आचरण व संस्कार मानवीय नैतिक मूल्यों की दो ऐसी अनमोल निधियाँ हैं, जिनके बिना मानव के सामाजिक जीवन का अस्तित्व खतरे में जान पड़ता है। मानवीय नैतिक मूल्यों का अनुकरण न करना मनुष्य के व्यक्तित्व ह्रास का मुख्य कारण बन जाता है। इनके अभाव में मनुष्य का व्यक्तित्व आलोचनात्मक प्रवृत्ति के पथ पर अग्रसर हो चलता है। यदि बुद्धि मनुष्य को पशु योनि से विरक्त करती है तो संस्कार और व्यवहार मनुष्य को राक्षसी प्रवृत्ति से अलग करते हैं। संस्कार व व्यवहार रहित मनुष्य का आचरण पूर्णतया अमानवीय हो जाता है, जिसे हम राक्षसी संस्कृति से प्रेरित मान सकते हैं।दोषदर्शी
Full Novel
आधार - प्रस्तावना
आचरण व संस्कार मानवीय नैतिक मूल्यों की दो ऐसी अनमोल निधियाँ हैं, जिनके बिना मानव के सामाजिक जीवन का खतरे में जान पड़ता है। मानवीय नैतिक मूल्यों का अनुकरण न करना मनुष्य के व्यक्तित्व ह्रास का मुख्य कारण बन जाता है। इनके अभाव में मनुष्य का व्यक्तित्व आलोचनात्मक प्रवृत्ति के पथ पर अग्रसर हो चलता है। यदि बुद्धि मनुष्य को पशु योनि से विरक्त करती है तो संस्कार और व्यवहार मनुष्य को राक्षसी प्रवृत्ति से अलग करते हैं। संस्कार व व्यवहार रहित मनुष्य का आचरण पूर्णतया अमानवीय हो जाता है, जिसे हम राक्षसी संस्कृति से प्रेरित मान सकते हैं।दोषदर्शी ...Read More
आधार - 1 - स्वाध्याय, जीवन की अनिवार्यता है।
हमारे शास्त्रों में गुरु की महिमा का प्रसंग वर्णन बड़े विस्तार से किया गया है। परंतु हम उसी संत गुरु की श्रेणी में रख सकते हैं जो मनुष्य में सत्य मार्ग पर चलने की सच्ची प्रेरणा उत्पन्न कर सकता हो। जो, शिष्य के ज्ञान के अंधकार को हरकर, ज्ञान की दिव्य ज्योति प्रदान कर सकता हो और भगवत प्राप्ति के पावन पथ पर अग्रसर होने की सामर्थ उत्पन्न कर सकता हो। परंतु भौतिक युग में ऐसे गुरुओं का मिलना न केवल कठिन अपितु असंभव प्रतीत होता है। गुरुओं के रूप में समाज में उपस्थित वंचक गुरुओं द्वारा भोली भाली ...Read More
आधार - 2 - कर्मयोग,सफलता का मूल मंत्र है।
मनुष्य अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक निरंतर मानसिक और शारीरिक क्रियाएं करता रहता है, जिन्हें हम कर्म की देते हैं। इनमें कुछ क्रियाएं जो स्वतः ही होती है, जिनमें हमारा बस नहीं चलता, अनैच्छिक क्रियाएं कहलाती हैं जैसे हृदय का धड़कना, समय असमय छींक का आना और श्वास लेना आदि। इसके विपरीत कुछ वे दैनिक क्रियाएं होती हैं जिन पर हमारा अधिकार चलता है जैसे हंसना, खाना खाना, रोना, पैदल चलना और बातचीत करना आदि। इन सभी क्रियाओं को जिन्हें हम अपनी इच्छा द्वारा संचालित करते हैं, ऐच्छिक क्रियाएं कहलाती हैं। ...Read More
आधार - 3 - समय-प्रबंधन, जीवन की पहली आवश्यकता है।
इस संसार में मौसम आते हैं और जाते हैं, मनुष्य आते हैं और जाते हैं, समाज बनता है और है, पर समय बिना रुके सदा चलता रहता है। समय को कोई पकड़ नहीं सकता। हम जितना उसके पीछे दौड़ते हैं वह उतना ही आगे भाग जाता है। यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हम समय का महत्व जानते हुए भी उसे व्यर्थ के कार्यों में जाया करते रहते हैं। समय-प्रबंधन की असमर्थता ही इसका मूल कारण है। हम यह भूल जाते हैं कि जीवन-प्रबंधन के लिए, व्यक्तित्व निर्माण के लिए और कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए समय का प्रबंधन ...Read More
