एक दुनिया अजनबी

(96)
  • 292.9k
  • 9
  • 85.8k

ऊपर आसमान के कुछ ऐसे छितरे टुकड़े और नीचे कहीं, सपाट, कहीं गड्ढे और कहीं टीलों वाली ज़मीन | गुमसुम होते गलियारे और उनमें खो जाने को आकुल-व्याकुल मन ! पता ही तो नहीं चलता किधर जाएँ ? कभी रहा है क्या किसी का मन स्थिर ! न ही ज्ञानी-ध्यानी का न ही आम आदमी का --और संतों की बात --कितने हैं ? गिन लें ऊँगली पर ! ज्ञान और अज्ञान भी बड़ी गोल-मोल चीज़ हैं | कभी आसमान पुकारकर उसे ऊँची उड़ान की घोषणा करने के लिए निमंत्रित करता है तो कभी ज़मीन के गढ्ढे उसे अपने भीतर समेट लेते हैं | "क्या है ये जीवन ? कुछ समझ ही नहीं आता, नरो व कुंजरो वा ? | " शुजा ऐसे ही गोल-गोल घूमते हुए जीवन के बाँकडे पर जाकर खड़ी हो जाती |

Full Novel

1

एक दुनिया अजनबी - 1

एक दुनिया अजनबी 1 ====ॐ ऊपर आसमान के कुछ ऐसे छितरे टुकड़े और नीचे कहीं, सपाट, कहीं गड्ढे और टीलों वाली ज़मीन | गुमसुम होते गलियारे और उनमें खो जाने को आकुल-व्याकुल मन ! पता ही तो नहीं चलता किधर जाएँ ? कभी रहा है क्या किसी का मन स्थिर ! न ही ज्ञानी-ध्यानी का न ही आम आदमी का --और संतों की बात --कितने हैं ? गिन लें ऊँगली पर ! ज्ञान और अज्ञान भी बड़ी गोल-मोल चीज़ हैं | कभी आसमान पुकारकर उसे ऊँची उड़ान की घोषणा करने के लिए निमंत्रित करता है तो कभी ज़मीन के गढ्ढे उसे अपने भीतर समेट लेते ...Read More

2

एक दुनिया अजनबी - 2

एक दुनिया अजनबी 2- छुट्टियाँ कैसे कटें? इस चक्कर में लाड़ली आर्वी के कहने पर पापा यानि शर्मा जी तभी वी.सी.आर का नया मॉडल भी खरीद दिया | दिन में तो कूलर में पड़े रहकर सब बच्चे फ़िल्म देखते, कोई देखते-देखते ज़मीन पर पसर कर ख़र्राटे भी लेने लगता , फिर जो उसकी आई बनती "अरे ---कहाँ सोया ---" पेट में गुदगुदाते हुए हाथों को रोकने की व्यर्थ सी कोशिश में वह धरती पर लोटमलोट होता रहता पर गुदगुदाने वाले हाथ कहाँ रुकते ! रात में तो सामने के ख़ाली पड़े बड़े से प्लॉट की रेत में उछल-कूद करनी लाज़िमी थी ही |सोसाइटी नई बन रही थी ...Read More

3

एक दुनिया अजनबी - 3

एक दुनिया अजनबी 3— जिस नई सोसाइटी में इन बच्चों के माता-पिता घर बनवा रहे थे उसका चौकीदार या कह लीजिए सुबह दूध की थैलियाँ देने घरों में आता, कुछ परिवारों ने उससे दूध बाँध रखा था, उस बंदे का नाम वसराम रबारी था |रबारी लोगों का अपना रहन-सहन, परंपराएँ, अपना बात करने का सलीका ! सब कुछ अलग सा ही ! इस शैतान टोली ने एक बार वसराम भाई यानि उस सोते हुए चौकीदार की चारपाई उठाकर चुपके से सोसाइटी के बिलकुल पीछे की लाइन में ले जाकर रख दी, वह एक डंडा अपनी चारपाई के सिरहाने रखता था जिससे यदि कोई कुत्ता आदि आ जाए ...Read More

4

एक दुनिया अजनबी - 4

एक दुनिया अजनबी 4-- ये बच्चे बड़े ही शैतान ! रात में आधी रात तक जागने पर भी सुबह सैर के लिए मुँह-अँधेरे उठकर थोड़ी दूर बने बगीचे में भाग-दौड़ करके आ जाते और जब कोई ऐसी शैतानी करते तब तो ज़रूर ही उसका परिणाम देखने सारे एकत्रित हो जाते | कल की रात का परिणाम तो सुबह ही देखना होता था न सो उस दिन चारों की टोली सैर से भी जल्दी भाग आई और उसी अधबनी दीवार पर चढ़कर साइकिल पर एक चप्पल पहने, बोझिल से पैडल मारकर वसराम को आते देखकर सब ऐसे चेहरा बनाकर बैठ गए मानो बड़े भोले, अनजान हों | ...Read More

