तीसरे लोग

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नर्मदा नदी के तट पर जलती चिता की लपटों का आग्नेय रंग अस्ताचल में ढलते सूरज की लालिमा में विलीन होता चला जा रहा था। फाल्गुनी के विलाप के संग आज नर्मदा की लहरें भी " छाजिया " (मृत्यु पर किए जाने वाला समूह संताप) गा रही थी। उन लहरों में आज प्रणय का मधुर संगीत कहां ? बस थी तो केवल दग्ध हृदय का करुण क्रंदन। कुछ दिनों पहले तक यही लहरें साक्षी थी फाल्गुनी के प्रेम एवं स्मारक की बांसुरी से उठती मधुर तान की। शायद इसलिए लहरे आज उनके चिर बिछोह से हाहाकार करती प्रतीत हो

Full Novel

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तीसरे लोग - 1

1. नर्मदा नदी के तट पर जलती चिता की लपटों का आग्नेय रंग अस्ताचल में ढलते सूरज की लालिमा विलीन होता चला जा रहा था। फाल्गुनी के विलाप के संग आज नर्मदा की लहरें भी " छाजिया " (मृत्यु पर किए जाने वाला समूह संताप) गा रही थी। उन लहरों में आज प्रणय का मधुर संगीत कहां ? बस थी तो केवल दग्ध हृदय का करुण क्रंदन। कुछ दिनों पहले तक यही लहरें साक्षी थी फाल्गुनी के प्रेम एवं स्मारक की बांसुरी से उठती मधुर तान की। शायद इसलिए लहरे आज उनके चिर बिछोह से हाहाकार करती प्रतीत हो ...Read More

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तीसरे लोग - 2

2. वो-जनखा-सा देखनेवाला छोकरा किसना आज फिर गली के नुक्कड़ पर मसखरी करते आवारा लड़कों के बीच घिर गया। ! हय ! ए किसना ! उफ ! तेरी चाल तो किसी दिन हम सबकी जान ले लेगी। " तो दूसरा टुच्चाई शक्लवाला छाती पर एक हाथ धरे, किसना कौन रखा रे, तेरा नाम तो राधा होना चाहिए था राधा, क्यों भाई लोग ?" कहकर उसने अपने बाईं आंख दबाई तो बाकी लड़के उसके इस भद्दे मजाक पर मुंह फाड़े हंसने लगे। एक और शोहदा-सा दिखनेवाला लौंडा, उसने कुछ ज्यादा ही जोश दिखाते हुए किसना की कमर में चिटकोटी काटी, ...Read More

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तीसरे लोग - 3

3. डॉ. स्मारक कोठी की छत की मुंडेर पे बैठा एक के बाद एक सिगरेट फूंकता चला जा रहा पूर्णिमा का चांद समुंदर की लहरों पर चांदी-सी छटा बिखेर रहा था और उन्मादिनी लहरें किसी जहरीले भुजंग-सी फुंकार मार-मारकर साहिल पर सिर पटकते हुए श्वेत-फेन उगल रही थी। यूं तो चंद्रमा की धवल ज्योतस्ना गहन तमस को चीरते हुए स्फटिक-सी छटा बिखेर रही थी स्याह पृथ्वी पर, लेकिन क्या स्मारक के मन के गहन तिमिर को भेदने कोई आशा की किरण उपजी न थी या फिर उसके जीवन के चंद्रमा को ग्रहण ने सदा के लिए लील लिया था ...Read More

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तीसरे लोग - 4

4. पूर्णिमा का चांद अपने यौवन की पामीर पर था और समस्त अवनि एवं व्योम उसकी दूधिया आभा से उठे थे, किंतु अपार रूप को स्वामिनी, नववधू के समक्ष चंद्रमा भी स्वयं को हीन महसूस करता दिखाई दे रहा था। फाल्गुनी की प्रतीक्षारत उनींदीं पलकें पिया दरस को व्याकुल थी। तभी किसी की पदचाप से उसके हृदय की धड़कनें बढ़ गईं। धीमे-से पलकों को उठाया तो स्वामी के गौर युगल चरणों के दर्शन से धन्य हो उठी। लजाते हुए सेज से उठकर उसने श्रद्धा सहित पति की चरण रज को अपने मस्तक से लगाया । स्मारक के हाथ उसे ...Read More

