अक्टूबर का महीना आते आते अंधेरा कुछ जल्दी ही घिरने लगता है। ऊपर से इस महीने में त्योहारों की भरमार। कितना भी समय ज्यादा लेकर चलो बाजार में, फिर भी कम पड़ जाता है। शिवानी ने सोचते हुए जैसे ही अपनी घड़ी पर नजर दौड़ाई। ओहो! 6:00 बजने वाले हैं और अभी कितनी खरीदारी करनी बाकी है। हे भगवान! क्या आज ही सारी दुनिया को खरीदारी के लिए निकलना था। मैंने तो कितनी प्लानिंग की थी कि आज वर्किंग डे है तो बाजार में कम भीड़ होगी लेकिन इतनी भीड़ देखकर तो कोई भी यही सोचेगा कि आज संडे है!
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प्रायश्चित भाग-1
अक्टूबर का महीना आते आते अंधेरा कुछ जल्दी ही घिरने लगता है। ऊपर से इस महीने में त्योहारों की कितना भी समय ज्यादा लेकर चलो बाजार में, फिर भी कम पड़ जाता है। शिवानी ने सोचते हुए जैसे ही अपनी घड़ी पर नजर दौड़ाई। ओहो! 6:00 बजने वाले हैं और अभी कितनी खरीदारी करनी बाकी है। हे भगवान! क्या आज ही सारी दुनिया को खरीदारी के लिए निकलना था। मैंने तो कितनी प्लानिंग की थी कि आज वर्किंग डे है तो बाजार में कम भीड़ होगी लेकिन इतनी भीड़ देखकर तो कोई भी यही सोचेगा कि आज संडे है! ...Read More
प्रायश्चित - भाग-2
याद करते हुए शिवानी का मन अतीत के गलियारों में पहुंच गया। कितनी चंचल अल्हड़ और बातूनी हुआ करती वो। आज से बिल्कुल अलग। घर में सबकी लाडली हरदम चिड़िया की तरह चहकती रहती और सबका मन अपनी बातों से लगाए रखती। खूबसूरत भी कम ना थी लेकिन लड़कियों जैसी उसमें कोई बात ना। सजने सवरने से दूर हरदम खेल में ध्यान। लड़कों से कहीं बढ़कर उसके शरारतें होती थी। बेटियां कितनी भी प्यारी हो लेकिन माता पिता को अपने कलेजे पर पत्थर रख उसे दूसरे घर भेजना ही होता है। शिवानी की पढ़ाई पूरी होते ही शिवानी माता ...Read More
प्रायश्चित - भाग-3
शिवानी सोने की बहुत कोशिश कर रही थी लेकिन पिछली यादें जिन्हें वह भूलने की कोशिश में इतने सालों लगी थी मानो आज फिर से जीवित हो उठी थी। शिवानी को आज भी याद है कि किरण जितनी शांत महिला से वह अपने जीवन में पहली बार मिली थी। शिवानी उससे कोई भी बात करती , वह बस "हां हूं " में ही जवाब देती । शिवानी को उसके ऐसे व्यवहार से लगता कि वह बहुत घमंडी है। साथ ही अपने पर भी बहुत गुस्सा आता था कि जब वह बोलना ही नहीं चाहती तो वह क्यों आगे बढ़ ...Read More
प्रायश्चित - भाग-4
काफी देर से रिया के रोने की आवाज सुन किरण परेशान हो गई। पहले तो उसने सोचा, शायद किसी पर जिद कर रो रही होगी। फिर उसने सोचा शायद दीदी यहां से गुस्से में गई थी इसलिए परेशानी में रिया को डांट दिया हो लेकिन काफी देर तक जब वह चुप नहीं हुई तो उससे रुका नहीं गया । उसे अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था कि उसकी वजह से मां बेटी दोनों ही परेशान हो गई है और वह शिवानी से माफी मांगने के लिए वहां आई तो शिवानी की हालत देख वह घबरा गई। उसे ...Read More
प्रायश्चित - भाग -5