5

एक दुनिया अजनबी - 5

एक दुनिया अजनबी 5-- वह उसके आगे खड़ा था, आँखों में आँसू भरे, अभी अभी उसके पैर छूए थे काफ़ी बुज़ुर्ग थीं वो , नीम के चौंतरे पर एक मूढ़ानुमा कुर्सी डाले बैठी थीं |उन्हें घेरकर छोटी-बड़ी उम्र के उन जैसे कई और भी नीम के पेड़ में छाँह वाले चबूतरे पर बैठे थे | घने नीम के वृक्ष के नीचे काफ़ी बड़ा चबूतरा बनाया गया था जिस पर लगभग पंद्रह-सत्रह लोग समा सकते थे | तालियों की मज़बूत आवाज़ का बिना सुर-ताल का भजन दूर तलक पसरा हुआ था | "मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई ---न कोई, न कोई " प्रखर ने दूर से कुर्सी पर बैठी आकृति को ध्यान ...Read More

6

एक दुनिया अजनबी - 6

एक दुनिया अजनबी 6- " मृदुला माँ---? " एक बहुत खूबसूरत मॉर्डन सी दिखने वाली युवा लड़की अचानक उसके नमूदार थी जिसके एक हाथ में फ्रिज़ से निकाली गई चिल्ड बॉटल और दूसरे में काँच का एक बिलकुल साफ़-सुथरा ग्लास था | "वॉटर प्लीज़ ---" उसने बहुत सुथरी अंग्रेज़ी में पूछा |उसके आने से पहले ही वह पानी पी चुका था जिसे शायद वह देख नहीं पाई थी | "जस्ट हैड, थैंक्स ---"उसकी आँखें बार-बार नम होने लगीं | "इधर आओ बच्चे ----!" बिल्लौरी आँखों वाली वृद्धा ने उसे अपने पास बुलाकर उसके सिर पर हाथ फेर दिया | "नाम क्या है बेटा ? ...Read More

7

एक दुनिया अजनबी - 7

एक दुनिया अजनबी 7- उसकी बुद्धि उसे कुछ सोचने का अवसर ही न देती | ब्लैंक हो गया था ! गलतियाँ करके बार-बार माफ़ी माँगने पर भी जब उसे मन की अँधेरी गलियों में सीलन की जगह एक भी किरण न मिली तब उसने संदीप की बात मान लेना ही उचित समझा | वही तो लाया था उसे यहाँ | कैसी मदहोशी चढ़ती है न आदमी को ! न जाने किस नशे में वह अपना आपा खो बैठता है | यह सच है हर बात के पीछे कुछ कारण होते हैं पर भुगतना भी तो उसीको ही पड़ता है जो कर्म करता है, जीवन ...Read More

8

एक दुनिया अजनबी - 8

एक दुनिया अजनबी 8- घुटन का मन में भरा होना आदमी को बड़ा भारी पड़ता है | वह चीख़-चिल्ला एक बार सब-कुछ कहकर छुट्टी कर ले, सहज हो जाता है किन्तु भीतर भरे रहना यानि हर पल ख़ुद से ही जूझते हुए मरते रहना तिल-तिलकर ! अपनी त्रुटियों के लिए पछताने को अब कुछ रह नहीं गया था और जीवन था कि मुह फाड़े खड़ा था | एक बार तड़का हुआ सूरज और दूसरी बार घुप्प अँधेरा ! कोई बीच का मार्ग नहीं | माना, जीवन ऊँचे-नीचे रास्तों पर ही चलता है, कोई सपाट रास्ता नहीं उसके लिए लेकिन सच तो ये है कि आदमी चाहे ...Read More

9

एक दुनिया अजनबी - 9

एक दुनिया अजनबी 9- माँ विभा अपने बेटे का व्यवहार देखकर बहुत दुखी होती लेकिन जब भी वह उस बात करने की कोशिश करती, कहाँ कोई सही उत्तर मिला उसे ? पति-पत्नी के बीच आपसी व्यवहार का न तो सही तरीका था, न ही सलीका ! हर रिश्ते में मित्रता व सम्मान का होना बहुत ज़रूरी है जिसे हम हवा में फूँक से उड़ा देते हैं फिर उसकी चिंदियों को असहाय बन घूरते रह जाते हैं | प्रखर के पिता भी अपने जीवित रहते इस बात से परेशान ही रहे कि यह उनका ही पुत्र है जिसने अपने संस्कारों की चिंदियाँ बनाकर उड़ा दी हैं |कितना भी प्रेम क्यों ...Read More

10

एक दुनिया अजनबी - 10

एक दुनिया अजनबी 10- पिता के न रहने से प्रखर को जीवन की वास्तविकता आँखें खोलकर देखनी पड़ी |दो होते बच्चों का पिता अहं में पहले ही ज़मीन से बहुत दूर जा चुका था, पत्नी ने जब देखा, अब सिर पर कोई बुज़ुर्ग नहीं, उसकी ज़िद तिल का ताड़ बन गई | कुछ दिन प्रखर को जीवन का बदलाव समझ नहीं आया, वह अपनी बुलंदियों के घोड़ों पर उड़ान भरता रहा | जब ज़मीन छूने की नौबत आई, तब कुछ समझ में आया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, प्रखर टूटने लगा | उसके व्यवहार से माँ कौनसा बहुत संतुष्ट थी ? सबके अपने-अपने खाने, सब अपने ...Read More

