आ क्यू की सच्ची कहानी

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कई बरस से आ क्यू की सच्ची कहानी लिखने की सोच रहा था, किन्तु उसे लिख डालने की इच्छा होते हुए भी मन में दुविधा बनी थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मैं उन लोगों में नहीं, जो लेखन से गौरव अर्जित करते हैं। कारण यह है कि सदा एक अमर व्यक्ति के कारनामों का चित्रण करने के लिए सदा एक अमर लेखनी की जरूरत होती है व्यक्ति लेखनी के कारण भावी पीढ़ी में ख्याति प्राप्त करता है और लेखनी व्यक्ति के कारण। अंत में यह पता नहीं चल पाता कि कौन किसके कारण ख्याति अर्जित करता है। आखिर आ क्यू की कहानी लिखने का विचार प्रेत की तरह मेरे मस्तिष्क पर हावी हो गया।

Full Novel

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 1

कई बरस से आ क्यू की सच्ची कहानी लिखने की सोच रहा था, किन्तु उसे लिख डालने की इच्छा हुए भी मन में दुविधा बनी थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मैं उन लोगों में नहीं, जो लेखन से गौरव अर्जित करते हैं। कारण यह है कि सदा एक अमर व्यक्ति के कारनामों का चित्रण करने के लिए सदा एक अमर लेखनी की जरूरत होती है व्यक्ति लेखनी के कारण भावी पीढ़ी में ख्याति प्राप्त करता है और लेखनी व्यक्ति के कारण। अंत में यह पता नहीं चल पाता कि कौन किसके कारण ख्याति अर्जित करता है। आखिर आ क्यू की कहानी लिखने का विचार प्रेत की तरह मेरे मस्तिष्क पर हावी हो गया। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 2

आ क्यू के कुलनाम, व्यक्तिगत नाम और जन्म स्थान से संबंधित अनिश्चितता के अतिरिक्त उसके अतीत के बारे में कुछ अनिश्चितता बनी हुई है। कारण यह है कि वेइच्वाङ के लोगों ने उसके 'अतीत' पर जरा भी ध्यान दिए बिना उसकी सेवाओं का उपयोग किया या उसका मजाक उड़ाया। आ क्यू खुद भी इस विषय में मौन रहता, सिर्फ ऐसे अवसर को छोड़कर, जबकि उसका किसी से झगड़ा हो जाता, तो उसकी ओर देखता हुआ वह बोल पड़ता, किसी समय हमारी दशा तुमसे अधिक अच्छी थी। तुम अपने को आखिर समझते क्या हो? ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 3

हालाँकि आ क्यू सदा विजय प्राप्त करता जाता था, फिर भी उसे प्रसिद्धि सिर्फ तभी हासिल हुई, जब चाओ ने उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की तकलीफ उठाई। बेलिफ के हाथ में दो सौ ताँबे के सिक्के रखने के बाद वह गुस्से से जमीन पर लेट गया। बाद में अपने आपसे कहने लगा, आजकल दुनिया न मालूम कैसी हो गई है, बेटे अपने बाप को पीटने लगे हैं... तब वह चाओ साहब की प्रतिष्ठा के बारे में सोचने लगा, जिन्हें अब वह अपना बेटा समझने लगा था। धीरे-धीरे उसका जोश ऊँचा उठता गया। वह उठा और युवक विधवा अपने पति की कब्र पर गीत की पक्तियाँ गुनगुनाता हुआ शराबखाने में जा पहुँचा। उस समय अवश्य उसे महसूस हुआ कि चाओ साहब का रुतबा ज्यादातर लोगों से थोड़ा ऊपर है। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 4

कुछ विजेता ऐसे होते हैं, जो अपनी जीत से तब तक खुश नहीं होते, जब तक उनके प्रतिद्वंद्वी बाघ बाज की तरह खूँखार न हों, अगर उनके प्रतिद्वंद्वी भेड़-बकरी या मुर्गी की तरह डरपोक हों, तो उन्हें अपनी जीत बिल्कुल खोखली प्रतीत होती है। कुछ दूसरे विजेता ऐसे होते हैं, जो अपनी सभी प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़कर, सभी शत्रुओं को मौत के घाट उतारकर या उनसे आत्मसमर्पण करवाकर और सरासर नाक रगड़वाकर यह महसूस करने लगते हैं कि उनका शत्रु प्रतिद्वंद्वी या मित्र नहीं रहा, केवल स्वयं ही रह गए हैं सर्वोच्च, एकाकी, निराश और परित्यक्त। तब वे अपनी जीत को केवल एक दुखांत घटना समझने लगते हैं, परन्तु हमारा हीरो इतना कमजोर नहीं था। वह सदा विजयोल्लास से भरा रहता था। यह शायद इस बात का प्रमाण था कि चीन नैतिक दृष्टि से बाकी दुनिया की तुलना में श्रेष्ठ है। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 5

