फूलझर वन जहाँ के फूल कभी भी कुम्हालाते नहीं थे,फूलझर वन सदैव किसी ना किसी पुष्पों की सुन्दरता से सुसज्जित रहता था,वहां की धरती पर सदैव पुष्प झड़ कर गिरते रहते हैं, इसलिए उसका नाम फूलझर वन था,वहां की सांझ और सवेरे की सुन्दरता मन मोह लेती थीं, पंक्षियों का कलरव और श्वेत स्वच्छ जल के झरनें वहाँ की सुन्दरता बढ़ाने मे पूर्ण योगदान देते,विशाल वृक्ष सदैव फलों से भरे रहते,वहां की लताएँ दूसरे वृक्षों पर लिपट कर अपना प्रेम प्रकट करतीं,वन मे कुलाँचे भरते मृग स्वच्छंदता से विचरण करते।।
Full Novel
चन्द्र-प्रभा--भाग(१)
फूलझर वन जहाँ के फूल कभी भी कुम्हालाते नहीं थे,फूलझर वन सदैव किसी ना किसी पुष्पों की सुन्दरता से रहता था,वहां की धरती पर सदैव पुष्प झड़ कर गिरते रहते हैं, इसलिए उसका नाम फूलझर वन था,वहां की सांझ और सवेरे की सुन्दरता मन मोह लेती थीं, पंक्षियों का कलरव और श्वेत स्वच्छ जल के झरनें वहाँ की सुन्दरता बढ़ाने मे पूर्ण योगदान देते,विशाल वृक्ष सदैव फलों से भरे रहते,वहां की लताएँ दूसरे वृक्षों पर लिपट कर अपना प्रेम प्रकट करतीं,वन मे कुलाँचे भरते मृग स्वच्छंदता से विचरण करते।। परन्तु एक दिन राजकुमार भालचन्द्र वहाँ आखेट करते हुए ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(२)
क्या हुआ? सूर्यप्रभा!आप मुझे देखकर सर्वप्रथम प्रसन्न हुई,इसके उपरांत अप्रसन्न हो उठीं, ऐसा क्या सोचा आप ने मेरे विषय ने सूर्यप्रभा से पूछा।। कुछ नहीं राजकुमार,बस कुछ सोचकर मन में कुछ विचार आए, सूर्यप्रभा बोली।। ऐसे भी क्या विचार आए,तनिक मुझे भी बताइए सूर्यप्रभा!भालचन्द्र ,सूर्यप्रभा से बोला।। यही कि आप एक राजकुमार हैं और मैं एक मछुआरे की पुत्री हूं, मेरा आपसे वार्तालाप करना उचित नहीं है, सूर्यप्रभा बोली।। परन्तु क्यो? सूर्यप्रभा! ऐसा क्यों सोच रही हैं आप, ऐसे विचार तो मेरे मन में कभी भी नहीं आए,भालचन्द्र बोला।। मुझसे आपकी इतनी निकटता, उचित नहीं है,आप जो ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(३)
सुभागी ने राजकुमार भालचन्द्र की बात सुनकर कहा कि ये बहुत लम्बी कहानी हैं राजकुमार! वो भयावह अमावस्या की हम हम कैसे भूल सकते हैं, जिस रात्रि हम सूर्यप्रभा को उस दुष्ट जादूगरनी के हाथों से बचाकर लाए।। तनिक विस्तार से पूरी घटना बताएं ,मैं ये ज्ञात करना चाहता हूँ कि क्या हुआ था,भालचन्द्र ने सुभागी से कहा।। तो सुनिए राजकुमार मैं आपको सारी कहानी विस्तार से बताती हूँ, सुभागी ने भालचन्द्र से कहा और सुभागी ने कहानी कहना प्रारम्भ किया।। बहुत समय पहले की बात हैं___ घने वनो से सुशोभित,देवनागरी नदी के तट पर,पहाड़ियों से ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(४)