आधार - 4 - सहनशीलता,जीवन का सर्वोत्तम गुण है।
सहनशीलता,जीवन का सर्वोत्तम गुण है।विचार कीजिए आप सड़क पर जा रहे हैं और भूलवश आप किसी अन्य राहगीर से जाते हैं, आप कतार में खड़े हैं और काउंटर पर बैठा व्यक्ति मध्यम गति से कार्य कर रहा है, आप जल्दी में हैं और आपको वाहन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है ऐसी बहुत सी ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं जब आप अपना संयम खो कर दूसरे व्यक्ति को बुरा भला कहने लगते00 हैं। आज व्यक्ति का छोटी-छोटी बातों पर नियंत्रण खो देना आम बात हो गई है। ऐसा व्यवहार चरित्र में सहनशीलता की कमी के कारण उत्पन्न होता है। ...Read More
आधार - 5 - कोमलता, व्यक्तिव का नैसर्गिक गुण है।
इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य के भीतर कुछ ऐसे विशिष्ट गुण होते हैं, जिनके कारण वह से भिन्न होता है। यह विशेष गुण यदि सकारात्मक होते हैं तो वे व्यक्ति को महान बना देते हैं, परंतु यदि ये गुण नकारात्मक प्रकृति के होते हैं तो वे व्यक्ति को दुर्गुणों से युक्त कर देते हैं। विश्व में अवतरित सभी महापुरुष अपने विशिष्ट सकारात्मक गुणों के कारण ही संसार में ख्याति अर्जित कर सकें। यदि इन सभी महापुरुषों के चरित्र का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए, तो कोमलता एक ऐसा चारित्रिक गुण है, जो सभी महापुरुषों में अनिवार्य रूप ...Read More
आधार - 6 - क्षमा, उच्चता का प्रतीक है।
क्षमा, उच्चता का प्रतीक है।जीवन में प्रत्येक मनुष्य जाने-अनजाने गलतियाँ करता है और कभी-कभी इन गलतियों के कारण कोई व्यक्ति आहत भी हो जाता है। आहत व्यक्ति से क्षमा मांगकर भूल सुधार किया जा सकता है और यदि आहत व्यक्ति क्षमा प्रार्थी को माफ कर देता है तो दोनों व्यक्तियों के मध्य सौहार्दपूर्ण वातावरण का पुर्नर्निर्माण भी हो सकता है। यदि व्यक्ति गलती कर दे, लेकिन उसके लिए माफी नहीं मांगे और कोई व्यक्ति माफी मांगने पर भी सामने वाले को माफ न करे तो ऐसे लोगों के व्यक्तित्व में अहंकार संबंधी विकार पैदा हो जाते हैं। जब हम खुद गलती ...Read More
आधार - 7 - सहृदयता, जीवन का अनिवार्य अंग है।
सहृदयता, जीवन का अनिवार्य अंग है।आपने महसूस किया होगा कि आपके घर के आसपास, आपके नाते रिश्तेदारों में या साथ कार्य करने वाला आपका कोई साथी, अपने साथियों के साथ समन्वय नहीं बैठा पाता और सदैव बुझा-बुझा व तनावग्रस्त नजर आता है। उसका अपने साथियों के प्रति व्यवहार बड़ा ही नीरस, रूखा शुष्क, निष्ठुर, कठोर और अनुदार होता है। यह व्यक्ति के रूखे स्वभाव का परिणाम है। रूखापन मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है। उसे अपने साथियों में कोई दिलचस्पी नहीं होती, किसी की हानि-लाभ, उन्नति-अवनति, दुख-सुख व अच्छाई-बुराई इत्यादि से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं होता। उसे अपने ...Read More
आधार - 8 - आत्म-अनुशासन, प्रगति की पहली योग्यता है।
