रूको...राजहंसिनी!अपने कमरे में जाने से पहले ये बताओ कि कहाँ से आ रही हो?हाँस्टल की वार्डन ने राजहंसिनी से पूछा।। जी,मैं जरा घूमने चली गई थी,राजहंसिनी बोली।। इतने रात गए तक घूमना शरीफ़ घर की लड़कियों का काम नहीं है,तुम्हें पता हैं तुम्हारी बड़ी बहन देवनन्दिनी को कुछ पता चल गया था,तो कितना कष्ट होगा उनको,हाँस्टल की वार्डन बोलीं।। जी,लेकिन अभी तो कोई रात नहीं हुई केवल सात ही बजे हैं,जी पता है कि उनको कष्ट होगा,राजहंसिनी बोली। तब भी समझ में नहीं आता तुम्हें! तुम्हारे स्वर्गवासी पिता जी सेठ हरिश्चन्द्र अग्रवाल इस शहर के नामीगिरामी बिजमैन थे,तुम्हारे ऐसे करने से उनकी आत्मा को कितना कष्ट पहुँचता होगा,वार्डन बोली।।
Full Novel
अर्पण--भाग (१)
रूको...राजहंसिनी!अपने कमरे में जाने से पहले ये बताओ कि कहाँ से आ रही हो?हाँस्टल की वार्डन ने राजहंसिनी से जी,मैं जरा घूमने चली गई थी,राजहंसिनी बोली।। इतने रात गए तक घूमना शरीफ़ घर की लड़कियों का काम नहीं है,तुम्हें पता हैं तुम्हारी बड़ी बहन देवनन्दिनी को कुछ पता चल गया था,तो कितना कष्ट होगा उनको,हाँस्टल की वार्डन बोलीं।। जी,लेकिन अभी तो कोई रात नहीं हुई केवल सात ही बजे हैं,जी पता है कि उनको कष्ट होगा,राजहंसिनी बोली। तब भी समझ में नहीं आता तुम्हें! तुम्हारे स्वर्गवासी पिता जी सेठ हरिश्चन्द्र अग्रवाल इस शहर के नामीगिरामी बिजमैन थे,तुम्हारे ऐसे करने ...Read More
अर्पण--भाग (२)
दूसरे दिन___ श्रीधर ने सुबह सुबह तैयार होकर सुलक्षणा को आवाज़ दी___ जीजी..! तो मैं चलता हूँ!! कहाँ जा है रे! सुबह सुबह,चल पहले कुछ खा ले,फिर चले जइओ,सुलक्षणा बोली।। जीजी! कल किसी ने एक पता देते हुए कहा था कि यहाँ चले जाना,नौकरी मिल जाएंगी,सो वहीं जा रहा था,श्रीधर बोला।। अच्छा,ठीक है! ये ले पोहे बनाएं हैं,थोड़ा खा ले,मुझे मालूम है तू दिनभर ऐसे ही बिना कुछ खाएं रह जाएगा और यहाँ मेरा जी जलता रहेगा,सुलक्षणा बोली।। क्यों? मेरी इतनी चिन्ता करती हो,दीदी! सिलाई करके तुम्हें दो चार रूपए मिलते हैं,वो भी तुम इस घर और इस निठल्ले ...Read More
अर्पण--भाग (३)
श्रीधर और देवनन्दिनी मिल के भीतर पहुँचे,मिल में काम जारी था,सभी कर्मचारी अपने अपने काम पर लगे हुए थे,देवनन्दिनी सभी कर्मचारियों से श्रीधर का परिचय करवाते हुए कहा कि___ आज से ये भी आप सभी के साथ काम करेंगें,ये कपड़ो और साड़ियों पर चित्रकारी करेंगें और अब मैं कैशियर के पद से मुक्त होना चाहती हूँ इसलिए ये जिम्मेदारी भी मैं इन्हें सौंपना चाहती हूँ।। सभी कर्मचारी बहुत खुश हुए श्रीधर से मिलकर और दिल से श्रीधर का स्वागत किया,श्रीधर को काम समझाकर देवन्दिनी अपने आँफिस में चली गई,श्रीधर भी अपना काम समझने में लग गया।। ...Read More
अर्पण--भाग (४)
राजहंसिनी ने देवनन्दिनी से बात करने के इरादे से डरते हुए हिम्मत करके कहा__ दीदी! आज शहर की सड़कें ज्यादा ही साफ सुथरी लग रहीं हैं,है ना! हाँ...हाँ..क्यों ना होगीं साफ सुथरी? नगरपालिका वालों को मालूम था ना कि इन सड़को से राजकुमारी राजहंसिनी पधारने वालीं हैं इसलिए तो सड़कों को जीभ से चाट चाटकर साफ किया गया है,देवनन्दिनी गुस्से से बोली। अच्छा! मैं ना कहती थी दीदी! एक ना एक दिन सारे शहर को पता चल जाएगा कि राजहंसिनी किसी राजकुमारी से कम नहीं हैं,चलो शहर के लोगों को इतना तो पता चल गया और एक तुम हो ...Read More
अर्पण--भाग (५)