11

एक दुनिया अजनबी - 11

एक दुनिया अजनबी 11- एक झौंका जीवन की दिशा पलट देता है, पता ही नहीं चलता इंसान किस बहाव बह रहा है| आज जिस पीने-पिलाने को एक फ़ैशन समझा जाता है, वह कितने घर बर्बाद करता है, लोग समझ नहीं पाते या फिर अपने अहं में समझना नहीं चाहते |अमीर और बड़े दिखने का यह एक अजीब सा ही कॉन्सेप्ट है, इससे कभी किसीका भला होते तो देखा नहीं | बहाने होते हैं इसके, कभी बिज़नेस पार्टीज़, कभी अफ़सरों को खुश करना और कभी स्टेट्स ! ज़िंदगी क्या इसके बिना ख़त्म हो जाती है ? यह खुद से पूछना होता है आदमी को | प्रखर ज़िंदगी के युद्ध ...Read More

12

एक दुनिया अजनबी - 12

एक दुनिया अजनबी 12 - मृदुला को विभा तबसे जानती है जब से प्रखर का जन्म हुआ था | दिनों शर्मा-परिवार किराए पर रहता था | प्रखर के जन्म पर वह उससे एक हज़ार रूपये व सिल्क की ज़री के बॉर्डर की खूबसूरत साड़ी लेकर गई थी | उन दिनों हज़ार रूपये बड़ी बात मानी जाती थी | पूरी सोसाइटी में लोग नाराज़ हो गए थे कि वह इन लोगों के लिए रेट का सत्यानास कर रही है | इनका पेट भरने का और क्या साधन था ? लोगों की ख़ुशी में ख़ुश होना और उनके लिए दुआएँ करना और समाज का इन्हें दुर-दुर करना, दुखी हो उठती थी ...Read More

13

एक दुनिया अजनबी - 13

एक दुनिया अजनबी 13- विभा रसोईघर में जाने के बजाय बाहर निकल आई, पता नहीं उस दिन मृदुला को उसे कुछ जोश सा आ गया था ; "मैंने तो कभी बुलाया नहीं आपको ---फिर क्यों --? " अंदाज़ कड़वा था विभा का | "अरे ! भक्तन ! तुम्हारे कल्याण के लिए ---देखो, हम तो तीन महीने में आते हैं ---जगत कल्याण के लिए हरिद्वार से आते हैं | देखो, तुम्हारे लिए भी गंगाजल लेकर आता हूँ हर बार ---ये रही तुम्हारे हिस्से की बोतल ---" उसने झोली से निकालकर एक प्लास्टिक की बोतल विभा को पकड़ाने की कोशिश की | "नहीं ...Read More

14

एक दुनिया अजनबी - 14

एक दुनिया अजनबी 14- उसके गले तक आकर कुछ ठहर गया था, अटक गया था भीतर ही जैसे गले किसी कठोर ग्रास को उसने ज़बरदस्ती भीतर धकेला था | विभा और भी असहज हो उठी, चाय के इंतज़ार में गैस रानी भी शायद रसोईघर में कुलबुला रही होंगी ----| वह बड़बड़ाने लगा था | बहस उसमें और मृदुला में हो रही थी और परेशानी महसूस कर रही थी विभा, अभी पति आ जाएंगे तो बस, उसकी आफ़त ---! उन्हें कचर-पचर बिलकुल पसंद नहीं थी | "हाँ, ये ही हैं सब हमारे परिवार, ये हैं हमारे बच्चे ----" मृदुला ने तड़पकर कहा | और ...Read More

15

एक दुनिया अजनबी - 15

एक दुनिया अजनबी 15- जिस मृदुला के लिए प्रखर मुँह बनाता था, आज उसी मृदुला को खोजते हुए वह बस्ती में आया था | विभा को पता भी नहीं था कि उसका बेटा मृदुला की खोज में कहीं गया है | वह स्वयं बेटी के पास रहने आ गई थी | वह अपने दोषों को ढूंढने का प्रयत्न करती रही, सोचती बेहतर नज़र तो वही है जो दूसरों की नहीं, अपनी कमियों को देखकर सुधरने का प्रयास करे किन्तु उसे समझ ही नहीं आया, वह कहाँ ग़लत थी ? प्रखर को किसीने सुझाया था यदि उससे स्त्री का अपमान हुआ है तो उसे किन्नर के ...Read More

16

एक दुनिया अजनबी - 16

एक दुनिया अजनबी 16 - अपने आपको संयमित करना बहुत ज़रूरी था, प्रखर के लिए बिखराव की स्थिति थी स्वयं को स्ट्रॉंग करने के लिए कभी जिम जाता तो कभी क्लब तैरने लेकिन उसे शांति नहीं मिल रही थी, संयमित नहीं हो पा रहा था वह ! जब तक बाहर रहता, ठीक था, व्यस्त रहता | कुछ नए प्रोजेक्ट्स, कुछ पुराने काम को फिर से पटरी पर लाने का भरसक प्रयास !लेकिन घर में एक कमरे में पड़े, उसको नींद अपनी उन गलतियों की गलियों में खींचकर ले जाती | समय पछतावा देता है, उसका वापिस आना कठिन ही नहीं असंभव है | मौन ...Read More