पुरोहित विभूतिनाथ जी ने अपने पुत्र गौरीशंकर को मंदिर मे पूजा-अर्चना हेतु मंदिर मे पुरोहित के पद पर नियुक्त दिया एवं स्वयं राजा अपारशक्ति के महल में राजा के निकट रहने लगें।। प्रतिदिन की भांति रानी जलकुंभी उस दिन भी स्नान करके अपनी दासियों के साथ मन्दिर पहुंची, नए पुरोहित को देखकर थोड़ा ठिठकीं और अपनी दासियों से पूछा ये व्यक्ति कौन हैं, तनिक इनसे पूछो।। तभी सुभागी ने आगे जाकर उस नवयुवक से पूछा___ महाशय!आप कौन हैं एवं इस मन्दिर में क्या कर रहे हैं? जी!मुझे इस मन्दिर मे नए पुरोहित के पद पर नियुक्त किया ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(५)
गौरीशंकर के मस्तिष्क में अब केवल एक ही विचार चल रहा था कि उसे राजा अपारशक्ति को किसी प्रकार अपने मार्ग से हटाना हैं और इसके लिए उसे कुछ भी करना स्वीकार था,उसके विचार इतने घृणित और दूषित हो चुके थे कि वो कुछ भी सकारात्मक सोचना ही नहीं चाहता था।। गौरीशंकर ने अपनी योजना को सफल बनाने के लिए महल में जाना प्रारम्भ कर दिया,उसने महल मे सबके साथ अच्छा व्यवहार बना लिया एवं राजा अपारशक्ति से भी कुछ दिनों मे ही निकटता बढ़ा ली,अब अपारशक्ति और महल के और भी सदस्यों का गौरीशंकर विश्वासपात्र बन गया,राजा ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(६)
सूर्यप्रभा मैना के रूप मे पिंजरे मे छटपटाती रही लेकिन पिंजरे से निकल नहीं पाई,उसके नयनों से बहती हुई अश्रुओं की धारा से यह प्रतीत हो रहा था कि वो बहुत विवश थी,अत्यधिक प्रयास करने के उपरान्त भी वो स्वयं को ना छुड़ा सकी और उस छाया ने उसे श्रापित शीशमहल में पहुंचा दिया।। वहाँ उस सुनसान से महल का वातावरण सूर्यप्रभा को भयभीत कर गया किन्तु उसने अपने साहस को कम ना होने दिया,उसने प्रांगण से होते हुए,महल के भीतर प्रवेश किया, सिवाय अंधकार के वहाँ कुछ भी ना था,तभी उसे ध्यान आया कि प्रांगण मे तो ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(७)
भालचन्द्र अपने दरबारियों के साथ रणनीति बनाने में जुट गया, सब अपनी अपनी सलाह दे रहे थे और अभी कोई ऐसी योजना नहीं बन पाई थी जो पूर्णतः सफल हो सकें,भालचन्द्र का एक एक क्षण वर्ष के समान बीत रहा था।। और अगले दिन वैद्यनाथ और सुभागी नीलगिरी राज्य पहुंच गए,उन्हें सेनापति ने पहले ही सारी बातों से अवगत करा दिया था,भालचन्द्र के मुँख पर चिंता की रेखाएं देखकर वैद्यनाथ जी बोले____ इतना बड़ा छल किया,अम्बिका और अम्बालिका ने और सबसे बड़ी बात अम्बिका पर महाराज को कभी संदेह भी नहीं हुआ,कैसीं घृणित मंशा से उसने आपके ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(८)
सोनमयी की सुन्दरता को देखकर सहस्त्रबाहु की आंखें चौंधिया गई,इतनी सुन्दर युवती उसने पहले कभी नहीं देखी थी, इतनी और साथ में इतनी निडरता, उसने पहली बार किसी युवती में देखी थी।। क्षमा कीजिए,राजकुमार भालचन्द्र! मेरे कारण आप आहत हुए,भूलवश मैने आप पर खंजर से प्रहार किया,सोनमयी राजकुमार भालचन्द्र से बोली।। कोई बात नहीं बहन!जैसे हमने आपको शत्रु समझ लिया,उसी प्रकार आपने भी हमें शत्रु समझ लिया,भालचन्द्र ने सोनमयी से कहा।। आपने मुझे बहन कहा हैं तो इस बहन को भी अपना कर्तव्य निभाने दीजिए,पास ही मेरी झोपड़ी है, चलकर वहाँ विश्राम कीजिए और बाबा आपका ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(९)
