इतनी कृपा दिखना राघव, कभी न हो अभिमान, मस्तक ऊँचा रहे मान से, ऐसे हों सब काम। रहें समर्पित, करें लोक हित, देना यह आशीष, विनत भाव से प्रभु चरणों में, झुका रहे यह शीष। करें दुख में सुख का अहसास, रहे तन-मन में यह आभास। धर्म से कर्म, कर्म से सृजन, सृजन में हो समाज उत्थान, चलूं जब दुनिया से हे राम! ध्यान में रहे तुम्हारा नाम।
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जनजीवन - 1
हे राम! इतनी कृपा दिखना राघव, कभी न हो अभिमान, मस्तक ऊँचा रहे मान से, ऐसे हों काम। रहें समर्पित, करें लोक हित, देना यह आशीष, विनत भाव से प्रभु चरणों में, झुका रहे यह शीष। करें दुख में सुख का अहसास, रहे तन-मन में यह आभास। धर्म से कर्म, कर्म से सृजन, सृजन में हो समाज उत्थान, चलूं जब दुनिया से हे राम! ध्यान में रहे तुम्हारा नाम। प्रभु दर्शन मन प्रभु दरशन को तरसे विरह वियोग श्याम सुन्दर के, झर-झर आँसू बरसे। इन अँसुवन से चरण तुम्हारे, धोने को मन तरसे। ...Read More
जनजीवन - 2
दूध और पानी प्रभु ने पूछा- नारद! भारत की संस्कारधानी जबलपुर की ओर क्या देख रहे हो? बोले- प्रभु ! देख रहा हूँ गौ माता को नसीब नहीं है चारा, भूसा या सानी, बेखौफ मिलाया जा रहा है दूध में पानी। स्वर्ग में नहीं मिलता देखने ऐसा बुद्धिमत्तापूर्ण हुनर, मैं भी इसे सीखने जा रहा हूँ धरती पर। प्रभु बोले- पहले अपना बीमा करवा लो अपने हाथ और पैर मजबूत बना लो। ग्वाला तो गाय लेकर भाग जाएगा, अनियंत्रित यातायात में कोई कार या डम्पर वाला तुम्हें टक्कर मारकर यमलोक पहुँचाएगा। दूध को छोड़ो और अपनी सोचो यहाँ ...Read More
जनजीवन - 3
दस्तक मेरे स्मृति पटल पर देंगी दस्तक तुम्हारे साथ बीते हुए की मधुर यादें, ये हैं धरोहर मेरे अन्तरमन की इनसे मिलेगा कभी खुशी कभी गम का अहसास जो बनेगा इतिहास यही बनेंगी सम्बल दिखलाएंगी सही राह मेरे मीत मेरी प्रीत भी रहेगी हमेशा तुम्हारे साथ तुम्हारे हर सृजन में बनकर मेरा अंश यही रहेगी मेरी और तुम्हारी सफलता का आधार जीवन में करेगी मार्गदर्शन और देगी दिशा का ज्ञान। ये न कभी खत्म हुई है न कभी खत्म होगी। आजीवन देती रहेंगी तुम्हारे साथ सागर से भी गहरी है तुम्हारी गंभीरता और आकाश से भी ऊँची हो ...Read More
जनजीवन - 4
अंत से प्रारंभ। माँ का स्नेह देता था स्वर्ग की अनुभूति, उसका आशीष भरता था जीवन में एक दिन उसकी सांसों में हो रहा था सूर्यास्त हम थे स्तब्ध और विवके शून्य देख रहे थे जीवन का यथार्थ हम थे बेबस और लाचार उसे रोक सकने में असमर्थ और वह चली गई अनन्त की ओर। मुझे याद है जब मैं रोता था वह हो जाती थी परेशान, जब मैं हंसता था वह खुशी से फूल जाती थी, वह सदैव सदाचार, सद्व्यवहार और सद्कर्म पीड़ित मानवता की सेवा, राष्ट्र के प्रति समर्पण और सेवा व त्याग की देती थी ...Read More
जनजीवन - 5
चिन्ता, चिता और चैतन्य चिन्ता, चिता और चैतन्य जीवन के तीन रंग। जब होगी खत्म तब होगा जीवन में आनन्द का शुभारम्भ। चिन्ता देती है विषाद, दुख और परेशानियां और देती है सकारात्मकता मे अवरोध का अहसास इससे हममें जागता है चिन्तन। चिन्ता के कारण पर धैर्य, साहस और निडरता से करो प्रहार जिससे होगा इसका संहार। ऐसा न होने पर चिन्ता तुम्हें ले जाएगी चिता की ओर तुम्हारे अस्तित्व को समाप्त कर देगी। चिन्ताओं से मुक्ति देगी कलयुग में सतयुग का आभास सूर्योदय से सूर्यास्त तक चैतन्य में जीवन जीने का हो प्रयास परम पिता परमेश्वर से ...Read More
जनजीवन - 6