17

एक दुनिया अजनबी - 17

एक दुनिया अजनबी 17 - उस दिन प्रखर को अपने भीतर कुछ बदलाव सा महसूस हुआ | लगा शायद मन के आँगन की बंद खिड़की की कोई झिर्री खुल गई है |कोई नरम हवा सी मन को छू सी गई, कोई बात करने वाला शायद मिले, शायद कोई उसकी बात समझने वाला मिले !आस का एक झरोखा सा मन में फड़फड़ाने लगा | उस दिन काम में भी कुछ मन लगने के आसार लगने लगे | अकेलेपन और एकांत में बहुत फ़र्क है | जहाँ एकांत स्वयं से वार्तालाप करने का अवसर देता है, वहीं अकेलापन मन को तोड़ डालता है| प्रखर को ...Read More

18

एक दुनिया अजनबी - 18

एक दुनिया अजनबी 18- आर्वी सब कुछ जानती थी, नॉर्मल बात होती तो अपने घर की इज़्ज़त को मुट्ठी बंद रखकर पिता के परिवार की इज़्ज़त को बिखरने न देती | परिवार का गुज़र-बसर अच्छी तरह हो ही रहा था | कौनसी फिल्म नहीं देखी जाती थी? कौनसे स्टार होटल्स में खाना नहीं खाया जाता था? कौनसे सामजिक दायरों में शिरकत नहीं की जाती थी ? माँ विभा को लगता कोई कितना भी असंवेदनशील क्यों न हो, पति-पत्नी के रिश्ते की डोर टूटनी इतनी आसान नहीं होती जब तक कि कोई दूसरा ही उनके संबंधों में सेंध न लगाए | दरसल, गलती चोर ...Read More

19

एक दुनिया अजनबी - 19

एक दुनिया अजनबी 19 - अभी तक प्रखर उन दोनों नई मित्रों से पूरी तरह से परिचित नहीं हुआ | उस दिन कॉफ़ी-हाउस में उन दोनों से थोड़ा-बहुत परिचय हुआ |एक-दूसरे के बारे में जाना, एक हद तक | आश्चर्य में था प्रखर यह जानकर कि सुनीला मैडिकल के अंतिम वर्ष में पढ़ रही है |प्रखर ने उसे जिस स्थान पर देखा था, उसके लिए मानना कठिन था, किन्तु सच था | ऐसे वातावरण में रहकर कोई शिक्षा के प्रति कैसे इतना समर्पित हो सकता है ? उसके मन में ढेरों प्रश्न कुलबुला उठे | आख़िर सुनीला उन लोगों के बीच में क्यों थी? ...Read More

20

एक दुनिया अजनबी - 20

एक दुनिया अजनबी 20- रोज़ होती घटनाओं की पीड़ा दूसरों को होती है, खुद को नहीं | कुछ देर दूसरों की पीड़ा हवा में उड़ जाती है और कुछ समय बाद भूल-भुलैया के रास्ते में ! अपने दिल में सूईंयाँ चुभने में बहुत फ़र्क होता है | दूसरों के साथ घटित को दूर से निहारकर अफ़सोस ज़ाहिर करना और अपने दिल में चुभे तीर का दर्द महसूस करना, दोनों में ज़मीन-आसमान का अंतर है | निवि के दिल से खून बहा था, उसका भविष्य एक फ़टे हुए कपड़े की तरह कँटीले झाड़ पर टँगा इधर से उधर लहराते हुए उसे चिढ़ा रहा था ...Read More

21

एक दुनिया अजनबी - 21

एक दुनिया अजनबी 21- कुछ संबंध अचानक ज़िंदगी में आ जाते हैं, कुछ ऐसे जो काफ़ी समय रहकर ऐसे जाते हैं जैसे कभी कोई संबंध रहा ही न हो | पानी के साथ चलते, थिरकते संबंध, कभी उफ़ान आने पर इधर-उधर छलकते, उभरते संबंध ! कभी शन्ति से जिस ओर का बहाव हो, उधर बहने लगते, कभी बिना बात ही मचल जाते |स्थिर कहाँ रह पाता है आदमी का मस्तिष्क !एक समय में कितने अनगिनत विचारों की गठरी ढोने वाला मन कहाँ कभी एक समय में, एक विचार पर जमकर बैठता है ? कुछ ऐसे भी संबंध बन जाते हैं जिनसे न जान, न पहचान लेकिन वो अपने दिल की ...Read More

22

एक दुनिया अजनबी - 22

एक दुनिया अजनबी 22- विभा को अच्छा नहीं लगा, बंसी काका उसके दादा के ज़माने से उनके घर में उन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी उस परिवार के नाम कर दी थी | घर में उन्हें कोई नौकर नहीं समझता था | हाँ, वैसे वो पीछे गैराज से सटे कमरे में रहते थे पर उनके सुख-सुविधा का पूरा ध्यान घर के सदस्य की तरह ही रखा जाता था | दादा जी तक उन्हें बंसी बेटा कहकर पुकारते | स्टोर-रूम की कुँजी-ताली, देखरेख, हिसाब-किताब ---सब उनके हाथ में ही था | महाराजिन को उनसे ही सामान लेना होता था | उनके एक बेटा ...Read More