रात्रि का समय__ विभूतिनाथ जी की झोपड़ी के निकट सबके मध्य विचार-विमर्श चल ही रहा था कि बोले__ मुझे याद आता हैं कि यहीं किसी स्थान पर शंकर जी का मंदिर हैं, महाराज प्रायः केवल मेरें साथ उस स्थान पर शेषनाग जी के दर्शन करने जाया करते थे,एक बार महाराज ने सावन के महीने में उस मंदिर के भीतर समाधि लगाई थीं, तब उन्होंने कहा था कि शेषनाग और शेषरानी ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और वरदान माँगने को कहा।। तब महाराज अपारशक्ति बोले___ मैनें आपकी भक्ति किसी वरदान के लिए नहीं ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१०)
भालचन्द्र, शेषनाग और शेषरानी सहित मंदिर के बाहर आया,सब शेषनाग और शेषरानी को देखकर आश्चर्यचकित और प्रसन्न भी थे,सबने को प्रणाम किया।। तभी विभूतिनाथ जी बोले,अब हमें और भी सावधानी बरतनी होगी क्योंकि अम्बालिका को ज्ञात हो गया कि हमारे साथ शेषनाग जी है तो वो अवश्य हमारे मार्ग मे विघ्न डालने का प्रयास करेंगी और जब तक हम अपने गन्तव्य तक ना पहुँच जाएं,तब तक हमें अपने पग फूँक फूँककर रखनें होंगे।। आप बिल्कुल सही कह रहें हैं, शेषनाग बोले।। आपकी ये समस्या हम वेष बदल कर हल कर देते हैं, शेषरानी बोली।। शेषनाग और ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(११)
रात्रि का तीसरा पहर प्रारम्भ हो चुका था,मूर्छित इच्छाधारी सर्पों का उपचार किया जा रहा था एवं जो जीवित बचे थे,उनका दाह संस्कार किया जा रहा था,शेषनाग अत्यधिक ब्यथित थे एवं रानी का मन भी द्रवित था,परन्तु कुछ किया भी नहीं जा सकता था,अम्बालिका ने छलपूर्वक अपना कार्य किया एवं सर्पों को हानि पहुँचाई,अब तो भालचन्द्र के क्रोध की सीमा का पार ना था,उसकी आँखों में प्रतिशोध की अग्नि प्रज्वलित हो रही थीँ, उसका मन करूणा से भरा था,उसे लग लग रहा था कि उसके कारण इतने निर्दोष इच्छाधारी सर्पों की हत्या हो गई।। मित्र! जो हुआ,वो बिल्कुल ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१२)
और फिर उस वृद्ध ने कहा कि मैं अपने घर पहुंचा, मुझे इतने दिनों बाद देखकर घरवालों को अत्यधिक हुई,मेरी पत्नी तो फूली ना समाई और बोली, मैं तुम्हें अब से कुछ नहीं कहूंगी,पर तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जाना।। मैंने रात्रि होने तक प्रतीक्षा की और रात्रि के दूसरे पहर में मैं उठा,देखा तो सब गहरी निंद्रा में लीन थे, मैंने एक कुल्हाड़ी उठाई, सर्वप्रथम अपने माता-पिता की हत्या की इसके उपरांत पत्नी की हत्या करके उसका रक्त एक कलश में भरकर अम्बालिका के लिए लेकर शीशमहल की ओर चल पड़ा।। अम्बालिका के पास जब मैं ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१३)
