पृथ्वी के केंद्र तक का सफर

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पीछे मुड़कर जब देखता हूँ अपने उस रोमांचित दिन को तो विश्वास ही नहीं होता कि मेरे साथ सच में वैसा कुछ हुआ था। वो इतना विस्मयी था कि उनके बारे में सोचकर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ। मेरे मौसा जी जर्मन थे और मौसी इंग्लैंड से थी। चूँकि मेरे पिता नहीं थे और मौसा जी का मैं लाडला था इसलिए उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए अपने पास बुला लिया था। उनका घर एक बड़े से शहर में था जहाँ वो दर्शन, रसायन, भूगोल, खनिज और अन्य वैज्ञानिक शास्त्रों के प्रोफ़ेसर थे। एक दिन जब मौसा जी प्रयोगशाला में नहीं थे, मैंने कुछ घण्टे वहीं व्यतीत किये लेकिन फिर मुझे लगा अब अपनी भूख का भी कुछ इंतजाम करना चाहिए। अभी मैं अपने बूढ़ी फ़्रांसिसी बावर्ची को जगाने के बारे में सोच ही रहा था कि मेरे मौसा जी, प्रोफ़ेसर वॉन हार्डविग, मुख्य द्वार खोलकर जल्दी-जल्दी ऊपर आने लगे।

Full Novel

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 1

पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - जूल्स वर्न चैप्टर १ मेरे मौसा जी बड़े खोजकर्ता हैं पीछे मुड़कर देखता हूँ अपने उस रोमांचित दिन को तो विश्वास ही नहीं होता कि मेरे साथ सच में वैसा कुछ हुआ था। वो इतना विस्मयी था कि उनके बारे में सोचकर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूँ। मेरे मौसा जी जर्मन थे और मौसी इंग्लैंड से थी। चूँकि मेरे पिता नहीं थे और मौसा जी का मैं लाडला था इसलिए उन्होंने मुझे पढ़ाने के लिए अपने पास बुला लिया था। उनका घर एक बड़े से शहर में था जहाँ वो ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 2

चैप्टर 2 रहस्यमयी चर्मपत्र मैं बता रहा हूँ। मौसाजी ने उत्तेजित होते हुए मेज पर मुट्ठी से करते हुए कहा, मैं बता रहा हूँ तुम्हें, ये रूनिक ही है और इनमें कुछ ज़बरदस्त राज़ हैं जो मुझे हर कीमत पर जानना है। मैं जवाब देने ही वाला था कि उन्होंने मुझे रोक दिया। बैठ जाओ उन्होंने थोड़ा ज़ोर से कहा, और जो मैं बोल रहा हूँ उसे लिखो। मैंने वैसा ही किया। इसका विकल्प बनाऊँगा। उन्होंने कहना जारी रखा, अपने वर्णमाला के अक्षरों को रूनिक के अक्षरों से बदलकर देखेंगे कि ये क्या बनता है, अब शुरू करो और कोई ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 3

चैप्टर 3 एक प्रभावशाली खोज। क्या बात है? बावर्ची ने अंदर आते हुए चीखा, मालिक रात भोजन कब करेंगे? कभी नहीं। और दोपहर का? मुझे नहीं मालूम। उन्होंने बोला है अब वो नहीं खाएँगे और ना ही मुझे खाना चाहिए। मौसाजी ने ठान लिया है कि जब तक उस घटिया अभिलेख के बारे में पता नहीं लगा लेते, अपने साथ मुझे भी उपवास रखेंगे। तुम भूख से मर जाओगे। उन्होंने कहा।मुझे भी ऐसा ही लग रहा था लेकिन मैं कहना नहीं चाहता था, उन्हें जाने दिया और मैं अपने श्रेणी-विभाजन के कामों में लग गया। लेकिन मैं कितनी भी कोशिश करूँ, वो बकवास ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 4

चैप्टर 4 हमारे सफर की शुरुआत। देखो, पूरा द्वीप ज्वालामुखियों से बना है। प्रोफ़ेसर ने कहा, ध्यान दो, सभी के नाम 'जोकल' से जुड़े हैं। ये एक आइसलैंडिक शब्द है जिसका मतलब हिमनदी है। यहाँ के ज़्यादातर ज्वालामुखियों के लावा बर्फीले खोह से निकलते हैं। इसलिए इस बेमिसाल द्वीप के हर ज्वालामुखी से ये नाम जुड़ा है। फिर स्नेफल्स का मतलब क्या है? इस सवाल के लिए मुझे कोई वाजिब जवाब की उम्मीद नहीं थी। मैं ग़लत था।मेरी उँगली की सीध में देखो जहाँ आइसलैंड के पश्चिमी तट पर इसकी राजधानी, रिकिविक है। वहीं उसी दिशा में समुद्र के घेरे की ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 5