23

एक दुनिया अजनबी - 23

एक दुनिया अजनबी 23- "रवि मोहन शर्मा मेरे पापा का, मोहनी, मेरी माँ का नाम ---मैंने दोनों का नाम अपना नाम रखने की कोशिश की है , अच्छा किया न ? "उसने अपने नाम का खुलासा करते हुए विभा से पूछा | "शर्मा ---? ब्राह्मण हो ---? " विभा ने जानबूझकर माला जपती हुई स्त्री की ओर टेढ़ी आँख से देखते हुए कहा | "हमारी जात, बामन-बनिया थोड़े ही देखती है दीदी ---वो तो मैंने यूँ ही आपको बता दिया वरना हमारी क्या जात, क्या बिरादरी ---? "उसने एक लंबी साँस भरी | शायद बामन सुनकर स्त्री की भौंहों के बल कुछ ...Read More

24

एक दुनिया अजनबी - 24

एक दुनिया अजनबी 24-- किसी किन्नर के साथ पहली बार इतनी क़रीबी मुलाक़ात ने विभा को कुछ अजीब सी में डाल दिया | उसे अपने बचपन की स्मृति हो आई | जब वह छोटी थी और जब इन लोगों का जत्था आसपास के घरों में बधाइयाँ देने आता, विभा मुहल्ले के बच्चों के साथ आवाज़ सुनकर उस घर में पहुँच जाती | बड़े कौतुहल से सारे बच्चे इन्हें नाचते-गाते देखते, ये लोग कभी कुछ ऎसी हरकतें भी करते कि वहाँ खड़ी प्रौढ़ स्त्रियाँ बच्चों को वहाँ से जाने को कहतीं, वो भी ज़ोर से चिल्लाकर | समझ में नहीं आता था क्यों? ये तो बाद में बड़े होने पर ...Read More

25

एक दुनिया अजनबी - 25

एक दुनिया अजनबी 25- विभा को शुरू से ही कत्थक नृत्य का शौक था, कुछ हुआ ऐसा कि बनारस 'साँवलदास घराने' के एक शिष्य हरिओमजी किन्ही परिस्थितियों के वशीभूत मेरठ में आ बसे | वो बनारस से आए थे क्योंकि उनके पुरखे जयपुर से बनारस जा बसे थे और अपने साथ बनारस के कलक्टर का एक सिफ़ारिशी पत्र भी लाए थे जो उन्हें 'ऑफ़िसर्स स्ट्रीट' में रहने वाले वहाँ के कलक्टर साहब को देना था | धीरे धीरे यह स्ट्रीट वहाँ के शिक्षित व उच्च मध्यम वर्ग का स्टेट्स बन गई | साल भर पहले ही वहाँ एक क्लब खुला था जिसे खोला तो गया ...Read More

26

एक दुनिया अजनबी - 26

एक दुनिया अजनबी 26- कॉलोनी में क्लब भी खुल चुका था और उसमें क्या-क्या सिखाया जा सकता था, इसका भी किया जा रहा था |भाग्य से वहाँ के निवासियों द्वारा संगीत व नृत्य की कक्षाओं की ज़रूरत महसूस की गई और क्लब में संगीत व नृत्य के शिक्षकों को ठिकाना मिल गया | विभा काफ़ी दिनों से क्लब में नृत्य व गायन की शिक्षा प्राप्त करने जा रही थी | एक दिन उसने किन्नर वेदकुमारी को नृत्य के गुरु हरिओम जी को साक्षात दंडवत करते हुए देख लिया |दंडवत प्रणाम करके वह बिना इधर-उधर देखे हॉल से बाहर निकल गई |वह श्वेत चूड़ीदार, कुर्ते व ...Read More

27

एक दुनिया अजनबी - 27

एक दुनिया अजनबी 27- विभा को याद आया, कैसे इनके आने पर कभी-कभी बच्चों को डाँटकर भगा दिया जाता यानि लोग इन्हें पसंद नहीं करते फिर भी अपने घर में आने देते हैं, उस दिन गुप्ता दादी जी के पोते को बारी-बारी से गोदी में लेकर भी ये नाच रहे थे, फिर इन्होंने बच्चे और उसकी मम्मी के सिर पर हाथ फिराकर आशीर्वाद भी दिया और कितने सारे पैसे और कई साड़ियाँ देकर वापिस भेजा गया था उन्हें, सब गुप्ता जी के घर का गुणगान करते वापिस लौटे थे | विभा न बहुत छोटी थी, न ही बहुत बड़ी किन्तु उसे एक अजीब ...Read More

28

एक दुनिया अजनबी - 28

एक दुनिया अजनबी 28- मृदुला सुरीली थी, अक्सर उसे ही गाते देखा है उसने |वह गा रही थी ; रहियो ओ बाँके यार रे ---- दो किन्नर उस पर नाच रहे थे | गज़ब का लचीलापन था उसकी आवाज़ में -- इसके बाद उसने गाना शुरू किया ; डमडम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा बिन पीए मैं तो गिरा --- कितना पुराना गाना ! आज तक ज़िंदा है ? वह कोई क्लासिक चीज़ तो थी नहीं, फिर भी | कुछ चीज़ें ख़ास क्षेत्र में लंबे समय तक ज़िंदा रहती हैं, उसने सोचा | उस दिन उसे जैसे एक तारतम्य में रेलगाड़ी वाली किन्नर जिसने उसकी ...Read More