चाओ परिवार के सामने नाक रगड़ने और सारी शर्तें मान लेने के बाद आ क्यू हमेशा की तरह कुल-देवता मंदिर में लौट आया। सूरज डूब गया था। उसे कुछ अजीब-सा लग रहा था। काफी विचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुँचा कि शायद नंगी पीठ होने के कारण ही उसे ऐसा महसूस हो रहा है। उसे याद आया, उसके पास एक पुरानी अस्तरवाली जाकिट अब भी मौजूद है। वह जाकिट पहनकर लेट गया। आँख खुली तो देखा, सूरज की रोशनी पश्चिम दीवार के ऊपर तक पहुँच चुकी है। अरे, सत्यानास हो गया। कहता हुआ वह उठा। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 6

उस बरस चंद्रोत्सव से पहले आ क्यू वेइच्वाङ में दिखाई नहीं दिया। उसके लौटने की खबर सुनकर हर आदमी करने लगा और पुरानी बातों को याद करके सोचने लगा कि इस बीच वह गया कहाँ था। इससे पहले दो-चार अवसरों पर जब आ क्यू शहर गया था, तो लोगों को पहले से ही बड़ी शान से सूचित कर गया था, इस बार उसने ऐसा नहीं किया, इसलिए उसके शहर जाने का किसी को पता ही न चला। शायद उसने कुल-देवता के मंदिर के बूढ़े पुजारी को बताया हो, लेकिन वेइच्वाङ की प्रथा के अनुसार शहर जाना केवल तभी महत्वपूर्ण समझा जाता था जब चाओ साहब, छ्येन साहब या काउंटी की सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी शहर जाते थे। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 7

सम्राट श्वान थुङ के शासन काल में तीसरे बरस नवें चंद्र मास की चौदहवीं तारीख को, जिस दिन आ ने अपना बटुआ चाओ पाए-येन को बेच दिया था, आधी रात के समय जब तीसरी घड़ी ने चौथा घंटा बजाया तो एक बड़े-से पालवाली विशाल नाव चाओ परिवार के घाट पर आकर लगी। यह नाव अँधेरे में उस समय किनारे लगी, जब गाँववाले गहरी नींद सो रहे थे, इसलिए उन्हें कानों-कान खबर नहीं लगी, लेकिन पौ फटने पर जब नाव वहाँ से जाने लगी, तो कई लोगों ने उसे देख लिया। खोज के बाद पता चला कि नाव प्रांतीय सरकारी परीक्षा में सफल प्रत्याशी की थी। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 8

वेइचवाङ को लोग दिन-ब-दिन आश्वस्त होते जा रहे थे। जो खबरें उनके पास पहुँच रही थीं उनके आधार पर यह बात समझ चुके थे कि क्रांतिकारियों के शहर में आने से कोई खास परिवर्तन नहीं आया। मजिस्ट्रेट अब भी सबसे बड़ा अफसर था, उसका मात्र पद बदल गया था, प्रांतीय परीक्षा में सफल प्रत्याशी को भी कोई पद - वेइचवाङ गाँव के लोगों के लिए इन पदों के नाम याद रखना संभव नहीं था - किसी तरह का कोई सरकारी पद दे दिया गया था। ...Read More

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आ क्यू की सच्ची कहानी - 9

चाओ परिवरा के घर चोरी होने पर वेइच्वाङ के अधिकतर लोग बड़े खुश हुए, पर वे सहम भी गए। क्यू इसका अपवाद न था, पर चार दिन बाद अचानक आधी रात के समय आ क्यू को घसीट कर शहर ले जाया गया। वह अँधेरी रात थी। एक सैनिक दस्ता, एक मिलिशिया दस्ता, एक पुलिस दस्ता और गुप्तचर विभाग के पाँच आदमी चुपचाप वेइच्वाङ पहुँचे और कुल-देवता के मंदिर के फाटक के सामने मशीनगन लगा कर, उन्होंने अँधेरे में मंदिर घेर लिया। आ क्यू बाहर नहीं भागा। बहुत समय तक मंदिर में तिनका भी नहीं मिला। कप्तान बेचैन हो उठा और उसने बीस हजार ताँबे के सिक्कों के इनाम का ऐलान कर दिया। बस, तभी दो मिलिशियामैनों ने साहस बटोरकर दीवार फाँदी और अंदर घुस गए। उनके सहयोग से शेष लोग भी तेजी से अंदर घुस गए और आ क्यू को बाहर घसीट लाए, तब तक वह होश में नहीं आया। ...Read More