एक यात्रा समानान्तर

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वह घिसटने लगती है. सारा थकान हमेशा पाँवों में ही क्यों उतर आती है ? कन्धे पर लटका छोटा सा बैग भी बोझ लगने लगता है. थकान.... टूटन...... भीतर ही भीतर कुछ घुटने लगता है. वह व्यर्थ ही वहाँ आ गई है, यह अहसास उसे आते ही होने लगा था. यात्रा से पूर्व जो हल्का सा उत्साह था, वह भी आहिस्ता आहिस्ता मरने लगा है...... निखिल अपनी पत्नि अपर्णा के साथ है और मनोज अपनी मित्र शिखा के साथ.... ये लोग व्यर्थ उसे अपने साथ घसीट लाए हैं. वह कब तक यूँ ही घिसटती रहेगी ?

Full Novel

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एक यात्रा समानान्तर - 1

गोपाल माथुर 1 वह घिसटने लगती है. सारा थकान हमेशा पाँवों में ही क्यों उतर आती है ? कन्धे लटका छोटा सा बैग भी बोझ लगने लगता है. थकान.... टूटन...... भीतर ही भीतर कुछ घुटने लगता है. वह व्यर्थ ही वहाँ आ गई है, यह अहसास उसे आते ही होने लगा था. यात्रा से पूर्व जो हल्का सा उत्साह था, वह भी आहिस्ता आहिस्ता मरने लगा है...... निखिल अपनी पत्नि अपर्णा के साथ है और मनोज अपनी मित्र शिखा के साथ.... ये लोग व्यर्थ उसे अपने साथ घसीट लाए हैं. वह कब तक यूँ ही घिसटती रहेगी ? ....शायद ...Read More

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एक यात्रा समानान्तर - 2

2 होटल के काॅरीडोर के आखिर में छोर पर है उसका कमरा, जहाँ इस समय वह अकेली लेटी हुई रात आहिस्ता आहिस्ता सरकती आ रही है, पर ड्रिंक्स के बावजूद भी उसकी आँखों में नींद नहीं है. शाम को मनोज ने हमेशा की तरह ज्यादा पी ली थी. इससे पहले कि वह सारी पी हुई उलट देता, शिखा उसे अपने कमरे में ले गई थी. कुछ देर वह निखिल और अपर्णा के साथ बैठी रही थी. एक तनाव सा घिर आया था. उसे याद आया कि एक समय था, जब वे तीनों सहजता से बातें किया करते थे. निखिल ...Read More

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एक यात्रा समानान्तर - 3 - अंतिम भाग

3 ”और तुम्हारे उन्हीं भटके हुए दिनों की सजा मैं भुगत रही हूँ.“ वह सीधे निखिल को देखती हुई है.... फिर वह बाहर देखने लगती है. वह कुछ नहीं कहता. उसकी निगाहें भी बाहर लगी हुई हैं. वह भी वही सब देख रहा है, जो अनु.... उतरती रात, बिना चाँद का आकाश, चिनार के घने पेड़, होटल का लाॅन, मन्द बहती हवा........ पल भर बाद निखिल की फुसफुसाती सी आवाज आती है, ”अनु....“ उसका ध्यान निखिल पर लौट आता है. ”मैं नहीं जानता आज यह सब कहने का कोई अर्थ है कि नहीं, पर कई बार ऐसा होता है, ...Read More