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तीसरे लोग - 5

5. उस दिन चाचा का लठैत मंगलू पहलवान किसना का बुलावा लेकर उसके घर की चौखट पर लाठी पटकते आ खड़ा हुआ। अम्मा सुरसतिया ड्योढ़ी पर बैठी बथुए क साग बीन रही थी। मंगलू की ओर उसने प्रश्नसूचक द्रिष्टि से देखा। " परनाम चाची, किसनवा है का ? मालिक बुलाए हैं ऊका। कहे की छोरा ऐसे ही फजूल में धूम के बखत बिगाड़ रहा, चाहे तो मालिस (मालिश) ओर लिखा-पढ़ी का काम में लगाय देंगे। " भोली अम्मा ऐसे ही मिसिरजी के अहसानो तले दबी थी, यहां तक की उन्हें देवता का दर्जा दे डाला था। मिसिरजी का नाम ...Read More

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तीसरे लोग - 6

6. स्मारक इन दिनों ज्यादा से ज्यादा वक्त अस्पताल में मरीजों के बीच ही बिताने की चेष्टा करता। घर के समय का कोई ठिकाना नहीं था। आज बड़-सावित्री की पूजा है। विवाह के पश्चात पहला पूजन बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। सास के साथ-साथ बहु ने भी उपवास रखा था। अब मुंबई जैसी महानगरी में कंक्रीट के जंगल तो चारों ओर उग भी रहे हैं और आकाश को भी मुट्ठी में बांधना चाहते हैं, परंतु एक वट का वृक्ष पूजने के लिए उन्हें वर्सोवा से बोरीवली जाना पड़ा। हम शनौ:-शनौ: अपने रीति-रिवाजों को भूलते चले जा रहे हैं, ...Read More

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तीसरे लोग - 7

7. ट्रैन शायद किसी बड़े जंक्शन पर रुकी थी। किसना की अंतड़ियां मारे भूख और प्यास के सिकुड़ गई जेब में पैसे तो थे, पर उतरने की हिम्मत और ताकत नहीं थी उसकी भीतर। बगल में बैठे सहयात्री से कहा की उसकी जगह रोक के रखे और अपना रुमाल जगह बिछाकर नीचे उतर गया। बैठ-बैठ कमर और गर्दन अकड़ गई थी उसकी। सामने ही प्याऊ नजर आई तो ओक लगाकर जन्मों के प्यासे की तरह भरपेट पानी पीता ही चला गया। नजदीक के एक स्टॉल में कढ़ाई पर खोलते तेल पर तैराती फूली-फूली पुरियों की सौंधी महक ने पेट ...Read More

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तीसरे लोग - 8

8. न्यूयॉर्क स्मारक के लिए अजनबी शहर नहीं था। उसने स्वयं को एड्स की रोकथाम के अनुसंधान में डुबो | उनकी रिसर्च टीम रोज सोलह-सत्रा घंटे काम कर रही थी। चौबीस घंटों में से मुश्किल से उन्हें चार-पांच घंटों का समय अपने लिए मिलता थ। एक जज्बा, एक जुनून था रिसर्च टीम के प्रत्येक सदस्यों के भीतर कि जितना हो सके एच.आई.वी पॉजिटिव मरीजों को इलाज द्वारा रोगमुक्त करवा के एड्स तक पहुंचने की नौबत ना आने दी जाए। इसे चाहे हम पश्चिमी देशों की आधुनिक सभ्यता की असभ्य मानसिकता की देन कह लें, परंतु सामान्य नियमों का उल्लंघन ...Read More