आत्म-अनुशासन, प्रगति की पहली योग्यता है। किसी सुबह आवेश में आकर आप प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से अमुक को प्रारंभ कर सफलतापूर्वक पूर्ण कर लेने तक निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे। पहले दिन आप उस कार्य की विस्तृत रूपरेखा तैयार करते हैं। दूसरे दिन भी इस कार्य की रूपरेखा के प्रथम चरण को बड़ी तन्मयता के साथ प्रारंभ करते हैं। परंतु धीरे-धीरे आपके कार्य की गति शिथिल होती चली जाती है और अंततः आप इस कार्य को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। कुछ समय अंतराल पर आप पुनः ऐसे ही किसी अन्य कार्य को प्रारंभ करने का संकल्प लेते हैं, और ...Read More
आधार - 9 - अहिंसा, महानता का प्रथम चरण है।
अहिंसा, महानता का प्रथम चरण है। अहिंसा का हमारे व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख स्थान है। सामान्यतः अहिंसा का किसी निरपराध प्राणी को सताने अथवा शारीरिक कष्ट न पहुंचाने तक ही सीमित रखा जाता है। वास्तव में, यह अहिंसा का शाब्दिक अर्थ मात्र है। यदि बृहद दृष्टिकोण से विचार करें तो, किसी व्यक्ति के लिए कुविचार व्यक्त करना, मिथ्या भाषण करना, आपस में द्वेष करना, किसी का बुरा चाहना, प्रकृति में उपस्थित सर्व सुलभ वस्तुओं पर अनाधिकृत रूप से अतिक्रमण करना तथा उन पर स्वार्थवश कब्जा कर लेना भी हिंसा की श्रेणी में ही आता है। जो व्यक्ति इन हिंसक प्रवृत्तियों ...Read More
आधार - 10 - संस्कार, जीवन की आधारशिला है।
संस्कार, जीवन की आधारशिला है।एक बहुत पुरानी कहावत है कि पूत के पाँव पालने में दिखाई देते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि बालक के भीतर बचपन में जो संस्कार डाल दिए जाते हैं वे ही बड़े होकर उसके स्वभाव में परिवर्तित हो जाते हैं। बचपन के संस्कार व्यक्ति पूरी जिन्दगी भूल नहीं पाता है। यूँ कहें कि व्यक्ति पूरी जिन्दगी उन्हीं संस्कारों के आधार पर चलता रहता है तो अतिशयोक्ति ना होगी। एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार, हिटलर बहुत ही पापी और खतरनाक प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने अपने शासनकाल में हजारों निर्दोष व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया ...Read More
आधार - 11 - वाणी, चरित्र का प्रतिबिंब है।
व्यक्ति स्वच्छ, साफ वस्त्र धारण करता है, आकर्षक जूते-चप्पल पहनता है, आधुनिक बड़ी गाड़ी का उपयोग करता है, विशाल, भवन का निर्माण करता है। यह सब व्यक्ति अपने संगी-साथियों को आकर्षित करने और उनपर अपना प्रभाव छोड़ने के लिए करता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि ऐसे मोहक पहनावे से दूसरा व्यक्ति आकर्षित हो सकता है। परंतु, इस आकर्षण को स्थाई बनाए रखने के लिए व्यक्ति के आंतरिक गुणों की सुंदरता का भी अत्यधिक महत्व हो जाता है। इन आंतरिक गुणों में प्रथम है, मधुर वाणी। बाहरी साज सज्जा होने के बाद यदि वाणी मधुर नहीं, तो व्यक्ति ...Read More
आधार - 12 - व्यक्तित्व निर्माण, जीवन का प्रथम चरण है।