उस दिन के बाद दिनेश उसका और ज्यादा ध्यान रखने लगा था। ऑफिस जाने के बाद दिन में कई ,उसे फोन करके हालचाल पूछता। कई बार तो वह दिनेश के बार-बार फोन कॉल करने से खीज भी जाती थी लेकिन मन ही मन खुश भी बहुत होती । दिनेश की उसके प्रति यह फिक्र देखकर। किरण भी जब तब उसकी सहायता करवाने के लिए आ जाती । वह तो उसे बहुत मना करती थी लेकिन वही जिद करके खुद काम करने लग जाती। कहती "दीदी इस बहाने मेरा मन लगा रहेगा। मेरा खुद का काम ही कितना है और ...Read More
प्रायश्चित - भाग-6
शाम को जब दिनेश वापस आया तो वह परेशान था। शिवानी समझ गई थी कि वह मेड ना मिलने कारण परेशान है। "आप मेड ना मिलने के कारण परेशान हो!" "हां यार , कईयों से पूछा लेकिन कहीं से कोई जुगाड़ नहीं हुआ। झाड़ू पोछे वाली तो मिल रही है लेकिन खाना बनाने के लिए कोई राजी नहीं है। 1-2 से बात की तो उन्होंने नियम कानून ही इतने बता दिए कि सुनकर लगा कि यह काम कम करेंगी और तुम्हें टेंशन ज्यादा देंगी।" "आप भी टेंशन मत लो। सब बंदोबस्त हो गया!" "कैसे !तुमने आस-पड़ोस में बात की ...Read More
प्रायश्चित - भाग-7
आज शिवानी की हॉस्पिटल से वापसी थी। किरण की मदद से उसकी सास ने उसके स्वागत की पूरी तैयारी ली थी। रिया की उत्सुकता तो देखते ही बनती थी ।अब तक ना जाने कितनी बार किसी भी गाड़ी की आवाज सुनकर गेट तक दौड़ लगाकर वापस आ चुकी थी। जब भी वापस आती तो मुंह बनाते हुए अपनी दादी से कहती " पता नहीं पापा मम्मी, मेरे छोटे भाई को लेकर अब तक क्यों नहीं आए।" "बस आते ही होंगे मेरी लाडो, तू उदास मत हो। तुझे उदास देखकर तेरे छोटे भाई को अच्छा नहीं लगेगा ना!" "हां दादी ...Read More
प्रायश्चित - भाग-8
जब से शिवानी हॉस्पिटल से आई थी। तब से किरण देख रही थी कि कुमार के स्वभाव में काफी आने लगा था। बात-बात पर उस पर चिल्लाने वाला कुमार अब उससे बहुत प्यार से बात करता। साथ ही उसका बहुत ध्यान रखने लगा था। सबसे बड़ी बात वह रियान के खूब लाड़ दुलार करता। अब तो वह अक्सर शिवानी की सास के साथ बैठकर खूब बातें भी करता। सब उसके बदले व्यवहार को देखकर बहुत हैरान थे। अम्मा जी सबको समझाते हुए यही कहती बिटिया भगवान सबकी सुनता है। अम्मा जी, आप कहते हो तो मान लेती हूं लेकिन ...Read More
प्रायश्चित - भाग-9
किरण व कुमार का जीवन अब पूरी तरह से पटरी पर लौट आया था। शिवानी का बेटा 6 का हो गया था। हां, शिवानी के ससुर की तबीयत अब ज्यादातर खराब ही रहने लगी थी। उनकी बिगड़ती हालत के बारे में सुनकर बीच में एक बार शिवानी बच्चों व दिनेश के साथ जाकर उनसे मिल आई थी। अपने ससुर को देख शिवानी की आंखों में आंसू आ गए। उनका शरीर पहले से काफी कमजोर हो गया था और चेहरा भी निस्तेज। एक अनजानी आशंका से शिवानी का दिल घबरा गया था, जब वह उनसे मिली। उसे यूं भावुक होते ...Read More
प्रायश्चित - भाग-10
शिवानी को गांव में एक महीना हो गया था। इस बीच हर रोज उसकी दिनेश व किरण से बात जाती थी। दिनेश के आने के बाद किरण ने शिवानी से फोन पर कहा "दीदी आप भैया को कहो ना कि मैं उनका खाना बना दिया करूंगी। वह क्या अकेले अपने लिए खाना बनाएंगे । वैसे मैं उनके लिए खाना लेकर गई भी थी तो उन्होंने लेने से मना कर दिया।" शिवानी ने जब दिनेश से इस बारे में बात कि तो वह बोला "शिवानी मैं अपने आप मैनेज कर लूंगा ना! पहले भी तो करता था ना!" "अच्छा, पहले ...Read More
प्रायश्चित - भाग-11