चैप्टर 5 चढ़ाई की पहली सबक । अल्टोना, किएल का मुख्य स्टेशन और हैम्बर्ग का छोटा सा शहर है जो हमें अपनी मंज़िल के किनारे तक ले जाएगा। अब तक 20 मिनट का सफर पूरा हुआ था और हम हॉलस्टीन में थे और हमारे सामान स्टेशन पहुँच गए थे। वहाँ हमारे सामानों का वजन नापने, पर्ची लगाने के बाद उसे एक बड़ी गाड़ी में डाल दिया गया। हमने अपना टिकट लिया और हम दोनों ठीक 7 बजे, एक दूसरे के आमने-सामने, ट्रेन की प्रथम श्रेणी में बैठे थे। मौसाजी कुछ नहीं बोल रहे थे। वो अपने पत्रों में खोये हुए ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 6

चैप्टर 6 आइसलैंड की तरफ प्रस्थान। आखिर में यहाँ से भी जाने का समय आ गया। एक रात पहले मिस्टर थॉम्पसन ने, आइसलैंड के राज्यपाल बैरन ट्रैम्प, पादरी के सहायक एम०पिक्टर्सन और रिकिविक नगर के महापौर एम०फिनसेन को दिखाने वाले पहचान पत्र, लाकर हमें दे दिया।दो तारीख के भोर में करीब दो बजे हमारे सामान को जहाज पर लाद दिया गया। जहाज के कप्तान ने हमें एक कमरा दिखाया जहाँ दो बिस्तर लगे थे, कमरा ना ही रोशनदान था और ना ही आरामदायक। लेकिन विज्ञान के लिए कष्ट उठाना ही पड़ता है। क्या मस्त हवा चल रही है। मौसाजी ने ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 7

चैप्टर 7 बातें और खोज। जब मैं लौटकर आया तो रात का भोजन तैयार था। मौसाजी बड़े चाव से मज़ा ले रहे थे। जहाज के खान-पान ने वैसे भी उनकी अंतड़ियों को खाड़ी बना दिया था। अभी का भोजन डैनिश था जो कुछ खास नहीं था लेकिन उनकी खातिरदारी ने खाने का मज़ा दोगुना कर दिया था।विज्ञान से सम्बंधित कुछ बातें हुईं और एम०फ्रिड्रिक्सन ने मौसाजी से पुस्तकालय के बारे में राय जानना चाहा। पुस्तकालय? मौसाजी ने तेज़ आवाज़ में कहा, मुझे तो ऐसा लगा जैसे भिखारी के घर में बेवजह के संस्करणों को संग्रह किया गया है। क्या? एम०फ्रिड्रिक्सन भी ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 8

चैप्टर 8 शिकारी - हमारा दिशानिर्देशक। उस दिन रिकिविक के पास शाम के वक़्त मैं लहरों के पास टहलने गया, लौटा तो अपने बिस्तर पर लेटा और लेटते ही सो गया। मेरी जब नींद खुली तो अगले कमरे से मौसाजी तेज़ आवाज़ में किसी से बात कर रहे थे। मैं तुरंत उठकर सुनने लगा। वो किसी लम्बे-चौड़े हरक्यूलिस जैसी शख्सियत से डैनिश भाषा में बात कर रहे थे। वो आदमी देखने से बहुत शक्तिशाली लगता था। चेहरे से मामूली, अनाड़ी और बड़े से सिर पर निकली हुई उसकी आँखें शातिर और तेज़ थी। इंग्लैंड के लाल रंग से ज़्यादा ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 9

चैप्टर 9 हमारी शुरुआत - जोखिमों से मुलाकात। जब हमने अपनी खतरनाक और रोमांचक यात्रा शुरू की तो बादल लेकिन स्थिर थे। हमें ना प्रचण्ड गर्मी से डरना था, ना ही मूसलाधार बारिश से। दरअसल, यात्रियों के लिए मौसम सबसे सही था।घुड़सवारी मुझे वैसे भी पसंद थी लेकिन एक अनजान देश में आसानी से उसका लुत्फ लेना अलग अनुभव दे रहा था।मुझे ये यात्रा सुखद लग रही थी, जीवन की चाह, आज़ादी, संतुष्टि, सब मिल रहा था। सच ये था कि मेरी आत्मा इतनी खुश थी कि मैं अपने पहले कहे गए बकवास यात्रा वाली बात से सहमत नहीं ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 10

चैप्टर 10 आइसलैंड की यात्रा। किसी ने कभी नहीं सोचा होगा कि पृथ्वी के इस हिस्से में रात जगमगाती होगी। दरअसल, आइसलैंड में जून-जुलाई के महीने में सूर्य-अस्त नहीं होता।हालाँकि उम्मीद से ज़्यादा मौसम के तापमान में गिरावट थी। ठंड थी लेकिन इससे मेरे भूख को कोई फर्क नहीं पड़ता था। और यहाँ भी एक घर ने हमारी खातिरदारी के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए।घर एक मामूली से मज़दूर का था लेकिन खातिरदारी राजसी था। हम जैसे ही दरवाजे पर पहुँचे उसने आगे बढ़कर हाथ के इशारे से अंदर आने के लिए कहा।साथ चलना मुश्किल था इसलिए हम उसके ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 11

