बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब

(286)
  • 204.2k
  • 7
  • 66.8k

भाग -१ काशी नगरी के पॉश एरिया में उनका अत्याधुनिक खूबसूरत मकान है। जिसके पोर्च में उन की बड़ी सी लग्जरी कार खड़ी होती है। एक छोटा गार्डेन नीचे है, तो उससे बड़ा पहले फ्लोर पर है। जहां वह कभी-कभी पति के साथ बैठकर अपने बिजनेस को और ऊचांइयों पर ले जाने की रणनीति बनाती हैं। तमाम फूलों, हरी-भरी घास, बोनशाई पेड़ों से भरपूर गार्डेन में वह रोज नहीं बैठ पातीं, क्योंकि व्यस्तता के कारण उनके पास समय नहीं होता। जो थोड़ा बहुत समय मिलता है, उसे वहअपने तीन बच्चों के साथ बिताती हैं । जो वास्तव में उनके नहीं

Full Novel

1

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 1

भाग -१ काशी नगरी के पॉश एरिया में उनका अत्याधुनिक खूबसूरत मकान है। जिसके पोर्च में उन की बड़ी लग्जरी कार खड़ी होती है। एक छोटा गार्डेन नीचे है, तो उससे बड़ा पहले फ्लोर पर है। जहां वह कभी-कभी पति के साथ बैठकर अपने बिजनेस को और ऊचांइयों पर ले जाने की रणनीति बनाती हैं। तमाम फूलों, हरी-भरी घास, बोनशाई पेड़ों से भरपूर गार्डेन में वह रोज नहीं बैठ पातीं, क्योंकि व्यस्तता के कारण उनके पास समय नहीं होता। जो थोड़ा बहुत समय मिलता है, उसे वहअपने तीन बच्चों के साथ बिताती हैं । जो वास्तव में उनके नहीं ...Read More

2

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 2

भाग -२ अम्मी ने यह पता चलते ही कोहराम खड़ा कर दिया। लेकिन तब वह पांच छोटे-छोटे बच्चों के अब्बू की ज्यादतियों के सामने कमजोर पड़ गईं। अब्बू के झांसें में आकर वह अपना जमा-जमाया काम-धंधा पहले ही छोड़ चुकी थीं। उन्होंने अब्बू से सारे रिश्ते-नाते खत्म कर घर छोड़ने के लिए कहा। 'खुला' देने की भी धमकी दी। लेकिन अब्बू टस से मस ना हुए, जमे रहे मकान में। अम्मी, बच्चों को बस जीने भर का खाना-पीना देते थे। लाज ढकने भर को कपड़े। अम्मी के लिए अपने वालिद को खोने के बाद यह सबसे बड़ा सदमा था, ...Read More

3

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 3

भाग -३ अम्मी के बहुत दबाव पर जब आगे बढे तो कुछ इस तरह कि, कई जगह रिश्ते बनते-बनते टूटे कि अम्मी आपा खो बैठीं। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि, 'तुम जानबूझकर लड़कियों का निकाह नहीं होने देना चाहते। तुम इनकी कमाई हाथ से निकलने नहीं देना चाहते।' इस बात पर अब घर में खूब हंगामा होने लगा। कई महीने बड़े हंगामाखेज बीते। फिर अचानक ही एक जगह अम्मी के प्रयासों से दो बड़ी बहनों का निकाह एक ही घर में तय हो गया। एक ही दिन निकाह होना तय हुआ। अम्मी को परिवार बहुत भला लग रहा था। ...Read More

4

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 4

भाग -४ देखते-देखते पूरा घर छान मारा गया। लेकिन दोनों अप्पी नहीं मिलीं। 'कहाँ गईं, जमीन निगल गई या ले उड़ा । या अल्लाह अब तू ही बता कहां हैं दोनों...।' अम्मी माथा पीटते हुए जमीन पर बैठ गईं। अब्बू ने न आव देखा ना ताव हम दोनों ही बहनों को कई थप्पड़ रसीद करते हुए पूछा, ' तुम चारों एक ही कमरे में थीं, वो दोनों लापता हैं और तुम दोनों को खबर तक नहीं है। सच बताओ वरना खाल खींच डालूंगा तुम दोनों की।' हम दोनों ही छोटी बहनें मार खाती रहीं, लेकिन कुछ बोले नहीं, सिवाय ...Read More