29

एक दुनिया अजनबी - 29

एक दुनिया अजनबी 29- "चलो, पहले आँसू पोंछो ---"विभा ने साधिकार कहा | वॉशरूम में ले जाकर उसके मुह धुलवाए, साफ़, धुला हुआ नैपकिन उसे दिया | हाथ-मुह धो-पोंछकर अब वह पहले से बेहतर स्थिति में थी | अब वह सलीके से सोफ़े पर आकर बैठी थी, अपने -आपको सँभालते हुए | विभा उसके लिए शर्बत और कुछ नाश्ता ले आई थी | "लो, खा लो मृदुला, ख़ाली पेट लगती हो ? मालूम है, ज़्यादा देर ख़ाली पेट नहीं रहना चाहिए ? " मृदुला कुछ बोल नहीं सकी, उसकी ऑंखें बोल रही थीं, कुछ शेयर करना चाहती हो जैसे किन्तु कोई बहुत ...Read More

30

एक दुनिया अजनबी - 30

एक दुनिया अजनबी 30- उन्होंने उड़ा दिया बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था | जबकि ऐसा तो था ही |लोगों के मन में पचास सवाल उठ रहे थे, यदि मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था तब भी उसकी अंतिम क्रिया तो करनी थी | पिता उस मृत बच्चे को घर तो लेकर आते, उसको विदा करने के लिए परिवार के व कुछ सगे-संबंधी तो जाते | यहाँ तो जैसे नीरव सन्नाटा था, बस--माँ के आँसू रुकने के लिए ही कोई तरक़ीब नहीं थी | शेष सब चल ही रहा था | पता नहीं इतनी इंसानियत पिता में कैसे जाग गई कि उन्होंने ...Read More

31

एक दुनिया अजनबी - 31

एक दुनिया अजनबी 31- थक हारकर ये सभी उसी डॉक्टर के पास मृदुला को लेकर फिर से गए जहाँ चैक करवाने ले गए थे और उस डॉक्टर के बारे में पूछताछ की जहाँ बच्चे का जन्म हुआ था | जिस स्त्री से किन्नरों को बच्ची मिली थी उसने किन्नरों को उस डॉक्टर की जानकारी व पता भी दिया था जहाँ उसका जन्म हुआ था | ढूँढ़ते-ढाँढते अब मृदुला को फिर से उसकी जन्मदात्री डॉक्टर के पास ले जाया गया | ऐसे केस गिने-चुने होने के कारण डॉक्टर को इसका पूरा ध्यान था | डॉक्टर के पास बच्चे के पिता का नंबर भी था और पता भी | डॉक्टर को जब बच्चे के बारे में पता ...Read More

32

एक दुनिया अजनबी - 32

एक दुनिया अजनबी 32- सब सहम गए थे, मृदुला बिलकुल भी अपने पिता के पक्ष में नहीं थी | देखकर वह पगला गई थी जैसे | उसकी माँ बेचारी का रो-रोकर बुरा हाल था | उसकी इतनी प्यारी बच्ची उसके सामने थी जो उसे स्वीकार नहीं कर रही थी | "आपकी कोई गलती नहीं है माँ ---"मृदुला ने अपनी जन्मदात्री के आँसू पोंछे | "आप मज़बूर थीं, मैं समझती हूँ --आप जन्मदात्री हैं, भाग्यदात्री नहीं | लेकिन आप ही सोचिए , क्या मुझे हर समय यह याद नहीं रहेगा कि मुझे कूड़ा समझकर अस्पताल में ही छोड़ दिया गया था और मेरे मरने की ...Read More

33

एक दुनिया अजनबी - 33

एक दुनिया अजनबी 33- "ये भी एक अलग कहानी है दीदी ---"संकोच से वह चुप हो गई थी लेकिन सब कुछ खुलकर बताना था, वह चाहती थी कि अपने मन की सारी बातें इनसे साँझा करे | कुछ देर चुप रही, न जाने किन घाटियों में लौट गई थी ; "जो टीचर मुझे पढ़ाने आते थे, उनसे मेरा मोह हो गया | वो तो मुझसे शादी करना चाहते थे पर आप जानते ही हैं --जब मेरे पिता मुझे न्याय नहीं दे सके तो उनका परिवार मुझे कैसे स्वीकार कर लेता ? " "फिर ? " मृदुला की कहानी अजीब से मोड़ लेती ...Read More

34

एक दुनिया अजनबी - 34

एक दुनिया अजनबी 34- इसी मृदुला को ढूँढ़ते हुए प्रखर उस स्थान पर पहुँचा था जहाँ उसके फ़रिश्तों ने कभी जाने की कल्पना न की होगी | कितना चिढ़ता था वह मृदुला से किन्तु जब ज़रूरत पड़ी तो ऐसे स्थान पर भी पहुँचा ही न ! आदमी बड़ा स्वार्थी होता है, शायद बिना स्वार्थ के दुनिया चलती भी नहीं ! कल्पना कहाँ होती है? वास्तविकता की कठोर धरती कहाँ-कहाँ खींचकर ले जाती है मनुष्य को ! समय के बहाव के अनुसार आदमी को बहना ही पड़ता है | कोई चारा ही जो नहीं | "कभी-कभी लगता है अगर ब्रह्मा जिनके हम केवल नाम से परिचित हैं, ...Read More