चैप्टर 11 स्नेफल्स की ओर। लावा से बने मैदानी इलाकों पर तीस झोपड़ियों का ग्राम है स्टैपी, जहाँ ज्वालामुखी के बीच से धूप की रोशनी छनकर आती है। इन मैदानी इलाकों के फैलाव के साथ हर कहीं अग्नि तत्व से बने पत्थरों का भी साम्राज्य है।इन पत्थरों को असिताश्म कहते हैं जो बादामी रंग में आग्नेय तत्व के हैं। ये इतने भिन्न होते हैं कि इनका एक समान रूप देखना असम्भव लगता है। ऐसा लगता है जैसे, इन्सानों की तरह यहाँ भी प्रकृति ने ज्यामितीय औजारों से हर पत्थर को तराश दिया है। कहीं ढेरों पत्थर के अम्बार हैं, ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 12

चैप्टर 12 स्नेफल्स की चढ़ाई। जिस साहसी प्रयोग की तरफ हम बढ़े थे उसका पहला चरण ही पाँच हज़ार की ऊँचाई पर था। इस द्वीप के पर्वतीय श्रृंखलाओं में से स्नेफल्स सबसे जुदा और अद्वितीय है। इसके दो शिखरों का होना इसे सबसे अनूठा बनाता है। जब हमने चलना शुरू किया था तो धुँधले बादलों की वजह से ये दिख नहीं रहे थे। बस चोटी से निचले हिस्से पर जो बर्फ बिछी थी वही किसी गुम्बद पर सफेद पुताई जैसे दिख रहे थे।यहाँ से इसकी शुरुआत ने मुझे विस्मित कर दिया था। अब हमने शुरुआत कर दी थी तो ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 13

चैप्टर 13 स्कारतरिस की परछाईं। जल्दी ही और आसानी से भोजन निपटाने के बाद उस खाली खोह में सबने किया जो उनके लिए सम्भव था। समुद्र तल से पाँच हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर, खुल आकाश के नीचे सख्त बिस्तर, दुःखदायी स्तिथि और असंतोषजनक आसरा था।हालाँकि इससे पहले ऐसी एक भी रात नहीं गुज़री थी जब मुझे चैन की नींद आयी हो। मैंने कोई सपना तक नहीं देखा। मौसाजी के कहे अनुसार भरपूर थकान के बाद का ये असर हुआ था।अगले दिन सुबह जब सूर्य की किरणों और दिन के उजालों में हम उठे तो ठंड से लगभग जमे ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 14

चैप्टर 14 सफर की असली शुरुआत। हमारे सफर की असल शुरुआत तो अब हुई थी। अब तक हमने साहस लगन से हर मुश्किल को पार कर लिया था। हम थके भी फिर भी बढ़े। अब हमारा सामना उन भयानक खतरों से होना था जिससे हम अनभिज्ञ थे।मैंने अभी तक भयानक कुण्ड में झाँकने की हिम्मत नहीं की थी जिसमें हमें उतरना था। आखिरकार वो समय आ गया जिससे मैं नहीं बच सकता था। मेरे पास अभी भी मौका था कि इस मूर्खतापूर्ण कार्य से मना कर दूँ या पीछे हट जाऊँ। लेकिन में हैन्स की हिम्मत के आगे लज्जित ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 15

चैप्टर 15 नीचे उतरना जारी रहा। अगले दिन, सुबह 8 बजे, भोर जैसे दिन ने हमें जगाया। अंदर रोशनी कर ऐसे आ रही थी जैसे किसी प्रिज्म से हज़ार रोशनियाँ फुट रहीं हों।हमें सबकुछ साफ और आसानी से दिख रहा था। तो, हैरी मेरे बच्चे, प्रोफ़ेसर ने उत्साहित होते हुए अपने हाथों को सहलाते हुए कहा, तुम्हें क्या कहना है? तुमने कभी कोनिग्स्टर्स के हमारे घर में इतनी शान्त रात बितायी थी? ना किसी गाड़ी के पहियों का शोर, ना फेरीवालों की चीखें, ना नाविकों या कहारों के अपशब्द! मौसाजी, जैसा कि अभी हम सब इतने नीचे हैं, लेकिन मुझे इस ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 16

