ जाएंगे पर गुजरा दिन, गुजरे लोग वापस नहीं आएंगे। तभी उसकी मां काॅफी लेकर आई।
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क्या कहूं...भाग - १
पतझड़ का महीना था। कभी कभी हवाएं बहती तो ठंड से तन सिहर उठता। रोज की तरह विवान अपने पर सूर्योदय देखने के लिए आया था। आज सूर्योदय तो हो चुका था पर उसकी आंखें नीम के पेड़ पर जा ठहरी। जोर हवा चलने से कभी कभी उसके पत्ते झड़ रहे थे। एकटक बहुत देर तक वो देखते रहा। उसके चेहरे पर उदासी का भाव झलक रहा था। पत्ते तो वापस वसंत में आ जाएंगे पर गुजरा दिन, गुजरे लोग वापस नहीं आएंगे। तभी उसकी मां काॅफी लेकर आई। आज इतनी देर छत पर....तभी उसकी नजर विवान के उदास ...Read More
क्या कहूं...भाग - २
विवान दूसरी शादी के लिए तैयार हो गया था। उसके मम्मी पापा थोड़े खुश थे। उनके पास धन वैभव कमी नहीं थी। विवान की शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार हो जाती लेकिन पिछले बार की गलती वो दुबारा नहीं करना चाहते थे। इसलिए सही लड़की ढुंढना थोड़ा मुश्किल था। राजवर्धन ने जो लड़की देखा था उसे सभी देखने गए। किंतु वो लड़की कुछ खास पसंद नहीं आई। अब विवान अपनी उदासी को छिपाता था जिसमें वह बचपन से माहिर था। वह सबके सामने खुश होने का दिखावा करता था सिर्फ अपने माता पिता के लिए। वह अपने ...Read More
क्या कहूं...भाग - ३
स्मृति पुरस्कार लेती है और कुछ बोलने का आग्रह करती है। उसे माइक दिया जाता है। "मेरी उम्र केवल वर्ष है। इतनी कम उम्र में हेड डिपार्टमेंट बनना किस्मत की बात नहीं है। आज से आठ साल पहले तक मैं बिल्कुल बेपरवाह लड़की थी। जिसे अपनी भविष्य की कोई फ़िक्र ही नहीं थी। लापरवाही हर कदम पर थी। फिर मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जिसने मुझे बदलकर रख दिया। आज मेरे हाथ में जो अवार्ड है इसका असली हकदार वहीं है। उसका सपना था कि एक दिन मेरे हाथ में ये अवार्ड हो। और मैंने उससे वादा ...Read More
क्या कहूं...भाग - ४
स्मृति का घर भोपाल में था। वह घर पहुंचकर आराम करती हैं। उसमें भी उसे सिर्फ विवान याद आ था। बीते कुछ वर्षो में उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ था उसके बावजूद उसने बहुत हद तक खुद को रोक लिया था या यूं कहें कि खुद को समझा लिया था। परंतु आज वो अपने आप को विवान के बारे में सोचने से नहीं रोक पा रही थी। यूं तो वो अक्सर विवान को सोचा करती थी। उसे अपने करीब महसूस करती थी पर आज वो याद करती हैं उस पहले दिन को जब उसकी मुलाकात विवान से ...Read More
क्या कहूं...भाग - ५
स्मृति विवान का मैसेज देखती है। विवान ने ढेर सारे चुटकुले भेजे थे। स्मृति उन्हें पढ़ पढ़कर खूब हंसती और हंसने वाले ईमोजी भेजती है। ऐसे ही कुछ दिन बीत जाते हैं। विवान सिर्फ उसे चुटकुले भेजता था। उसकी यही बात स्मृति को सबसे अलग लगी क्योंकि जहां दूसरे लड़के उससे बात करते थे कैसी हो से लेकर फोन नंबर तक पूछ लेते थे वहीं वो एक ऐसे लड़के को देख रही थी जो उससे जरा भी बात नहीं करता बस चुटकुले ही भेजा करता था। एक दिन स्मृति को मन हुआ उसका प्रोफाइल चेक करने का। वह अबाउट ...Read More
क्या कहूं...भाग - ६
विवान को आॅफलाइन देखकर स्मृति फिर से मायूस हो जाती है। वो बात करने के लिए जितनी उत्सुक थी, सारी उत्सुकता उदासी में बदल गई। "मैंने बहुत जल्दबाजी में उससे सवाल पूछ लिया...धत्त.. मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। शायद उसे ये अच्छा नहीं लगा या फिर उसने एटीट्यूड दिखाया?" शंकालु स्मृति जी को फिर एक और शंका उत्पन्न हो जाती है। वह गुस्से में सो जाती है इस दृढ़ निश्चय के साथ कि वो अब मैसेज नहीं करेगी। सुबह उठकर स्मृति फेसबुक पर जाती है। उसे लगता है कि विवान ने रिप्लाई किया होगा। पर स्मृति को फिर ...Read More