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तीसरे लोग - 9

9. नीला आकाश शयमवर्णी मेघों का आवरण ओढ़े, ललचाई दृष्टि से अपनी ओर ताकती प्यास धरा को आज तृप्त के लिए उमड़-घुमड़ आगमन का संदेशा दे रहा था। उनकी सिंह गर्जना को सुनकर फाल्गुनी कालिदास रचित मेघदूत की यक्षिणी-सी सिहर उठी। स्मारक की सुकुमार छवि आज फिर उसकी सुप्त कामनाओं को निरंकुश करने लगी। लॉन में झूल रहे हिंडोले में बैठकर हौले-हौले पींगे मारती हुई एक गीत गुनगुना उठी --- 'रदीयड़ी रात मां, हूं ऐकली बेसी ने जोऊं तारी बाट रे ....' (विलाप करते रात्रि में, अकली बैठकर मैं तेरी राह देख रही हूं ...) वर्षा की मोटी-मोटी बूंदों ...Read More

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तीसरे लोग - 10

10. सात महीने बीत गए किसना को अन्ना शेट्टी के रेस्तरां में काम करते हुए। अन्ना उसकी लगन और से बेहद खुश थे। उन्होंने उसे वहां रेस्तरां में रहने की इजाजत भी दे दी थी। उनके और भी तीन पुरानी और भरोसेमंद नौकर वहीं रहते थे। किसना की मासूमियत और हंसमुख स्वभाव के कारण सारे नौकर उसे पसंद भी बहुत करते और उसे "भइयाजी" के नाम से ही पुकारते। इस संबोधन से बड़ा आश्चर्य होता था उसे फिर मालूम हुआ कि मुंबई में यूपी बिहार के लोगों को इसी नाम से संबोधित किया जाता है। अब तो किसना का ...Read More

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तीसरे लोग - 11

11. फाल्गुनी जी-तोड़ म्हणत कर रही थी अस्पताल इ निर्माण पर | अस्पताल लगभग बन के तैयार हो चुका और अब फर्नीचर तथा इंटीरियर डेकोरेशन का काम चल रहा था | अपने पति स्मारक के साथ-साथ फाल्गुनी का भी यही सपना था की अस्पताल की ख्याति देश-विदेश तक फैले | उसे न तो खाने की सुध रहती, न सोने की | शायद इसलिए उस का मुख म्लान दिखने लगा था | अपने लिए मानो बिलकुल उदासीन हो उठी थी | श्रृंगार करे भी तो किसके लिए | हंसबेन भी पुत्रवधु की संसार के प्रति उदासीनता और गिरती सेहत के ...Read More

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तीसरे लोग - 12

12. आज फिर खाना खाते ही किसना को जोरों की मतली आई | वह बाथरूम की ओर भागा और भी थोड़ा बहुत खाया था, सब वमन कर दिया | पिछले कुछ दिनों से यही सिलसिला चल रहा था | भूख तो बिलकुल मर गई थी | जबरदस्ती कुछ खाने का प्रयत्न भी करता तो पाचन क्रिया लेने से इंकार कर देती | भरा हुआ शरीर शेनै:शनै काठी हुआ जा रहा था और आँखों के नीचे स्याह गड्ढे पद गए थे | ऊर्जारहित शरीर को धम्म से बिस्तर पर छोड़ देता और सांसें फूलने लगती | म्लान, क्लांत और श्रीहीन ...Read More

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तीसरे लोग - 13

13. स्मारक और फाल्गुनी जिंदगी की कशमकश से उठ चुके थे | अब उनके पास जीने का एक उद्देश्य नि: स्वार्थ भाव से सेवा, सिर्फ सेवा। तभी तो दोनों सोच-समझकर अस्पताल का नामकरण किया 'अर्पण ' | बहु का सम्पूर्ण, उसकी निष्ठां और पतिपरायणता देखकर उसके सास-ससुर उसे रोकने का साहस न जुटा सके और श्व्शुर-ग्रह की तमाम भौतिक सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देकर वह अपने सहयात्री संग नर्मदा नदी के किनारे बसे इस अस्पताल में चली आई। दस डॉक्टर नियुक्त किये गए थे, जिनमें से दो विदेशी थे, जो अपनी जमीन, अपने लोग और सांसारिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर नि: ...Read More