5

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 5

भाग - ५ 'जब आप इतना उतावले हो रहे हैं, तो बिना बताए कैसे रह सकती हूं। मैंने देखा बीवी तकिया लगाए सीधे लेटी थी। छत वाला पंखा पूरी स्पीड में चल रहा था। ना मियां के तन पर एक कपड़ा था और ना बीवी के। छोटा बच्चा मां की छाती पर ही लेटा दूध पी रहा था। मियां की चुहुलबाजी चालू थी। वह दूसरी वाली छाती से बच्चा बन खेल रहा था। दोनों के हाथ भी एक दूसरे की शर्मगाहों में खेल रहे थे। जब बच्चा सो गया तो उसे दीवार की तरफ किनारे लिटा दिया। उसकेआगे देखने ...Read More

6

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 6

भाग - ६ बेनज़ीर हल्की मुस्कान लिए बोलीं, ' और आप फिर से स्टेच्यू बन गए तो।' ' मैं प्रयास करूँगा कि ऐसा ना हो।' ' ठीक है। तो जब काम पीछे छूटने लगा तो कई ऑर्डर भी हाथ से फिसल गए। अम्मी की दवा का खर्च बढ़ता जा रहा था। मुझे लगा कि चिकन से ज्यादा दुकान पर ध्यान दूं तो अच्छा है। वैसे भी अम्मी से नहीं हो पा रहा है। मैं यही करने लगी, पर अम्मी दिल से यह कत्तई नहीं चाहती थीं। लेकिन हालात ने उन्हें अपने कदम पीछे करने के लिए मजबूर कर दिया। ...Read More

7

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 7

भाग - ७ वही ज़ाहिदा-रियाज़, फिर अपने कपड़ों के साथ जंग । उतार-उतार कर उन्हें दीवारों पर रात भर लिए दे मारना। फिर अपने ही तन बदन को देख-देख कर इतराना। और आखिर में मायूसी के दरिया में डूब कर खूब आंसू बहाना कि, हाय रे मेरा मुकद्दर। मेरे संग ऐसा क्यों कर रहा है? और जमीन पर ही पड़े-पड़े सो जाना रात भर के लिए। और चिकनकारी, वह भी मेरी तरह मायूस रात भर जमीन पर पड़ी रहती। सवेरा होता तो दीवारों से टकरा-टकरा कर जख्मी पड़े, अपने कपड़ों को फिर उठाती। रात के अपने गुनाहों के लिए ...Read More

8

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 8

भाग - ८ उनकी तकलीफ देखकर मेरे मन में आया कि, आग लगा दूं टीवी को, जिसके कारण अम्मी इतना दुख मिल रहा है। एकदम अफनाहट में मैंने झटके में बोल दिया कि, 'अम्मी किराएदार से बोलो कि, इतनी ज्यादा जगह इतने कम में ना मिल पायेगी । इसलिए किराया बढाओ और कुछ महीने का एक इकट्ठा पेशगी दो।' मेरी बात सुनते ही अम्मी खीजकर बोलीं, ' क्या बच्चों जैसी बातें करती हो। ऐसे नहीं होता है समझी।' मैंने, अम्मी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला। किस्त की तारीख निकल गई। एजेंसी से कई ...Read More

9

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 9

भाग - ९ इस बीच चिकनकारी और कम हो गई। खाना-पीना, अम्मी का काम, दुकान का भी कुछ ना देखना पड़ता था। इन सब से रात होते-होते इतना थक जाती थी कि, रात में उंगलियां जल्दी ही जवाब देने लगतीं।' '.. और ज़ाहिदा-रियाज़, यह टाइम तो उनका भी होता था।' यह सुनते ही बेनज़ीर हंस पड़ीं । फिर गहरी सांस लेकर बोलीं, '....ज़ाहिदा-रियाज़ उफ... दोनों मेरे लिए एक अजीब तरह की बला बन गए थे। यह बला पहले मुझे खूब मजा देती, लेकिन जब छूटे हुए कामों की तरफ ध्यान जाता तो बड़ा कष्ट देती। समझ ही नहीं पा ...Read More