देवनन्दिनी की बात सुनकर राजहंसिनी बोली____ नहीं दीदी! परिचित नहीं हैं,बस एक बार मुलाकात हुई थी।। अच्छा तो अब समझ आया,उस दिन आप हाँस्टल से भाग रहीं थीं और बातों ही बातों में मैनें इन्हें बताया कि मुझे नौकरी की जुरूरत है तो इन्होंने मुझे मिल का पता देते हुए कहा कि यहाँ चले जाइएगा नौकरी मिल जाएगी,बस मैं दूसरे दिन मिल पहुँच गया और आपने मुझे नौकरी पर रख लिया, श्रीधर बोला।। जी,मेरे हाँस्टल से भागने का तो आपको दीदी ने बता ही दिया होगा,राजहंसिनी बोली।। तो क्या करूँ?बताना पड़ता है,तूने मेरी नाक में दम जो कर रखा ...Read More
अर्पण--भाग (६)
दिनभर का समय राजहंसिनी को अस्पताल में काटना मुश्किल पड़ गया,रह रहकर वो बस बिस्तर पर करवटें ही बदलती राजहंसिनी की हालत से वाकिफ था,उसे पता था कि जो लड़की एक जगह कभी शान्त होकर नहीं बैठ सकती,उसके लिए पूरा दिन बिस्तर पर गुजारना कितना कठिन होगा।। शाम हुई देवनन्दिनी अस्पताल आई,राज से मिलने हाथों में ढे़र से फल लेकर और श्रीधर से बोली___ श्रीधर बाबू अब आप घर जा सकते हैं,मैं रात को यहाँ रूक जाऊँगीं।। ठीक है !जैसा आप उचित समझें,मैं अब घर जाता हूँ,कल मिल जाने से पहले फिर से मिलने आऊँगा,श्रीधर बोला।। जी,बहुत अच्छा! ...Read More
अर्पण--भाग (७)
देवनन्दिनी से कुछ देर बातें करके श्रीधर अपने केबिन में चला गया लेकिन देवनन्दिनी कुछ परेशान सी हो गई श्रीधर की बातें सुनकर, क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसकी छोटी बहन को ये एहसास हो कि वो बिल्कुल अकेली है और उसका ख्याल रखने वाला कोई नहीं है,वो जल्द ही इस समस्या का समाधान खोज निकालना चाहती थी,वो दिनभर अपने केबिन में चैन से ना रह पाई,उसे लग रहा था कि सच में वो अपनी छोटी बहन का ख्याल नहीं रख पा रही,अपने पिता जी को उनकी मृत्यु के समय उसने जो वचन दिया था कि वो हरदम ...Read More
अर्पण--भाग (८)
इधर श्रीधर अस्पताल पहुँचा और उसने अस्पताल के बाहर ही खड़े एक बुजुर्ग की रेड़ी से पहले भेलपूरी बनवाई उस बुजुर्ग को पैसे देकर,भेलपूरी को अपने झोलें में छुपाया और राज के कमरें की ओर चल पड़ा,जैसे ही वो राज के कमरें में पहुँचा तो उसने देखा कि राज 'शरतचन्द्र चटोपाध्याय' का लिखा हुआ उपन्यास 'देवदास' पढ़ रही है,राज को ऐसे पढ़ते हुए देखा और श्रीधर ने टोकते हुए कहा..... अच्छा! तो शह़जादी साहिबा 'देवदास' पढ़ रहीं हैं।। अरे!श्रीधर बाबू ! आप! कब आए? राज ने चौकतें हुए पूछा.... जी! तभी जब आप अपनी प्रेमकहानी में डूबीं हुईं थीं.... ...Read More
अर्पण--भाग (९)
खाना ख़त्म करके सब अपने अपने बिस्तर पर जा लेटे,सुलक्षणा को भी विचारों ने आ घेरा था,अब सुलक्षणा श्रीधर के चेहरे से साफ पता चलने लगा था कि शायद वो राज को पसंद करने लगा है,वो अच्छी तरह से अपने भाई के मन की बात समझ रही थी और मन ही मन में सोचकर खुश हो रही थी कि चलो अब श्रीधर की गृहस्थी भी बस जाएगी,उसकी जिम्मेदारी से वो मुक्त हो जाएगी लेकिन मन ही मन वो डर भी रही थी कि राज इतने बड़े घर की लड़की है ,क्या वो श्रीधर से ब्याह करने को राज़ी होगी? ...Read More
अर्पण--भाग (१०)