35

एक दुनिया अजनबी - 35

एक दुनिया अजनबी 35- मनुष्य को अकेलापन खा जाता है, वह भुक्त-भोगी था | भविष्य का तो कुछ पता लेकिन अभी वह जिस घुटन से भरा हुआ था, उसकी कचोट उसे चींटियों सी खाए जा रही थी जो नन्ही सी जान होती है पर हाथी की सूँड में भी घुस जाए तो आफ़त कर देती है | उसका क्रिस्टल क्लीयर जीवन नहीं था | वैसे किसका होता है क्रिस्टल क्लीयर जीवन ? "तुम लोग नहीं जानते, मेरे घर मृदुला जी आया करती थीं, उन्हें मम्मी-पापा से न जाने क्यों, कितनी और कैसी मुहब्बत थी ? मैं उस समय कितना चिढ़ता था उनसे ! मुझे ...Read More

36

एक दुनिया अजनबी - 36

एक दुनिया अजनबी 36- आश्चर्यचकित था प्रखर ---ऐसा भी होता है ? तभी उसके मन से आवाज़ आई ;'अभी देखी ही कहाँ है प्रखर बाबू ---' वह खो गया था नरो व कुंजरो व में? किसको सच माने ? कितने-कितने रूप दुनिया के, एक यह भी ---उसने अपना चकराता हुआ सिर पकड़ लिया | "शर्मा अंकल के बारे में माँ ने बताया था --"अचानक अपनी माँ की व अपने जन्म की कहानी बताते हुए वह प्रखर के पिता की बात पर आ गई थी | "हाँ, मृदुला जी आईं भी थीं मम्मी के पास, जब पापा -----"रूँध गया प्रखर का गला | पापा का ...Read More

37

एक दुनिया अजनबी - 37

एक दुनिया अजनबी 37- विभा का मन खोखला होता जा रहा था | बेटी-दामाद के पास रहकर भी वह पिछले दिनों में घूमती रहती | हम मनुष्य कितना भी प्रयत्न कर लें किन्तु अपना भूत नहीं भुला पाते | हम काफ़ी अकड़ के साथ कह सकते हैं 'वर्तमान में जीओ'किन्तु क्या सच में ही हम जीते हैं वर्तमान में ? लौट-फेरकर वृत्तों में घूमते हुए हम फिर उसी शून्य पर आकर खड़े हो जाते हैं, जहाँ से चले थे| जाने कहाँ-कहाँ भटका है प्रखर ! कभी ये गुरु, कभी वो गुरु !कभी कोई मंत्र तो कभी किसी को दान !ऐसे जीवन की समस्याओं के समाधान ...Read More

38

एक दुनिया अजनबी - 38

एक दुनिया अजनबी 38- कभी-कभी ऐसा भी होता है, छिपाने का कोई प्रयोजन नहीं होता पर बात यूँ ही जाती है | कुछ ऐसा ही हुआ, कभी कोई बात ही नहीं हुई मंदा मौसी के बारे में | अचानक मंदा मौसी का नाम सुनकर प्रखर का उनके बारे में पूछना स्वाभाविक ही था | अब तक निवि प्रखर की ज़िंदगी में पूरी तरह आ चुकी थी | उम्र का अधिक फ़र्क होने पर भी उसे प्रखर का साथ अच्छा लगने लगा था |अपने टूटे हुए दिल का मरहम वह प्रखर में पा गई थी और प्रखर अपने एकाकीपन को उसके साथ ...Read More

39

एक दुनिया अजनबी - 39

एक दुनिया अजनबी 39- रास्ते में आते हुए सुनीला ने एक जगह गाड़ी रुकवाई थी जहाँ वह कम्मो नाम किसी किन्नर से मिली, प्रखर को भी मिलवाया | "प्रखर ! अब जो लोग कुछ अलग काम करना चाहते हैं उन्हें रोका नहीं जाता बल्कि सपोर्ट ही दी जाती है ---जो पढ़ना चाहते हैं, उन्हें पढ़ाया भी जाता है ? " कम्मो ने पाँचेक साल से ही अपना जेंट्स व लेडीज़ कपड़ों का शो-रूम खोला था जो बरोडा की सीमा से लगा हुआ था | कम्मो इस प्रकार का नाचना-गाना करने का काम करना नहीं चाहती थी | इसलिए उसे सिलाई-कढ़ाई सिखाई गई और फिर उन दो और किन्नरों ...Read More