व्यक्तित्व निर्माण,जीवन का प्रथम चरण है।सुबह सवेरे उठते ही जब हम मोबाइल को जांचते हैं तो सर्वप्रथम हमारा ध्यान ऐप पर भेजे गए संदेशों पर केंद्रित हो जाता है। इन संदेशों में लगभग 90 प्रतिशत संदेश वे संदेश होते हैं, जो हमें हमारे चारित्रिक छवि को बेहतर बनाने के लिए दिए जाते हैं। यदि हम इन संदेशों के प्रेषकों के चरित्र का सूक्ष्मतापूर्ण अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके द्वारा भेजे गए संदेशों से पूर्णतया विपरीत प्रकृति का है। यह बात इतना तो अवश्य इंगित करती है कि व्यक्ति आदर्श समाज का निर्माण तो ...Read More
आधार - 13 - निष्पाप व्यक्तित्व, जीवन का आधार है।
निष्पाप व्यक्तित्व,जीवन का आधार है।पाप कर्म, मानव जीवन की एक ऐसी भूल है, जो उसके व्यक्तित्व को सदा के कलंकित कर देता है। यह मानव जीवन में एक कोढ की तरह लगकर उसके आचरण, व्यवहार और सदचरित्र को दूषित कर देता है। पाप कर्म से प्रभावित मनुष्य कुछ समय तक तो समाज को भ्रमित कर अपनी छवि को एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करने में सफल हो सकता है। परंतु इस आवरण के हटते ही ऐसे मनुष्य कुंठित और परिष्कृत जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य हो जाते हैं। समाज ऐसे व्यक्तियों को हेय दृष्टि से देखने ...Read More
आधार - 14 - निस्वार्थता, एक उत्कृष्ट गुण है।
निस्वार्थता, एक उत्कृष्ट गुण है।आज के व्यस्त समय में मनुष्य संबंधों का निर्माण स्वार्थपरता के आधार पर करता है। संबंध अपने पड़ोसियों व सगे-संबंधियों से उनकी उपयोगिता के अनुसार बदलते रहते हैं। इस मोबाइल और टेलीविजन की संस्कृति के पहले ऐसा नहीं पाया जाता था। संबंधों का दायरा आत्मीयता और प्रेम से मापा जाता था। हर व्यक्ति एक दूसरे के सुख दुख में सम्मिलित होता था। तीज त्योहारों पर व्यक्तिगत रूप से शुभकामनाओं का आदान प्रदान करना बहुत ही अहम और सामान्य बात मानी जाती थी। व्यक्ति आत्मीयता के साथ एक दूसरे से मिलकर खुशी का इजहार करते थे, और ...Read More
आधार - 15 - सज्जनता, व्यक्तिव का दर्पण है।
सज्जनता, व्यक्तिव का दर्पण है।सज्जनता मनुष्य का स्वभाविक गुण है और अच्छा बनना जन्मसिद्ध अधिकार। अच्छाई को फैलाना हमारी है। हम सब अच्छा दिखना चाहते हैं और अच्छा कहलवाना चाहते है। हर व्यक्ति ऐसा चाहता है पर हकीकत में ऐसे कम ही लोग होते हैं जो सबके पसंदीदा व्यक्ति बन पाते है और उनमें से विरले ही अपने को सुधार के रास्ते पर लाकर अच्छा बनने का प्रयास करते हैं।क्या आपने कभी जानने का प्रयास किया है कि हमारे समाज के उन चंद प्रतिष्ठित व्यक्तियों में ऐसा क्या था अथवा है जिसके कारण वे समाज के पसंदीदा व्यक्ति बन गए। ...Read More
आधार - 16 - मस्तिष्क, आचरण का निर्माता है।
मस्तिष्क, आचरण का निर्माता है।मनुष्य का मस्तिष्क दुनिया के आधुनिकतम सुपर कंप्यूटर से भी लाखों गुना तीव्र गति से करता है। मस्तिष्क में दिन रात विचार उत्पन्न होते रहते हैं। कहते हैं हमारे मस्तिष्क में लगभग 30 से 35 लाख विचार प्रतिदिन उत्पन्न होते हैं और मिटते हैं। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जो कि हमारे चाहते या न चाहते हुए भी कार्य करती रहती है। हमारा मस्तिष्क इन विचारों को वायुमंडल में विद्युत चुंबकीय तरंगों के रुप में लगातार उत्सर्जित करता रहता है। वायुमंडल में उत्सर्जित यह विचार प्रकाश की गति से संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करना प्रारंभ कर ...Read More