दिनेश की इसी सादगी पर तो शिवानी मरती थी। पहली बार वह उससे इतने दिन दूर रही थी। यह दिन ही उसे साल बराबर लग रहे थे। वह जल्दी से जल्दी सारा काम समेट दिनेश के साथ बैठ अपने दिल की बहुत सारी बातें करना चाहती थी और साथ ही उससे उसकी सुनना भी । दिनेश की आंखों में छुपे प्रेम निमंत्रण को उसकी आंखों ने पढ़ लिया था। वो सब सोच ही उसे एक सुखद एहसास की अनुभूति हो रही थी। सारा काम निपटाने व खाना खाने के बाद, उसे बस एक ही बात खल रही थी कि ...Read More
प्रायश्चित - भाग-12
"दो दो जिंदगियां बर्बाद कर अब इतने भोले मत बनो, दिनेश बाबू!" कुमार उसकी ओर देखता हुआ व्यंग्य से "आपकी पत्नी भले ही आपको माफ कर दे लेकिन मैं नहीं करूंगा। मैं पुलिस थाने जा रहा हूं, आपको आपके किए की सजा दिलवाने।" जैसे ही वह बाहर जाने लगा, किरण ने उसके पैर पकड़ लिए और बोली "रुक जाइए। मैं इस सबकी कसूरवार हूं।सजा मुझे दीजिए। इनका कोई कसूर नहीं है।" "वाह क्या आशिकी है। इतना प्रेम कभी तूने हमसे नहीं किया छिनाल !!!! इतना दिल लगा बैठी इससे कि उसके किए का इल्जाम भी अपने सिर ले रही ...Read More
प्रायश्चित - भाग-13
शाम को कुमार, किरण के साथ शिवानी के यहां पहुंचा। शिवानी ने उसे बैठने के लिए कहते हुए , सामने सारे गहने रख दिए , कुछ नगदी के साथ ही उसे दो चेक काट कर देते हुए बोली " कुमार ₹200000 नगद है गिन लो और 200000 का यह चेक । हां, यह गहने देख लो। मैं समझती हूं, बाकी रूपयों की पूर्ति इन गहनों से हो जाएगी।" कहकर शिवानी चुप हो गई। कुमार ने गहनों पर सरसरी निगाह डाली और रुपयों को अपने हाथ में लेकर तौलते हुए बोला "शिवानी जी, गिनने की क्या जरूरत है। किसी और ...Read More
प्रायश्चित - भाग-14
शिवानी का जवाब सुन दिनेश चुप हो गया । कुछ कह वह बात को और आगे नहीं बढ़ाना चाहता कहे भी क्या! उसे खुद को समझ नहीं आ रहा था इसलिए वह चुप हो गया।"चुप क्यों हो गये दिनेश! जवाब दो।" शिवानी गुस्से से फिर बोली। दिनेश शांत स्वर में बोला "मैं कुछ भी कहूं, यकीन तो तुम करोगी नहीं इसलिए चुप रहना ही बेहतर है। "उसे इतना शांत देख शिवानी को अच्छा नहीं लग रहा था। वह अंदर गई और उसने जोर से दरवाजा बंद कर लिया। यह देख दिनेश का दिल किसी अनिष्ट की आशंका सोच घबरा गया ...Read More
प्रायश्चित - भाग-15
देर रात दिनेश, शिवानी के साथ गांव पहुंचि । बच्चे तो रास्ते में ही सो गए थे। सामान आदि रखवाने के बाद दिनेश ने शिवानी से कहा "शिवानी तुम बच्चों के पास ही रुको। मैं मां के पास हॉस्पिटल जा रहा हूं।" "दिनेश, मैं भी तुम्हारे साथ चलना चाहती हूं।" " नहीं शिवानी, बच्चों को घर पर अकेले छोड़ना या इस समय हॉस्पिटल लेकर जाना सही नहीं। दिन होता तो किसी के पास छोड़ भी देते। इतनी देर रात किसी को जगाना भी अच्छा नहीं लगता। तुम अभी आराम करो। सुबह आ जाना।" कह दिनेश बाहर निकल गया। जब वह ...Read More
प्रायश्चित - भाग-16
इतना तो शिवानी की सास भी समझ गई थी कि बेटा बहू केबीच एक अनकहा तनाव चल रहा है।जब दोनों गांव आए थे। उन्होंने दोनों को काम की बातों के अलावा कभी आपस में प्यार से हंसते बोलते नहीं देखा था।एक दो बार उन्होंने दोनों से अलग-अलग इस बारे में पूछने की कोशिश भी कि तो दोनों ही हंसते हुए बात टालते हुए उन्हें कहते, नहीं मां सब कुछ सही है। शायद आपको कोई गलतफहमी हुई है। वैसे भी देखो ना पहले पिताजी और अब आप बीमार हो गए ऐसी परिस्थितियों में भला कोई खुश कैसे रह सकता है ...Read More
