सुलोचना.

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सुलोचना! जैसा नाम वैसा ही रूप बड़ी-बड़ी आँखे गेहुँआ रंग लम्बे काले बाल, उसके रूप को और भी निखार देते थे। उसकी गहरी सिंदूरी माँग बड़ी सी सुर्ख़ लाल सिंदूरी बिंदी! बहुत सलीक़े से माथे पर सज़ा कर गोलाकार रूप में उसके श्रृंगारिक मनोभाव को दर्शाते थे। सुलोचना के ब्याह को तीन वर्ष हो चुके थे। शशिधर मुखर्जी ने अपने से कम हैसियत के घर की बेटी को अपनी बहू बनाया था। उसके पीछे सुलोचना का रंग- रूप और गुण ही सबसे बड़ा कारण था। हालाँकि सासु माँ कुसुम मुखर्जी का मन बिलकुल भी नहीं था। बिना दान- दहेज़ वाले घर की कन्या उनके सुंदर सजीले बेटे के लिए आए। वह भी जब बेटा सरकारी नौकरी में ऊँची पदवी पर बैठा हुआ हो। वह तो कोई पढ़ी- लिखी मेम टाइप की बहू लाना चाहती थी।

Full Novel

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सुलोचना - 1

भाग-१ सुलोचना! जैसा नाम वैसा ही रूप बड़ी-बड़ी आँखे गेहुँआ रंग लम्बे काले बाल, उसके रूप को और भी देते थे। उसकी गहरी सिंदूरी माँग बड़ी सी सुर्ख़ लाल सिंदूरी बिंदी! बहुत सलीक़े से माथे पर सज़ा कर गोलाकार रूप में उसके श्रृंगारिक मनोभाव को दर्शाते थे। सुलोचना के ब्याह को तीन वर्ष हो चुके थे। शशिधर मुखर्जी ने अपने से कम हैसियत के घर की बेटी को अपनी बहू बनाया था। उसके पीछे सुलोचना का रंग- रूप और गुण ही सबसे बड़ा कारण था। हालाँकि सासु माँ कुसुम मुखर्जी का मन बिलकुल भी नहीं था। बिना दान- दहेज़ ...Read More

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सुलोचना - 2

भाग-२ एक शाम मणि के साथ उसकी पिशि के बेटे उसके हम उम्र बड़े भाई एम. के. दादा आए। दादा और मणि की बहुत गहरी दोस्ती थी। एम के दादा का नाम वह कई बार मणि से सुन भी चुकी थी। दादा को सभी एम. के. ही कह कर बुलाते थे।उनका नाम था “माधव केशव बनर्जी” समझदार होते ही उन्होंने अपने नाम का शॉर्ट कट एम. के. रख लिया और इसी नाम से फ़ेमस हो गये। वह पाँच साल से विदेश में थे। शादी में भी न आ पाए थे। तभी तो अभी वह मणि की पत्नी से मिलने ...Read More

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सुलोचना - 3

भाग-३ एम.के. जब-तब उसकी तारीफ़ करके उसके मन को गुदगुदा देता। वह भी शाम को क्या स्पेशल बनाए यही में दिन बिता देती। कुछ न कुछ ख़ास वह परोस ही देती जिसकी तारीफ़ एम.के.दिल खोल के करता। उसे लगता उसका बनाना सार्थक हो गया। अब अपने वस्त्र विन्यास के वक्त वह ध्यान रखती थी कि शाम को उसे लाल या पीले रंग की ही साड़ी पहननी है।वह भी पतले जार्जेट या शिफ़ान की। बस एक दिन बातों-बातों में ही तो कह दिया था चाय की टेबल पर एम.के.ने उसकी सास से- “मामी आप मुझे शुरू से पीली शिफ़ान में ...Read More

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सुलोचना - 4

भाग-४ सासू माँ उसे ऐसे कटाक्ष करती ही रहती हैं। आज न जाने क्यों उसे बहुत बुरा लगा उसकी डबडबा आईं न जाने कौन सा दर्द था जो छलककर उसके गाल पर आँसू बन ढलक आया। ये देखकर एम.के.ने ज़ोर से हँसते हुए कहा- “अरे मामी माछ मारने से कुछ नहीं होता मज़ा तो उसके खाने में है और खायेंगे तो तब ही न जब पकेगी।” वह उठ कर जाने लगी तो एम.के.बोला- “अरे कहाँ चली आप यूँ सारा आसमान अपने साथ लिए हुए।” पर वह आज नहीं रुकी अपने भीगे गालों के साथ कमरे में चली गई। उसके ...Read More