सूर्यप्रभा, राजकुमार का प्रेम देखकर द्रवित हो उठी,वो स्वयं को भाग्यशाली समझ रही थी,परन्तु उसे अब ये संदेह हो था कि अम्बालिका राजकुमार के मार्ग मे अवश्य अवरोध उत्पन्न करेंगी, जिससे वें यहाँ ना पहुँच पाएं और मैं इस रूप में हूँ कि मेरी स्वयं की माँ भी मुझसे अपरिचित हैं कि मैं ही उनकी बेटी हूँ, समझ मैं नहीं आ रहा कि ऐसा क्या करूँ, जिससे मैं अपने पूर्व रूप में आ सकूँ।। तभी रानी जलकुम्भी भी अम्बालिका की आहट सुनकर जाग उठी और रात्रि में अम्बालिका को मैना के पिंजरे के निकट खड़ा हुआ देखकर बोली___ ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१४)
नागदेवता ने स्वयं के और अम्बिका के मध्य हुई शत्रुता का कारण सबको बताया__ वैद्यनाथ जी तो ये कारण था कि वर्षो से अम्बिका के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला जल रही थी परन्तु आज भी तो वो सफल नहीं हो पाई और अब तो नागदेवता आपको और भी अत्यधिक सावधान रहने की आवश्यकता है ,अब तो एक रत्ती भी असावधानी महंगी पड़ सकती हैं इसलिए आपकी सुरक्षा के विषय में हम सबको और भी ध्यान देना होगा, दोनों बहने चाण्डालिका हैं, क्या पता कहाँ से आकर किस रूप को धरकर प्रहार कर दें।। बिल्कुल सही कहा ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१५)
तू ही मेरी बेटी प्रभा है, मैं तुझे पहचान क्यों नहीं पाई?तू इस रूप मे हैं कि तुझे देखकर कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि तू कैसी दिखती है बड़ी होकर,बहुत विवश हूँ मैं,मेरी पुत्री और रोते हुए जलकुम्भी ने मैना बनी सूर्यप्रभा पर प्रेमपूर्वक अपना हाथ रखा और माँ का ऐसा प्रेमभरा स्पर्श पाकर सूर्यप्रभा के नेत्रों से अश्रुओं की धारा बह चली।। माँ और पुत्री सारी रात्रि यूँ ही वार्तालाप करतीं रहीं,उस रात्रि क्या क्या हुआ था? वो सारी घटना जलकुम्भी ने सूर्यप्रभा से कह सुनाई और बोली तुझे ज्ञात है मेरी पुत्री कि मैने ये ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१६)
नागदेवता और नागरानी आज अत्यधिक प्रसन्न थे क्योंकि नागरानी ये देखकर आई थी कि सूर्यप्रभा सुरक्षित है और रानी भी उसके संग है, दोनों को आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था,दोनों ही वार्तालाप करते करते सो गए, परन्तु उधर अम्बालिका अपनी हार को भला कैसे सहन कर सकती थी,वो तो शीशमहल से इसलिए निकली थी कि नागदेवता और नागरानी को हानि पहुँचा सकें।। वो वहीं एक टीले के पीछे छिपकर बैठ गई क्योंकि भोर होने मे अब और अधिक समय नहीं रह गया था एवं ये उसे ज्ञात था कि पूजा अर्चना के समय नागदेवता और नगरानी दोनों ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१७)