चैप्टर 16 पूर्वी सुरंग। अगले दिन मंगलवार 20 जून, सुबह छः बजे हम अपने आगे के सफर के लिए से तैयार थे।अब हम आगे जिन रास्तों पर बढ़ रहे थे वो बिल्कुल वैसे ही थे जैसे जर्मनी में पुराने ज़माने के घरों में सीढ़ियाँ होती थीं। करीब बारह बजकर सत्रह मिनट होने पर हम वहाँ रुके जहाँ हैन्स पहले से पहुँच कर अचानक से रुका हुआ था। आखिर में, मौसाजी ने चीखते हुए कहा, हम इस खाँचे के अंतिम छोर पर आ गए हैं। मैं सबकुछ देखकर अचरज में था। हमारे सामने चार रास्ते थे जो संकरे और गहरे थे, जिनमें ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 17

चैप्टर 17 गहराई में - कोयले की खदान। हम सच में सीमित राशन पर निर्भर रहना था। हमारे रसद से तीन दिन के लायक थे। इसका एहसास मुझे रात्रिभोज के समय हुआ। और सबसे बुरी बात ये थी कि हम उन पत्थरों के बीच थे जहाँ पानी मिलना नामुमकिन था।मैंने पानी के अकाल के बारे में पड़ा था और हम जहाँ थे, वहाँ कुछ समय बाद हमारे सफर और ज़िन्दगी का अंत होना तय था। लेकिन ये सब बातें मौसाजी से नहीं कह सकता था। वो प्लेटो के किसी कथन को सुना देते।अगले दिन हम सब बस बढ़े जा ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 18

चैप्टर 18 वो अनुचित मार्ग। अगले दिन तड़के ही हमने शुरुआत कर दी थी। हम समय बर्बाद नहीं कर थे। मेरे हिसाब से हमें पाँच दिन लगने थे वहाँ पहुँचने में जहाँ से या गलियारा बँटा हुआ था।वापसी में हमें कितनी परेशानी होनी है इसका बखान मुश्किल है। मौसाजी ने अपनी सभी गलतियों को मानते हुए अपने गुस्से के कड़वे घूँट को पी लिया था। हैन्स के समर्पित और प्रशांत व्यवहार की वजह से मुझे दुःख और शिकायतें थीं। इसलिए उसकी बदकिस्मती पर मुझे कोई अफसोस नहीं हुआ।लेकिन एक तसल्ली ज़रूर थी। इस मोड़ पर आकर हारने के मतलब ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 19

चैप्टर 19 पश्चिमी सुरंग - नया रास्ता। अब हमारा प्रस्थान दूसरे गलियारे की तरफ हो चुका था। हैन्स ने की तरह आगे रहते हुए मोर्चा संभाला। हम सौ गज से ज़्यादा दूर नहीं गए थे तभी प्रोफ़ेसर ने दीवारों को परखना शुरू किया। ये आदिकालीन के उपज हैं, मतलब हम सही मार्ग में है, आगे सफलता मिलेगी! जब धरती के ऊपर थोड़ी शांति होती है तभी उसके नीचे कुछ हलचल भी होता रहता है। उन्हीं हलचलों से दरार, गड्ढे और गार बनते हैं। ये गलियारा भी उन्हीं गारों में से एक था जिससे ग्रेनाइट उत्पन्न होने के बाद बहे थे। हज़ार ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 20

चैप्टर 20 पानी कहाँ है? उस थकान और बेहोशी की हालत में उस वक़्त मेरे सुस्त दिमाग में कई सवाल आ रहे थे कि किस वजह से हैन्स उठा होगा। और हर बार कोई वाहियात और बकवास जवाब ही निकल कर आ रहे थे जो बेतुके होते थे। मुझे लग रहा था मैं थोड़ा या पूरा पागल हो चुका हूँ।अचानक नीचे की तरफ से कुछ आहटें हुईं, जिसे सुनकर तसल्ली हुई। वो उसके चलने के आवाज़ थे। हैन्स लौट रहा था।और तभी रोशनी भी धीरे-धीरे मद्धम से तेज होने लगी थी। तब तक हैन्स करीब आ चुका था।उसने मौसाजी ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 21

चैप्टर 21 महासागर में। अगले दिन तक हम अपनी सारी थकान भूल चुके थे। सबसे पहले तो मैं प्यासा महसूस कर रहा था और मेरे लिए ये ताज्जुब की बात थी। दरअसल पानी की जो पतली धारा बह रही थी वो मेरे पैरों को भिगो रही थी, इसलिए किसी शुष्कता का एहसास नहीं हुआ।पेट भर कर हमने अच्छे से नाश्ता किया और वो पानी पिया जो हमने भरा था। मैं अपने आप को एकदम नया महसूस कर रहा था जो मौसाजी के साथ कहीं भी चलने के लिए तैयार हो। मैं सोचने लगा। जब मौसाजी जैसा दृढ़प्रतिज्ञ, हैन्स जैसा ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 22