10

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 10

भाग - १० पिछली बार की तरह दरवाजे की आड़ में नहीं गई, लेकिन अम्मी की आड़ में जरूर रही। अम्मी ने उसे शुक्रिया कहा तो मुन्ना ने कहा, 'अरे चाची इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है। बेनज़ीर की मेहनत का ही है सब। यह अपने काम में बहुत माहिर हैं । मुझे पता ही नहीं था। नहीं तो मैं पहले ही संपर्क करता। जो पैसे बाहर किसी को दे रहा था वह घर के घर में ही रहते।' 'बेटा क्या करें। समय के आगे हम कुछ नहीं कर पाते। जिस चीज का समय जब आता है, वह ...Read More

11

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 11

भाग - ११ मैं घूमना चाहती थी। खूब देर तक घूमना चाहती थी। रास्ते भर कई बार मैंने बहुत की तरफ देखा कि, लोग मुझे देख तो नहीं रहे हैं। मैं दोनों हाथों में सामान लिए हुई थी। और आगे बढ़ती चली जा रही थी। मैं इतनी खुश थी कि कुछ कह नहीं सकती। खुशी के मारे ऐसा लग रहा था, जैसे कि मैं लहरा कर चल रही हूं। मन में कई बार आया कि, घर की कोठरी में कैद रहकर हम बहनों ने कितने बरस तबाह कर दिए। कम से कम ज़िंदगी के सबसे सुनहरे दिन तो हम ...Read More

12

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 12

भाग - १२ ' जीवन, दुनिया की खूबसूरती देखने का आपका नजरिया क्या है?' 'अब नजरिया का क्या कहूं, जल्द से जल्द सब कुछ बदलना, देखना, चाहती थी। तो मैं हर महीने कोई ना कोई ऐसा सामान लाने लगी, जिससे घर में रौनक दिखे। रहन-सहन का स्तर कुछ ऊंचा हो। फ्रिज का ठंडा पानी पीने को हम पूरा परिवार तरस गए थे। लेकिन अब्बू उसे भी न जाने किस पागल, जाहिल के कहने पर मुसलमानों के लिए हराम मानते रहे। जबकि मुहल्ले के सारे मुसलमान परिवारों के यहां यह सब ना जाने कब का आ चुका था। अम्मी ने ...Read More

13

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 13

भाग - १३ उस रात को मैंने अम्मी से खाना खाने के बाद बातचीत की। उन्हें विस्तार से सारी समझाईं। मेरी बातों को सुनकर अम्मी एकदम से चिंता में पड़ गईं। लेकिन मेरे काम को देख कर उन्हें मुझ पर अटूट भरोसा भी हो चुका था। आखिर बड़ी मान-मनौवल के बाद मानीं। लेकिन अगले ही पल फिर समस्या खड़ी कर दी कि किसके साथ जाओगी, उसके पहले मैंने नहीं बताया था कि मैं मुन्ना के साथ ही आऊँगी-जाऊँगी। पूछने पर मैंने स्पष्ट बता दिया कि, 'और कौन है जिसके साथ में आ-जा सकती हूं। शहर के बाहर कभी अकेले ...Read More

14

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 14

भाग - १४ मैंने तुरंत बात का रुख बदलते हुए देर होने की बात छेड़ दी, उन्हें बात समझाने लिए मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी। उससे कहीं ज्यादा मशक्कत तो वहां पर जो भी काम-धंधा था उसे समझाने में करनी पड़ी। लेकिन इसके बाद उन्होंने फिर बाकी जितने दिन वहां पर जाना हुआ, जाने दिया। कभी मना नहीं किया। जबकि पूरी तरह कार्यक्रम शुरू हो जाने के बाद रोज घर पहुंचते-पहुंचते रात ग्यारह बज जाते थे, क्योंकि देर शाम को कार्यक्रम खत्म होता था। फिर सब कुछ बंद करवाने, अगले दिन के लिए भी कुछ तैयारियां करवाने में मुन्ना ...Read More