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तीसरे लोग - 14

14. नर्मदा नदी की शीतल लहरों को किसना एकटक खिड़की से देख रहा था। शायद उसके भीतर भावनाएं और भी इन्हीं लहरों-सी शीतल और शांत हो गई थी। न तो उनमें में किसी के प्रति राग था और न ही द्वेष। अतीत की घटनाओं में शोषकों के लिए क्षमादान था और अपने लिए पश्चाताप नर्मदा का विराट और सौम्य रूप उसे इलाहाबाद के संगम की याद दिला गया और उसे याद आए गुजरे कल के सुनहरे बचपन के दिन जब अम्मा सुरसतिया और बंगाली मां के साथ साइकिल -रिक्शे पर सवार हो, वह प्राय: संगम में स्नान के लिए ...Read More

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तीसरे लोग - 15

15. इन दिनों स्मारक, काफी अस्वस्त दिखाई देता। काम की व्यस्तता और अत्यधिकता के चलते न तो वह समय खाना खाता था और न ही पूरी नींद मिलती थी। कई बार तो दम तोड़ते मरीज उसी के हाथों पर वमन कर देते थे, परंतु इस तपस्वी नि:स्वार्थ डॉक्टर के माथे पर शिकन की एक भी लकीर न उभरती, परंतु न जाने क्यों वह प्राय: उदास रहने लगा था। फाल्गुनी को आसपास न पाकर कुशकाओं से उसका जी घबराने लगता। शाम से ही गुलाबी ठंड पड़ने लगी थी। नवरात्रि के उत्सव की गूंज गांव में बजते ढोल-ताशे की ताल के ...Read More

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तीसरे लोग - 16

16. फाल्गुनी स्मारक के चेंबर में कुछ आवश्यक विषयों पर चर्चा कर रही थी कि हेड नर्स सिस्टर मार्था अंदर आने की इजाजत मांगी। उसके हाथ में किसना की कविताओं की पांडुलिपि थी। फाल्गुनी के हाथ में उन्हें थमाकर वह चली गई। किसना की याद फिर ताजी हो उठी फाल्गुनी के जेहन में और कविता संग्रह के पन्ने पलटने लगी। ' झरोखे जिंदगी के ' इसी नाम का संग्रह था। प्रत्येक पंक्ति में उसे मृत्यु के कगार पर डगमगाते किसना की मासूम चितवन नजर आ रही थी। कविताओं में डूबी पत्नी को देख स्मारक ने कहा, फाल्गुनी मैं भी ...Read More

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तीसरे लोग - 17

17. आज सुबह से ही आसमान स्याह बादलों से घिरा हुआ था। रह-रहकर कड़कड़ाती बिजली और बादलों के भयावह से फाल्गुनी का कलेजा कांप उठता। डॉ. स्मारक वार्ड में दो अन्य जूनियर डॉक्टरों के साथ राउंड लेने में व्यस्त थे और फाल्गुनी के पास आज कुछ विशेष काम न था या यूं कहें की आज वह थोड़े फुर्सत के मूड में ही थी। इसलिए स्मारक के केबिन में रखे फाइल रैक और किताबों की अलमारी को हाथ में झाड़न लिए साफ-सफाई में जुटी थी। एक-एक किताबों और फाइलें निकलती हुई बड़बड़ाती जा रही थी, " ओफ्फ ओ ! ये ...Read More

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तीसरे लोग - 18 - अंतिम भाग

18. किसना की कविताओं का संग्रह 'झरोखे जिंदगी के' बहुत सुर्खियां बटोर रहा था। उसकी अंतिम इच्छा के अनुसार रॉयल्टी एड्स से मरनेवालो मरीज़ों के परिवार की सहायता हेतु दान की जा रही थी। इलाहबाद में स्मारक ने अस्पताल के दो कर्मचारियों को उसकी अम्मा सुरसतिया की तलाश में भेजा था। परंतु पता लगा की पुत्र के अवसान की खबर पाकर वह वृद्धा माता सदमे से पागल हो गई थी और उसकी विक्षिप्त अवस्था में एक दिन संगम में जल समाधी ले ली अभागन ने। बा-बापूजी को फाल्गुनी ने फोन करके बुलाया था। पति की गिरती सेहत के साथ-साथ ...Read More