चैप्टर 22 रविवार, भूमि के नीचे। रविवार की सुबह जब सबकी नींद खुली तो किसी भी चीज़ के लिए कोई जल्दी या हड़बड़ी नहीं थी। चूंकि पहले से निश्चित था कि आज सिर्फ आराम करेंगे वो भी इस बेमिसाल और अनजान गुफा में, तो ये सोच कर ही बहुत सुकून था। हम खुद इस माहौल में ढल चुके थे। मैंने तो चाँद, सूरज, तारे, पेड़-पौधे, घर या नगर के बारे में सोचना ही छोड़ दिया था। एक अजीब सी दुनिया में होकर हम इन सबके खयालों से दूर थे।ये चित्रमय कंदरा विशाल और अभूतपूर्व था। ग्रेनाइट की मिट्टी को ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 23

चैप्टर 23 अकेलापन। इस बात को सच में स्वीकारना होगा कि अब तक हमारे साथ सब अच्छा ही हुआ और मैंने भी कुछ ज़्यादा शिकायतें नहीं की थी। और अगर तकलीफें नहीं बढ़ीं, हम सही-सलामत अपने गंतव्य तक पहुँच सकते हैं। हमारे लिए वो बेमिसाल पल होगा! मैंने फिर से पुराने जोश के साथ प्रोफ़ेसर से बात करना शुरू कर दिया था। क्या मैं गंभीर था? दरअसल यहाँ सबकुछ इतना रहस्यमयी था कि समझना मुश्किल था कि मुझे क्यों इतनी जल्दी है।उस यादगार पड़ाव के बाद से रास्ते और ज़्यादा डरावने और खतरनाक हो गए थे बहुत ज़्यादा सीध ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 24

चैप्टर 24 लापता। किसी भी इंसानी भाषा में मेरे दुःख-दर्द व्यक्त नहीं हो सकते थे। मैं जैसे ज़िंदा दफन अब धीरे-धीरे भूख प्यास से तड़पकर मरने के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिख रहा था।वास्तविकता में मैं उन सूखे और सख्त चट्टानों पर रेंग रहा था। मैंने इससे पहले इतनी शुष्कता नहीं झेली थी।लेकिन मैंने खुद से जानना चाहा कि मैंने उस धारा का साथ कैसे छोड़ दिया? इसमें कोई दो राय नहीं कि उसे इसी गलियारे से गुज़रना था जिसमें मैं अभी हूँ। अब मुझे ध्यान आया कि क्यों मुझे अपने साथियों की आवाज़ नहीं सुनायी दे रहे ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 25

चैप्टर 25 गलियारे में कानाफूसी। आखिरकार जब मुझे होश आया तो मेरा चेहरा भीगा हुआ था, मैं समझ गया कि ये आँसुओं से भीगें हैं। कितने देर तक मैं बेहोश था, ये कहना मेरे लिए मुश्किल था। मुझे किसी भी समय का ध्यान नहीं था। आजतक मैं ऐसे अकेलेपन में नहीं पड़ा था। यहाँ मैं पूरी तरह से परित्यक्त था।गिरने की वजह से मेरा खून बहुत बह गया था। ऐसा लगा जैसे मैंने किसी की ज़िंदगी बचाने के लिए खून बहाया हो। और ऐसा पहली बार हुआ था। मैं मरा क्यों नहीं? अगर मैं ज़िंदा हूँ, मतलब अभी कुछ ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 26

चैप्टर 26 पुनः प्राप्ति की ओर। जब मुझे होश आना शुरू हुआ और अपनी मौजूदगी का एहसास होने लगा, देखा मेरे चारों ओर हल्का अँधेरा है और मैं एक नर्म मोटी चादर पर लेटा हुआ था। मौसाजी मुझे देख रहे थे, उनकी आँखें मुझपर टिकी हुई थीं, उनके चेहरे पर गहरा दुःख और आँखों में आँसू थे। मैंने जैसे ही पहली सांस ली, उन्होंने मेरे हाथों को थाम लिया। उन्होंने जैसे ही मेरे आँखों को खुलते देखा, वो ज़ोर से चीखने लगे।"ये जीवित है। ज़िंदा है ये।""हाँ मेरे प्यारे मौसाजी।" मैं बुदबुदाया।"मेरे बच्चे," उन्होंने अपने सीने से मुझे चिपकाते ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 27

चैप्टर 27 मध्य सागर। पहले तो मुझ कुछ भी नहीं दिखा। अचानक से दीप्तिमान प्रकाश को देखकर मेरी आँखें गयीं थीं, इसलिए पहले मुझे अपनी आँखें बंद करनी पड़ी। फिर मैंने धीरे-धीरे आँखों को खोला और देखते ही इतना विस्मित था कि चुप हो गया। मैंने कभी किसी सपने में भी ऐसे किसी दृश्य की कल्पना नहीं की थी। "ये तो समुद्र है! समुद्र है ये!" मैं चिल्लाया।"हाँ," मौसाजी ने एक रौबदार आवाज़ में कहा, "ये मध्य सागर है। भविष्य में मेरे इस खोज को कोई नकार नहीं पाएगा इसलिए इसके नामकरण पर मेरा अधिकार है।"ये एक सच था। ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 28