40

एक दुनिया अजनबी - 40

एक दुनिया अजनबी 40- मौसम सुहाना था, उसका ध्यान उन खूबसूरत कलात्मक चिकों पर अटक गया --प्रखर मन में का ज़ायज़ा ले रहा था | शाम का समय होने से लगभग सारी मेज़ें भरी हुई थीं जिन पर सफ़ेद एप्रिन, कैप और दस्ताने पहने लड़के ग्राहकों के ऑर्डर्स लेकर बड़ी शांति से लेकिन तीव्रता से हाथों में ट्रे पकड़े आते-जाते दिखाई दे रहे थे | कई मेज़ों के पास सफ़ेद कमीज़ में खड़े, हाथों में पैन व पैड लेकर ऑर्डर की प्रतीक्षा में लड़के खड़े थे| कमाल की कलात्मकता थी, फ्यूज़न ---जैसे भारतीय व पश्चिम की खूबसूरती को एकाकार करने का सफ़ल प्रयत्न किया गया था | कुल मिलाकर एक अनुशासन ...Read More

41

एक दुनिया अजनबी - 41

एक दुनिया अजनबी 41- "अरे ! अंदर आ जाओ न सुनीला , दरवाज़ा खुला ही है ---" कॉरीडोर के को ठेलते ही एक लंबी गैलरी सी दिखाई देने लगी |प्रखर के मन में उस लंबी गैलरी को देखने की उत्सुकता भर आई जो नीचे से दिखाई नहीं देती थी | वह अच्छी-ख़ासी लंबी -चौड़ी थी जिसके दोनों ओर महापुरुषों व योगियों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगाई गईं थीं, वे दूर से दिखाई दे रही थीं | सच में, एक अलौकिक अनुभव हो रहा था उसे लेकिन मंदा मौसी सबसे आगे के कमरे की खिड़की में से उन्हें ही देख रही थीं, उन्होंने आगे बढ़कर दरवाज़ा खोल दिया ...Read More

42

एक दुनिया अजनबी - 42

एक दुनिया अजनबी 42- दरवाज़े पर नॉक हुई तो सबकी आँखें उधर की ओर घूम गईं | दरवाज़े पर अजनबी था लेकिन वह अजनबी उन तीनों के लिए था, मंदा मौसी के लिए नहीं | " कम इन जॉन --प्लीज़ --" मंदा मौसी ने भीतर आने वाले व्यक्ति से कहा | मंदा मौसी का अँग्रेज़ी उच्चारण बता रहा था कि वह कोई नौसीखिया या अभी ताज़ी नकलची स्त्री नहीं थीं | उनका बोलने, उठने-बैठने का, विश करने का सलीका बड़ा शानदार और ठहरा हुआ था | उनका सुथरा व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि जो भी उनके पास आए वह प्रभावित हुए बिना न ...Read More

43

एक दुनिया अजनबी - 43

एक दुनिया अजनबी 43- कुंठित थी सुनीला, विश्वास ही नहीं कर पा रही थी, उनकी योजना पर लेकिन वातावरण और बातें सुनकर झुठलाना भी इतना आसान नहीं था | | "मुझे तो लगा था मेरी सुनीला बहुत खुश हो जाएगी, यह देख-सुनकर ? " मंदा मौसी इतनी देर से बातें सुन रही थीं, अचानक बोलीं | "मौसी कैसे भुला दें कि ब्रिटिशर्स ने कैसी भ्र्ष्टता फैलाई थी यहाँ, हमने तो ख़ैर देखा नहीं वह समय ? अपने बड़ों से सुना और किताबों में पढ़ा लेकिन ----" "इन्होने राजा महाराजाओं को भ्र्ष्ट किया, योजनाबद्ध तरीके से भ्र्ष्टाचार को बढ़ावा दिया --आपको क्या ...Read More

44

एक दुनिया अजनबी - 44

एक दुनिया अजनबी 44 - जाने कितनी देर पहले नीचे से गरमागरम नाश्ता आ चुका था लेकिन सब चर्चा इतने मशगूल थे कि हाथ में पकड़े कॉफ़ी के मगों के अलावा किसीने नाश्ते की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देखा था | कॉफ़ी भी शायद ही किसी ने पूरी पी हो|वातावरण कुछ अधिक ही तनावपूर्ण हो गया था | मंदा मौसी ने घंटी बजाई, चंद मिनटों में नीचे से लड़का हाज़िर हो गया | "सुरेश ! ये सब समेट लो और बाबू से कहना अम्मा और मेहमान नीचे ही डिनर करेंगे --" "जी--"कहकर सुरेश मेज़ पर से सामान उठाने लगा | मिनटों ...Read More

45

एक दुनिया अजनबी - 45 - अंतिम भाग

एक दुनिया अजनबी 45 - बड़ी अजीब सी बात थी लेकिन सच यही था कि प्रखर की माँ विभा के साथ मंदा और जॉन से मिल चुकी थीं | जॉन ने जब यह बताया, मंदा के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई | "आपने कभी नहीं बताया मंदा मौसी ? " सुनीला ने आश्चर्य में भरकर पूछा | "बेटा !समय ही कहाँ मिला, मैं तुम्हें फ़ोन करती रही, तुम बिज़ी रहीं |" "विभा जी ने हमें आश्वासन दिया, वो हमें यथाशक्ति सहयोग देंगी| " " माँ--! वो इसमें क्या सहयोग देंगी ? "वह माँ को कहाँ ठीक से समझता था ...Read More