15

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 15

भाग - १५ उनकी यह बात सुनकर सोचा कि, अम्मी तुम और जो हुआ वह जानकर ना जाने क्या । मगर मुझे खुद पर कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि मैं पक्के तौर पर कहती हूं कि मैंने कुछ भी नाज़ायज़ नहीं किया। उस समय मेरे मन में चाहे जितनी उथल-पुथल थी, लेकिन पुरस्कार की खुशी उस पर भारी थी। तो मैंने सबसे पहले ग्यारह हज़ार रुपये और ट्रॉफी उनके हाथ में देते हुए कहा, 'अम्मी, मुझे वहां बहुत सारे लोगों के बीच यह पुरस्कार दिया गया। इसकी असली हकदार तुम्हीं हो। तुमनेअपना हुनर ना सिखाया होता तो मुझ अनपढ़ ...Read More

16

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 16

भाग - १६ काशी जाने की तैयारी में मुन्ना जो-जो बताते जा रहे थे, मैं वो-वो करती जा रही मेरे सामानों की ऑनलाइन सेल भी बढ़ती जा रही थी। एक दिन मैं अपने कमरे में काम कर रही थी। साथ ही मोबाइल पर एक यूट्यूब चैनल भी देख रही थी। वह किसी विदेशी औरत का चैनल था। उसमें वह महिलाओं के जो कपड़े खुद डिज़ाईन करती, सिलती थी, उन्हें पहन कर दिखाती भी थी कि शरीर पर कैसा फबता है। उसके चैनल को देखने वालों की संख्या लाखों में थी। उसको देखकर मेरे मन में आया कि अपने कपड़ों ...Read More

17

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 17

भाग - १७ मेरी इस लापरवाही को अम्मी निश्चित ही मेरी बदतमीजी ही समझ रही होंगी। सीधे-सीधे यही कह होंगी कि, 'बेंज़ी अब पहले वाली बेंज़ी नहीं रही। कैसा सब अपनी मनमर्जी का किये जा रही है। चौदह-पन्द्रह दिनों के लिए इतनी दूर जाने के लिए जोर लगा रही है। लेकिन एक बार भी नहीं कहा अम्मी तू खायेगी- पियेगी कैसे? कौन देखभाल करेगा?' यह सब सोचकर मैं अपनी जान बड़ी सांसत में पा रही थी। लेकिन जाने की जिद ऐसी थी कि मैं मसले का हल निकालने के लिए तड़पने लगी। ऐसे जैसे कि, पानी से कोई मछली ...Read More

18

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 18

भाग - १८ मुश्किल से दो घंटा हुआ होगा कि मुझे लगा जैसे मेरे घुटनों के पास कुछ है। उठने को हुई तभी मुन्ना धीरे से बोले, 'कुछ नहीं, मैं हूं।' मैं शांत हो गई। मैं डरी कि, नीचे की बर्थ पर कई लोग सो रहे हैं। कोई जाग गया तो कितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। कंबल थोड़ा हटाकर नीचे देखा तो राहत की सांस ली, नीचे कोई नहीं था। मुन्ना के हाथ हरकत कर रहे थे। मेरा हाथ भी उसके हाथों के ऊपर पहुंच गया था। देर नहीं लगी उनके हाथ ऊपर और ऊपर तक आए तो मैं भी ...Read More

19

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 19

भाग - १९ बेनज़ीर की बात से मैंने खुद को बड़ा छोटा महसूस किया। वह अपनी बात को आगे हुई कहती हैं, 'जिस दुकान के सामने उसने रिक्शा रोका, वह एक ठीक-ठाक दुकान लग रही थी। अंदर एक साथ पन्द्रह-सोलह लोगों के बैठने की जगह थी। मुन्ना ने उसे भी अंदर चलने के लिए कहा तो वह हाथ जोड़कर बोला, 'बाबू जी, मीठा हमरे लिए जहर है। हमें सूगर है।' बहुत कहने पर वह समोसा खाने को तैयार हुआ। दो समोसा, बिना शक्कर की चाय लेकर बाहर रिक्शे पर ही बैठकर खाने लगा। मैंने और मुन्ना ने लवंगलता खाई ...Read More