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सुलोचना - 5

भाग-५ तीन चार साड़ी लाल और पीले रंग में पसंद कर चुकी तो एम.के.बोला- “आप को बस दो ही पसंद हैं क्या?” वह सकपका गई रंग के पीछे के छुपे भावों को जानते हुए ही शरारत से बोला था। उसने एक केशरिया रंग की टस्सर सिल्क उठाई और बोला। यह अष्टमी वाले दिन पहनना नीली मुर्शिदाबाद सिल्क उसके ऊपर डालते हुए बोला- “सप्तमी वाले दिन इसे पहन शृंगार करना मणि बाबू की नींद उड़ जाएगी।” फिर गारद साड़ी उठाते हुए बोला- इसके बिना माँ की विदाई कैसे करोगी सूलू और उसी दिन मेरी भी तो विदाई है।” वह एक-एक ...Read More

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सुलोचना - 6

भाग-६ सफ़र ख़त्म हुआ कार कोठी में प्रवेश कर रही थी पर ये दोनो ही सफ़र के और लम्बा की दुआ माँग रहे थे। मन के परवाज़ बड़े सशक्त होते हैं वह हर उस जगह तक बिना किसी रोक-टोक के पहुँच जाते हैं जहाँ तक वह जाना चाहते हैं। इस वक्त एम.के. और सुलोचना कार में बैठे हुए ही अपने मन के परवाज़ की उड़ान भर रहे थे। तभी कार रुक गई और उन दोनों की उँगलिया एक दूसरे की गिरफ़्त से अलग हो गईं एक दूसरे का एहसास अपनी उँगलियों में बसाए हुए। कार से उतरते ही सामने ...Read More

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सुलोचना - 7

भाग-७ कल से दुर्गा पूजा शुरू थी बहुत सारे इंतज़ाम कोठी पर हो रहे थे पूरे धर्मतल्ला में कोठी पूजा सबसे बेस्ट रहती थी। नगर पालिका से सबसे सुंदर पंडाल का प्रशस्ति पत्र पिछले आठ साल से कोठी के पंडाल को ही मिल रहा था। इस बार भी पंडाल बनाने वाले कारीगर मद्रास से आए थे और वह मदुरै के प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर जैसा पंडाल सुतली से बना रहे थे। दोपहर जब सर चढ़ आई तब एम.के.ने अपने आलस को त्यागा और उठा कर स्नान करने चला गया। नहाने से पहले उसने एक बार अपनी हथेली को देखा और ...Read More

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सुलोचना - 8

भाग-८ सब भोग प्रसाद खाने में लगे थे सुलोचना को देख एम.के.ने रसोगुल्ला उठा कर मणि की पत्तल में दिया और बोला- “मेरा कोटा पूरा हो चुका है मुँह मीठा करने का।” सुलोचना का चेहरा ज़र्द हो गया उसने सामने रखे डोंगे से दो रसगुल्ले लिए और खाने शुरू कर दिए। उसे ऐसे खाते देख मणि बोला- “सुलोचना आराम से खाओ।” तभी माँ ने उसे अपनी सखियों से मिलवाने के लिए बुलवाया वह छम-छम करती हुई उनके क़रीब जा पहुँची। आज उसके आगे-पीछे कई चक्कर एम.के.ने लगाए पर वह हर बार उससे कतरा कर भीड़ का हिस्सा बन जाती। ...Read More

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सुलोचना - 9

भाग-९ सुलोचना मदमस्त नार सी तैयार होने के लिए स्नान घर के भीतर चली गई और मणि उसे जाते स्नेह से देखता रहा और सोचता रहा। “एम.के.दादा और सुनंदा दोनो ही इसकी कितनी प्रशंसा करते हैं और मैं बेकार ही उदासीन सा जीवन जी रहा था। वह अंग्रेज़ी सीख जाएगी फिर उसके मॉर्डन होते ही माँ को भी पसंद आने लगेगी सच में सुलोचना बहुत मासूम है।” तभी वह स्नान कर के बाहर आई उसके खुले अधभीगे केश और धुला हुआ चेहरा उसकी मासूमियत का क़िस्सा कह रहे थे। मणि अभी तक अपनी तक़दीर की लकीरें गिन रहा था ...Read More

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सुलोचना - 10 - अंतिम भाग

भाग-१० उपसंहार- सराहना जीवन का अभिन्न अंग है।ये सच है की निंदक नियरे रखना चाहिए किंतु ऐसा भी न कि निंदा उपेक्षा में बदल जाए। ऐसा जब भी होता है तो या तो विद्रोह होता है या गुमराह हो कर व्यक्ति भटक जाता है।या फिर कभी वह आत्महत्या तो कभी कोई एम.के.जैसा कोई कदम उठ जाते हैं। जैसे स्वाति की एक बूँद के लिए चातक टकटकी लगाए रहता है वैसे ही मतवाली नारी भी अपने प्रिय से प्रशंसा सुनने को आतुर रहती है। यही तो था सुलोचना के जीवन का सत्य। अभाव में कटा जीवन का एक लम्बा वक्त ...Read More