प्रायश्चित - भाग-17
अपने परिवार को एक बार फिर से जुड़ा हुआ और खुशहाल देख, दिनेश की मां अब काफी खुश रहने थी। जिसका असर उनकी सेहत पर भी दिख रहा था। धीरे धीरे उनके स्वास्थ्य में भी सुधार होने लगा था। दिनेश और शिवानी में मां को दिखाने के लिए ही सही अब थोड़ी बहुत बातचीत होने लगी थी। मां की सुधरती हालत देखकर दोनों को ही अपने निर्णय पर संतोष था। लेकिन वह कहते हैं ना कि जब व्यक्ति इस संसार से विदा लेने वाला होता है तो उसकी सारी बीमारियां कट जाती है। ईश्वर भी अपने पास बुलाने से ...Read More
प्रायश्चित - भाग- 18
धीरे धीरे दिन, महीने, साल यूं ही गुजरते रहे । बच्चे बड़े हो गए लेकिन शिवानी के मन कड़वाहट दूर नहीं हुई। उन दोनों के बीच फासले समय के साथ और बढ़ते गए। जितना दिनेश, शिवानी के पास आने व उसे समझाने की कोशिश करता , उतनी ही शिवानी की तरफ से दूरियां और बढ़ जाती। धीरे-धीरे उसने भी इसे अपने जीवन की नियति मान, हालात से समझौता कर लिया था। दोनों ही पति पत्नी मानसिक पीड़ा से गुजर रहे थे । दिनेश तो ऑफिस जाने के बाद कुछ समय के लिए अपना दुख भूल भी जाता लेकिन शिवानी ...Read More
प्रायश्चित - भाग-19
पूरे रास्ते शिवानी, किरण व उसकी बीमारी के बारे में ही सोचती रही। जिस किरण से वह रात दिन, बैठते, सालों से नफरत करती आई थी!! जिसके लिए उसने भगवान से हमेशा बददुआ के सिवा कुछ ओर ना मांगा!! आज उसके बारे में यह सब जानकार , पता नहीं क्यों उसे अच्छा नहीं लग रहा था। वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि वह उसकी बीमारी की खबर सुनकर खुशियां मनाएं या दुख!!! अरे, मुझे तो खुशियां मनानी चाहिए। मेरे जीवन में जहर घोल दिया उसने। उसके पापा की, उसके नीच कर्मों की, उसे यही तो सजा मिलनी ...Read More
प्रायश्चित - भाग-20
हॉस्पिटल के अनेक गलियारों से गुजरते हुए , शिवानी किरण की बहन के पीछे पीछे यंत्रवत सी चली जा थी। शिवानी के मन में विचारों का झंझावात उमड़ घुमड़ रहा था। क्या बात करेगी वह किरण से! क्यों मिलने जा रही है उससे!! और साथ में दिनेश, इतने वर्षों बाद हम तीनों एक दूसरे से!!!! सामना, हे भगवान!! लौट जाऊं वापस!!!! नहीं नहीं, अब देर हो चुकी है ! हां, सामने कैंसर मरीजों का वार्ड ही तो दिख रहा है!!! नहीं आज मैं किरण से मिलकर ही जाऊंगी! मैं क्यों मुंह छुपाऊं! मैंने कौन सा अपराध किया है! अपराधी ...Read More
प्रायश्चित - भाग-21
किरण ने अपनी उखडती हुई सांसो को फिर से समेटा और शिवानी की ओर देखते हुए बोली "आपने मुझे का नया नजरिया दिया। मुझमें आशा का संचार किया। आपके साथ-साथ मैं तो मांजी की भी शुक्रगुजार हूं कि उनसे मुझे अपनी मां जैसा प्यार मिला। लेकिन मैं अभागी मेरे जीवन में प्यार व अपनापन तो धूप की तरह था। जिसे जितना मैं आंचल में बांधने की कोशिश करती वह सांझ होते होते स्याह अंधेरे में बदल जाता।" "किरण जब तुम हमारा इतना मान सम्मान करती थी, इतना प्यार करती थी! फिर क्यों तुमने इतना घिनौना काम किया। क्यों मेरे ...Read More