चैप्टर 28 बेड़े की तैयारी। अगले दिन की सुबह में अपने आश्चर्य के साथ जब मैं उठा तो पूरी से स्वस्थ था। मैंने सोचा कि मेरी लंबी बीमारी और कष्टों के बाद एक स्नान आनंददायक होगा। इसलिए उठने के तुरंत बाद ही मैंने इस नए भूमध्य सागर के पानी में छलांग लगाई। स्नान से मैं शांत, ताजा और स्फूर्तिदायक महसूस कर रहा था।मैं बहुत तेज भूख के साथ नाश्ता करने के लिए वापस आ गया था। हैन्स, जो हमारा योग्य मार्गदर्शक था, अच्छी तरह से समझ गया था कि जिस तरह का खाना हमारे पास है इसे कैसे पकाना ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 29

चैप्टर 29 पानी पर - बेड़े की नाव। अगस्त के तेरहवें दिन हम यथासमय उठ गए थे। समय बिल्कुल गंवाना था। अब हमें एक नए प्रकार की सवारी से शुरुआत करनी थी, जिससे कि बिना थकावट के तेजी से आगे बढ़ने में सहायता हो।लकड़ी के दो टुकड़ों से बना एक मस्तूल था जिसे अतिरिक्त ताकत देने के लिए एक और वैसा ही बनाया गया और हमारे बिस्तर की चादर से बाँध दिया गया था। सौभाग्य से हमें मस्तूल की ज़रूरत नहीं थी, और इन सारी कोशिशों से सब पूरी तरह से ठोस और योग्य दिख रहा था।सुबह छह बजे, ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 30

चैप्टर 30 सरीसृप से प्रचण्ड द्वंद। शनिवार, 15 अगस्त। समुद्र अभी भी अपनी उस मनहूसियत की एकरसता को बरकरार हुए था। वही धूसर रंजीत रूप में जिसपर वही शाश्वत चमक था। कहीं से भी ज़मीन नहीं दिख रहा था। जितना हम आगे बढ़ते, क्षितिज हमसे उतना ही पीछे हटता प्रतीत हो रहा था।मेरा सिर, अभी भी सुस्त और मेरे असाधारण सपनों के प्रभावों से भारी था जिसे मैं अभी तक अपने दिमाग से मिटा नहीं पा रहा था।प्रोफ़ेसर, जिन्होंने ये सपना नहीं देखा है, वो अपनी चिड़चिड़ाहट और बेहिसाब हास्य में कहीं गुम थे। कम्पास के हर बिंदु पर ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 31

चैप्टर 31 समुद्री राक्षस बुधवार, 19 अगस्त। सौभाग्य से हवा, जो वर्तमान में कुछ हिंसात्मक तरीके से बह रही ने हमें अद्वितीय और असाधारण संघर्ष के दृश्य से बचने का मौका दे दिया था। हैन्स अपने उसी सामान्य अभेद्य शांति के साथ पतवार थामे हुए था। मेरे मौसाजी, जो थोड़े समय के लिए इस समुद्री लड़ाई की नवीन घटनाओं की वजह से अपने अवशोषित चिंतन से विमुख हुए थे, एक बार फिर से पुराने अध्ययन की ओर वापस आ गए। उनकी आँखें व्यापक रूप से समुद्र के ऊपर अधीरता से गड़ी हुई थीं।हमारी यात्रा अब नीरसता के साथ एकरूपी ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 32

चैप्टर 32तत्वों की लड़ाई। शुक्रवार, 21 अगस्त। आज सुबह शानदार फव्वारा पूरी तरह से गायब हो गया था। हवा थी और हम तेजी से हेनरी द्वीप के पड़ोसियों को पीछे छोड़ रहे थे। अब तो उस शक्तिशाली स्तंभ के गर्जन भी सुनाई नहीं दे रहे थे।अगर इन परिस्थितियों में हम अपनी अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करें तो कह सकते हैं कि मौसम अचानक से बहुत जल्दी बदलने वाला है। वायुमंडल में धीरे-धीरे वाष्प से भर रहे हैं जो खारे पानी के निरंतर वाष्पीकरण द्वारा बनाई गई बिजली को अपने साथ ले जाते हैं; बादल भी धीरे-धीरे लेकिन समझदारी से समुद्र ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 33