20

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 20

भाग - २० पंडाल काफी बड़ा था। भीड़ भी काफी थी। हमें निकलने में छः सात मिनट लग-गए। पंडाल अन्दर मैं अचानक ही बहुत घुटन महसूस करने लगी थी तो मुन्ना के कहते ही मैं ऐसे बाहर आई, जैसे बेसब्री से इसी का इंतजार कर रही थी कि, मुन्ना कहें और हम चलें। बाहर आकर मैंने इस तरह गहरी सांस ली, मानो बहुत देर से रोके हुए थी। मैंने तुरन्त कहा, 'यहां पूरे समय बैठे रहने से अच्छा है कि बड़ी तेज़ी से अपना रंग-रूप बदल रहे शहर को देखा जाए। अपने काम की मार्केट तलाशी जाए।' मुन्ना ने ...Read More

21

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 21

भाग - २१ एक मुराव परिवार वहां रहता है। भला परिवार है। हमारे यहां भी आता-जाता है। उनके तीन हैं। सब सब्जी बेचने के काम में लगे रहे। करीब चार-पांच बरस पहले एक लड़का ऑटो-रिक्शा चलाने लगा । ऑटो-रिक्शा चलाते हुए छः सात महीना ही बीता होगा कि एक दिन एक कोरियन लड़की टूरिस्ट उसे मिली। दिन भर के लिए उसे बुक कर लिया। दिन भर घूमी-फिरी। शाम को पैसा देते समय थोड़ा चख-चख की लेकिन साथ ही अगले दिन के लिए भी बुक कर लिया। उसका नंबर ले लिया। अगले दिन भी वह पूरे दिन शहर घूमी, शहर ...Read More

22

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 22

भाग - २२ ....तो हम दोनों गए तो थे कार्यक्रम में भाग लेने, लेकिन पहुँच गए लल्लापुरा। हमने बनारसी उसके व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी की। यह सब करने में हमें तीन घंटे लग गए। इस बीच गंगाराम हमारे साथ एक रिक्शेवाला, गाइड से ज्यादा दोस्त बन कर रहा। मैं और मुन्ना वहां का व्यवसाय, कारीगरी देखकर दंग रह गए। वहां से जब निकले तो मैंने कहा, 'यहाँ तो इतना कुछ है कि मेरा तो सिर ही घूम गया है। कैसे क्या करा जाएगा, क्या-क्या करा जाएगा ?' मुन्ना ने कहा, 'परेशान ना हो सब हो जाएगा। तुम्हें ...Read More

23

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 23

भाग - २३ बात पूरी कर बेनज़ीर मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगीं। मैं बिलकुल शांत सोचने लगा कि, भी रिपीट कराने का तो कोई चांस छोड़ा ही नहीं। सच कहूं तो मैंने उनसे बात करने से पहले यह सोचा ही नहीं था कि, वह अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में इतनी सहजता से खुल कर ए-टू-जेड वर्णन करेंगी। हिन्दी बेल्ट के किसी व्यक्ति, वह भी किसी महिला से तो यह उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती। लेकिन वह लगातार किये जा रही थीं। इसलिए मुझे तारीफ करने में भी संकोच नहीं हो रहा था। मैंने, 'कहा, 'मार्वलस! आप ...Read More