आधार - 17 - मैत्री-भावना, व्यक्तित्व की प्यास है।
मैत्री-भावना, व्यक्तित्व की प्यास है।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिसको सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए संबंधों की आवश्यकता है। दैनिक और पारिवारिक जीवन में एक व्यक्ति को अनेकों संबंध निभाने पड़ते हैं। संबंधों के अभाव में व्यक्ति का जीवन अत्यंत नीरस व तनावग्रस्त हो जाता है। भारतवर्ष परंपरा संबंधों के मामले में एक समृद्धि देश है। पश्चिम के सीमित अंकल, आंट, ग्रैंड-फादर और कजिन की तुलना में यहां चाचा-चाची, मामा-मामी, बुआ-फूफा, मौसा-मौसी, दादा-दादी, नाना-नानी, और चेचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई-बहन, आदि विविध संबंधों की विस्तृत दुनिया है। इनमें कुछ से जुडे पर्व-त्योहार भी हैं। भारतवर्ष में परिवार का दायरा बड़ा और ...Read More
आधार - 18 - क्रोध, मानसिक दुर्बलता का प्रतीक है।
क्रोध, मानसिक दुर्बलता का प्रतीक है।जीवन में प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अनेकों व्यक्तियों से मिलता है व अनेकों परिस्थितियों का करता है। ऐसे में सभी परिस्थितियां आपके अनुकूल होगी या प्रत्येक व्यक्ति आप के अनुरूप व्यवहार करेगा, इस बात की शत प्रतिशत संभावना कभी भी नहीं बनती है। कभी ऐसा दौर भी आ सकता है जब परिस्थितियां पूर्णतया विपरीत हों और व्यक्ति, जिससे आपका सामना हो रहा है, वह भी अनुकूल व्यवहार प्रस्तुत नहीं करता हो। इन परिस्थितियों में व्यक्ति का व्यथित हो जाना स्वभाविक हो जाता है। व्यथा कि इस स्थिति में वह अपने व्यवहार को संतुलित नहीं रख पाता ...Read More
आधार - 19 - कार्यावकाश, उन्नति का बाधक है।
कार्यावकाश, उन्नति का बाधक है।कार्य में सफलता और जीवन में उन्नति का मूल मंत्र श्रम है। श्रम के बिना प्राप्ति की कामना पूर्णतया असंभव है। जिंदगी में आगे बढ़ने, सुख सुविधा पूर्ण जीवन व्यतीत करने और समाज में एक सफल व्यक्तित्व की छवि विकसित करने का एकमात्र उपाय श्रम ही है। जरा इतिहास के पन्नों को पलट कर देखिए। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस जैसे इतिहास में अमर हो चुके महापुरुषों से लेकर भारत के आज के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी तक कोई भी महापुरुष जिसको आप अपना आदर्श मानते हों, उसके जीवन की कथा ...Read More
आधार - 20 - ईमानदारी, राज शक्ति का अंश है।
ईमानदारी, राज शक्ति का अंश है।आज के युग में रत्नों की कीमत करोड़ों में आंकी जाती है। आधुनिक इंसान रत्नों को खरीदने के लिए ऊंची से ऊंची बोली लगाता है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि इस संसार में ऐसा भी कोई रत्न है जिसकी कीमत अनमोल हो, जिसे धनवान से धनवान व्यक्ति भी बोली लगाकर खरीद ना सके। जिसे पाने की चाहत तो हर किसी में हो परंतु अपना बनाने का साहस ना हो। जी हां, ईमानदार व्यक्तित्व, वह नायाब हीरा है, जिसकी कीमत अनमोल है। जिसके पास यह हीरा है वह इस संसार का सबसे धनवान व्यक्ति ...Read More