चैप्टर 33हमारे मार्ग उलट गए। यहाँ मैं अपनी यात्रा से जुड़ी "मेरी पत्रिका" को विराम देता हूँ जिसे मैंने के बाद भी बचा लिया था। मैं अपनी कथा को उसी तरह आगे बढ़ता हूँ जैसा मैंने अपनी दैनिक पत्रिका को शुरू करने से पहले किया था।मेरे लिए अब यह कहना असंभव होगा कि भयानक झटका लगने पर जब चट्टानी किनारे पर बेड़ा को टिकाया गया तो क्या हुआ था। मैंने खुद को हिंसक रूप से उबलती लहरों में महसूस किया, और अगर मैं एक तयशुदा भयानक मौत से बच पाया था, तो यह सिर्फ वफादार हैन्स के दृढ़ संकल्प ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 34

चैप्टर 34एक खोज की यात्रा। मेरे लिए पूरी तरह से असंभव है कि मैं इस असाधारण खोज पर प्रोफ़ेसर हालत को सही तरीके से बता पाऊं। विस्मय, अविश्वास, और क्रोध को इस तरह से मिश्रित किया गया जैसे मुझे जगाना हो।अपने जीवन के पूरे क्रम में मैंने कभी किसी आदमी को पहले पल में इतना भीरू; और अगले ही पल इतना भड़का हुआ नहीं देखा था।अपनी समुद्री यात्रा के भयानक थकान और हम जिस भयानक खतरे से गुज़रे थे, वह सब अब बेकार हो चुका था। अब हमें उन्हें फिर से शुरू करना होगा।इतने दिनों की यात्रा के दौरान, ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 35

चैप्टर 35 खोज पर खोज। मेरे मौसाजी के विस्मित होने की वजह को पूरी तरह से समझने के लिए, इन शानदार और विद्वान पुरुषों के संकेत के लिए, ज़रूरी है कि जीवाश्मिकी के महत्व को स्पष्ट रूप से समझें, या जीवाश्म जीवन के विज्ञान को, जो पृथ्वी के ऊपरी क्षेत्रों पर हमारे प्रस्थान से कुछ समय पहले देखने को मिला था।28 मार्च, 1863 को फ्रांस के सोम्मे विभाग में, एबबेविल के पास मौलिन-क्विग्नन के विशाल खदानों में एम बाउचर डी पर्थेस के निर्देशन में कुछ खोजी काम कर रहे थे। काम के दौरान, वे अप्रत्याशित रूप से मिट्टी की ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 36

चैप्टर 36क्या है यह? एक लंबे और बोझिल समय तक हम हड्डियों के इस विशाल संग्रह में फँस गए इन सब की परवाह किए बग़ैर हम उत्सुक और जिज्ञासु बने आगे बढ़ने लगे। इस महान गुफा में और कौन से चमत्कार थे - वैज्ञानिक मनुष्यों के लिए और कौन से बेमिसाल खजाने थे? मेरी आँखें असीमित आश्चर्य के लिए तैयार थीं, मेरी कल्पना को कुछ नए और अद्भुत चीजों की उम्मीद थी।विशाल मध्य महासागर की सीमाएँ कुछ समय के लिए उन पहाड़ियों के पीछे गायब हो गईं थीं जहाँ के मैदानी जमीन पर हड्डियों का कब्जा था। उद्धता से ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 37

चैप्टर 37 रहस्यमयी खंजर। इस दौरान, हमने अपने पीछे उज्ज्वल और पारदर्शी जंगल छोड़ दिया था। हम विस्मय होने वजह से मूक थे, एक तरह की उदासीनता जो बगल में थी, उससे उबर गए थे। हम साथ होकर भी भाग रहे थे। यह एक ऐसा यथार्थ था, जो उन भयानक संवेदनाओं में से एक था जिसे हम कभी-कभी अपने सपनों में देखते हैं।सहज रूप से हम मध्य सागर की ओर बढ़ रहे थे, और मैं अभी यह नहीं बता सकता कि मेरे दिमाग से कौन से बेतुके खयाल गुजर रहे हैं, या मैं किस वजह से कोई नौटंकी कर ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 38

चैप्टर 38 कोई निकासी नहीं - चट्टानों के विध्वंस। जब से हमारे अद्भुत यात्रा की शुरुआत हुई, मैंने कई को अनुभव किया, कई भ्रमों से सामना हुआ। मुझे लगा मैं किसी भी आश्चर्य के लिए भावना विहीन हो गया था और मुझे विस्मित होने के लिए ना तो मैं कुछ देख सकता था और ना ही कुछ सुन सकता था।मैं उनके जैसे हो गया था, जो पूरी दुनिया घूमकर भी हर आश्चर्य से पूरी तरह से परितृप्त और अभेद्य ही रहते हैं।हालाँकि, मैंने जब इन दो अक्षरों को देखा, जो तीन सौ साल पहले उकेरा गया था, मैं मूक ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 39