राजहंसिनी जी जान से देवनन्दिनी की सालगिरह की तैयारियों में जुट गई,उसने कमलकान्त और कमल किशोर को टेलीफोन करके बुलाया,उन दोनों के आने पर उसने कहा कि आप दोनों को मेरी मदद करनी होगी, सालगिरह की पार्टी इतनी शानदार हो कि सारा शहर याद रखें___ जी, हमारी खातिर जो भी हुक्म है आप फरमाइए,हम से जो बन पड़ेगा आपकी मदद जरूर करेंगें, कमल किशोर बोला।। जी !मैं आपसे ऐसी ही उम्मीद रखती हूं,राजहंसिनी बोली।। जोर शोर से सभी सालगिरह की तैयारियों में जुट गए , चूंकि आज और कल का दिन शेष था तैयारी कर लिए इसलिए समय कम ...Read More
अर्पण--भाग (११)
अच्छा ! आप लोगों ने खाना खाया,राज ने सुलक्षणा और श्रीधर से पूछा।। जी,खाना भी खाया और पार्टी का भी उठाया,श्रीधर बोला।। जी श्रीधर बाबू! आपके गीत ने तो पार्टी में चार चांद लगा दिए, बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी बात का मान रखा और मेरे कहने पर गीत प्रस्तुत किया,राज बोली।! जी! शहजादी साहिबा का हुक्म जो था, इसलिए मानना ही पड़ा,श्रीधर बोला।। जी!श्रीधर बाबू! ये हुक्म नहीं था,बस एक छोटी सी गुज़ारिश की थी आपसे,आपकी एहसानमंद हूं जो आपने मेरी बात सुनी,राज बोली।। कैसी बातें करतीं हैं राज जी! देवनन्दिनी जी की सालगिरह थी,ये तोहफा तो ...Read More
अर्पण--भाग (१२)
दोनों ही मोटर से उतरे और तालाब की सीढ़ियों पर जा बैठे___ डूबते हुए सूरज की लालिमा तालाब को रही थी और सूरज धीरे धीरे तालाब के उस ओर के छोर में छिपता चला जा रहा था,तालाब में बैठे हुए पंक्षी अब अपने घोंसलों में लौटने की तैयारी में थे,तालाब की खूबसूरती देखते ही बनती थी,तभी श्रीधर ने एक पत्थर जोर से तालाब की ओर उछाला,पत्थर तालाब के जल की सतह पर तरंगें बनाता हुआ,तालाब के पानी में विलीन हो गया।। तभी राज बोली____ क्यों श्रीधर बाबू! प्रेम भी ऐसा ही होता है ना! जैसे कि ये पत्थर ...Read More
अर्पण--भाग (१३)
इधर राज और श्रीधर का आए दिन मिलना बरकरार रहा,आज दिन दोनों ही शाम को कहीं सैर के लिए जाते हैं या कि रेस्तरां में डिनर करते,तो कभी किसी नुमाइश में चले जाते,कमलकिशोर जब भी राज से कहीं सैर के लिए कहता था तो वो वक़्त नहीं है का बहाना बनाकर टाल जाती,इससे कमलकिशोर का मन खिन्न हो जाता।। फिर एक शाम शहर की सड़कों के बीचों बीच राज की मोटर चली जा रही थीं, रेडलाइट पर राज ने मोटर रोकी तभी उसी वक़्त कमलकिशोर भी अपनी मोटर में राज की मोटर के बगल में जा खड़ा हुआ,उसने ...Read More
अर्पण--भाग (१४)
रात का समय,राज अपना मन हल्का करने के लिए बगीचे के झूले में आ बैठी,तभी वहां रधिया काकी आ उसने राज को कुछ उदास देखा तो पूछ बैठी___ का हुआ बिटिया? कछु उदास दिख रही हो।। ना काकी! ऐसी कोई बात नहीं है,बस थोड़ा थक गई हूं,राज ने जवाब दिया।। तो ठीक है बिटिया! हम तुम्हें ज्यादा परेशान नहीं करेंगे,हम जा रहें हैं तुम आराम करो और इतना कहकर रधिया जाने लगी,तभी राज ने रधिया को रोकते हुए कहा____ रूको ना काकी! जरा थोड़ी देर मेरे संग भी बैठो, हां! जरूर! तुम कहती हो तो बैठ जाते हैं, लेकिन ...Read More
अर्पण--(अन्तिम भाग)
देवनन्दिनी को सोफे पर बैठा देखकर बाहर से आते हुए रामू ने पूछा___ क्या हुआ दीदी!आप छोटी के कमरे में नहीं गईं।। अरे, नहीं रे! बहुत थकी थी, इसलिए सीढ़ियां चढ़ने का मन ना हुआ,तू ऐसा कर बबलू को मेरे पास छोड़ दें, मैं उससे बातें करतीं हूं,तू चाय चढ़ा दें और राज के कमरें से सुलक्षणा जी को बुलाकर ले आ , मैं उनसे यही नीचे मिल लूंगी,देवनन्दिनी बोली।। जी बहुत अच्छा, और इतना कहकर रामू ने किचन में जाकर चाय चढ़ाई और सुलक्षणा को बुलाने चला गया।। कुछ देर बाद सुलक्षणा और राज दोनों ही नीचे ...Read More