अम्बालिका के जाते ही नागदेवता झाड़ियों से बाहर निकले और रानी जलकुम्भी से पूछा___ क्या अम्बालिका ने नागरानी को स्वर्णमहल में रखा है? जी, नागदेवता!वो तो अभी यही कहकर गई है कि नागरानी स्वर्णमहल में बंदी हैं,जलकुम्भी बोली।। परन्तु अब मैं कैसे ज्ञात करूं कि स्वर्णमहल कहां है? नागदेवता बोले।। नागदेवता! आप चिंतित ना हों,स्वर्णमहल के विषय में मैं आपको सब बताती हूं,मैं ने इतनों वर्षो स्वर्णमहल में वास किया है,रानी जलकुम्भी बोली।। ये तो बहुत ही अच्छा संयोग हुआ महारानी जलकुम्भी और आपके महाराज अपारशक्ति मेरे बहुत बड़े भक्त थे,एक बार उन्होंने मेरी सहायता ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१८)
उधर नागदेवता,स्वर्णमहल पहुँच चुके थे,उन्होंने देखा कि स्वर्णमहल का द्वार बहुत ही भव्य है और ना जाने कितने ही वहाँ पहरा दे रहें हैं, वो तो सर्प रूप में थे,इसलिए उन्होंने द्वार के भीतर सरलता से प्रवेश पा लिया,उन्होंने स्वर्णमहल में नागरानी को खोजना प्रारम्भ किया,परन्तु सभी स्थानों पर पहरा था,तभी उन्होंने किसी को वार्तालाप करते हुए सुना और वो उस ओर गए, उन्होंने देखा कि अम्बालिका किसी दासी से वार्तालाप करते हुए कह रही थी कि ___ मैने तुमसे कहा था ना कि नागरानी को केवल पिटारी में ही बंधक बनाकर रखना है, अम्बालिका बोली।। देवी! ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(१९)
अपनी असफलता पर रानी जलकुम्भी का इस भाँति हँसना अम्बालिका को नहीं भाया और उसने क्रोधित होकर अम्बिका से कि___ तुम्हें स्वर्णमहल पहुँचने में इतना बिलम्ब क्यों हुआ?तुम बिलम्ब ना करती तो वो नागरानी अपनी योजना मे सफल ना होती।। सुनो! अम्बालिका! मैं कोई तुम्हारी दासी नहीं हूँ जो तुम मुझसे ऐसा व्यवहार कर रही हो,तुम्हारी बड़ी बहन हूँ, तुम्हारे सभी षणयंत्र में तुम्हारे संग रहती हूँ तो इसका ये तात्पर्य नहीं है कि तुम मेरा कभी भी और किसी के भी समक्ष अपमान कर दोगी,ऐसा कहकर अम्बिका क्रोधित होकर वाटिका से चली गई।। ये सब ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(२०)
नागदेवता, नागरानी और जलकुम्भी के मध्य वार्तालाप चल ही रहा था तभी वाटिका में किसी के आने की आहट दी,रानी जलकुम्भी बोली,लगता है कोई आ रहा है,कदाचित अम्बालिका ही होगी, वही इसी समय हमें एक बार अवश्य देखने आती है कि अभी भी हम बंधक या नहीं, तब नागदेवता बोले तो यही समय है नागरानी आप अम्बिका का रूप लीजिए और मैं सर्प का और दोनों ने यही किया।। तभी अम्बालिका ने प्रवेश किया और वाटिका में अम्बिका को पहले से उपस्थित देख कर बोली___ तुम और यहाँ,जलकुम्भी से तुम्हें कौन सा कार्य आ पड़ा जो तुम वाटिका ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(२१)
छत्रसाल और वैद्यनाथ जी दोनों ने ही महाराज अपार का पुतला बनाना प्रारम्भ कर दिया,दोनों प्रातः से सायं तलघर में यही कार्य करते और पुतले को तलघर में ही घास के तले छुपाकर बाहर आ जाते,ये कार्य दोनों को छुप छुपकर करना पड़ रहा था कि कहीं किसी को कोई सूचना ना मिल जाएं, छत्रसाल भी बहुत ही निपुण था इस कार्य में और स्वभाव का भी सरल और सादा व्यक्ति था।। उसने अपने कार्य और अपने स्वभाव के कारण शीघ्र ही सबका हृदय जीत लिया,चार पाँच दिंनो में ही पुतला तैयार हो गया,बस कुछ अंतिम कार्य शेष ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(२२)