24

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 24

भाग - २४ खाना खाने के बाद हाथ-मुंह धोकर बाहर आते हुए मुन्ना ने कहा, 'कॉन्फिडेंस बढ़ाने का रास्ता गया है।' मैंने कहा, 'खाना खाते ही मिल गया।' हाँ, मैं कह रहा था ना कि, भूखे पेट भजन भी नहीं होता।' 'कौन सा रास्ता है, बताओ।' डिस्पोजेबल बर्तन बटोरते हुए मैंने कहा। 'अरे मिस मॉडल जी, मुंह पर लगा खाना तो साफ करके आओ, जल्दी क्या है। अभी पूरी रात बाकी है।' अपनी बात मुन्ना ने बड़ी अर्थ भरी नजरों से मुझे देखते हुए कहा और हल्के से आंख मार दी। उसका आशय समझने में मुझे देर नहीं । ...Read More

25

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 25

भाग - २५ 'लेकिन! जब निश्चिंत हो गई हो तो फिर मन में लेकिन क्यों बना हुआ है?' 'नहीं मतलब है कि तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को मान लेंगे, अगर ना माने तो, तब क्या होगा, तब तुम कहीं पीछे तो नहीं हट जाओगे ?' 'देखो मैंने घर वालों से पूछकर तुम्हें नहीं अपनाया, ठीक है। मैंने अपनी मर्जी से तुम्हें अपनाया। इसलिए अब किंतु-परंतु का कोई मतलब नहीं है। हमारे रिश्ते को मानेंगे तो ठीक है, नहीं तो अलग रहेंगे। अपनी दुनिया अलग बसायेंगे। इतनी सीधी सी, सामान्य सी बात को तुम अपनी परेशानी का कारण क्यों ...Read More

26

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 26

भाग - २६ मेरी बात पूरी होने से पहले ही मुन्ना ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और ' क्या मूर्खों जैसी बात कर रही हो, जान देने से बढ़ कर ना कोई कायरता है, ना मूर्खता। हमें हर हाल में, हर परिस्थितियों के पार जाकर जरूर जीतने की कोशिश करनी चाहिए। हर हाल में जीतना ही चाहिए। जीतने के अलावा और कुछ सीखना ही नहीं चाहिए। दिमाग में हारने की बात लानी ही नहीं चाहिए।' 'तुम सब ठीक कह रहे हो लेकिन।' 'लेकिन-वेकिन कुछ नहीं, दोबारा बोलना तो क्या अपने मन में यह बात सोचना भी नहीं। ...Read More

27

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 27

भाग - २७ उन्होंने स्थिति साफ करते हुए कहा, 'देखो तुम अभी मॉडलिंग की दुनिया की, भीतर की दुनिया नहीं। जब जान जाओगी तो मुझे पूरा यकीन है कि उल्टे पांव भाग खड़ी होगी । तब कहीं तुम आत्मग्लानि का शिकार ना हो जाओ। खुद मैं भी बहुत ज्यादा नहीं जानता कि मॉडलिंग की दुनिया में क्या-क्या है। मगर जितना जानता हूं उससे तो परिचित करा ही सकता हूं। उतनी ही बातें काफी होंगी कि, तुम यह तय कर सको कि, तुम्हें क्या करना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'देखो उस दिन तुमने जो मॉडलिंग की, उस हिसाब से तुम मॉडलिंग ...Read More

28

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 28

भाग - २८ मैं सबेरे चाय-नाश्ता लेकर पहुंची, तो देखा कि रोज जल्दी उठने वाली अम्मी लेटी हुई हैं कराह रही हैं। पूछा तो बड़ी मुश्किल से इतना ही बता सकीं कि, छाती में बड़ा दर्द हो रहा है। मैंने जल्दी से उन्हें दवा खिलाई, लेकिन वह उसके बाद पानी भी पी नहीं सकीं, बेहोश हो गईं। मैं घबरा उठी कि क्या करें। हर बार की तरह इस बार भी मुन्ना, उनके परिवार को याद किया। सब ने हमेशा की तरह मदद की। हॉस्पिटल में एडमिट करवाने के बाद मुन्ना ने कहा, ' इन्हें सीवियर हार्टअटैक पड़ा है। हालत ...Read More