आस्था और विश्वास आस्था और विष्वास हैं जीवन का आधार दोनों का समन्वय है सृजनशीलता व विकास। देता है संतुष्टि और आस्था से मिलती है आत्मा को तृप्ति। इनका कोई स्वरूप नहीं पर हर क्षण कर सकते हैं इनका एहसास व आभास। विश्वास से होता है आस्था का प्रादुर्भाव, किसी की आस्था एवं विश्वास पर कुठाराघात से बड़ा नहीं है कोई पाप, परमात्मा के प्रति हमारी आस्था और विश्वास दिखाते हैं हमें सही राह व सही दिशा बहुजन हिताय व बहुजन सुखाय हो हमारी आस्था और विश्वास यही होगा हमारी सफलता का प्रवेश द्वार। ...Read More
जनजीवन - 7
भक्त और भगवान उसका जीवन प्रभु को अर्पित था वह अपनी सम्पूर्ण श्रृद्धा और समर्पण के साथ रहता था प्रभु की भक्ति में। एक दिन उसके दरवाजे पर आयी उसकी मृत्यु करने लगी उसे अपने साथ ले जाने का प्रयास, लेकिन वह हृदय और मस्तिष्क में प्रभु को धारण किए आराधना में लीन था मृत्यु करती रही प्रतीक्षा उसके अपने आप में आने का वह नहीं आया और मृत्यु का समय बीत गया उसे जाना पड़ा खाली हाथ कुछ समय बाद जब उसकी आँख खुली उसे ज्ञात हुआ सारा हाल वह हुआ लज्जित हाथ जोड़कर नम आँखों से ...Read More
जनजीवन - 8
समय और जीवन कौन कहता है कि समय निर्दय होता है,वह तो तरुणाई की कथा जैसा होता मधुर और प्रीतिमय, वह यौवन के आभास सा होता है कभी खट्टा और कभी मीठा। उन मोहब्बत के मारों की सोचो जिन्हें वक्त और जवानी ने दगा दे दिया। उनकी भावनायें बन जाती हैं आंसुओं का दरिया, उन्हें जीना पड़ता है इसी मजबूरी मे, समय उन्हें देता है दुखो की अनुभूति वे जीवन भर भरते हैं आहें छोड़ते है ठण्डी सांसें। समय उन्हीं पर मेहरबान होता है जो समझ लेते हैं समय को समय पर। ऐसे लोग शहंशाह की तरह जीते ...Read More
जनजीवन - 9
हे माँ नर्मदे! हे माँ नर्मदे! हम करते हैं आपकी स्तुति और पूजा सुबह और शाम आप हमारी आन बान शान बहता हुआ निष्कपट और निश्चल निर्मल जल देता है माँ की अनुभूति चट्टानों को भेदकर प्रवाहित होता हुआ जल बनाता है साहस की प्रतिमूर्ति जिसमें है श्रृद्धा, भक्ति और विश्वास पूरी होती है उसकी हर आस माँ के आंचल में नहीं है धर्म, जाति या संप्रदाय का भेदभाव, नर्मदा के अंचल में है सम्यता, संस्कृति और संस्कारों का प्रादुर्भाव, माँ तेरे चरणों में अर्पित है नमन बारंबार। अनुभव अनुभव अनमोल ...Read More
जनजीवन - 10
भ्रूण हत्या उसकी सजल करुणामयी आँखों से टपके दो आँसू हमारी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारो पर लगा हैं प्रश्नचिन्ह? कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध और अमानवीयता की पराकाष्ठा है, सभी धर्मों में यह है महापाप, समय बदल रहा है अपनी सोच और रूढ़ियों में लायें परिवर्तन, चिन्तन, मनन और मंथन द्वारा सकारात्मक सोच के अमृत को आत्मसात किया जाये लक्ष्मीजी की करते हो पूजा पर कोख में पल रही लक्ष्मी का करते हो तिरस्कार उसे जन्म के अधिकार से वंचित मत करो घर आई लक्ष्मी को प्रसन्नता से करो स्वीकार ऐसा जघन्य पाप किया तो लक्ष्मी के ...Read More
जनजीवन - 11
जीवन का क्रम मेघाच्छादित नील-गगन गरजते मेघ और तड़कती विद्युत भी आकाश के अस्तित्व और अस्मिता को नहीं कर पाते, वायु का प्रवाह छिन्न-भिन्न कर देता है मेघों को, आकाश वहीं रहता है लुप्त हो जाते हैं मेघ। ऐसा कोई जीवन नहीं जिसने झेली न हों कठिनाइयाँ और परेशानियाँ, ऐसा कोई धर्म नहीं जिस पर न हुआ हो प्रहार, जीवन और धर्म दोनों अटल हैं। मानव रखता है सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टिकोण, सकारात्मक व्यक्तित्व कठिनाइयों से संघर्ष कर चिन्तन और मनन करके कठिनाइयों को पराजित कर जीवन को सफल करता है नकारात्मक व्यक्तित्व पलायन करता है समाप्त हो ...Read More