आधार - 21 - परिश्रम-शीलताउन्नति की प्रथम सीढ़ी है।
परिश्रम-शीलताउन्नति की प्रथम सीढ़ी है।परिश्रम का विशेष महत्व है। परिश्रम के बिना मनुष्य तो क्या पशु पक्षियों का भी संभव नहीं है। प्रकृति का प्रत्येक प्राणी निर्धारित नियम के अनुसार प्रतिपल परिश्रम करता रहता है। छोटी सी चींटी से लेकर विशालकाय हाथी तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए परिश्रम करता है। परंतु मनुष्य के लिए परिश्रम का विशेष ही महत्व है। परिश्रम के बिना मनुष्य के जीवन की परिकल्पना ही असंभव है। यदि आप परीक्षा में उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण होना चाहते हैं, मनचाही नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं, रोजगार में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, या ...Read More
आधार - 22 - आत्म-निर्माणजीवन का प्रथम सोपान है।
आत्म-निर्माणजीवन का प्रथम सोपान है।संसार में उपस्थित समस्त प्राणी अपने अस्तित्व को संरक्षित करते हुए अपने विकास के मार्ग अग्रसर रहते हैं। बौद्धिक विश्लेषण की दुर्लभ शक्ति होने के कारण मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। यही कारण है कि आत्म-निर्माण की सर्वाधिक आवश्यकता मानव जाति को ही है। जैसे-जैसे आत्म-निर्माण की प्रक्रिया पूर्ण होती जाती है, मनुष्य सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचने को अग्रसर हो जाता है। आत्म-निर्माण के द्वारा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपके व्यक्तित्व का प्रभाव परिलक्षित होता है और आप सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से विकास के मार्ग ...Read More
आधार - 23 - आत्म-साक्षात्कारसफलता का प्रथम अध्याय है।
आत्म-साक्षात्कारसफलता का प्रथम अध्याय है।साक्षात्कार शब्द से हम सभी भलीभांति परिचित हैं। सभी ने अपने जीवन में अनेकों साक्षात्कार होंगे। कई साक्षात्कारों के परिणाम स्वरुप आपको जीवन पथ पर सफलता प्राप्त हुई होगी। कभी ऐसी परिस्थिति भी आई होगी जब किसी अपरिचित व्यक्ति ने साक्षात्कार द्वारा आपको अपनी संस्था के लिए उपयुक्त पात्र मानकर कार्य करने हेतु आमंत्रित किया होगा। परंतु क्या कभी आपने आत्म-साक्षात्कार अर्थात अपने स्वयं का साक्षात्कार लिया है? क्या कभी आपने स्वयं को पहचानने का प्रयास किया है? क्या कभी आपने यह जानने का प्रयास किया है कि आप इस समाज के लिए उपयुक्त पात्र ...Read More
आधार - 24 - भगवत कृपा, जीवन की दिव्य शक्ति है।
भगवत कृपा, जीवन की दिव्य शक्ति है।कभी आप रास्ते में पड़े पत्थर से टकराकर लड़खड़ाते हैं फिर संभल जाते और चोट खाने से बच जाते हैं। कभी आपके नजदीक से एक तेज रफ्तार कार गुजर जाती है और आप उस कार की चपेट में आने से बाल-बाल बच जाते हैं। आप पैदल रास्ते में हैं और अचानक तेज आंधी शुरू हो जाती है आप देखते हैं कि आपके ठीक पीछे एक विशालकाय पेड़ आंधी की चपेट में आकर जमींदोज हो जाता है। ऐसी सभी परिस्थितियों के बीतने पर आप अपने भाग्य को सराहते हैं कि क्षण भर की देरी से ...Read More