चैप्टर 39 विस्फोट और उसके परिणाम। अगले दिन, जो कि अगस्त का सत्ताईसवां दिन था, हमारी चमत्कारिक भूमिगत यात्रा मनाई जाने वाली एक तारीख थी। मैं अब भी इसके बारे में कभी नहीं सोचता, क्योंकि मैं आतंक से काँप जाता हूँ। उस भयानक दिन को याद कर के ही मेरा दिल बेतहाशा धड़कने लगता है।इसके बाद से, हमारे कारण, हमारा निर्णय, हमारी मानवीय सरलता का होने वाली घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। हम पृथ्वी की महान परिघटनाओं के लिए खेल बनने जा रहे हैं!छः बजे हम सब उठ कर तैयार थे। घबड़ाया हुआ क्षण करीब आ रहा था ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 40

चैप्टर 40 विशालकाय वानर। अभी मेरे लिए मुश्किल था यह निर्धारित करना कि वास्तविक समय क्या हुआ था, लेकिन के बाद, मैंने मान लिया कि रात के दस बज रहे होंगे।मैं एक अचेत अवस्था में था, एक अधूरे स्वप्न में, जिसके दौरान मुझे कुछ आश्चर्यजनक दर्शन हुए। खूँखार प्राणी उस हाथी के आकार वाले शक्तिशाली चरवाहे के साथ अगल - बगल खड़े थे। विशालकाय मछलियाँ और जानवर अजीब तरह के कयास लगा रहे थे।बेड़ा अचानक से एक तरफ मुड़ा, गोल घूमते हुए, एक और सुरंग में प्रवेश किया - जहाँ इस बार सबसे विलक्षण तरीके की रोशनी थी। छत ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 41

चैप्टर 41 भूख। लंबे समय तक भूख लगना, कुछ समय का पागलपन है! मस्तिष्क जब आवश्यक भोजन के बिना काम पर हो तो सबसे शानदार धारणाओं से मन भर जाता है। इसलिए मुझे कभी नहीं पता था कि वास्तव में भूख का क्या मतलब है। अब मुझे इसे समझने की संभावना दिख रही थी। और फिर भी, तीन महीने पहले तक मैं अपनी भुखमरी की भयानक कहानी बता सकता था, जैसा कि मैंने सोचा था। एक बच्चे के रूप में मैं प्रोफ़ेसर के पड़ोस में अक्सर खोज किया करता था। मेरे मौसाजी ने हमेशा व्यवस्था पर काम किया, और ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 42

चैप्टर 42 ज्वालामुखीय कुपक। मनुष्य का संविधान इतना अजीब है कि उसका स्वास्थ्य विशुद्ध रूप से एक नकारात्मक मामला जितनी जल्दी भूख का प्रकोप शांत होता है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल होता है भूख का मतलब समझना। इसे आप केवल तभी समझते हैं जब आप इससे वास्तव में पीड़ित होते हैं। ऐसी धारणा कि ऐसे अभाव से किसी का पाला नहीं पड़ा होगा, ये बहुत ही बेतुकी बात है। एक लंबे उपवास के बाद, पेट भरने लायक रोटी और माँस, थोड़ा सा फफूंदीयुक्त बिस्किट और नमकीन बीफ ने हमारे साथ, हमारे पिछले सभी उदास और गुस्सैल विचारों पर विजय ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 43

चैप्टर 43 सुबह, आखिरकार! मैंने जब अपनी आँखें खोलीं तो मुझे लगा कि हैन्स ने बेल्ट के माध्यम से जकड़े हुए है। अपने दूसरे हाथ से उसने मेरे मौसाजी को सहारा दिया हुआ था। मैं गंभीर रूप से घायल नहीं था, लेकिन चोट के निशान साफ नजर आ रहे थे। एक पल के बाद मैंने चारों ओर देखा और पाया कि मैं एक पहाड़ की ढलान पर बैठा था जिससे एक से दो गज की दूरी पर खाई थी, जहाँ ज़रा सा ग़लत कदम मुझे उसके नीचे पहुँचा देता। हैन्स ने मुझे मौत से बचाया था, जब मैं विवर ...Read More

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 44 - अंतिम भाग

चैप्टर 44 यात्रा की समाप्ति। यह एक कथा का अंतिम निष्कर्ष है, जिसपर शायद वो लोग भी अविश्वास करेंगे कभी भी चकित हो जाते हैं। हालाँकि मैं मानव अविश्वसनीयता के खिलाफ सभी बिंदुओं पर तैयार हूँ। स्ट्रोम्बोलि के मछुआरों ने हमारा विनम्र रूप से स्वागत किया, जिन्होंने हमें जहाज के यात्रियों के रूप में माना था। उन्होंने हमें कपड़े और खाना दिया। अड़तालीस घंटे के बाद, 30 सितंबर को एक छोटा जहाज हमें मेसीना ले गया, जहाँ कुछ दिनों के रमणीय और पूर्ण भोजन ने हमें संभलने का मौका दिया। शुक्रवार, 4 अक्टूबर को, हम वाल्टर्न में अवतरित हुए, ...Read More