29

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 29

भाग - २९ ' मैं जानती हूँ कि, तुम मेरा ख्वाब पूरा कराने में मेरा साथ जरूर दोगे । तुम ही हो जो अब मेरे जीवन में मेरे ख्वाबों को सजाओगे-संवारोगे। सुनो इसी से जुड़ी एक और बात कहना चाहती हूं।' 'क्या, बताओ।' 'देखो तुम काशी में कह रहे थे कि, अपने काम-धाम के हिसाब से लखनऊ से ज्यादा मुफीद काशी है।' ' हाँ, कहा था।' 'तो मैंने यह तय किया है कि, अब हम यहां से काशी ही जाकर बसेंगे। वहीं नए सिरे से अपना काम-धाम शुरू करेंगे, वहीं शादी करके...।' मैं इतना कहकर चुप हो गई। बात ...Read More

30

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 30

भाग - ३० जब रात एक बजे हम निकले तो पूरे मोहल्ले में सन्नाटा था। निकलने से पहले मैं को देखना नहीं भूली। अब उस दरवाजे के पास वह बड़ा बक्सा नहीं था, जिस पर बैठकर मैं उनके कमरे में, उनको झांका-देखा करती थी। आखिरी बार खड़े-खड़े ही देख रही थी। हमेशा की तरह लाइट जल रही थी। बेटा सुरक्षित दिवार की तरफ सो रहा था। वह दोनों भी बहुत ज्यादा रोशनी की ही तरह बहुत ज्यादा बेपरवाह थे। ज़ाहिदा लेटी थी। रियाज़ अधलेटा था उसी के बगल में। चेहरे से चेहरा मिलाकर दोनों कुछ बातें कर रहे थे। ...Read More

31

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 31

भाग - ३१ मकान मालिक भी बहुत खिसियाए हुए से बोले, 'मैंने सोचा कि, आप लोग लंबा सफर करके हैं। उपद्द्रव में अलग परेशान हुए हैं। थके हुए होंगे, कुछ चाय-नाश्ता लेता चलूं।' यह कहते हुए उन्होंने ट्रे सेंटर टेबिल पर रख दी, जो हमसे कुछ ही दूरी पर रखी हुई थी। फिर बहुत ही विनम्रता से बोले, ' आप लोग चाय-नाश्ता करके आराम करिए, फिर बातें होंगी।' जाते-जाते मुन्ना को देखते हुए बोले, 'मुझे क्षमा करिए, मुझे आवाज देकर आना चाहिए था।' 'अरे भाई साहब इसमें क्षमा की कोई बात नहीं, हो जाता है ऐसा। आपने हमारा इतना ...Read More

32

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 32

भाग - ३२ मुन्ना की बात सुनकर मैंने सिर ऊपर किया। आंखों में भरे आंसुओं को पोंछती हुई बोली, उन्होंने जिस श्रृंगार की बात की है, वह तो शादी के बाद ही करते हैं। और हमने तो अभी शादी की ही नहीं है। कोई रस्म पूरी ही नहीं की है। बस अपनी रजामंदी से साथ हैं।' 'मेरे दिमाग में यह सारी बातें उसी समय थीं, जब लखनऊ से यहां आने की बात तय हुई। यहां आने के बाद अगला कदम शादी करके उसे रजिस्टर कराने के बारे में मैं पहले ही सोचे हुए हूँ। जिससे कानूनी तौर से भी ...Read More

33

बेनज़ीर - दरिया किनारे का ख्वाब - 33 - अंतिम भाग

भाग - ३३ मेरेअब कई-कई घंटे, कई-कई दिन, ऐसे ही दीवार के उस पार ज़ाहिदा के परिवार को सोचते-सोचते जा रहे थे। मुन्ना भी अक्सर ऐसी रातों के इस गहन सन्नाटे में मेरे साथ होते। एक दिन उन्होंने कहा कि, यह घर तो अब बड़ा, बहुत ही बड़ा होता जा रहा है। पता नहीं अभी और कितना बड़ा होता जाएगा।' उनकी इस बात में छिपे, उनके दर्द ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मैं अपने को रोक नहीं सकी, कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, 'सुनो, अब यह घर और बड़ा नहीं होने दूँगी। जो सोचकर, जिस सपने ...Read More