सोनमयी की दशा अत्यन्त गम्भीर थी,सभी स्थिति देखकर सभी चिंतित हो उठे,सहस्त्रबाहु तो जैसे अपनी सुध ही भूल गया कुछ भी नहीं सूझ रहा था,उसकी मनोदशा को भालचन्द्र भलीभाँति समझता था और उसने उसे सान्त्वना देने का प्रयास किया, लेकिन ऐसी स्थिति में कोई भी हो जिसके ऊपर बीतती है वही समझ सकता है।। विभूतिनाथ जी ने शीघ्र ही सोनमयी का उपचार प्रारम्भ कर दिया,सभी इस कार्य में लगें हुए थे,जिससे जो बन पड़ता था वो सभी अपना अपना सहयोग दे रहें थें,जितनी भी औषधियों की आवश्यकता पड़ रही थी तो उन्हें भालचन्द्र ला रहा था,किन्तु इतने समय ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(२३)
सबने सहमति जताई कि महाराज अपार शक्ति के पुतले को अब शीघ्र ही उनके पूर्व रूप ले आना चाहिए, वो ही कोई सुझाव बताएंगे भालचन्द्र को स्वर्णमहल से मुक्त कराने का,सहस्त्रबाहु अत्यधिक चिन्तित हो उठा,उसे बस ये चिंता खाएं जा रही थी कि भालचन्द्र को बंधक बनाने के उपरांत अम्बालिका ना जाने उसके संग कैसा व्यवहार करें, इसलिए उसने नागदेवता और विभूतिनाथ से प्रार्थना की कि वे शीघ्र है महाराज अपारशक्ति को उनके पूर्व रूप मे लाने का कष्ट करें।। विभूतिनाथ जी बोले,भोर होते ही इस कार्य को पूजा अर्चना के समय पूर्ण किया जाएगा,मैं ही इस कार्य ...Read More
चन्द्र-प्रभा--भाग(२४)
अपारशक्ति आज अपने परिवार के संग थे,उन्होंने जलकुम्भी की दशा देखी तो द्रवित हो उठे,उनकी जलकुम्भी कुम्हला गई थीं, ने अपारशक्ति के चरणस्पर्श किए और उन्होंने जलकुम्भी को शीघ्रता से अपने हृदय से लगा लिया और पिंजड़े को तोड़कर मैना बनी सूर्यप्रभा को अपनी हथेली में बैठाकर रो पड़े और बोले।। ब्यथित ना हो मेरी पुत्री! मैं राजकुमार को अवश्य मुक्त करा लूँगा और हम सब अम्बिका और अम्बालिका का आज रात्रि ही सर्वनाश कर देंगें।। मैं आज अत्यधिक प्रसन्न हूँ महाराज!कितने वर्षों से मै ये स्वप्न देख रही थीं कि आप अपने पूर्व रूप में आ ...Read More
चन्द्र-प्रभा--(अन्तिम भाग)
किन्तु नागरानी का अम्बिका बनकर स्वर्णमहल में जाने पर नागदेवता ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि____ क्षमा महाराज अपार! एक बार नागरानी के प्राण संकट में पड़ चुके हैं और मैं भी उन्हें खोजने गया था तब अम्बालिका ने मुझे भी बंधक बनकाकर पिटारे मे बंदी बना दिया था,उस समय हम बड़ी कठिनाईयों के साथ स्वर्णमहल से बाहर आ पाए थे और यदि इस बार भी कुछ ऐसा हुआ तो।। तभी नागरानी ने नागदेवता को समझाते हुए कहा कि____ ऐसा आवश्यक नहीं है नागदेवता कि इस बार भी हमारे प्राण संकट में पड़ जाएं और हमने ...Read More